[ज्वालामुखी]
ज्वालामुखी भूपटल का वह प्राकृतिक छिद्र या दरार होता है, जिससे होकर पृथ्वी के अंदर का फैसला हुआ पदार्थ अर्थात् लावा, जलवाष्प ,गैस, धूल कण ,विस्फोटक पदार्थ आदि अचानक से एक साथ निकलते हैं।
.
ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाले पदार्थ-:
जलवाष्प 90%
गैसें-:
नाइट्रोजन तथा उसके यौगिक।
सल्फर के योगिक
कार्बन डाइऑक्साइड
कार्बन मोनोऑक्साइड
हाइड्रोजन
आर्गन
हीलियम।
चट्टानी टुकड़े-:
टफ-: ज्वालामुखी से निकले ऐसे ऐसे चट्टानी टुकड़े जो रेत के आकार की भांति होते हैं।
लैपली-: ज्वालामुखी से निकले ऐसे चट्टानी टुकड़े जिनका आकार मटर के दाने के समान होता है।
बाम्ब -: ज्वालामुखी सिलने के लिए ऐसे चट्टानी टुकड़े जिनका अभ्यास कुछ इंच से लेकर कई फीट तक होता है।
ब्रेसिया -: ज्वालामुखी से निकले ऐसे चट्टानी टुकड़े जो कोणाकृत आकृति के होते हैं
लावा एवं इसके प्रकार-:
.
पृथ्वी के अंदर दुर्बलता मंडल में पाए जाने वाला तरल पदार्थ मैग्मा कहलाता है और जब यह मैग्मा ज्वालामुखी क्रिया के दौरान धरातल के ऊपर आ जाता है तो इसे लावा कहते हैं
और लावा के ठंडे होने से आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है।
लावा के प्रकार-:
सिलिका की मात्रा के आधार पर-:
अम्लीय लावा
क्षारीय लावा
अम्लीय लावा-:
वह लावा जिसमें सिलिका की मात्रा 65 से 85% तक होती है उसे अम्लीय लावा कहते हैं।
इसकी विशेषता
यह गाढा लावा होता है
यह पीले रंग का लावा होता है।
इस लावा के जमने से गुम्मेद आकर चट्टाने बनती हैं क्योंकि यह फैलता नहीं है।
उदाहरण के लिए-: इटली के स्ट्रांबोली ज्वालामुखी का लावा।
क्षारीय लावा-:
वह लावा जिसमें सिलिका की मात्रा 65% से कम होती है उसे क्षारीय लावा कहते हैं।
विशेषताएं
यह कम गाढ़ा लावा अर्थात पतला लावा होता है।
यह काले रंग का होता है।
उदाहरण के लिए-: हवाई दीप यूएसए, के मोनालोआ ज्वालामुखी का लावा।
ज्वालामुखी उद्गार के कारण-:
प्लेट विवर्तनिकी गतिविधियां-: ज्वालामुखी उद्गार का मुख्य कारण प्लेटो के मध्य होने वाली अभिसारी एवं अपसारी गति है। प्लेटो की अभिसारी गति से उच्च तीव्रता वाले ज्वालामुखी का उद्गार होता है जबकि प्लेटों की अपसारी गति से निम्न तीव्रता वाले दरारी ज्वालामुखी का उद्गार होता है।
भूगर्भ के तापमान में वृद्धि-:
जब पृथ्वी के अंदर रेडियोएक्टिव पदार्थों की सक्रियता बढ़ने से दुर्बलता मंडल का तापमान बढ़ जाता है तो अधिक अधिक चट्टाने निर्माण में बदल जाती हैं परिणाम स्वरूप मैग्मा की मात्रा बढ़ जाती है और मैग्मा धरातल को चीरकर निकलता है जिससे ज्वालामुखी का अधिकार होता है।
भूकंप-:
कभी-कभी व्यापक भूकंप आने के कारण भूपटल में दरार का निर्माण होता है जिससे उस दरार से लावा निकलने लगता है और ज्वालामुखी का उद्धार हो जाता है।
भूगर्भ में जलवाष्प में वृद्धि-:
जब पृथ्वी के अंदर का जल ताप के कारण जल बास में बदल जाता है, तो उस जलवाष्प का आयतन उपेक्षाकृत अधिक होता है जिससे धरातल पर अधिक दबाव पड़ता है और वह जलवाष्प कमजोर स्थल को छोड़कर बाहर निकलता है जिससे ज्वालामुखी का अधिकार होता है।
ज्वालामुखी द्वारा निर्मित बहर्वेधी स्थल रूप-:
दरारी ज्वालामुखी उद्गार से निर्मित स्थलाकृति -:
लावा पठार-:
जब दरारी ज्वालामुखी से निकले छारीय लावा के फैलने से जिस पठार का निर्माण होता है उसे लावा पठार कहते हैं।
जैसे-: दक्कन का पठार
लावा मैदान-:
जब दरारी ज्वालामुखी उदगार से निकले अधिक छारीय लावा के फैलने से जिस मैदान का निर्माण होता है उसे लावा मैदान कहते हैं।
जैसे-: रॉकीज पर्वत के पूर्व में स्थित कोलोरेडो प्रांत का बेसाल्टिक लावा मैदान।
केंद्रीय ज्वालामुखी उद्गार से निर्मित स्थलाकृति-:
सिंडर शंकु-:
जब ज्वालामुखी उद्गार से लावा अपेक्षित रूप से कम तथा राख एवं विखंडित पदार्थ अधिक निकलते हैं तो सिंडर शंकु का निर्माण होता है,
सिंडर शंकु की ऊंचाई प्रायः कम होती है
सिंडर शंकु का ढाल अवतल होता है
सिमरन शंकु का क्रेटर चौड़ा होता है।
.
जैसे-: मेक्सिको का जोरल्लो पर्वत सिंडर शंकु का उदाहरण है।
लावा शंकु-:
जब ज्वालामुखी उद्गार के दौरान अपेक्षित रूप से लावा अधिक निकलता है और राख एवं चट्टान टुकड़े कम निकलते हैं तो लावा शंकु का निर्माण होता है।
लावा शंकु दो प्रकार के होते हैं-:
अम्लीय लावा शंकु
छारीय लावा शंकु
अम्लीय लावा शंकु-:
जब ज्वालामुखी उद्गार के दौरान अम्लीय लावा निकलता है तो अम्लीय (गाढा)अलावा शंकु का निर्माण होता है, अम्लीय लावा शंकु की विशेषता यह है कि
अम्लीय शंकु की ऊंचाई अधिक होती है।
यह शौकु तीव्र ढाल वाले होते हैं।
इन शंकु का क्षेत्रीय विस्तार कम होता है।
.
उदाहरण -: इटली के स्ट्रांबोली के ज्वालामुखी शंकु।
छारीय(शील्ड) लावा शंकु-:
जब ज्वालामुखी उद्गार के दौरान क्षारीय लावा निकलता है तो छारीय लावा शंकु का निर्माण होता है
छारीय लावा शंकु की विशेषता
इनकी ऊंचाई प्रायः कम होती है।
इनका ढाल की अपेक्षाकृत कम तीव्र होता है।
छारीय लावा शंकु का क्षेत्रीय विस्तार अधिक होता है।
.
उदाहरण-: हवाई दीप के मोनालोआ के ज्वालामुखी शंकु।
मिश्रित ज्वालामुखी शंकु-:
जब ज्वालामुखी उद्गार से लावा के साथ साथ, राख तथा छोटी-छोटी चट्टानी टुकड़े भी निकल कर विभिन्न परतों में जमा हो
जाते हैं तो मिश्रित शंकु का निर्माण होता है।
इस प्रकार की ज्वालामुखी संघों की मुख्य विशेषता यह होती है कि इसमें लावा तथा राख, चट्टानी टुकड़े की विभिन्न परतें पाई
जाती है।
.
जैसे -:अमेरिका का रेनियर तथा हुड ज्वालामुखी।
परपोषित (आश्रित)शंकु-:
जब ज्वालामुखी शंकु की ढाल में ज्वालामुखी के निकलने से एक छोटे शंकु का निर्माण हो जाता है तो उसे परपोषित शंकु कहते हैं।
जैसे माउंट सास्ता पर एक परपोषित शंकु है।
क्रेटर-:
सभी ज्वालामुखी शंकु के शीर्ष में पाई जाने वाली कीपनुमा संरचना जो वाहक नलिका से जुड़ी हुई होती है उसे क्या कहते हैं।
.
काल्डेरा-:
जब अत्यधिक विस्फोटक प्रकार की ज्वालामुखी का उद्गार होता है, तो धनकर विस्फोट के कारण स्थल का कुछ भाग ऊपर उछल कर पुनः उसी स्थान में गिरता है जिससे विशाल क्रेटर का निर्माण होता है जिसे काल्डेरा कहते हैं।
.
जैसे -:जापान का आसो काल्डेरा।
और जब इस काल्डेरा में जल भर जाता है तो ऐसे काल्डेरा झील कहते हैं।
प्लग -:
जब ज्वालामुखी उद्गार शांत होने के उपरांत वाहक नलिका का लावा नाली की आकृति में ही जम जाता है और राजपूत के आसपास की चट्टानों का अपरदन हो जाता है तो वह नलिका के आकार का जमा हुआ लावा खंबे नुमा संरचना में दिखाई देने लगता है जिसे प्लग कहते हैं।
धुंआरे-:
वह ज्वालामुखी स्थान जहां से लगातार जलवाष्प एवं ज्वालामुखी गैसें निकलती रहती हैं उसे धुंआरे कहते हैं।
जैसे-: सहस्त्र धुंआरों की घाटी अलास्का ,यूएसए।
गीजर-:
वह ज्वालामुखी स्थान जहां से लगातार गर्म जल एवं गर्म गैस का उत्सर्जन होता है उसे गीजर कहते हैं।
उदाहरण के लिए-: ओल्ड फैथफुल गीजर, येलोस्टोनपार्क यूएसए।
ज्वालामुखी के प्रकार
सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार
सक्रिय ज्वालामुखी
सुसुप्त ज्वालामुखी
निष्क्रिय या मृत ज्वालामुखी।
उदगार के आधार पर-:
दरारी ज्वालामुखी
केंद्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी।
तीव्रता के आधार पर-:
हवाई तुल्य ज्वालामुखी
स्ट्रांबोली ज्वालामुखी
वल्कैनियन ज्वालामुखी
पीलियन ज्वालामुखी।
सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार
सक्रिय ज्वालामुखी-:
ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से सदैव लावा, विखंडित पदार्थ ,ज्वालामुखी गैस निकलती रहती हैं उन्हें सक्रिय या जागृत ज्वालामुखी कहते हैं।
वर्तमान में विश्व में सक्रिय ज्वालामुखी की संख्या लगभग 500 है।
उदाहरण-:
हवाई दीप का किलायु ज्वालामुखी।
इक्वाडोर का कोटोपैक्सी ज्वालामुखी।
अर्जेंटीना का ओजस डेल सैलाडो ज्वालामुखी।
इटली का स्ट्रांबोली ज्वालामुखी।
भारत का बैरन दीप ज्वालामुखी।
प्रसुप्त ज्वालामुखी-:
ऐसे ज्वालामुखी जिनमें लंबे समय से उद्गार नहीं हुआ हो, किंतु कभी भी अचानक से उद्गार होने की संभावना हो उन्हें प्रसुप्त या सोए हुए ज्वालामुखी कहते हैं।
जैसे-:
इंडोनेशिया का क्राकाटोआ,ज्वालामुखी।
हवाई दीप का मोनाकी ज्वालामुखी।
इटली का विषुवियस ज्वालामुखी
जापान का फ्यूजीयामा ज्वालामुखी
भारत का नारकोंडम दीप का ज्वालामुखी।
मृत या शांत ज्वालामुखी-:
ऐसे ज्वालामुखी जिनमें लंबे समय से कोई उद्गार नहीं हुआ हो और ना ही भविष्य में उद्गार होने की संभावना हो उन्हें मृत शांत ज्वालामुखी कहते हैं।
जैसे-:
म्यांमार का पोपा ज्वालामुखी।
एंडीज पर्वत का एकांकागुआ ज्वालामुखी।
तंजानिया का किलीमंजारो ज्वालामुखी।
उद्गार के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार
दरारी ज्वालामुखी-:
ऐसे ज्वालामुखी जिनमें दरार के माध्यम से धीमी गति से लावा निकलता है उन्हें दरारी ज्वालामुखी कहते हैं।
दरारी ज्वालामुखी से सामान्यतः क्षारीय प्रकृति का पतला लावा निकलता है। जो बहुत बड़े क्षेत्र में फैल जाता है।
केंद्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखी-:
दरारी ज्वालामुखी के विपरीत ऐसे ज्वालामुखी जिनमें गोल आकार के छिद्र से लावा निकलता है।
केंद्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखी से सामान्यता अम्लीय प्रकृति का लावा निकलता है, जो काफी गाढ़ा होता है।
तीव्रता के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार-:
हवाई तुल्य ज्वालामुखी-:
ऐसे केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी जिनका उद्गार शांत ढंग से होता है अर्थात जो कम विस्फोटक होते हैं उन्हें हवाई तुल्य ज्वालामुखी कहते हैं, ज्वालामुखी से निकले लावा में सिलिका की मात्रा कम होती है।
और चूंकि इस प्रकार की ज्वालामुखी हवाई दीप में पाए जाते हैं इसलिए इन्हें हवाई तुल्य ज्वालामुखी कहा जाता है।
उदाहरण-: हवाई दीप के ज्वालामुखी।
स्ट्रांबोली तुल्य ज्वालामुखी-:
ऐसे केंद्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी जो हवाई तुल्य ज्वालामुखी से अधिक विस्फोटक किंतु वल्कैनियन ज्वालामुखी की तुलना में कम विस्फोटक होते हैं उन्हें स्ट्रांबोली तुल्य ज्वालामुखी कहते हैं।
उदाहरण के लिए-: इटली का स्ट्रांबोली ज्वालामुखी।
वल्कैनियन ज्वालामुखी-:
ऐसे केंद्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी जिनके उद्गार के दौरान लावा के साथ अत्यधिक मात्रा में धूल एवं गैस निकलती है जो ऊंचाई में जाकर फूलगोभी का रूप ले लेती हैं उन्हें वल्कैनियन ज्वालामुखी कहते हैं।
उदाहरण-: इटली का विषुवियस ज्वालामुखी।
पीलियन ज्वालामुखी-:
ऐसे केंद्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी जिनका उद्गार अत्यधिक विस्फोटक प्रकार का होता है, उन्हें पीलियन ज्वालामुखी कहते हैं, इस ज्वालामुखी में अत्यधिक अम्लीय प्रकृति का लावा निकलता है।
उदाहरण के लिए-: इंडोनेशिया का के क्राकाटाओ ज्वालामुखी, कैरीबियन सागर के मार्टनिक द्वीप का पीली ज्वालामुखी।
ज्वालामुखी का विश्व वितरण-:
विश्व की ज्वालामुखी को मुख्यतः तीन पेटियों में बांटा जा सकता है।
परि प्रशांत महासागरीय पेटी
मध्य महाद्वीपीय पेटी
मध्य महासागरीय पेटी
परी प्रशांत महासागरीय पेटी
यह पेटी प्रशांत महासागर के तटीय किनारों पर पाई जाती है, जो विश्व की सबसे बड़ी ज्वालामुखी पेटी है।
इस पेटी में विश्व के लगभग 65% ज्वालामुखी का उद्गार होता है।
इस पेटी में ज्वालामुखी उद्गार होने का मुख्य कारण प्लेटो की अभिसारी गति है।
इस पेटी के प्रमुख ज्वालामुखी में शामिल है
उत्तर अमेरिका के रनियर ,हुड, सस्ता, सेंट हेलेंस ज्वालामुखी।
दक्षिण अमेरिका की कोटोपैक्सी ,एकांकागुआ ज्वालामुखी।
पूर्वी एशिया के फ्यूजी यामा ज्वालामुखी ,ताल ज्वालामुखी।
यह अत्यधिक सक्रिय ज्वालामुखी पेटी है इसलिए इसे प्रशांत महासागरीय अग्निवलय भी कहते हैं।
मध्य महाद्वीपीय पेटी-:
यह ज्वालामुखी पेटी यूरेशियन प्लेट एवं अफ्रीकन और indo-australian प्लेट के मध्य पाई जाती है।
यह पड़ी प्रशांत महासागर पेटी के बाद दूसरी सर्वाधिक तीव्रता वाले ज्वालामुखी की पेटी है।
इस पेटी में ज्वालामुखी उद्गार होने का मुख्य कारण यूरेशियन प्लेट और अफ्रीकन प्लेटों के मध्य अभिसारी गति है।
इस पार्टी के प्रमुख ज्वालामुखी में निम्नलिखित ज्वालामुखी शामिल है
स्ट्रांबोली ज्वालामुखी ,इटली
विसुवियस ज्वालामुखी, इटली
एटना ज्वालामुखी।
मध्य महासागरीय पेटी-:
यह पेटी महासागरों के बीच अपसारी प्लेट किनारों के मध्य पाई जाती है, मुख्यतः अटलांटिक महासागर के कटक में।
स्पीति में कम तीव्रता वाले कम विस्फोटक ज्वालामुखी का उद्गार होता है।
इस पेटी में ज्वालामुखी उद्गार का मुख्य कारण प्लेटों की अपसारी गति है।
इस पार्टी के प्रमुख उदाहरण
सेंट हेलेना ज्वालामुखी, अटलांटिक महासागर।
ज्वालामुखी के प्रभाव-:
सकारात्मक प्रभाव
पृथ्वी का सुरक्षा कवच-: ज्वालामुखी पृथ्वी के आंतरिक भाग से अतिरिक्त दबाव लावा एवं जलवाष्प के रूप में बाहर निकल कर संपूर्ण पृथ्वी को विस्फोट होने से बचाने का काम करते हैं अर्थात यह पृथ्वी की सुरक्षा कवच है।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अध्ययन में सहायक-:
ज्वालामुखी से निकला लावा तथा विभिन्न चट्टानी टुकड़े से पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी प्राप्त होती।
विभिन्न कलाकृतियों का निर्माण-:
ज्वालामुखी से निकला लावा द्वारा पर्वत, पठार ,काल्डेरा झील, कटक आदि का निर्माण होता है।
चट्टान एवं मिट्टी की प्राप्ति-: ज्वालामुखी से निकले लावा के जमने से चट्टानों का निर्माण होता है और चट्टानों की अपेक्षा अपरदन से अवसादी चट्टानों का एवं अवसादी चट्टानों से मिट्टी का निर्माण होता है।
खानिज की प्राप्ति-:
ज्वालामुखी से निकले लावा के जमने से आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है और इन आग्नेय चट्टानों में ग्रेफाइट, बेसाल्ट ,सिलिका ,एलुमिनियम जैसे खनिजों के भंडार होते हैं।
भूतापीय ऊर्जा-:
ज्वालामुखी उद्गार से काफी ऊष्मा निकलती है और इस ज्वालामुखी से निकलने वाली भाप रूपी ऊष्मा का उपयोग करके विद्युत बनाई जा सकती है।
नकारात्मक प्रभाव
जान माल की हानि होती है-:
जब किसी क्षेत्र में अचानक से ज्वालामुखी विस्फोट होता है या अनुमान से अधिक लाभ निकलता है तो आसपास के लोग एवं आसपास की संपत्ति लावा से जलकर नष्ट हो जाती है।
उदाहरण के लिए वर्ष 2018 में अमेरिका के हवाई द्वीप में स्थित किलाऊ ज्वालामुखी के कहर से 10,000 से अधिक लोग चपेट में आ गए थे जिसमें से कुछ लोगों की मृत्यु भी हो गई थी।
भूकंप की उत्पत्ति-:
पीलियन तुल्य विस्फोटक प्रकार के ज्वालामुखी के उद्गार से आसपास की भूमि में कंपन होने लगता है जिससे भूकंप आ जाते हैं।
उदाहरण के लिए वर्ष 2018 में हवाई दीप के किलायू ज्वालामुखी के विस्फोट से भूकंप आया था।
वायु प्रदूषण-:
ज्वालामुखी के उद्गार से हानिकारक एवं जहरीली गैसें निकलती है जैसे-: सल्फर डाइऑक्साइड ,कार्बन डाइऑक्साइड ,कार्बन मोनोऑक्साइड जो वायु प्रदूषित कर देती हैं।
उत्पादक भू-भाग का नाश
जब ज्वालामुखी उद्गार से क्षारीय प्रकृति का लावा निकलता है तो वह पतला होने के कारण बहुत बड़े विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है परिणाम स्वरूप बहुत से उत्पादक क्षेत्र नष्ट हो जाता है।
जलीय जीवों का विनाश-:
जब ज्वालामुखी का उद्गार जलीय क्षेत्र में अर्थात महासागरों में होता है तो इसके गर्म लावे से अनेकों जलीय जीव नष्ट हो जाते हैं।