[भूकंप]
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Toggleभूमि में होने वाला कंपन भूकंप कहलाता है।
तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग (धरातल से 300 से 700 किलोमीटर की गहराई में) में अंतर्जात बलों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न होने से P and S तरंगे चलने लगते है जिससे भूकंप आते हैं।
अवकेंद्र(hypocenter)-:
धरातल के अंदर का वह बिंदु जहां से भूकंपीय ऊर्जा मुक्त होती है उसे मूल बिंदु या उद्गम केंद्र कहते हैं।
और उद्गम केंद्र से ही भूगर्भिक तरंगे P and S उत्पन्न होकर चारों तरफ फैल जाती है जिससे भूकंप आता है।
अधिकेंद्र(epicenter)-:
उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर का न्यूनतम दूरी वाला धरातलीय बिंदु जहां सर्वप्रथम भूकंपीय तरंगे पहुंचती हैं, उसे अधिकेंद्र कहते हैं।
सर्वाधिक भूकंप के झटके अधिकेंद्र पर ही महसूस होते हैं।
भूकंपीय तरंगे-:
भूगर्भिक तरंगे-: धरातल के अंदर प्रवाहित होने वाली भूकंपीय तरंगें भूगर्भिक तरंगे कहलाती हैं जैसे-: P and S तरंगे।
धरातलीय तरंगे-: धरातल पर चलने वाली तरंगें धरातलीय तरंगे कहलाती हैं जैसे-: L तरंगे।
प्राथमिक तरंगे-:
भूकंपीय ऊर्जा मुक्त होने के बाद जिन तरंगों का निर्माण सबसे पहले होता है उन्हें प्राथमिक तरंगे कहते हैं।
प्राथमिक तरंगों की गति सर्वाधिक अर्थात 8 से 13 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है। पदार्थ का घनत्व बढ़ने पर इनकी गति भी बढ़ती जाती है।
यह एक प्रकार की अनुदैर्ध्य तरंग होती है जो ठोस, द्रव और गैस सभी माध्यम से होकर गुजर सकती हैं।
द्वितीयक तरंगे-:
भूकंपीय उर्जा से मुक्त होने से P तरंगों के बाद जिन तरंगों की उत्पत्ति होती है उन्हें द्वितीय तरंगे कहते हैं
इनकी गति 5 से 8 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है।
यह तरंगे अनुप्रस्थ तरंगे होती हैं जो केवल ठोस माध्यम से होकर गुजर सकते हैं द्रव एवं गैस से नहीं।
L तरंगे-:
धरातल पर चलने वाली भूकंपीय तरंगे धरातलीय तरंगे या L Wave कहलाते हैं,
इन तरंगों की गति तुलनात्मक रूप से बहुत कम अर्थात 1.5 से लेकर 3 किलोमीटर प्रति सेकंड तक होती है।
यह धरातल पर धीमी गति से चलती है अतः काफी ज्यादा विनाशकारी होती है।
भूकंपीय तरंगों का छाया क्षेत्र-:
भूकंप की क्रिया के दौरान पृथ्वी की सतह का वह क्षेत्र जहां पर सिस्मोग्राफ द्वारा भूकंपीय तरंगे रिकॉर्ड नहीं की जाती उस क्षेत्र को भूकंपीय तरंगों का छायाक्षेत्र कहते हैं।
और भूकंप के अधिकांश103° से 143°तक के बीच का क्षेत्र भूकंपीय क्षेत्र कहलाता है क्योंकि इस क्षेत्र में कोई भी भूकंपीय तरंगे (P and S)रिकॉर्ड नहीं होती है।
भूकंपीय तरंगों के आधार पर भू छायाक्षेत्र के प्रकार-:
P तरंग का छाया क्षेत्र
S तरंग का छाया क्षेत्र
P तरंग का छाया क्षेत्र-:
P तरंग का छाया क्षेत्र अधिकेंद्र से दोनों ओर 103° से 143° की कोणीय दूरी के बीच पाया जाता है।
S तरंग का छाया क्षेत्र-:
S तरंग का छाया क्षेत्र अधिकेंद्र से 103° से 103° की कोणीय दूरी के बीच पाया जाता है।
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भूकंप का मापन-:
भूकंपीय तरंगों को सिस्मोग्राफ नामक यंत्र से रिकॉर्ड किया जाता है एवं रिकॉर्ड की गई भूकंपीय तरंगों को मुख्यतः दो स्केलों से मापा जाता है-:
रिएक्टर स्केल
मारकेली स्केल।
रिएक्टर स्केल-:
इसमें भूकंप से मुक्त होने वाली ऊर्जा को मापा जाता है।
इस स्केल में 0 से लेकर 9 तक की इकाइयां होती हैं
तथा प्रत्येक इकाई के बढ़ने का अर्थ है भूकंप ऊर्जा का 10 गुना बढ़ना।
मारकेली स्केल-:
इस स्केल में भूकंप द्वारा होने वाली हानि की गहनता को मापा जाता है।
इस स्कूल में 1 से लेकर 12 तक इकाइयां होती हैं।
भूकंप के कारण-:
भूकंप के कारणों को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-:
प्राकृतिक कारण
मानवीय कारण
प्राकृतिक कारण-:
प्लेट विवर्तनिकी
हमारी पृथ्वी के दुर्बलता मंडल में सात बड़ी प्लेटें तथा 20 से ज्यादा छोटी प्लेट है, क्षैतिज दिशा में तैरती हुई गति करती हैं , इनकी अभिसारी ,अपसारी गति से हमारा धरातल में कंपन होता है जिससे भूकंप आते हैं।
ज्वालामुखी उद्गार-:
जब किसी स्थान में विस्फोटक प्रकार के ज्वालामुखी का उद्गार होता है तो आसपास की भूमि में कंपन होता है जिससे भूकंप आते हैं। जैसे-: 1883 में क्राकाटोआ ज्वालामुखी के उद्गार से वहां विनाशकारी भूकंप आया था।
भू संतुलन
पृथ्वी के ऊंचे एवं निचले भागों के बीच संतुलन बना रहता है, जिसे समस्थिति समयोजन कहते हैं, किंतु जब अपरदन एवं निक्षेपन की अत्यधिक सक्रियता के कारण भू संतुलन बिगड़ता है, तो पृथ्वी के संतुलनकारी बल के द्वारा भूमि में कंपन होने लगता है जिससे भूकंप आता है, इस प्रकार की भूकंप मुख्यतः समुद्री तटों एवं पर्वतीय स्थलों के पास आते हैं।
उल्कापात-:
जब कोई भारी उल्का पिंड अंतरिक्ष से हमारी धरातल पर तेज वेग से गिरता है तो उससे कंपन होता है परिणाम स्वरूप भूकंप आता जाता है।
गैसों का फैलाव-:
पृथ्वी के अंदर ऊपरी मेंटल में रेडियोएक्टिव पदार्थों की सक्रियता के कारण महीने धाराएं प्रवाहित होती, किंतु जब रेडियोएक्टिव पदार्थ अधिक सक्रिय हो जाते हैं तो गैसों का दबाव एवं फैलाव बढ़ता है जिससे भूमि में कंपन होता है। परिणाम स्वरूप भूकंप आते हैं
मानवीय कारण-:
बांध निर्माण-:
जब बांध का निर्माण करके बहुत सारा पानी एक ही स्थान में रोका जाता है, तो उस पानी के जलाशय के भार से जलाशय के नीचे की चट्टाने टूट कर खिसकने लगती हैं जिससे भी भूकंप आता है।
खनन-:
खनिज एवं धातु प्राप्त करने के लिए मानव द्वारा भूमि का व्यापक खनन किया जाता है, और कभी कभी खदानों की ऊपरी छत टूट कर भूमि पर गिरती है जिससे कंपन होता परिणाम स्वरूप भूकंप आता है।
मानव द्वारा किए गए खनन के कारण आए भूकंप को निपात भूकंप कहते हैं।
विस्फोट-: जब पृथ्वी की सतह पर बड़े-बड़े परमाणु परीक्षण या रासायनिक विस्फोट किए जाते हैं तो आसपास की भूमि में कंपन होता है जिससे सामान्य भूकंप आते हैं।
भूकंप के प्रकार-:
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उत्पत्ति के आधार पर-:
विवर्तनिक भूकंप-:
जब प्लेटो की विवर्तनिकी गति जैसे -:अभिसारी अपसारी गति के कारण भूकंप आते हैं तो इसे विवर्तनिक भूकंप कहते हैं।
विवर्तनिक भूकंप मुख्यतः दो प्लेटों के किनारे आते हैं,
जैसे -:हिमालय के पास आने वाले भूकंप
प्रशांत महासागरीय प्लेट के किनारे आने वाले भूकंप।
ज्वालामुखी जन्य भूकंप-:
वे भूकंप जो विस्फोटक ज्वालामुखी के उद्गार के कारण आसपास की भूमि के कंपन होने से आते हैं, उन्हें ज्वालामुखी जन्य भूकंप कहते हैं।
जैसे -: इटली में आने वाले अधिकांश भूकंप।
संतुलन कारी भूकंप-:
ऐसे भूकंप जो समस्थिति समायोजन की स्थिति असंतुलित होने के दौरान पृथ्वी के संतुलन कारी बल के कारण आते हैं उन्हें संतुलन कारी भूकंप कहते हैं।
यह भूकंप मुक्ता तटीय क्षेत्र में या पर्वतों के आधार क्षेत्र में आते हैं।
निपात भूकंप-:
ऐसे भूकंप जो भूमि के खनन के कारण खानों की चट्टान गिरने से हुई आते हैं।
विस्फोटक भूकंप-:
ऐसे भूकंप जो परमाणु परीक्षण या रासायनिक विस्फोटों के विस्फोट के कारण आते हैं उन्हें विस्फोटक भूकंप कहते हैं।
बांध जान्य भूकंप-:
ऐसे भूकंप जो बांध बनाने के कारण जलाशय के अतिरिक्त भार के प्रभाव से चट्टानों के खिसकने से आते हैं। उन्हें बांध जन्य भूकंप कहते हैं।
अपकेंद्र की गहराई के आधार पर
कम गहरे भूकंप-:
ऐसे भूकंप जिनके अप केंद्र की गहराई लगभग 50 किलोमीटर होती है उन्हें सामान्य भूकंप या कम गहरी भूकंप कहते हैं।
ये भूकंप कम तीव्रता वाले लेकिन अधिक विनाशकारी होते हैं।
मध्यम भूकंप-:
ऐसी भूकंप जिनके अब केंद्र की गहराई 50 किलोमीटर से 250 किलोमीटर तक होती है उन्हें मध्यम भूकंप कहते हैं।
यह भूकंप मध्यम तीव्रता के होते हैं।
गहरे भूकंप-: ऐसे भूकंप जिनके अपकेंद्र की गहराई 250 से 700 किलोमीटर के बीच होती है उन्हें गहरे भूकंप कहते हैं अधिक तीव्रता वाले किंतु कम विनाशकारी भूकंप होते हैं।
स्थिति के आधार-:
स्थलीय भूकंप-:
ऐसे भूकंप जो स्थल में आते हैं।
जैसे-: मध्य महाद्वीपीय पेटी के भूकंप।
जलीय भूकंप-:
ऐसे भूकंप जो जलीय क्षेत्र जैसे -:महासागर में आते हैं।
उदाहरण के लिए-: वर्ष 2004 में इंडोनेशिया के सुमात्रा में भूकंप आया।
भूकंप का विश्व वितरण-:
विश्व की भूकंप को मुख्यतः तीन बेटियों में विभाजित किया जा सकता-:
परि प्रशांत महासागरीय पेटी,
मध्य महाद्वीपीय पेटी,
मध्य महासागरीय पेटी,
परि प्रशांत महासागरीय पेटी-:
यह पेटी प्रशांत महासागर के चारों ओर तटीय किनारों में पाई जाती है, जो विश्व की सबसे बड़ी भूकंपीय पेटी है इस पेटी में विश्व के लगभग 63% भूकंप आते हैं।
इस पेटी में भूकंप आने का मुख्य कारण प्रशांत महासागरीय प्लेट और तटीय महाद्वीपीय प्लेटो के मध्य होने वाली अभिसारी गति है,
इस बेटी के प्रमुख भूकंप क्षेत्रों में जापानी भूकंप क्षेत्र , फिलीपींस भूकंप क्षेत्र उत्तर दक्षिण अमेरिका के तटीय भूकंप शामिल है।
मध्य महाद्वीपीय पेटी-:
यह पेटी यूरेशियन एवं इंडियन ,अफ्रीकन प्लेट के मध्य पाई जाती है,
यह पेटी प्रशांत महासागरीय पेटी के बाद सर्वाधिक तीव्रता वाले भूकंप की पेटी है। इस पेटी में विश्व के लगभग 23% भूकंप आते हैं।
इस पेटी में भूकंप आने का मुख्य कारण यूरेशियन प्लेट और अफ्रीकन एवं इंडियन प्लेट के मध्य होने वाली अभिसारी गति है।
मध्य महासागरीय पेटी-:
इस पेटी का विस्तार मुख्यतः मध्य अटलांटिक कटक क्षेत्र में है
यहां पर निम्न तीव्रता वाले भूकंप आते हैं।
इस पेटी में विश्व के लगभग 13% भूकंप आते हैं।
मध्य महासागरी पेटी में भूकंप आने का मुख्य कारण प्लेटो के मध्य होने वाली अपसारी गति है।
अन्य भूकंपीय क्षेत्र-:
ऐसे क्षेत्र जहां पर बड़े-बड़े बांध बने हैं वहां भूकंप आने की संभावना अधिक होती है।
भ्रंश निर्माण वाले क्षेत्र।
संरक्षित प्लेट किनारे वाले क्षेत्र।
खनन वाले क्षेत्र।
ज्वालामुखी तप्त स्थल वाले क्षेत्र।
भारत में सर्वाधिक भूकंप वाले क्षेत्र-:
हिमालय क्षेत्र
कच्छ घाटी क्षेत्र
अंडमान निकोबार क्षेत्र।
भूकंप के प्रभाव-:
सकारात्मक प्रभाव-:
भूगर्भिक अध्ययन में सहायक
भूकंप विज्ञान द्वारा भूकंप के दौरान निकलने वाली प्राथमिक और द्वितीयक तरंगों की गति में आए परिवर्तन के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने में मदद मिलती है।
नवीन भूमि प्राप्ति-:
भूकंप के कारण विभिन्न क्षेत्रों में कुछ भूभाग ऊपर उठ जाता है जिससे नई भूमि की प्राप्ति होती है।
गहरे बंदरगाहों का निर्माण-:
जब पृथ्वी के संतुलनमूलक बल द्वारा भूकंप आते हैं तटीय क्षेत्र धंस जाते हैं जिससे गहरी बंदरगाहों का निर्माण होता है जो काफी लाभदायक है।
नकारात्मक प्रभाव-:
जान माल की हानि-:
भूकंप के कारण भूमि का कंपन होता है जिससे बड़ी-बड़ी इमारतें फैक्ट्री मंदिर धराशाही हो जाते हैं, तथा अनेक लोगों की जान चली जाती है।
बाढ़-:
भूकंप के कारण बड़े-बड़े बांध टूट जाते हैं जिससे व्यापक क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है जो काफी विध्वंसक होती है।
सुनामी की उत्पत्ति-:
जब जलीय भागों में भूकंप आता है तो जल में लहरें उत्पन्न होते हैं और किनारों में यह लहरें बहुत बड़े आकार की बनकर सुनामी का रूप ले लेती है,जिससे सुनामी आती है जो विनाशकारी होती है।
हिमस्खलन-:
भूकंप आने से संबंधित क्षेत्र की भूमि एवं हिम खिसकने लगता है जिससे भूस्खलन एवं हिमस्खलन आता है।
ज्वालामुखी का उद्गार-:
कभी-कभी भूकंप के कारण भूपटल में दरार पड़ जाती हैं जिससे दरारी ज्वालामुखी का उद्धार होता है।
रचनात्मक या सांस्कृतिक वस्तुओं का विनाश हो जाता है।
सम भूकंप रेखा-:
समान भूकंप की तीव्रता अर्थात समान बर्बादी वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा।
सह भूकंप रेखा-:
पृथ्वी के ऐसे स्थानों को मिलाने वाली रेखा जहां पर एक साथ भूकंप का अनुभव किया जाता है।