[लोक प्रशासन में नीति शास्त्र]

लोक प्रशासन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है

  • लोक

  • प्रशासन

यहां पर लोक का अर्थ है-: सार्वजनिक या राज्य की समस्त जनता, तथा प्रशासन का अर्थ है -:प्रबंधन करना। 

अर्थात लोक प्रशासन का तात्पर्य है-: सार्वजनिक कल्याण के लिए सरकार के अधीन रहते हुए कानूनों एवं नियमों के अनुसार सार्वजनिक मामलों का प्रबंधन करना। 

वुडरो विल्सन के अनुसार-: लोक प्रशासन कानूनों को व्यापक एवं व्यवस्थित रूप से लागू करने की अभिव्यक्ति है। 

लोक प्रशासन की विशेषताएं-: 

  • लोक प्रशासन सरकार के अधीन रहते हुए, लोक हित के लिए कार्य करने वाला तंत्र है। 

  • लोक प्रशासन सरकार का अभिन्न अंग है क्योंकि जहां एक और यह सरकार के सलाहकार के रूप में करता है वहीं दूसरी ओर सरकार के हथियार के रूप में कार्य करता है। 

  • लोक प्रशासन सामाजिक विकास एवं परिवर्तन का यंत्र है। 

  • लोक प्रशासन सरकार और जनता के मध्य सेतु की भांति है। 

  • लोक प्रशासन देश में एकता, अखंडता, शांति सुरक्षा बनाए रखने का तंत्र है। 

लोक सेवक-: 

समान्यत: लोक प्रशासन के अंतर्गत कार्य करने वाले व्यक्ति को लोकसेवक कहते हैं। 

उच्चतम न्यायालय तथा विभिन्न अधिनियमों में दी गई परिभाषा के आधार पर उन व्यक्तियों को लोकसेवक माना जाता है जो

  • सार्वजनिक कल्याण का कार्य करने के लिए उत्तरदाई होते हैं।

  • तथा जिन्हें सरकार द्वारा वेतन भत्ता कमीशन अधिक दिया जाता है। 

लोक सेवक के अंतर्गत सरकारी कंपनियों के अधिकारी ,आयोग एवं बोर्ड के पदाधिकारी, न्यायाधीश तथा न्यायपालिका के गैर न्यायिक पदाधिकारी, सरकारी विश्वविद्यालय कॉलेज एवं अन्य शिक्षण संस्थानों के कार्मिक, एवं सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक संस्थाओं के कर्मचारी शामिल हैं। 

एक अच्छे लोग सेवक के गुण

लोक प्रशासन में आधारभूत नैतिक मूल्य

  • नि: स्वार्थ भावना-: लोक सेवक सदैव सार्वजनिक कल्याण के हित में निर्णय लेना चाहिए स्वयं के या परिवार, मित्र के हित में नहीं। 

  • सत्य निष्ठा-: लोक सेवक को अपने पद के दायित्वों का सत्यता के साथ निर्वहन करना चाहिए। अर्थात वित्तीय लालच या अन्य कृतज्ञता के प्रभाव में नहीं आना चाहिए।  

  • वस्तुनिष्ठता-: एक लोक सेवक को जनता के साथ भेदभाव मुक्त व्यवहार करना चाहिए , अर्थात,सार्वजनिक नियुक्तियों के समय योग्यता के आधार पर व्यक्तियों की नियुक्ति करना चाहिए ,ना कि पहचान या जाति धर्म के आधार पर। 

  • जवाबदेही-: एक लोक सेवक को अपने द्वारा लिए गए निर्णय या अपने द्वारा की गई कार्यवाही के लिए जवाबदेही होना चाहिए। 

  • पारदर्शिता-: लोक सेवक को जहां तक संभव हो सके अपने कार्यों एवं निर्णय में पारदर्शिता रखनी चाहिए, केवल व्यापक जनहित में आवश्यक होने पर ही सूचनाओं को गोपनीय रखना चाहिए। 

  • ईमानदारी-: लोक सेवक को ईमानदार होना चाहिए, अर्थात वह जिस कार्य के लिए उत्तरदाई है उसे समय प्रतिबद्धता के साथ उपयुक्त तरीके से करना चाहिए, वह जिस कर को कर पाया है उसी का श्रेय लेना चाहिए तथा जिस कर को नहीं कर पाया है उसकी गलती स्वीकार नहीं चाहिए।  

  • नेतृत्व क्षमता-: एक लोक सेवा सरकार की तरफ से सार्वजनिक कल्याण का प्रतिनिधि होता है अतः उसके अंदर नेतृत्व क्षमता होनी चाहिए, अर्थात उसके अंदर सार्वजनिक मंच पर अपनी बात को रखने का उपयुक्त तरीका होना चाहिए। 

  • सार्वजनिक धन का सदुपयोग,

लोक प्रशासन में नीति शास्त्र एवं मूल्यों की आवश्यकता /महत्त्व या उद्देश्य-: 

बढ़ते भ्रष्टाचार को समाप्त करने हेतु-: वर्तमान में प्रशासनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार एवं भाई भतीजावाद काफी ज्यादा बढ़ गया है अतः भ्रष्टाचार को नियंत्रित करके उसे समाप्त करने के लिए लोक सेवा में नीतिशास्त्र एवं नैतिक मूल्य की स्थापना आवश्यक है। 

लोक सेवकों निर्णय क्षमता के विकास हेतु-: वर्तमान में लोक सेवक नैतिक दुविधा के समय उपयुक्त निर्णय नहीं ले पाते अतः नैतिक दुविधा के समय उपयुक्त निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने हेतु, लोक प्रशासन में नैतिक मूल्य स्थापित करना आवश्यक है। 

लोक सेवकों को जनता की समस्या के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु-: 

लोक सेवकों को जनता की मानसिकता की वास्तविक समझ नहीं रहती जिससे वे जनता की समस्या का शीघ्र ता से समाधान नहीं कर पाती तथा यदि समाधान करते भी हैं तो कभी-कभी जनता के संदर्भ में अनुपयुक्त निर्णय भी कर देते हैं,अतः इन दोनों समस्याओं के समाधान हेतु प्रशासन को संवेदनशील होना होगा ,प्रशासन को संवेदनशील बनाने के लिए लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र आवश्यक है। 

लोक सेवकों को कर्तव्य परायण बनाने के लिए, वर्तमान में देखा जाता है कि अधिकांश लोक सेवक केवल नाम के लोक सेवक रहते हैं, उन्हें तो केवल अपने वेतन या व्यक्तिगत लाभ से मतलब होता है लोक सेवा से नहीं, अतः उनके मन में लोक सेवा की तीव्र भावना जागृत करने के लिए अर्थात उन्हें कर्तव्य परायण  बनाने के लिए लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र आवश्यक है। 

लोक प्रशासन में जवाबदेही, निष्पक्षता, जन सहभागिता,पारदर्शिता वस्तुनिष्ठता लाने के लिए।

लोक प्रशासन में नैतिक मूल्यों के पतन के कारण -: 

भौतिकवाद या उपभोक्तावाद का प्रसार-: वर्तमान युग भौतिकवाद का युग है, अर्थात वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति सदाचार की बजाय अधिक से अधिक सुविधाजनक भौतिक वस्तुएं प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है, और अधिक से अधिक भौतिक वस्तुएं सामाजिक प्रतिष्ठा का भी सूचक बन चुका है, और लोक सेवक भी अधिक भौतिक वस्तुओं` की प्राप्ति की इच्छा रखता है जो उसकी सीमित वेतन से संभव नहीं हो पांती अतः वह नैतिक मूल्यों की सीमा को लागकर धन एवं भौतिक वस्तु की प्राप्ति हेतु अनैतिक कार्य करता है। 

राजनीतिक एवं पूंजीपतियों का दबाव-: लोक सेवकों को बड़े पदों के राजनेताओं के अधीन कार्य करना होता है, और अनेकों राजनेता स्वयं का जेब भरने के लिए तथा बड़े बड़े पूंजीपति अनैतिक धंधे द्वारा अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए लोक सेवकों को नैतिक के विरुद्ध अनैतिक कार्य करने के लिए दबाव डालते हैं, जिस कारण से भी लोक सेवकों की नैतिकता का पतन हो जाता है

लोक सेवकों के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि

भारत जैसे विकासशील देशों में अनेकों सार्वजनिक समस्याएं मौजूद है, और इन सार्वजनिक समस्याओं की समाप्ति का जिम्मा लोक प्रशासन के ऊपर होता है जिससे इनका कार्य क्षेत्र भी बढ़ जाता है, परिणाम स्वरुप इनके अधिकार भी बढ जाते हैं, और ये शीघ्रता से सभी कार्य करने में सक्षम नहीं होते परिणाम स्वरूप धनवान लोग अपना कार्य शीघ्रता से करवाने के लिए बिना मंगाए ,घूस देते हैं। जिससे इनका शीघ्रता से काम कर देते हैं

नियंत्रण प्रणाली में खामियां-: 

लोक सेवकों की नैतिकता पर नियंत्रण रखने के लिए अनेकों संस्थाएं करत है जैसे-: सतर्कता आयोग केंद्रीय ,अन्वेषण ब्यूरो किंतु इसकी अधिकारी भी कर्तव्यनिष्ठ एवं सत्य नष्ट नहीं होते जिस कारण से अधिकारियों की जांचकर्ता अधिकारियों के साथ मिलीभगत हो जाती है परिणाम स्वरूप इन पर कोई दांडिक कार्यवाही नहीं हो पाती और अनैतिकता के पथ पर ही चलते रहते हैं

जन जागरूकता में कमी-: 

लोकतांत्रिक देश में जनता को सर्वोपरि माना जाता है जनता का निर्णय को ही तवज्जो दी जाती है किंतु यदि जनता अनपढ़ गवार होती है तो इसका पूरा फायदा शासन प्रशासन को मिलता है और भारत जैसे देशों में अधिकांश जनता जागरूक नहीं है जिस कारण से लोक सेवक अपने मनमाने तरीके से कार्य करते हैं क्योंकि उन पर जनता का दबाव नहीं होता। 

लोक प्रशासन में नैतिक मूल्यों के पतन का प्रभाव-: 

  • भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी,

  • भाई भतीजावाद में बढ़ोतरी,

  • प्रशासनिक न्याय का अभाव,

  • प्रशासन और जनता की मध्य जन सहभागिता में कमी।  

  • राज्य में वास्तविक लोकतंत्र स्थापित ना हो पाना। 

लोक प्रशासन में नैतिक मूल्यों की स्थापना के उपाय-; 

  • लोक सेवकों को पर्याप्त नैतिक प्रशिक्षण दिया जाए तथा उनका परीक्षण भी किया जाए तभी जॉइनिंग दी जाए। 

  • कम से कम समय अंतराल अधिकारियों के निरीक्षण किया जाए। 

  • कार्यस्थल में नैतिकता के अनुसार कार्य करने का माहौल बनाया जाए जैसे -:महान विचारकों के कथन उल्लेखित किया जाए, साक्ष्य मिलने पर अधीनस्थों को भी उच्च पदों के विरुद्ध करवाई करने का अधिकार दिया जाए। 

  • अच्छा कार्य करने वाले अधिकारी को प्रोत्साहित किया जाए तथा अनैतिक कार्य करने वाले को कठोर से कठोर दंड दिया जाए। 

  • जनशिकायत निवारण प्रक्रिया को और भी आसान बनाया जाए। ताकि लोक सेवकों के अनैतिक व्यवहार से पीड़ित व्यक्ति आसानी से उसके विरुद्ध कार्रवाई कर सके। 

  • ई गवर्नेंस को बढ़ावा दिया जाए

  • …. भ्रष्टाचार रोकने के उपाय। 

लोक प्रशासन नैतिक मूल्य संबंधी समस्याएं -: 

  • भ्रष्टाचार

  • अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप

  • निष्पक्षता में कमी

  • संवेदनशीलता की कमी

  • त्वरित कार्यवाही की कमी

  • उत्तरदायित्व , जवाबदेही एवं पारदर्शिता की कमी,

प्रशासन में नैतिक मूल्यों को प्रभावित करने वाले कारक

परिवार एवं समाज का स्वरूप-: प्रशासन में कार्यरत अधिकारी या लोक सेवक परिवार एवं समाज के सदस्य होते यदि परिवार एवं समाज द्वारा उसके अंदर अधिक नैतिक मूल्य विकसित कर दिए गए हैं तो प्रशासन भी नैतिक होगा इसके विपरीत यदि प्रशासनिक अधिकारी ने परिवार समाज द्वारा नैतिक मूल्य विकसित नहीं किए गए तो वह अनैतिक होगा। 

शिक्षा का स्वरूप-:

शिक्षा भी नैतिक मूल्यों को प्रभावित करती है यदि प्रशासन में कार्यरत व्यक्ति को नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी गई है तो वह नैतिक होगा अन्यथा अनैतिक। 

प्रशिक्षण की व्यवस्था-: 

यदि प्रशासनिक अधिकारी को उच्च स्तर के नैतिक तत्वों का प्रशिक्षण दिया गया है जैसे -:सत्य निष्ठा ,समर्पण तो संभावना है कि वह अधिकारी अधिक नैतिक होगा इसके विपरीत वह कम नैतिक होगा। 

राजनीतिक परिवेश-: 

राजनीतिक परिवेश भी प्रशासन की नैतिकता को प्रभावित करता है, यदि किसी अधिकारी के ऊपर किसी राजनेता का अनुचित दबाव होता है तो उस अधिकारी को अपने नैतिक मार्ग से वितरित होना पड़ता है,

मीडिया का प्रभाव-: 

यदि मीडिया किसी प्रशासनिक संस्था का अनेकों बाद निरीक्षण करती रहती है तो वह प्रशासनिक क्षमता अधिक नैतिक होगी, इसके विपरीत कम नैतिक होने की संभावना है। 

जनता की जागरूकता-: यदि जनता जागरूक है तो प्रशासन को नैतिक होना ही पड़ेगा अन्यथा जनता प्रशासन के विरुद्ध भी कार्रवाई कर सकते हैं इसके विपरीत यदि जनता जागरूक नहीं है तो प्रशासन अपनी मनमर्जी से अनैतिक तरीके से कर करने लगता है। 

Other post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *