मध्य प्रदेश के भू-आकृतिक प्रदेश

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मध्य प्रदेश की भौतिक अवस्थिति

भौगोलिक दृष्टि से हमारा राज्य भारत के मध्य में स्थित है इसलिए इसे मध्यप्रदेश कहा जाता है, मध्य प्रदेश प्रायद्वीपीय भारत का उत्तरी हिस्सा है, जिसका अक्षांशीय विस्तार 21°6 उत्तरी अक्षांश 26°30 डिग्री उत्तरी अक्षांश तक, तथा देशांतरीय विस्तार 74°9 पूर्वी देशांतर से 82°48 पूर्वी देशांतर तक है। 

मध्य प्रदेश राज्य के-

  • उत्तर पूर्व में – गंगा यमुना का मैदान। 

  • उत्तर पश्चिम में- अरावली पर्वत श्रेणियां। 

  • दक्षिण पूर्व में- छत्तीसगढ़ का मैदान। 

  • तथा दक्षिण में- तपती नदी घाटी एवं महाराष्ट्र का विशाल पठार अवस्थिति है। 

मध्य प्रदेश के भू-आकृतिक प्रदेश-

भू आकृतिक प्रदेशों का तात्पर्य, किसी क्षेत्र विशेष के भूपटल में पाए जाने वाले विभिन्न उच्चावचों से है। 

ज्योग्राफिक मैप ऑफ इंडिया ने मध्य प्रदेश को मुख्यतः तीन बड़े भागों में बांटा है

  • मध्य उच्च प्रदेश

  • सतपुड़ा श्रेणी प्रदेश

  • पूर्वी पठार

मध्य उच्च भूमि अरावली पर्वत श्रेणी के दक्षिण पूर्व में गंगा यमुना मैदान के दक्षिण पश्चिम में तथा सतपुड़ा पर्वत के उत्तर में अवस्थित है और इस मध्य उच्च प्रदेश को पुनः 5 उपभागो में विभाजित किया गया-

  • मालवा का पठार

  • मध्य भारत का पठार

  • बुंदेलखंड का पठार

  • रीवा पन्ना का पठार

  • नर्मदा घाटी

.मध्य प्रदेश के भू-आकृतिक प्रदेश मध्य प्रदेश की भौतिक अवस्थिति

.मध्य प्रदेश के भू-आकृतिक प्रदेश मध्य प्रदेश की भौतिक अवस्थिति

 

.मध्य प्रदेश के भू-आकृतिक प्रदेश मध्य प्रदेश की भौतिक अवस्थिति

मालवा का पठार

भौगोलिक स्थिति-:

मालवा का पठार मध्य प्रदेश के पश्चिम में स्थित है, जिसके 

  • उत्तर में मध्य भारत का पठार,

  • पूर्व में बुंदेलखंड एवं रीवा पन्ना का पठार। 

  • उत्तर पश्चिम में अरावली पर्वत श्रृंखला का क्षेत्र

  • और दक्षिण में नर्मदा घाटी अवस्थित है। 

भौगोलिक विस्तार-:

मालवा के पठार का विस्तार मध्यप्रदेश की लगभग 28% भूमि पर है इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश के लगभग 18 जिले आते हैं जिनमें रतलाम ,झाबुआ ,अलीराजपुर,उज्जैन ,देवास ,भोपाल ,इंदौर ,विदिशा ,गुना सागर आदि शामिल हैं। 

धरातलीय स्थिति-:

मालवा के पठार का ढाल मुक्ता उत्तर की ओर है जिसकी पुष्टि चंबल पर्वती कालीसिंध एवं बेतवा जैसी नदियों की प्रवाह दिशा से होती है। 

मालवा के पठार की भूमि समतल ना होकर उच्चावच युक्त है इस की सबसे ऊंची चोटी निम्न हैं

  • सिगार चोटी (881 मीटर), दक्षिणी महू में स्थित। 

  • जानापाव चोटी (854 मीटर) महू में स्थित। 

  • धजारी (इंदौर के पास)

निर्माण-:

इस पठार का निर्माण दरारी ज्वालामुखी उद्भेदन से निकली लावा के फैलने से हुआ है इसलिए इस क्षेत्र में दक्कनी क्रम की बेसाल्ट चट्टाने पाई जाती है। 

जलवायु-:

इस पठार में समशीतोष्ण प्रकार की जलवायु पाई जाती है, अर्थात यहां ना तू ग्रीष्म ऋतु में अधिक गर्मी और ना ही शीत ऋतु में अधिक ठंड पड़ती है इसलिए प्रसिद्ध चीनी यात्री फाह्यान ने इसे विश्व की सर्वश्रेष्ठ जलवायु बताया है। 

यहां पर औसतन वार्षिक वर्षा 50 से 75 सेंटीमीटर होती है। 

मिट्टी एवं फसल-:

यहां पर मुक्तक काली मिट्टी पाई जाती है जिसका निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के अपक्षय से हुआ है। 

यहां की प्रमुख फसलें- कपास ,गेहूं ,सोयाबीन ज्वार व मूंगफली हैं। 

वनस्पति-:

इस पठार में मुख्यता सागौन,साल ,तेंदूपत्ता जैसी वनस्पति पाई जाती है। 

जल संसाधन-:

इस पठार की प्रमुख नदियां हैं- 

  • चंबल नदी

  • क्षिप्रा नदी

  • पर्वती नदी

  • कालीसिंध नदी

  • बेतवा नदी। 

खनिज संसाधन-:

यह पटवार खाने संसाधनों की दृष्टि से कम संपन्न क्षेत्र है इसके अलीराजपुर एवं झाबुआ क्षेत्र में ही कुछ मात्रा में रॉक फास्फेट पाया जाता हैं। 

सांस्कृतिक परिदृश्य-:

  • मालवा पठार की प्रमुख सांस्कृतिक स्थल मांडू, उज्जैन, सांची इत्यादि है

  •  तथा यहां के प्रमुख पर्व संज्ञा व गणगौर है 

  • तथा यहां पर मुख्यतः मालवी, निमाड़ी, भीली बोली बोली जाती है

मध्य भारत का पठार

भौगोलिक स्थिति-:

मध्य भारत का पठार मध्य प्रदेश के उत्तर में स्थित है,जिसके-:

  • उत्तर में गंगा यमुना का मैदान

  • पूर्व में बुंदेलखंड का पठार

  • दक्षिण में मालवा का पठार

  • पश्चिम में राजस्थान की उच्च भूमि स्थित है। 

भौगोलिक विस्तार-:

मध्य भारत के पठार का विस्तार मध्य प्रदेश की कुल भूमि के 10.7% भाग पर है। इस पठार के अंतर्गत निम्न जिले आते हैं-

  • शिवपुर ,मुरैना ,भिंड,

  • ग्वालियर, शिवपुरी, गुना,

  • नीमच व मंदसौर का उत्तरी भाग। 

धरातलीय स्थिति-:

इस प्रकार का ढाल भी उत्तर-पूर्व की ओर है जिसकी पुष्टि कूनो, कुमारी ,सिंध नदी की प्रभाह दिशा से होती है। 

निर्माण-:

इस पठार का निर्माण विंध्यान शैल समूह की चट्टानों से हुआ है। 

जलवायु-:

किस प्रदेश में उष्ण जलवायु पाई जाती है अर्थात शीत ऋतु में हा का तापमान बहुत कम हो जाता है ग्रीष्म ऋतु में यहां का तापमान सर्वाधिक होता है। 

यहां पर औसतन वार्षिक वर्षा 50 से 75 सेंटीमीटर तक होती है

मिट्टी एवं फसल-:

यहां पर मुख्यत: जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है जिसका निर्माण चंबल नदी के निक्षेपण से हुआ है, 

वनस्पति-:

इस प्रदेश में मुख्यत: शुष्क एवं कटीली वनस्पति जैसे- खैर ,बबूल, पलाश पाई जाती है। 

जल संसाधन-:

इस पठार की प्रमुख नदियां हैं-

  • कूनो नदी

  • सिंधु नदी

  • चंबल नदी

  • कालीसिंध नदी

  • पर्वती नदी। 

खनिज संसाधन-:

इस पठार में मुख्यतः चुना पत्थर चीनी मिट्टी एवं इमारती पत्थर जैसे खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। 

सांस्कृतिक परिदृश्य-:

  • यहां के प्रमुख पर्यटक स्थलों में ग्वालियर का दुर्ग,मोती महल, सास बहू मंदिर, तेली मंदिर, माधव राष्ट्रीय उद्यान प्रसिद्ध है

  • यह की भाषा ब्रजभाषा है

  • यहां के प्रमुख लोकनाथ रासलीला एवं रामलीला है। 

बुंदेलखंड का पठार

भौगोलिक स्थिति-:

यह पठार मध्य प्रदेश के उत्तर पूर्व में स्थित है जिसके-:

  • पश्चिम में- मध्य भारत का पठार। 

  • उत्तर पूर्व में- गंगा यमुना का मैदान। 

  • दक्षिण में- पन्ना रीवा का पठार। 

  • तथा दक्षिण-पश्चिम में मालवा का पठार अवस्थित है। 

भौगोलिक विस्तार-:

बुंदेलखंड के पठार का विस्तार मध्य प्रदेश की कुल भूमि के 7.70% भाग पर है। इसके अंतर्गत निम्न जिले शामिल है-

  • मध्य प्रदेश के जिले-

    • निवाड़ी

    • टीकमगढ़ 

    • छतरपुर 

    • दतिया

    • शिवपुरी की करेरा एवं पिछोर तहसील। 

    • ग्वालियर की डबरा एवं भांडेर तहसील। 

    • भिंड के लहार तहसील ‌

    • उत्तरी सागर। 

  • उत्तर प्रदेश के जिले-

    • झांसी

    • ललितपुर 

    • जालौन 

    • बांदा 

    • हमीरपुर।

धरातलीय स्थिति-:

बुंदेलखंड पठार का दलन उत्तर की ओर है इस की सर्वोच्च चोटी सिद्ध बाबा(1172 मीटर) है जो राहतगढ़ में स्थित है। 

निर्माण-:

इस पठार का निर्माण प्रीकैंब्रियन युग की ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों से हुआ है। 

जलवायु-:

इस पठार में उष्ण जलवायु पाई जाती है इसलिए गर्मी में अधिक गर्मी और ठंडी में अधिक ठंड रहती है। 

यहां पर औसतन वार्षिक वर्षा 75 से 100 सेंटीमीटर तक होती है। 

मिट्टी एवं फसल-:

यहां पर मुख्यत: लाल पीली और काली मिट्टी पाई जाती है। 

यहां की प्रमुख फसलें गेहूं ,सरसों,ज्वार आदि हैं

वनस्पति-:

यहां की प्रमुख वनस्पतियां- तेंदूपत्ता, सागौन, पलाश, महुआ ,बबूल, खैर ,नीम आदि हैं। 

जल संसाधन-:

क्या की प्रमुख नदियां निम्न है-

  • केन नदी

  • बेतवा नदी

  • उर्मिल नदी

  • धसान नदी

  • सिंध नदी। 

खनिज संसाधन-:

बुंदेलखंड के क्षेत्र में मुख्यत हीरा ,ग्रेफाइट, रॉक फास्फेट,ग्रेनाइट जैसे खनिज पाए जाते हैं। 

सांस्कृतिक परिदृश्य-:

क्षेत्र के प्रमुख पर्यटक स्थल-खजुराहो के मंदिर, सोनागिरी का जैन मंदिर दतिया का किला ,जौहर कुंड,पीतांबरा शक्ति पीठ,नरवर का किला आदि है

यहां के लोक नृत्य- राई, सेरा,ढिमराई रही है

तथा यहां पर बुंदेलखंडी भाषा बोली जाती है। 

रीवा पन्ना का पठार

भौगोलिक स्थिति-:

रीवा पन्ना का पठार बुंदेलखंड पठार के दक्षिण पश्चिम में, मालवा के पठार की उत्तर पूर्व में एवं बघेलखंड पठार के उत्तर में स्थित है। 

भौगोलिक विस्तार-:

हीरा पन्ना के पठार का भौगोलिक विस्तार मध्य प्रदेश की कुल भूमि के 10.36 प्रतिशत भाग पर है। इसके अंतर्गत मुख्यता- 

  • पन्ना,रीवा,सतना,

  • दमोह,सागर (रहली, बंडा) आदि जिले आते हैं। 

धरातलीय स्थिति-:

इस का पठार का ढाल उत्तर की ओर है। तथा इसकी सबसे ऊंची चोटी सद्भावना(752 मीटर) पहाड़ी है जो दमोह में स्थित है। 

निर्माण-:

इस पठार का निर्माण विंध्यन क्रम की चट्टानों की अपेक्षय व अपरदन से हुआ है। इसलिए इसे विन्ध्य पठार भी कहते हैं। 

जलवायु-:

यहां पर भी उष्ण जलवायु पर पाई जाती है अर्थात यहां पर ठंडी में अधिक ठंडे हो गर्मी में अधिकतर नहीं होती है। 

यहां पर औसतन वार्षिक वर्षा 100 से 125 सेंटीमीटर के आसपास होती है। 

मिट्टी एवं फसल-:

यहां पर मुक्तक लाल,काली एवं कछारी मिट्टी पाई जाती है,

और यहां पर मुख्यता गेहूं, चावल, सरसों की खेती की जाती है। 

वनस्पति-:

यहां भी उष्णकटिबंधीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं जिसमें से प्रमुखता सागौन, बांस, आम ,तेंदूपत्ता की वनस्पति देखने को मिलती है। 

जल संसाधन-:

इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां हैं- टोंस नदी, केन नदी, बीहण नदी। 

खनिज संसाधन-:

इस क्षेत्र में मुख्यता चूना पत्थर, जिप्सम एवं बालू जैसी खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। 

सांस्कृतिक परिदृश्य-:

क्षेत्र के प्रमुख पर्यटक स्थलों में पन्ना टाइगर रिजर्व, मैहर, चित्रकूट, भरहुत का स्तूप रीवा का किला आदि शामिल है। 

तथा क्षेत्र में बुंदेली एवं बघेली दोनों प्रकार की बोली बोली जाती। 

नर्मदा घाटी

भौगोलिक स्थिति-:

नर्मदा घाटी मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी के अपवाह क्षेत्र में स्थित है,

जिसके-:

  • उत्तर में मालवा का पठार। 

  • दक्षिण में सतपुड़ा मैकल श्रेणी। 

  • पूर्व में बघेलखंड का पठार, अवस्थित है।

भौगोलिक विस्तार-:

नर्मदा घाटी का विस्तार मध्य प्रदेश की कुल भूमि के लगभग 26% भाग पर है, इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश के 16 जिले आते हैं जिनमें-

  • जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद

  • अनूपपुर,मंडला, डिंडोरी ,

  • देवास, हरदा, खंडवा, खरगोन बड़वानी, आदि जिले शामिल है। 

धरातलीय स्थिति-:

नर्मदा घाटी मध्य प्रदेश का सबसे निचला भाग है, अतः नर्मदा घाटी पर दक्षिण मध्य प्रदेश के अनेकों नदियां अपना जल गिराती हैं। 

निर्माण-:

नर्मदा घाटी का निर्माण विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत के बीच बाली भाग के धंसकर भ्रंश बनने से हुआ है। 

जलवायु-:

क्षेत्र में गर्मी के समय अधिक तापमान होता है किंतु ठंड के समय साधारण ठंड रहती है। तथा इस क्षेत्र में आद्रता की मात्रा अधिक होती है। 

नर्मदा घाटी के पूर्वी भाग में औसतन 130 सेंटीमीटर तथा पश्चिमी भाग में औसतन 70 सेंटीमीटर वर्षा होती है। 

मिट्टी एवं फसल-:

नर्मदा घाटी क्षेत्र में गहरी काली मिट्टी पाई जाती है, जो कपास व मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त होती है। यह की प्रमुख फसलों में कपास ,मूंगफली ,ज्वार ,गेहूं ,चावल, सोयाबीन आदि शामिल है। 

वनस्पति-:

नर्मदा घाटी के पूर्वी क्षेत्र में अधिक वर्षा होने से यहां पर उष्णकटिबंधीय आद्र वनस्पति पाई जाती है जिसमें साल का वृक्ष प्रमुख होता है तथा पश्चिमी भाग में उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते हैं जिसमें सागौन, पलाश, शीशम, बबूल के वृक्ष शामिल हैं। 

जल संसाधन-:

मध्यप्रदेश का यह क्षेत्र जल संसाधन की दृष्टि से काफी संपन्न क्षेत्र है क्योंकि क्षेत्र में नर्मदा नदी का व्यापक अपवाह तंत्र पाया जाता है क्षेत्र की प्रमुख नदियां हैं-

नर्मदा नदी, शक्कर नदी, दूधी नदी,तवा नदी,हिरण नदी। 

खनिज संसाधन-:

इस क्षेत्र में मुख्यत: निम्न खनिज संसाधन पाए जाते हैं

  • संगमरमर

  • फेल्डस्पर

  • सेलखड़ी

  • बॉक्साइट

  • टंगस्टन 

  • सीसा

सांस्कृतिक परिदृश्य-:

यहां के प्रमुख पर्यटक स्थल हैं-

अमरकंटक ,महेश्वर ,ओमकारेश्वर धुआंधार जलप्रपात आदि। 

सतपुड़ा मैकल श्रेणी

भौगोलिक स्थिति-:

सतपुड़ा मैकल श्रेणी मध्य प्रदेश का दक्षिणी हिस्सा है जिसके

  • उत्तर में नर्मदा घाटी

  • तथा दक्षिण में महाराष्ट्र की पहाड़ी व ताप्ती नदी अवस्थित है। 

भौगोलिक विस्तार-:

सतपुड़ा मैकल श्रेणी का विस्तार मध्य प्रदेश की कुल भूमि के लगभग 11% भाग पर है, इसके अंतर्गत मुख्यत: निम्न जिले आते हैं

  • बड़वानी, बुरहानपुर ,खंडवा ,खरगोन 

  • बैतूल, छिंदवाड़ा ,सिवनी, बालाघाट।

धरातलीय स्थिति-:

सतपुड़ा मैकल श्रेणी मध्य प्रदेश का सबसे ऊंचा भाग है, इसके अंतर्गत ही राजपीपला, अखरानी, असीरगढ़ की पहाड़ियां, अमरकंटक की पहाड़ी तथा महादेव पर्वत स्थित है, जिसकी सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ समुद्र तल से 1350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 

निर्माण-:

सतपुड़ा एक ब्लॉक पर्वत है जिसका निर्माण बेसाल्टिक एवं ग्रेनाइट चट्टानों से हुआ है। 

जलवायु-:

क्षेत्र में गर्मी के समय अधिक गर्मी और ठंड के समय साधारण ठंड पड़ती है तथा क्षेत्र में उच्च आद्रता पाई जाती है। 

यहां के पचमढ़ी क्षेत्र में 200 सेंटीमीटर से भी अधिक औसतन वार्षिक वर्षा होती है। 

मिट्टी एवं फसल-:

सतपुड़ा मैकल श्रेणी के पश्चिम व मध्य में काली मिट्टी तथा पूर्व में लाल पीली मिट्टी पाई जाती है। 

यहां की प्रमुख फसलों में ज्वार,कपास एवं धान की फसल प्रमुख हैं। 

वनस्पति-:

यह वन संसाधन की दृष्टि से काफी संपन्न क्षेत्र है इसके पूर्व भी क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय आद्र पर्णपाती वन पाए जाते हैं तथा पश्चिमी भाग में उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते हैं।

जल संसाधन-:

इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां-:

  • ताप्ती

  • वैनगंगा

  • वर्धा नदी

  • पेंच नदी। 

खनिज संसाधन-:

यह खनिज संसाधन की दृष्टि से संपन्न क्षेत्र है क्योंकि यहां पर पर्याप्त मात्रा में निम्न खनिज पाए जाते हैं-

  • तांबा, मैग्नीज,

  • ग्रेफाइट ,कोयला,

  • हरा संगमरमर, रंगीन संगमरमर,

  • टंगस्टन। 

सांस्कृतिक परिदृश्य

क्षेत्र में पचमढ़ी, असीरगढ़ का किला, पेंच राष्ट्रीय उद्यान आदि हैं तथा क्षेत्र में कोरकू, भील, भारिया जनजाति का निवासरत हैं। 

बघेलखंड का पठार

भौगोलिक स्थिति-:

यह मध्य प्रदेश का पूर्वी हिस्सा है जिसके

  • उत्तर में रीवा पन्ना का पठार

  • दक्षिण में मैकल पर्वत श्रेणी

  • पश्चिम में नर्मदा घाटी

  • तथा पूर्व में छोटा नागपुर का पठार अवस्थित है। 

भौगोलिक विस्तार-:

बघेलखंड के पठार का विस्तार मध्य प्रदेश की कुल भूमि के लगभग 7 प्रतिशत भाग पर है, इसके अंतर्गत मुख्यत: 

सीधी, सिंगरौली, शहडोल ,अनूपपुर, उमरिया आदि जिले आते हैं। 

धरातलीय स्थिति-:

क्षेत्र कटहल उत्तर पूर्व की तरफ है जिसकी पुष्टि सोन नदी की प्रवाह दिशा से होती है। 

निर्माण-:

इस पठार का निर्माण गोंडवाना क्रम की चट्टानों से हुआ है। इसलिए इस क्षेत्र में व्यापक मात्रा में कोयला प्राप्त होता है। 

जलवायु-:

इस क्षेत्र में साधारण जलवायु पाई जाती है तथा यहां पर औसतन वार्षिक वर्षा 125 सेंटीमीटर से भी अधिक होती है। 

मिट्टी एवं फसल-:

क्षेत्र में मुख्यत: लाल-पीली बलुई मिट्टी पाई जाती है, तथा यहां की प्रमुख फसल चावल ज्वार व मोटे अनाज हैं। 

वनस्पति-:

यहां पर सघन आद्र पर्णपाती वन पाए जाते हैं जिसमें साल, सागवान, तेंदूपत्ता के वृक्ष देखने को मिलते हैं। 

जल संसाधन-:

क्षेत्र में 125 सेंटीमीटर से भी अधिक वार्षिक वर्षा होने के कारण जल की पर्याप्त उपलब्धता रहती है तथा यहां की प्रमुख नदियां हैं

  • सोन नदी

  •  रिहंद नदी 

  • जोहिला नदी

खनिज संसाधन-:

क्षेत्र में मुख्यतः कोयला, चूना पत्थर ,बॉक्साइट ,कोरंडम जैसे खनिजों की प्रचुरता पाई जाती है। 

सांस्कृतिक परिदृश्य-:

क्षेत्र में बघेली बोली, बोली जाती है,

क्षेत्र में कोल, अगरिया, बेगा, पनिका जनजाति निवास करती है

 तथा इस क्षेत्र के प्रमुख पर्यटक स्थल है-

  • बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, संजय राष्ट्रीय उद्यान

  • माड़ा की गुफा सिंगरौली।

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