[ऊर्जा प्रबंधन]

ऊर्जा प्रबंधन का तात्पर्य ऊर्जा की मांग एवं पूर्ति के मध्य सामंजस्य बैठाते हुए, ऊर्जा के उत्पादन तथा वितरण से संबंधित विभिन्न समस्याओं का उपयुक्त समाधान करने से है। 

ऊर्जा-प्रबंधन के उद्देश्य-:

  • ऊर्जा संकट की स्थिति से निपटना। 

  • सभी लोगों तक, वहनीय कीमतों पर ऊर्जा की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना। 

  • ऊर्जा दक्षता एवं ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना। 

  • ऊर्जा प्राप्ति के लिए विदेशी-निर्भरता को कम करना। 

ऊर्जा-प्रबंधन के चरण या रणनीति-:

  • ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता पता लगाकर, ऊर्जा की स्थिति का सटीक विश्लेषण करना। 

  • ऊर्जा की मांग एवं पूर्ति से संबंधित सटीक पूर्वानुमान लगाना जैसे कि- भविष्य में कितनी और कैसी ऊर्जा की आवश्यकता होगी? उसकी पूर्ति किस-किस प्रकार से की जा सकती है?

  • भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए ऊर्जा क्रय, ऊर्जा उत्पादन तथा ऊर्जा वितरण से संबंधित उपयुक्त नीतियां और कार्यक्रम बनाना। 

  • निर्धारित किए गए ऊर्जा नीतियां एवं कार्यक्रमों का पूर्ण क्रियान्वयन करके निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना। 

  • उर्जा के दक्षता पूर्ण प्रयोग की संभावनाओं को तलाश कर, ऊर्जा के दक्षता पूर्ण प्रयोग को बढ़ावा देना। 

  • ऊर्जा संरक्षण से संबंधित जन जागरूकता फैलाना।

ऊर्जा प्रबंधन से संबंधित प्रमुख मुद्दे और चुनौतियां-:

जनसंख्या वृद्धि-: वर्तमान में भारत किचन संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और जनसंख्या के बढ़ने से भारत में प्रतिवर्ष लगभग 12% ऊर्जा की मांग बढ़ रही है किंतु इस गति से ऊर्जा की पूर्ति नहीं बढ़ पा रही है जो भारत की ऊर्जा(सुरक्षा) प्रबंधन से संबंधित प्रमुख चुनौती है। 

परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत पर निर्भरता-: भारत में लगभग 67% विद्युत का उत्पादन परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से होता है, जबकि भारत में परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों के बहुत ही सीमित भंडार है जो समाप्त हो सकते हैं परिणाम स्वरूप ऊर्जा संकट जैसी समस्या देखने को मिलती है ऊर्जा(सुरक्षा) प्रबंधन के मामले में सबसे बड़ी चुनौती है। 

विदेशों पर निर्भरता-: भारत के पास भारत की मांग के अनुसार जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधन पर्याप्त मात्रा में मौजूद नहीं यही कारण है कि भारत को पेट्रोलियम, कोयला एवं रक्त गैस के लिए विदेशों पर निर्भर होना पड़ता है, वर्तमान में भारत की कुल जरूरत का लगभग 80% कच्चा तेल, 25% कोयला, तथा लगभग 30% प्राकृतिक गैस विदेशों से आयात होता है। इस कारण से हमें अपनी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है। 

गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का पर्याप्त विकास न होना-: भारत में विभिन्न गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों जैसे- सौर ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा की व्यापक संभावनाएं मौजूद हैं, लेकिन पर्याप्त तकनीकी एवं अधोसंरचना के अभाव में विभिन्न ने गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से उर्जा उत्पादन का पर्याप्त विकास एवं विस्तार नहीं हो पा रहा है,

जन जागरूकता का अभाव-: भरत के अधिकांश लोग ऊर्जा के महत्व को ना समझते हुए ऊर्जा का अपव्यय करते हैं जैसे- अनावश्यक होने पर भी टीवी ,पंखा चलाना। जो भी ऊर्जा सुरक्षा एवं ऊर्जा प्रबंधन की एक प्रमुख चुनौती है। 

समाधान-:

  • गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों का तेजी से विकास एवं विस्तार किया जाए। विशेषकर सौर ऊर्जा एवं बायोमास ऊर्जा।  

  • डीजल एवं पेट्रोल से चलने वाली गाड़ी के स्थान पर सोलर इलेक्ट्रिसिटी, बायोडीजल या सीएनजी से चलने वाली बहनों का विकास किया जाए ताकि पेट्रोलियम तेल की मांग कम हो। 

  • लोगों को ऊर्जा के समुचित प्रयोग के प्रति जागरूक किया जा‌ए। 

  • ऊर्जा के दक्षता पूर्ण उपकरणों का विकास विस्तार किया जाए। 

  • हमें ऐसी संस्कृति के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए जिसमें कम से कम ऊर्जा की खपत होती हो। ताकि ऊर्जा की बचत हो सके।

ऊर्जा संगठनात्मक एकीकरण-:

ऊर्जा संगठनात्मक एकीकरण का तात्पर्य- ऊर्जा से संबंधित कार्य करने वाले विभिन्न संगठनों(मंत्रालयों एवं संस्थानों) के एकीकरण से है। 

आवश्यकता-:

वर्तमान समय में हमारे देश में ऊर्जा क्रय, ऊर्जा उत्पादन, ऊर्जा वितरण और ऊर्जा की आपूर्ति नियंत्रण से संबंधित,केंद्र एवं राज्य स्तरीय अनेकों ऊर्जा संगठन(मंत्रालय एवं संस्थान) मौजूद हैं, जो अपने विशिष्ट लक्ष्य के लिए कार्य करते हैं, किंतु इनकी मध्य आपसी सामंजस्य नहीं होता है जिससे ऊर्जा-प्रबंधन से संबंधित विभिन्न समस्या उत्पन्न होते हैं जैसे-

  • आपसी सहयोग के अभाव की समस्या। 

  • ऊर्जा संबंधी व्यवस्थित आंकड़े उपलब्ध ना हो पाने की समस्या। 

  • ऊर्जा संबंधी एकीकृत नीति का निर्माण ना हो पाने की समस्या। 

अतः उर्जा के समुचित प्रबंधन के लिए,इन सभी संगठनों के एकीकरण की आवश्यकता है।

ऊर्जा संगठनों के एकीकरण से लाभ-:

  • सभी ऊर्जा संगठनों के मध्य आपसी सामंजस्य स्थापित हो सकेगा,ऊर्जा-प्रबंधन संबंधी निर्णय शीघ्रता से हो पाएंगे।। 

  • पूरे देश की ऊर्जा संबंधी व्यवस्थित आंकड़े प्राप्त हो जाएगी जो एकीकृत नीति निर्माण में सहायक है। 

  • विभिन्न ऊर्जा मंत्रालय एवं संस्थानों की व्यक्तिगत चुनौतियां एवं समस्याओं का समाधान,सामूहिक रूप से आसानी से किया जा सकेगा। 

  • विभिन्न समकक्ष ऊर्जा संस्थानों के मध्य आपसी प्रतिद्वंद समाप्त होगा। 

  • ऊर्जा संसाधनों का इष्टतम प्रयोग हो सकेगा। 

भारत में ऊर्जा संगठनात्मक विकास हेतु किए गए प्रयास-:

सरकार ने समुचित ऊर्जा प्रबंधन हेतु ऊर्जा संगठनों के एकीकरण हेतु कई प्रयास किए हैं, जैसे-

  • नवीनीकरण ऊर्जा मनचला एवं विद्युत मंत्रालय के लिए एक ही मंत्री नियुक्त कर दिया गया है। 

  • नीति आयोग ने राष्ट्रीय ऊर्जा नीति के मसौदे में यह कहा है कि भारत सरकार के सभी ऊर्जा मंत्रालय जैसे प्राकृतिक गैस मंत्रालय कोयला मंत्रालय नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय विद्युत मंत्रालय को मिलाकर एकीकृत ऊर्जा मंत्रालय बनाया जाए। 

 सुझाव-:

एकीकृत ऊर्जा मंत्रालय बनाने के साथ-साथ देश के सभी केंद्र एवं राज्य स्तरीय उर्जा संस्थानों को वाइड एरिया नेटवर्क के जरिए आपस में जोड़ा जाए तथा एकीकृत मीटिंग की व्यवस्था की जाए। 

परिचालन कार्य में ऊर्जा प्रबंधन

किसी भी संस्था या संगठन द्वारा संचालित की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों को परिचालन कार्य(operational function) कहते हैं। और परिचालन कार्यों में उपयोग होने वाली ऊर्जा के अपव्यय को रोककर, ऊर्जा दक्षता एवं ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना ही परिचालन कार्यों में ऊर्जा प्रबंधन कहलाता है। 

परिचालन कार्यों में ऊर्जा-प्रबंधन के उद्देश्य-:

  • संगठन के ऊर्जा व्यय को कम करना। 

  • संगठन की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना। 

  • ऊर्जा दक्षता एवं ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना। 

  • ऊर्जा आयात की निर्भरता को कम करना।

परिचालन कार्यों में ऊर्जा प्रबंधन के स्तर-:

सुविधा प्रबंधन-:

किसी भी संस्था या संगठन में विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध करवाने में उपयोग होने वाली ऊर्जा के व्यय को कम करना सुविधा प्रबंधन कहलाता है। जैसे- इको ऑफिस बनाकर तथा सभी व्यक्तियों के कार्य जगह एक ही स्थान पर स्थापित करके अलग-अलग ऑफिस की सुविधाओं में होने वाली ऊर्जा-व्यय को कम किया जा सकता है। 

संभार तंत्र (logistics)-:

संगठन के उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में उपयोग होने वाली ऊर्जा के व्यय को कम करके ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना लॉजिस्टिक ऊर्जा प्रबंधन कहलाता है। जैसे-सड़क परिवहन के स्थान पर जल मार्ग का उपयोग करना। 

उत्पादन के स्तर में ऊर्जा का प्रबंधन-:

कम से कम ऊर्जा-व्यय द्वारा अधिकतम उत्पादन करना,उत्पादन में ऊर्जा प्रबंधन कहलाता है जैसे-अधिक ऊर्जा दक्षता वाली मशीनों का उपयोग करना ताकि कम ऊर्जा द्वारा अधिकतम उत्पादन हो सके। 

उत्पादन योजना और नियंत्रण

उत्पादन योजना एवं नियंत्रण ऊर्जा प्रबंधन का तात्पर्य- उत्पादन की क्रिया में उपयोग होने वाली ऊर्जा के व्यय को कम करने हेतु, उत्पादन तकनीक की उपयुक्त योजना बनाना तथा उत्पादन गतिविधियों पर नियंत्रण रखने से है। जैसे- कम ऊर्जा व्यय तकनीक से उत्पादन करना, अनावश्यक होने पर प्रत्येक मशीन को बंद कर देना। 

रखरखाव-: रखरखाव का तात्पर्य उत्पादन कार्य में उपयोग होने वाली मशीनों तथा विभिन्न यंत्रों का समय-समय पर पर्यवेक्षण करना तथा रिपेयरिंग करवाने से है। ताकि मशीनों की ऊर्जा दक्षता अधिक रहे और ऊर्जा का अपव्यय कम हो। 

ऊर्जा रणनीति-;

ऊर्जा रणनीति का तात्पर्य-: ऊर्जा संकट से निपटने तथा सभी लोगों तक वहनीय कीमतों पर ऊर्जा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई लक्ष्य पूर्ण नीति से है। 

ऊर्जा राजनीति के उद्देश्य-:

  • ऊर्जा दक्षता एवं ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना। 

  • ऊर्जा संकट की स्थिति से निपटना। 

  • सभी लोगों तक, वहनीय कीमतों पर ऊर्जा की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना। 

  • ऊर्जा प्राप्ति के लिए विदेशी-निर्भरता को कम करना। 

  • पर्यावरण प्रदूषण कम करने हेतु नवीनीकरण ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना। 

ऊर्जा रणनीति के प्रकार-:

  • अल्पकालीन ऊर्जा रणनीति

  • दीर्घकालीन ऊर्जा रणनीति

अल्पकालीन ऊर्जा रणनीति-

ऊर्जा प्रबंधन की वह नीति जो तत्कालीन ऊर्जा संकट से निपटने के लिए बनाई जाती है उसे अल्पकालीन ऊर्जा रणनीति कहते हैं। 

अर्थात इस रणनीति में किसी भी तरह से तत्कालीन समय की ऊर्जा की मांग को पूरा करने पर बल दिया जाता है। 

दीर्घकालीन ऊर्जा रणनीति-

ऊर्जा प्रबंधन की वह नीति जो भविष्य की ऊर्जा संभावना तथा पर्यावरण स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए बनाई जाती है, दीर्घकालीन ऊर्जा राजनीति कहते हैं। 

ऊर्जा नीति से संबंधित प्रमुख मुद्दे एवं चुनौतियां-

  • जनसंख्या वृद्धि

  • परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर अधिक निर्भरता

  • जीवाश्म ईंधन के लिए विदेशों पर निर्भरता

  • गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का पर्याप्त विकास ना होना

  • जन जागरूकता का अभाव

  • ऊर्जा के दक्षतापूर्ण उपकरणों का विकास करने की पर्याप्त प्रद्यौगिकी का अभाव। 

  • पर्यावरण प्रदूषण-: हमारे देश की लगभग 67% विद्युत का उत्पादन परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत से किया जाता है और एक आंकड़े के अनुसार, भारत में प्रतिदिन ऊर्जा उत्पादन के लिए लगभग 18 लाख टन कोयले को जलाया जाता है, जिससे व्यापक मात्रा में पर्यावरण प्रदूषण होता है जो एक ऊर्जा उत्पादन की प्रमुख चुनौती है।

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