बालिका शिक्षा -: 

पुरुष और महिला एक दूसरे के पूरक हैं या यूं कहें कि एक सिक्के के दो पहलू हैं किंतु हमारे देश तथा प्रदेश में यह दुर्भाग्य है कि महिला को पुरुषों के बराबर महत्त्व नहीं दिया जाता, क्योंकि माना जाता है कि महिला पुरुषों की भांति हर कार्य को करने में सक्षम नहीं होती। किंतु यह भ्रम है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शुरुआत से ही बालकों को तो शिक्षा दी जाती है किंतु बालिकाओं को बालकों के समान पर्याप्त शिक्षा सुविधा नहीं दी जाती।

वर्तमान में महिला शिक्षा की स्थिति-: 

  • भारत की साक्षरता दर लगभग 73% है किंतु भारत में पुरुषों की साक्षरता दर 82% जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 65% है,

वहीं मध्यप्रदेश में कुल साक्षरता दर 69% है किंतु पुरुषों की साक्षरता दर लगभग 78% है जबकि महिलाओं की साक्षरता दर मात्र 59% है। 

  • मध्यप्रदेश में प्राथमिक स्कूलों में कुल नामांकन 77 लाख है किंतु 77 लगने से लगभग 40लाख नामांकन बालकों का और मात्र 36 लाख नामांकन बालिकाओं का है। 

  • तथा एक एनजीओ की रिपोर्ट के अनुसार कुल बालिकाओं में 56% बालिकाएं सरकारी स्कूल में पढ़ती है जबकि कुल बालकों में मात्र 50% बालक ही सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं अर्थात जो स्कूल घटिया माने जाते हैं उसमें बालिकाओं की संख्या अधिक है, जबकि अच्छे स्कूलों में बालकों की संख्या अधिक है। 

  • प्राथमिक स्तर पर प्रवेश लेने वाली बालिकाओं में लगभग 25% बालिका पांचवी कक्षा तक आते-आते अपनी पढ़ाई छोड़ चुकी होती है। 

बालिकाओं के ड्रॉप आउट की समस्या के कारण-:

  • घरेलू कार्य में व्यस्तता एमएचआरडी की रिपोर्ट 2018 के अनुसार स्कूल छोड़ने वाली छात्राओं में लगभग 29. 70% छात्राएं घरेलू कार्य में व्यस्तता के कारण स्कूल छोड़ देतीं है। 

  • बाल विवाह-: बालिकाओं का कम उम्र में विवाह हो जाने के कारण स्कूल छोड़ देती हैं। 

  • स्कूल दूर होना-: स्कूल दूर होने तथा उपयुक्त सामाजिक माहौल ना होने के कारण भी बालिकाएं स्कूल छोड़ने के लिए विवश होती है। 

  • सामाजिक प्रथाएं एवं वित्तीय समस्या-: गरीब परिवार के पालक अपने सभी बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ होते हैं अतः दी सामाजिक कुप्रथा के प्रभाव से केबल बच्चों को आगे तक की पढ़ाई करवाते हैं बच्चियों को नहीं। 

  • शिक्षकों द्वारा दिए जाने बाली मानसिक एवं शारीरिक दंड के कारण भी बालिकाएं पढ़ाई छोड़ देती हैं। 

हालांकि बालिकाओं के ड्रॉपआउट को कम करने के लिए अनेकों कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जा रही है। 

  • मध्यान्ह भोजन योजना चलाई जा रही है

  • मुफ्त यूनिफार्म एवं पाठ्य पुस्तक उपलब्ध करवाया जा रहा है। 

  • लड़कियों के लिए अतिरिक्त छात्रवृत्ति की सुविधा दी जा रही है। 

  • स्कूल दूर होने पर साइकिल या छात्रावास की व्यवस्था की जा रही है।

बालिका शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व-: 

  • बेहतर भविष्य की पीढ़ी का निर्माण करने के लिए बालिका शिक्षा अवश्यक है क्योंकि कहा जाता है कि मां ही बच्चों की पहली शिक्षक होती है अतः बालिका शिक्षित होंगी तो वह मां बनने के बाद अपने परिवार का उपयुक्त तरीके से नियोजन करेंगी अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देंगी परिणाम स्वरूप बेहतर भविष्य की पीढ़ी का निर्माण होगा। 

  • देश के आर्थिक विकास में पुरुष वर्ग के साथ-साथ महिला वर्ग का भी योगदान प्राप्त करने के लिए महिला शिक्षा आवश्यक है। क्योंकि जब पुरुष के साथ साथ महिला भी आर्थिक कार्यों में लगेंगी तो परिवार की आय दुगनी हो जाएगी

  • घरेलू हिंसा को कम करने के लिए महिला शिक्षा की जरूरत है क्योंकि यदि महिला शिक्षित होंगी तो वह स्वरोजगार प्राप्त कर सकेंगे और आर्थिक रूप से सक्षम एवं आत्मनिर्भर बनेगी परिणाम स्वरूप उनका महत्व बढ़ेगा और उनका शोषण कम होगा। 

  • लैंगिक असमानता को समाप्त करने के लिए महिला शिक्षा की आवश्यकता है

बालिका शिक्षा की समस्याएं 

  • निकटतम दूरी पर कन्या शाला की कमी

बालिकाओं के लिए अलग से न्यूनतम दूरी पर पर्याप्त मात्रा में स्कूल नहीं है और यदि है भी तो उनमें पर्याप्त अधोसंरचना जो शौचालय, स्वच्छता, स्वच्छ जल की व्यवस्था का अभाव है। 

  • स्कूल में अध्यापकों की कमी

बालिकाओं की शिक्षा हेतु सहज माहौल बनाने के लिए अध्यापिकाओं की आवश्यकता होती है किंतु स्कूल में लगभग 11% ही अध्यापिका होती है शेष अध्यापक ही होते हैं,

  • सामाजिक रूढ़िवादिता

सामाजिक रूढ़िवादिता जैसे केवल बालकों को शिक्षा देने के योग्य समझना, बालिकाओं से खाना बनवाने संबंधित घरेलू कार्य करवाना, बालिकाओं को घर से बाहर ना भेजना। 

  • असुरक्षा का माहौल-: भारत के अन्य क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर काफी दूरी पर प्राथमिक स्कूल है, ऐसे में बालिकाएं लम्बा सफर करके स्कूल जाती हैं किंतु कभी-कभी उनके साथ हिंसात्मक या बलात्कार संबंधी कार्य हो जाते हैं अतः इन घटनाओं के डर से बालिकाएं स्कूल छोड़ने के लिए विवश होती है और बालिका शिक्षा अधूरी रह जाती। 

  • गरीबी-: 

गरीबी के कारण पालक अपनी बालिकाओं का शैक्षिक उठाना नहीं चाहते हैं जिस कारण से स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं कर पातीं

  • बाल विवाह-: 

बाल विवाह के कारण बालिका कम उम्र में ही शादी के उपरांत पढ़ाई छोड़ देती है। 

समाधान-: 

  • कन्या शालाओं की संख्या एवं गुणवत्ता का विकास तथा विस्तार किया जाए। 

  • कन्या शाला में अधिक से अधिक महिला शिक्षकों की भर्ती की जाए ताकि बालिकाओं की शिक्षा हेतु सहज माहौल बने। 

  •  बालकों की तुलना में बालिकाओं के साथ किए जाने वाले भेदभाव के विरुद्ध जागरूकता फैलाई जाए इसके लिए सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएं तथा शिक्षित महिलाओं को हर कार्यक्रम में प्राथमिकता दी जाए। 

  • बालिकाओं के लिए सुरक्षात्मक उपाय सुनिश्चित किया जाए। इसके लिए बालिका छात्रावास की संख्या बढ़ाई जाए तथा निकटतम दूरी में कन्या शाला स्थापित किया जाए अन्यथा स्कूल पहुंचाने के लिए उन्हें बस की सुविधा दी जाए

  • बालिकाओं को बालकों से भी अतिरिक्त छात्रवृत्ति दी जाए ताकि उनके माता-पिता बालिकाओं को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित हो। 

बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयास

गांव की बेटी योजना-: 2005

इस योजना के तहत गांव की ऐसी बालिकाएं जो 12वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुई है उन्हें  उच्च शिक्षा हेतु प्रतिमाह ₹500 की राशि प्रदान की जाती है। 

प्रतिभा किरण योजना-: 2007

इस योजना के तहत शहर की ऐसी छात्रा जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही हो तथा जिसमें कक्षा 12वीं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की हो, उसे गांव की बेटी योजना की भाती परंपरागत उच्च शिक्षा (b.a.) करने पर ₹300 प्रति माह तथा तकनीकी एवं चिकित्सीय उच्च शिक्षा के लिए ₹750 प्रति माह प्रदान किए जाते हैं। 

मुख्यमंत्री कन्या साक्षरता प्रोत्साहन योजना-: 

यह योजना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पूरे मध्यप्रदेश में संचालित है। 

इस योजना का उद्देश्य बालिकाओं के विद्यालय छोड़ने की दर को कम करना है। 

इस योजना के अंतर्गत पांचवी कक्षा उत्तीर्ण करके छठवीं में प्रवेश लेने वाली छात्रा को ₹500 आठवीं कक्षा पास करके नौवीं कक्षा में प्रवेश लेने वाली छात्रा को ₹1000 तथा दसवीं कक्षा पास करके 11वीं कक्षा में प्रवेश लेने वाली छात्रा को ₹3000 की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। 

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम-: 

इस कार्यक्रम की शुरुआत केंद्र सरकार द्वारा 2015 में की गई इस योजना का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण हेतु महिला शिक्षा को बढ़ावा देना है। 

कस्तूरबा गांधी विद्यालय योजना

इसी अभियान के तहत वंचित एवं गरीब परिवारों बालिकाओं को शिक्षा एवं आवास की सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु कस्तूरबा गांधी विद्यालय योजना चलाई जा रही ,जिसकी शुरुआत 2005 में हुई, इन विद्यालयों में 75% अनुसूचित जाति जनजाति बालिकाओं के लिए आरक्षित हैं एवं 25% सीटें गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की बालिकाओं के लिए आरक्षित है। 

भारत में शिक्षा के सार्वजनीकरण की प्रमुख चुनौतियां

शिक्षक के सार्वजनीकरण का तात्पर्य है की सभी वर्ग के सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाना है। 

किंतु भारत में शिक्षा के सार्वजनिकरण के अवरोध के रूप में अनेकों चुनौतियां हैं-: 

  • गरीबी-: बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए उनकी ड्रेस पाठ्य पुस्तक आदि का खर्च आता है जबकि गरीब लोग यह खर्च उठाने में असक्षम होते हैं जिस वजह से गरीब लोग के बच्चे शिक्षा नहीं ले पाते। 

  • सामाजिक रूढ़िवादिता-: सामाजिक रूढ़िवादिता के का महिलाओं की या बालिकाओं की शिक्षा का स्तर निम्न हैं। 

  • न्यूनतम दूरी पर स्कूल की सुविधा का अभाव-: के कारण भी दूरस्थ इलाकों (जनजातीय वर्ग के)के बच्चे शिक्षा नहीं ले पाते। 

  • छुआछूत-: आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पृश्यता की भावना मौजूद है जिस कारण से अनुसूचित जाति के बच्चे शिक्षा नहीं ले पाते। 

  • शिक्षा का रोजगार उन्मुख ना होना-: शिक्षा रोजगार उन्मुख नहीं है जिस कारण से शिक्षित व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलता परिणाम स्वरूप शिक्षा को फालतू मानते हुए ,लोग अपने बच्चों को पर्याप्त शिक्षा का अवसर उपलब्ध नहीं करवाते।

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