[निष्पक्षता एवं वस्तुनिष्ठता]
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निष्पक्षता एक न्यायिक सिद्धांत है जिसका शाब्दिक अर्थ है:- किसी का भी पक्ष न लेना।
अर्थात् निष्पक्षता का आशय है कि निर्णयकर्ता को कोई भी निर्णय करते समय, अपने पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत हित के आधार पर किसी पक्ष के प्रति समर्थन या विरोध का भाव नहीं रखना चाहिए बल्कि वस्तुनिष्ठत तथ्यों के आधार पर निर्णय करना चाहिए।
सामान्यतः लोक सेवक को कानूनों एवं नियमों के दायरे में ही कार्य करना होता है, किंतु उसके समक्ष अनेकों ऐसी परिस्थितियां एवं अवसर आते होते हैं जब उसे स्वविवेक से निर्णय लेना होता है, ऐसी स्थिति में एक लोक सेवक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपना निर्णय निष्पक्षता पूर्वक करे, अर्थात वह अपने औरव्यक्तिगत हित या पूर्वाग्रह के आधार पर किसी एक पक्ष के प्रति झुकाव या विरोध ना रखें।
जैसे:-
एक डीएसपी को किसी केस की कार्यवाही अपने सगे संबंधियों की प्रति झुकाव को रखकर नहीं करना चाहिए, बल्कि सगे संबंधियों को भी अनजान समझकर ही वस्तुनिष्ठ तथ्यों के आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए।
उसी प्रकार एक प्रशासनिक अधिकारी को किसी योजना के लाभ का वितरण करते समय अपनी जाति, धर्म, समुदाय, सगे-संबंधियों आदि के प्रति झुकाव नहीं रखना चाहिए, बल्कि योजना का लाभ उसी व्यक्ति को देना चाहिए जिस व्यक्ति के लिए वही योजना चलाई गई भले ही वह किसी भी जाति ,धर्म ,समुदाय का हो
एक विकास खंड अधिकारी को किसी विकास कार्य के लिए ठेकेदार की नियुक्ति, संबंधित ठेकेदार की योग्यता को ध्यान में रखकर करना चाहिए ,नाकि अपने व्यक्तिगत संबंध को देखकर।
असमर्थकवादिता/गैर-तरफदारी:-
सामान्यतः निष्पक्षता और असमर्थकवादिता को एक समान ही माना जाता है किंतु दोनों में पर्याप्त अंतर है,
जहां निष्पक्षता का आशय:- व्यक्तिगत हित या पूर्वाग्रह के आधार पर किसी का भी पक्ष ना लेने से है।
वहीं असमर्थकवादिता का आशय:- किसी भी दल या समूह का समर्थन ना करने से है। अर्थात किसी भी राजनीतिक दल से संबंध ना रखना असमर्थकवादिता है।
और एक लोक सेवक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सभी राजनीतिक दलों के प्रति तटस्थ होकर कार्य करें।
जैसे:-
एक लोक सेवक को कभी भी किसी राजनीतिक दल की पार्टी के समारोह में राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में नहीं जाना चाहिए और ना ही किसी राजनीतिक दल के कार्यों की प्रशंसा या आलोचना करनी चाहिए। भले ही वह आंतरिक रुप से किसी भी राजनैतिक विचारधारा के प्रति दृढ़ विश्वास रखता हो।
निष्पक्षता या असमर्थकवादिता की आवश्यकता:-
लोक प्रशासकों को निष्पक्ष बनाने की आवश्यकता इसलिए है ताकि:-
प्रशासन में भ्रष्टाचार को कम किया जा सके क्योंकि, प्रशासनिक अधिकारियों के साथ राजनेताओं या किसी समूह विशेष की गठजोड़ ही भ्रष्टाचार का मूल कारण है।
नियम, कानूनों की सर्वोच्चता बनाए रखने के लिए, क्योंकि जब प्रशासनिक अधिकारी निष्पक्ष होते हैं तो वह नियम एवं कानून के अनुसार कर करते हैं, अन्यथा किसी पार्टी या समूह की विचारधारा के अनुरूप कार्य करते हैं,जो संवैधानिक मूल्यों के लिए घातक है।
प्रशासन को न्यायिक बनाने के लिए, क्योंकि प्रशासन न्याय प्रिय तभी बनेगा जब प्रशासनिक अधिकारी अपने व्यक्तिगत हित या पूर्वाग्रह के आधार पर पक्षपात नहीं करेंगे।
प्रशासन के प्रति जनता की विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिए, क्योंकि यदि प्रशासक न्यायपूर्ण तरीके से कार्य करेंगे तो जनता के अंदर प्रशासन के प्रति भरोसा उत्पन्न होगा।
प्रशासन को राजनीतिक दबाव से मुक्त रखने के लिए, राजनीतिक दलों का कार्यकाल असीमित एवं निश्चित होता है जबकि लोकसेवक निश्चित समय अवधि के लिए दीर्घकाल तक सेवा में रहते हैं, ऐसी स्थिति में यदि वे किसी एक राजनीतिक दल या समूह से संपर्क रखते हैं तो उसके विरोधी दल का दबाव रहेगा जिससे भी स्वतंत्रता पूर्वक अपने काम नहीं कर पाएंगे परिणाम स्वरूप लोक कल्याण में बाधा उत्पन्न होगी।
निष्पक्षता पूर्वक चुनाव कराने के लिए, प्रशासन का कार्य निष्पक्षता पूर्वक चुनाव कराना भी होता है जिसके लिए लोक सेवकों का निष्पक्ष होना आवश्यक है।
क्या वर्तमान में लोक सेवकों की निष्पक्षता व असमर्थकवादिता संदिग्ध हो गई है ?
प्रशासनिक अधिकारी बनने वाला व्यक्ति समाज से ही निकला हुआ व्यक्ति होता है, अतः उसके अंदर समाजीकरण की प्रक्रिया एवं आसपास के वातावरण के कारण अनेकों पूर्वाग्रह विकसित हो जाते हैं अतः वह पूर्वाग्रह एवं व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी दल एवं समूह के प्रति पक्षपात कर सकता है। और ऐसा देखा भी गया है जैसे:- लोक सेवक राजनेताओं के साथ मिलकर मनचाही पदस्थापना एवं स्थानांतरण करवा लेते हैं।
किंतु वर्तमान में भी सभी लोग सेवक पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं करते अनेकों लोकसेवक ऐसे भी हैं जो लोक कल्याण के लिए प्रतिबद्ध तरीके से कार्य करते हैं और किसी की दल या समूह के साथ संपर्क नहीं रखते हैं। जिनमें पी. नरहरि, दीपक रावत जैसे लोकसेवकों का नाम प्रमुख है।
लोक प्रशासन में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के उपाय:-
प्रशिक्षण व्यवस्था में सुधार किया जाए, लोक सेवकों को नियुक्त करने से पहले लोभ-लालच देकर उनकी निष्पक्षता को परखा जाए।
लोक सेवकों की स्थानांतरण एवं पदोन्नति के लिए अलग आयोग बनाया जाए, जो लोग सेवकों की योग्यता के आधार पर उनकी पदोन्नति एवं स्थानांतरण करें,ना कि राजनीति से जुडा़व के आधार पर।
प्रत्येक विभाग में विभिन्न जाति, धर्म, भाषा के लोग रखे जाएं,ताकि विभाग का कोई व्यक्ति जाति ,धर्म ,भाषा ,क्षेत्र के आधार पर भेद ना कर सके।
लोक सेवकों के निरीक्षण की प्रक्रिया को दुरुस्त बनाया जाए।
लोक सेवकों द्वारा पक्षपात किए जाने पर उनके विरुद्ध शिकायत की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए।
वस्तुनिष्ठता
वस्तुनिष्ठ का तात्पर्य:- निश्चित एवं सार्वभौमिक सत्य से है।
वह तथ्य वस्तुनिष्ठ माना जाता है, जो प्रमाणिक सिद्धांतों ,तर्कों पर आधारित एवं सार्वभौमिक हो, अर्थात जो सबकी दृष्टि से एक जैसा हो।
जैसे:-
यह तथ्य वस्तुनिष्ठ है कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रही है, लेकिन यह तथ्य वस्तुनिष्ठ नहीं है कि- हमारी पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य से हुई। क्योंकि कुछ लोग पृथ्वी की उत्पत्ति को सूर्य से मान भी सकते हैं और कुछ लोग नहीं मान सकते।
उसी प्रकार यह तथ्य वस्तुनिष्ठ है कि- मानसून के समय भारत में बारिश होती है लेकिन यह तथ्य वस्तुनिष्ठ नहीं है कि- मानसूनी बारिश का प्रभाव सकारात्मक होता है। क्योंकि किसी के लिए बारिश लाभदायक हो सकती है किसी के लिए हानिकारक।
यह कहना वस्तुनिष्ठ तथ्य है कि:- जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे, किंतु यह कहना वस्तुनिष्ठ नहीं होगा कि वह देश के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री थे। क्योंकि किसी के नजरिए से वह अच्छे हो सकते हैं किसी की नजरिया से बुरे।
प्रशासन में वस्तुनिष्ठता:-
लोक प्रशासन की वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य है कि- लोक सेवक को अपना कोई भी निर्णय प्रमाणित तथ्यों ,तर्कों या निर्धारित मापदंडों के आधार पर लेना चाहिए, ना कि व्यक्तिगत चेतना के आधार पर।
अर्थात एक लोक सेवक को कोई भी कार्य नियमों कानूनों के अनुसार करना चाहिए, ना की व्यक्तिगत भावनाओं (रूढ़िवादिता ,पूर्वाग्रह, मनोवृति)के आधार पर।
उदाहरण के लिए:-
यदि किसी पद की नियुक्ति के लिए कुछ मानदंड निर्धारित किए गए हैं और उन्हीं मानदंडों के आधार पर व्यक्तियों की नियुक्ति की गई है तो यह वस्तुनिष्ठ निर्णय कहलाएगा किंतु यदि लोक सेवक अपनी व्यक्तिगत चेतना के आधार पर ऐसे व्यक्ति नियुक्ति करता है जो उस पद के लिए अति योग्य है लेकिन निर्धारित मापदंडों के अनुरूप नहीं है तो लोक सेवक का निर्णय वस्तुनिष्ठ नहीं कहलाएगा।
उसी प्रकार यदि किसी एक अधिकारी को 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले व्यक्तियों का राशन कार्ड बनाने का काम दिया गया है, तो यदि वह केवल 2 हेक्टेयर जमीन से कम जमीन वाले व्यक्तियों का ही राशन कार्ड बनाता है तो वह वस्तुनिष्ठ होगा। लेकिन यदि वह दया, करुणा में आकर किसी ऐसे व्यक्ति, जिसकी जमीन दो हेक्टेयर से अधिक है किंतु बंजर होने की वजह से उसकी दयनीय है , का राशन कार्ड बना देता है, तो वह वस्तुनिष्ठ नहीं होगा। भले ही राशन कार्ड बनाने का उद्देश्य गरीबों की सहायता करना था।
निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता में अंतर
निष्पक्षता का तात्पर्य- पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत हित के आधार पर, किसी पक्ष के प्रति लगाव या विरोध की भावना रखे बिना, निर्णय लेने से है। जबकि वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य- अपनी व्यक्तिगत चेतना को ध्यान में रखे बिना प्रमाणित तथ्यों ,तर्कों या नियमों, कानूनों के अनुसार निर्णय लेने से है।
जैसे:-
यह कथन वस्तुनिष्ठ होगा कि बालक का जन्म प्रजनन प्रक्रिया द्वारा होता है किंतु यह कहना धार्मिक पक्षपात होगा कि इंसान का जन्म विष्णु जी के द्वारा होता है।
वस्तुनिष्ठता का महत्व
वस्तुनिष्ठता, का पालन होने से सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होगा अर्थात उन्हें योग्यता के अनुसार प्रशासनिक लाभ प्राप्त होगा। क्योंकि वस्तुनिष्ठता में व्यक्ति की भावनाओं को महत्व नहीं दिया जाता।
वस्तुनिष्ठता, प्रशासनिक अधिकारियों की विवेकाधीन शक्तियों पर समुचित नियंत्रण लगाती है अर्थात उन्हें अपनी भावनाओं के अनुसार नहीं बल्कि नियमों, कानूनों, मापदंडों के अनुसार कार्य करने का निर्देश देती है।
वस्तुनिष्ठता के पालन से प्रशासन ने जनता की विश्वसनीयता बढ़ेगी, क्योंकि वस्तुनिष्ठता के आधार पर लिया गया निर्णय, सभी की नजरों में उपयुक्त होता है।
वस्तुनिष्ठता नैतिक दुविधा से निकालने में सहायक है।