राष्ट्र की अवधारणा शक्ति एवं घटक

राष्ट्र की अवधारणा शक्ति एवं घटक

राष्ट्र की अवधारणा शक्ति एवं घटक

राष्ट्र की अवधारणा

प्रोफेसर गार्डनर के अनुसार-: “सांस्कृतिक रूप से संगठित एकरूपीय समुदाय, जिसे अपने आध्यात्मिक जीवन की एकता और अभिव्यक्ति का ज्ञान है और वह उसे बनाए रखना चाहता है”

अर्थात राष्ट्र, इतिहास एवं संस्कृति संबंधी एकरूपता के आधार पर निर्मित समुदाय है जिसमें सजातीय घनिष्ठता पाई जाती है।

राष्ट्र की विशेषताएं -:

  • राष्ट्र का निर्माण, ऐतिहासिक या सांस्कृतिक एकरूपता से होता है। 

  • राष्ट्र एक काल्पनिक या अमूर्त अवधारणा है। 

  • राष्ट्र का मूल तत्व”सजातीय घनिष्ठता एवं एकता” है। 

  • राष्ट्र की कोई निश्चित भौगोलिक सीमा नहीं होती। 

  • एक राष्ट्र के सभी लोगों में एक दूसरे के प्रति स्वाभाविकत: भाईचारे एवं प्रेम की भावना होती है। 

भारत में राष्ट्र की अवधारणा

भारत में प्राचीन समय से ही राष्ट्र की अवधारणा मौजूद थी; हमारे प्राचीन वैदिक ग्रंथों जैसे कि- ऋग्वेद, यजुर्वेद ,अथर्ववेद तथा पुराणों में राष्ट्र शब्द का प्रयोग किया गया। 

साथ ही कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राष्ट्र की समृद्धि एवं रक्षा संबंधी अवधारणा मौजूद हैं। 

भारतीय दार्शनिकों ने राष्ट्रीय संदर्भ में अपने अलग-अलग मत व्यक्त किये हैं-

  • स्वामी विवेकानंद का विचार है कि राष्ट्र का निर्माण आध्यात्मिक जुड़ाव से होता है जिसका उद्देश्य मानवता को प्राप्त करना है। 

  • अरविंद घोष ने राष्ट्र को जीवित इकाई मानते हुए मातृदेवी का दर्जा दिया है। 

  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय का विचार है कि राष्ट्र का निर्माण संस्कृति एवं धर्म के आधार पर होता है। 

अर्थात भारतीय राष्ट्र का स्वरूप- आध्यात्मिक, मानवतावादी, बहु सांस्कृतिक है। 

राष्ट्रवाद-: राष्ट्रीय के प्रति प्रेम या लगाव की भावना रखते हुए, राष्ट्र की सुरक्षा एवं राष्ट्र के विकास में योगदान देना राष्ट्रवाद है।

राष्ट्र और राज्य में अंतर

राष्ट्र, इतिहास एवं संस्कृति संबंधी एकरूपता के आधार पर निर्मित समुदाय है जिसमें सजातीय घनिष्ठता पाई जाती है।

जबकि राज्य एक निश्चित से भूभाग में कानून द्वारा संगठित लोगों का समुदाय है। –वुड्रो विल्सन। 

  • राष्ट्र एक अमूर्त अवधारणा है, जबकि राज्य एक मूर्त अवधारणा है। 

  • राष्ट्र के लिए निश्चित भौगोलिक भु-भाग होना आवश्यक नहीं है जबकि राज्य के लिए निश्चित भौगोलिक भू-भाग होना आवश्यक है। 

  • राष्ट्र के लिए सांस्कृतिक या आध्यात्मिक जुड़ाव होना आवश्यक है लेकिन राज्य के लिए यह आवश्यक नहीं। 

  • राष्ट्र का निर्माण स्वयं: ही हो जाता है जबकि राज्य का निर्माण समझौते से होता है।

राष्ट्र-राज्य-

 वह राज्य जिसका निर्माण किसी  एक संस्कृति(  एक भाषा, एक धर्म, एक जाति ,एक संप्रदाय) के आधार पर हुआ है; उदाहरण के लिए पाकिस्तान ( इसका निर्माण इस्लाम धर्म के आधार पर हुआ है अतः पाकिस्तान एक राष्ट्र राज्य है)

राज्य-राष्ट्र

वह राज्य  जिसकी पहचान किसी एक संस्कृति के आधार पर नहीं बल्कि सांस्कृतिक विविधता के आधार पर की जाती है; उदाहरण के लिए भारत

राष्ट्र के घटक-

  • साझा इतिहास– एक राष्ट्र के  सभी लोगों ऐतिहासिक दृष्टि से पूर्वजों से जुड़े होते हैं। 

  •  सांस्कृतिक एकरूपता– एक राष्ट्र के लोगों में लगभग एक समान संस्कृति पाई जाती है

  •  समान धर्म- राष्ट्र के अधिकांश लोगों का एक  समान धर्म होता है

  •  भौगोलिक एकता- समान्यता: राष्ट्र के लोग एक निश्चित भूभाग में रहते हैं; लेकिन यह अनिवार्य नहीं है

  •  भाईचारे की भावना– एक राष्ट्र के सभी लोगों में एक दूसरे की प्रति भाईचारे की भावना होती है

  • राष्ट्रीय प्रतीक -: प्रत्येक राष्ट्र के कुछ राष्ट्रपति होते हैं जैसे- राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत। 

राष्ट्रीय शक्ति-

राष्ट्र की वह क्षमता, जिससे वह अपने हितों तथा उद्देश्यों को सुरक्षित करने के साथ-साथ अन्य राष्ट्र पर अपना प्रभाव डालता है

राष्ट्रीय शक्ति के विशेषताएं-:

अस्थाई स्वरूप- राष्ट्रीय शक्ति परिवर्तनशील होती है; उदाहरण के लिए स्वतंत्रता के पूर्व भारत की सैनी शक्ति कमजोर थी किंतु अब चौथे स्थान पर है। 

तुलनात्मक मूल्यांकन-राष्ट्रीय शक्ति को किसी अन्य राष्ट्र से तुलना करके ही आंका जा सकता है। 

शक्ति की दृष्टि से दो राष्ट्र सामान नहीं होते- कोई राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से या तो अधिक शक्तिशाली होगा या तो निर्मल। 

अनेकों तत्वों पर आधारित-राष्ट्रीय शक्ति विभिन्न प्राकृतिक,आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक तत्वों पर निर्भर होती है। 

इसके अतिरिक्त राष्ट्र की वास्तविक शक्ति तथा व्यवहारिक शक्ति में अंतर होता है जो राष्ट्र के नेतृत्वकर्ता द्वारा शक्ति का प्रयोग करने की क्षमता पर निर्भर होता है।

राष्ट्रीय शक्ति के प्रकार-:

  • सैनिक शक्ति-: यह शक्ति सुरक्षा की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण शक्ति होती है। 

  • आर्थिक शक्ति-: यह शक्ति देश के हितों की पूर्ति करने के लिए आवश्यक होती है। 

  • मनोवैज्ञानिक शक्ति-: यह शक्ति अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपना प्रभाव डालने की दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है। 

  • सांस्कृतिक शक्ति -: राष्ट्रीय पहचान सांस्कृतिक विरासत तथा धर्म आदि की शक्ति। 

  • जन‌शक्ति–  राष्ट्र की जनसंख्या तथा मानव संसाधन की गुणवत्ता। 

राष्ट्रीय शक्ति के तत्व-:

भूगोल -: राष्ट्रीय शक्ति का सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व राष्ट्र का भूगोल है; 

  • भौगोलिक आकार- यदि बड़ा है तो वह राष्ट्र अधिक शक्तिशाली होगा। (उदाहरण-रूस,चीन)

  • भौगोलिक स्थिति-स्थलरूद्ध राष्ट्रों की तुलना में, समुद्र से घिरे राष्ट्रों की शक्ति अधिक होती है। (उदाहरण-अमेरिका ,जापान समुद्र शक्ति संपन्न)

  • भौगोलिक सीमाएं –यदि राष्ट्र मित्र राष्ट्रों की सीमा से घिरा है तो उसकी शक्ति अधिक होगी इसके विपरीत शत्रु राष्ट्रों की सीमा लगी होने पर राष्ट्रीय शक्ति कमजोर होगी। 

  • मृदा -: यदि मृदा उपजाऊ है तो राष्ट्रीय शक्ति अधिक होगी। 

  • प्राकृतिक संसाधन-: यदि महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन जैसे- लोहा, कोयला, पेट्रोलियम, जल आदि अधिक मात्रा में हेतु राष्ट्रीय शक्ति अधिक होगी। (उदाहरण -इराक ,ईरान पेट्रोलियम के कारण संपन्न है)
  • जनसंख्या-: जिस राष्ट्र में शिक्षित ,प्रशिक्षित स्वस्थ एवं कुशल जनसंख्या है; राष्ट्र अपने संसाधनों का समुचित उपयोग कर पाएगा उसकी शक्ति अधिक होगी। (उदाहरण– जापान)
  • नेतृत्वकर्ता-: यदि राष्ट्र का नेतृत्व करता योग्य तथा महात्वाकांक्षी रणनीति वाला है,तो उसे राष्ट्र की शक्ति अधिक होगी। (उदाहरण रूस,भारत)
  • आर्थिक विकास -: यदि राष्ट्र आर्थिक रूप से संपन्न है तो वह दूसरों पर निर्भर नहीं रहेगा उसकी शक्ति अधिक होगी (उदाहरण-अमेरिका)
  • तकनीकी-: वर्तमान में तकनीकी का महत्व सबसे ज्यादा बढ़ रहा है जिसके पास उन्नत तकनीकी है वह अपने प्राकृतिक संसाधनों का कुशलतम दोहन कर पा रहा है और शक्तिशाली बना हुआ है ( उदाहरण– जापान)
  • राष्ट्रीय एकता-: जिस राष्ट्र के लोगों में एक दूसरे के प्रति भावना तथा राष्ट्र के प्रति प्रेम होता है वह राष्ट्र अधिक संगठित एवं मजबूत होता है उसकी शक्ति अधिक होती है। 

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