भारत में कृषि

भारत में कृषि 

भारत में कृषि 

कृषि : 

मिट्टी के जुताई करके विभिन्न प्रकार की फसलें फल-फूल सब्जियां आदि उगाने एवं पशु पालन करने की प्राथमिक प्रक्रिया को कृषि कहते हैं। 

भारत एक कृषि प्रधान देश है भारत की लगभग 54% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, तथा भारत के 51% क्षेत्रफल पर कृषि की जाती है 

कृषि के प्रकार-

सधन कृषि –

  • यह कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पर कृषि भूमि कम होती है तथा जनसंख्या बहुत अधिक होती है 

  • इस कृषि में कम से कम भूमि पर अधिक पूंजी व श्रम लगाकर अधिक से अधिक उत्पादन करने का प्रयास किया जाता है। 

  • -: भारत में यह कृषि मुख्यत उत्तर के उन समतल तटीय क्षेत्रों में की जाती है जहां पर सिंचाई की समुचित व्यवस्था होती है 

जीविका कृषि- 

  • यह कृषि गरीब कृषक परिवारों द्वारा अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए की जाती है 

  • इस कृषि में फसलों के साथ-साथ सब्जियों का भी उत्पादन किया जाता है 

  • भारत में यह कृषि मुख्यतः आदिवासी इलाकों में की जाती है 

वाणिज्यिक कषि- 

  • यह कृषि मुख्यतः अधिकाधिक व्यापारिक लाभ कमाने के उ‌द्देश्य की जाती है 

  • इस कृषि में ऐसी फसलों को उत्पादन किया जाता है जिनको अधिकाधिक दाम पर बेचा जा सके, 

  • भारत में व्यवसाय कृषि मुक्ता पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, असम आदि के क्षेत्र में की जाती है 

स्थानांतरण कृषि –

  • कृषि मुख्यतः अस्थाई कृषि है जो अधिक वर्षा वाले जंगली क्षेत्र में होती है,

  • इस कृषि में सर्वप्रथम कृषक जंगली पेड़ों- झाड़ियों को काटकर कृषि योग्य मैदान बनाते हैं फिर उस मैदान में दो-तीन साल तक खेती करते हैं और जब उस मैदान की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है तो यही प्रक्रिया किसी दूसरे स्थान में जाकर अपनाते हैं 

  • वर्तमान में यह कृषि सीमित हो गई है लेकिन, अभी भी असम मिजोरम नागालैंड उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में की जाती है 

  • मध्यप्रदेश में स्थानांतरण कृषि को बेबर के नाम से जाना जाता है 

सीढ़ीदार कषि –

  • यह कृषि पर्वतीय इलाकों में पानी के ढलान के लंबवत सीढ़ीनुमा नाली बनाकर की जाती है, 

बागानी कषि-

  • यह कृषि व्यापारिक कंपनी द्वारा अपने उ‌द्योग व व्यापार के लिए पर्याप्त कच्चा माल प्राप्त करने के उ‌द्देश्य बड़े-बड़े कृषि क्षेत्रों में करायी जाती है 

  • भारत में इस कृषि के अंतर्गत मुख्यतः चाय कॉफी नारियल रबड़ आदि फसलें उगाई जाती है। 

शुष्क कृषि- 

  • यह कृषि 75 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है 

  • शुष्क कृषि में मुख्यता कम पानी में उपजने वाली फसलें जैसे मक्का ज्वार एवं दालों का उत्पादन किया जाता है 

  • भारत में यह खेती मुख्यता राजस्थान, पंजाब, हरियाणा व मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में की जाती है 

  • शुष्क कृषि के विकास के उपाय कम वर्षा वाले क्षेत्र की कृषि को शुष्क कृषि कहते हैं 

शुष्क कृषि को बढ़ावा देने के लिए निम्न उपाय अपनाए जाने चाहिए-:

  • जलवायु परिस्थितियों के अनुसंधान केंद्र स्थापित करते उनकी बारीक सूचना कृषकों को दी जानी चाहिए 

  • गहरी जुताई द्वारा वर्षा के जल को अधिक गहराई तक पहुंचाना चाहिए

  • इन क्षेत्रों में कम पानी वाली फसल जैसे मक्का ज्वार तिलहन दलहन को उपजाना चाहिए तथा 

  • शुष्क कृषि के लिए उपयुक्त हाइब्रिड बीजों का विकास किया जाना चाहिए 

  • शुष्क क्षेत्रों को नहरों से जोड़कर सिंचाई की व्यवस्था की जानी चाहिए 

  • उच्च सिंचाई दक्षता वाली तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए जैसे-ड्रिप सिंचाई. 

मिश्रित कषि –

वह कृषि जिसके अंतर्गत फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है उसे मिश्रित कृषि कहते हैं 

सहकारी कृषि-: 

  • जब छोटी-छोटी जोतों वाले किसान आपस में मिलजुल कर सामूहिक रूप से खेती करते हैं तो इसे सहकारी कृषि कहा जाता है 

सहकारी कृषि के लाभ 

  • छोटे किसान भी पर्याप्त निजी संसाधनों के अभाव में भी कृषि कर पाते हैं इससे सीमित कृषि संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग संभव हो जाता है छोटे-छोटे खेतों के कारण होने वाले विभिन्न अपव्यय बच जाते हैं जेसै: खेल की मेड बनाने में लगने वाली जगह बच जाती है, 

  • फसल चढ़ाई की समस्या कम हो जाती है 

  • सहकारी कृषि में श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण की सिद्धांत पर कार्य किया जाता है जिससे प्रसन्न बेरोजगारी कम होती है

  • दूसरी ओर उत्पादकता की बढ़ती है सहकारी खेती से किसानों में संगठित होने की भावना और सहकारिता की भावना विकसित होती है 

आर्थिक विकास में कषि का योगदान 

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी है जिसके चारों ओर भारत का आर्थिक विकास घूमता है 

कृषि क्षेत्र के योगदान को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है 

  • राष्ट्रीय आय के रूप में- कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है तथा वर्तमान में भारत की कुल जीडीपी में कृषि का योगदान लगभग 15% है 

हालाँकि 1950-51 भारत की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 51% था जो धीरे-धीरे घटता जा रहा है किंतु यह आंकड़ा अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र के महत्व की गिरावट को नहीं दर्शाता बल्कि द्वितीय और तृतीय क्षेत्रों की आपेक्षित वृद्धि को दर्शाता है 

  • रोजगार  में कृषिका योगदान-

लगभग 32% रोजगार आपर्ति के रूप में कृषि रोजगार प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है.

आज भी भारत की 50% से अधिक कार्यशील जनसंख्या को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि क्षेत्र में ही रोजगार प्राप्त है

 मध्य प्रदेश की 73% से अधिक जनसंख्या कृषि क्षेत्र में सलग्न है 

  • खाद्यान्न आपूर्ति के रूप में-

वर्तमान मैं भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है, अतः भारत की इतनी विशाल जनसंख्या के लिए खा‌द्यान्न की आपूर्ति कृषि उत्पादों द्वारा ही संभव हो पा रही है 

1950 संख्या में भारत में खा‌द्यान्न उत्पादन 50 मिलियन टन था जो, वर्ष 2018-19 में बढ़कर 281 मिलियन टन हो गया है 

  • वर्तमान में मध्यप्रदेश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 553 लाख मेट्रिक टन है 

  • गरीबी उन्मूलन के रूप में- 

कृषि से न केवल लोगों की खा‌द्यान्न आपूर्ति होती है, बल्कि कृषक लोग कृषि से प्राप्त उपज को बेचकर अपनी आय भी अर्जित करते हैं गरीबी उन्मूलन के लिए कृषि का विकास सर्वप्रथम जरूरी है, 

  • अंतरराष्ट्रीय निर्यात में कषि का योगदान- 

भारत में कृषि क्षेत्र से उत्पादित वस्तुओं का विदेशों में निर्यात होता है, जिससे हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है जैसे- चाय, काजू, तमाखू, मसाले आदि का निर्यात। 

भारत में स्वतंत्रता के पश्चात कषि का विकास- 

स्वतंत्रता के समय भारत में कृषि की दयनीय स्थिति थी। 1950 में भारत में कुल खा‌द्यान्न उत्पादन 50 मिलियन था जो आज बढ़कर 281 मिलियन तन हो गया है 

इसी प्रकार दूध का उत्पादन 17 मिलीयन टन (1950 में) से बढ़कर 127 मिलियन टन हो गया है, अर्थात दूध का उत्पादन 7 गुना बढ़ गया, 

इतना ही नहीं स्वतंत्रता के समय भारत के लोग खाद्य आपूर्ति के लिए अन्य देशों पर निर्भर थे किंतु अब खदान के निर्यातक बन गए हैं “जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि सब कुछ इंतजार कर सकता है मगर कृषि नहीं, 

स्वतंत्रता के बाद कृषि के विकास में निम्न बिंदुओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा- 

  • 1971 में भारत से बिचौलियों का अंत किया जाना

  • किसानो को आवश्यकता अनसार ऋण एवं बीज प्रदान किया जाना 

  • हरित क्रांति के माध्यम से उर्वरक रसायन एवं उन्नत तकनीकी यंत्रों का प्रयोग किया जाना 

  • सहकारी खेती का विकास किया जाना कृषि को लाभकारी बनाने के लिए 

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाना तथा किसानों को मुआवजा दिया जाना 

  • कृषक हितेषी योजना दुद्वारा किसानों को लाभान्वित किया जाना 

भारतीय कृषि की विशेषताएं  

  • मानसून पर निर्भरता-

 भारतीय कृषि को मानसून का जुआ भी कहा जाता है क्योंकि भारतीय कृषि का लगभग 54% भाग मानसून पर निर्भर है केवल 46% कृषि भाग पर ही सिंचाई की व्यवस्था है 

  • फसलों की विविधता-

भारत में मौसमी रितु एवं भौगोलिक परिस्थितियों की विभिन्नताओं के कारण नाना प्रकार की फसलें उगाई जाती, जैसे- जून से अक्टूबर नवंबर तक खरीफ की फसल, अक्टूबर-नवंबर से मार्च-अप्रैल तक रवि की फसल  अप्रैल से जून-जुलाई तक जायद की फसल, मैदानी क्षेत्रों में गेहूं चावल की फसल, पहाड़ी क्षेत्रों में चाय और जूट की फसल, 

  • कृषि जोतों का छोटा आकार- 

भारत में लगातार जनसंख्या वृद्धि से प्रति कृषक भूमि उपलब्धता में कमी आ रही है भारत में औसतन कृषि जोत का आकार 1.15 हेक्टर हो गया है। किसी ने नवीन तकनीकों का अभाव भारत में अधिकांशतः कृषि परंपरागत तकनीकों से की जाती है, आधुनिक उपकरणों से जिससे कृषि में श्रम अधिक लगता है और उत्पादकता कम होती है, 

 

भारत या मध्य प्रदेश में कृषि की निम्न उत्पादकता के कारण

प्रति हेक्टेयर प्रति एकड़ इकाई क्षेत्रफल में उत्पादित होने वाले अनाज को उस अनाज की उत्पादकता कहते हैं 

भारत में अन्य देशों की तुलना में उत्पादकता बहुत कम है जिसके पीछे निम्न कारण हैं-: 

  • सिंचाई की पर्याप्त सुविधा का अभाव उच्च उत्पादकता वाले बीजों की अनुपलब्धता नवीनतम तकनीकी तथा कीटनाशकों का उपयोग न किया जाना 

  • कृषि अनुसंधान की जानकारी जैसे श्रेष्ठ फसल चक्र उपयुक्त कीटनाशकों की जानकारी किसानों तक ना पहुंच पाना, 

  • किसानों द्वारा मृदा का परीक्षण ना कराया जाना 

  • जोतों का आकार छोटा होने के कारण खेतों में वैज्ञानिक विधि एवं बड़े यंत्रों का प्रयोग संभव ना हो पाना 

  • कषि क्षेत्र से संबंधित समस्याए – कृषि का मानसून पर निर्भर होना कृषि की उत्पादकता निम्न होना, 

  • मिश्रित कृषि में गिरावट आना किसानों को विपरण की समस्या होना 

  • कृषि को निम्न स्तर का व्यवसाय समझा जाना 

कृषि व्यावहारिक एवं लाभकारी बनाने हेतु उपाय 

1. सिंचाई की न्यूनतम अपव्यय वाली तकनीकों का उपयोग अधिकाधिक किया जाए जैसे डिप प्रणाली 

2. कृषि क्षेत्र में उन्नत बीज उन्नत तकनीकी का उपयोग किया जाए ताकि फसल उत्पादकता बढे 

3. फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन को भी बढ़ावा दिया जाए ताकि किसानों की आय में बढ़ोतरी हो 

4. भूमि सधार को बढ़ावा दिया जाए, जैसे- मृदा अपरदन रोकने के लिए भूमि को समतल बनाया जाए कृषि जोत का आकार बड़ा बनाया जाए 

5. उपयुक्त न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए ताकि खेती करने वाले किसान हतोत्साहित ना हो

6. कृषि आधारित उ‌द्योगों का विकास किया जाए ताकि कृषि उत्पादों की मांग एवं मल्य बढे 

7. कषकों को कृषि अनुसंधान केंद्र के द्वारा श्रेष्ठ फसल चक्र उपयुक्त कीटनाशको के प्रयोग की जानकारी दी जाए. 

 

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