लोक प्रशासन या लोक सेवकों के प्रमुख नैतिक मूल्य

[लोक प्रशासन या लोक सेवकों के प्रमुख नैतिक मूल्य]

भारत जैसे विकासशील देशों में व्यापक मात्रा में सार्वजनिक सामाजिक एवं आर्थिक समस्याएं मौजूद है जैसे -:गरीबी ,बेरोजगारी, भुखमरी, संप्रदायिक दंगे, जातिवाद ,क्षेत्रवाद ,भाषावाद। 

इन सार्वजनिक समस्याओं का समाधान करके जनकल्याण की जिम्मेदारी शासन एवं प्रशासन की होती है किंतु सरकार तो केवल नीतियां बनाती है, एवं नीतिगत निर्णय लेती, उनको क्रियान्वित करने का कार्य तो प्रशासन ही करता है, अतः सार्वजनिक कल्याण प्रशासन की सफलता पर निर्भर करता है और प्रशासन की सफलता प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा नैतिक मूल्यों के पालन पर निर्भर करती है। 

उदाहरण के लिए यदि कोई जिला स्तर का लोकसेवाक या प्रशासनिक अधिकारी भ्रष्ट है या कर्तव्यनिष्ठ नहीं है तो उसका खामियाजा पूरे जिले की जनता को भुगतना पड़ता है। 

अतः लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए लोक सेवकों में नैतिक मूल्य होना आवश्यक है। 

लोक सेवकों के प्रमुख आधारभूत नैतिक मूल्य-: 

  • सत्य निष्ठा

  • निष्पक्षता

  • अराजनैतिकता

  • सहानुभूति

  • समानुभूति

  • समर्पण

  • वस्तुनिष्ठता

  • तार्किकता

  • उत्तरदायित्व।

[सत्यनिष्ठा]

सामान्यतः सत्य निष्ठा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है -:सत्य+निष्ठा। 

यहां पर सत्य का अर्थ है-: उचित या नैतिक सिद्धांत और निष्ठा का अर्थ है -:दृढ़ता पूर्ण। 

अर्थात सत्यनिष्ठा व्यक्ति का वह मूल्य है जिसके अंतर्गत वह भय,दबाव ,प्रलोभन, पूर्वाग्रह आदि से मुक्त होकर सदैव नैतिक सिद्धांतों के अनुसार(सत्यता के अनुसार) अपने कर्तव्यों का दृढ़तापूर्वक पालन करता है। 

अर्थात अपने दायित्वों के प्रति ईमानदार होना सत्यनिष्ठा है। 

सत्यनिष्ठा के प्रकार-: 

  • बौद्धिक सत्यनिष्ठा

  • व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा

  • व्यवसायिक सत्यनिष्ठा

बौद्धिक सत्यनिष्ठा-:

बौद्धिक सत्यनिष्ठा का तात्पर्य व्यक्ति के उस गुण से है जिसके अंतर्गत वह स्वयं के कार्यों का मूल्यांकन उन्हीं मापदंडों पर करता है जिन मापदंडों पर वह दूसरों के कार्यों का मूल्यांकन करता है। 

जैसे-: यदि दूसरों के लिए शुद्धता का मापदंड स्नान है तो वह अपने लिए भी शुद्धता का मापदंड स्नान को रखकर स्वयं को परखे की वह शुद्ध है या अशुध्द। 

व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा-:

अपने व्यक्तिगत आदर्शों या नैतिक सिद्धांतों के अनुसार ही व्यवहार करना व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा कहलाती है। 

जैसे-: व्यक्तिगत रूप से हम यह मानते हैं कि झूठ बोलना उचित या नैतिक नहीं है तो जीवन में कभी झूठ ना बोलना ही व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा होगी। 

व्यवसायिक सत्यनिष्ठा-:

अपने व्यवसाय से संबंधित नैतिक सिद्धांतों का उचित तरीके से दृढ़ता पूर्वक पालन करना व्यवसायिक सत्यनिष्ठा कहलाती है। 

जैसे-: वकील द्वारा अपने मुवक्किल को पूरी विधिक सहायता देना, वकील की व्यवसायिक सत्यनिष्ठा होगी। 

प्रशासनिक अधिकारी की सत्यनिष्ठा-: 

वह प्रशासनिक अधिकारी सत्यनिष्ठ कहलाएगा जो सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर प्रशासनिक आचार संहिता के अनुसार दृढ़संकल्पित होकर कार्य करता है। अर्थात जो

  • सदैव सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर ही निर्णय ले, व्यक्तिगत हित के अनुसार नहीं। 

  • भय,दबाव, प्रलोभन, पूर्वाग्रह आदि से मुक्त हो। 

  •  यदि जाने अनजाने में कोई अनुचित कार्य हो गया है तो उसकी गलती स्वीकार करें। 

प्रशासन में सत्यनिष्ठा का महत्व-: 

प्रशासन में सत्यनिष्ठा होने से-:

  • जनकल्याणकारी केंद्रित सुप्रशासन की स्थापना होती है। 

  • प्रशासन में भाई भतीजावाद, परिवारवाद पर लगाम लगती है

  • प्रशासन में भ्रष्टाचार एवं लालफीताशाही का प्रभाव कम होता है

  • पात्र व्यक्ति को समयबद्ध तरीके से योजना का समुचित लाभ प्राप्त होता है अर्थात प्रशासनिक कार्यों में समय प्रतिबद्धता बढ़ेगी। 

  • प्रशासन और जनता के मध्य विश्वसनीयता बढ़ती है।

  • सार्वजनिक धन का समुचित उपयोग होता है। 

  • सार्वजनिक विभिन्न विभागों संस्था एवं अधिकारियों के मध्य सहयोग एवं सामंजस्य की भावना में बढ़ोतरी होगी। 

इसके अलावा सत्यनिष्ठ अधिकारी को कुछ व्यक्तिगत लाभ होता है जैसे-: 

  • सत्य नष्ट होने से उसे आत्म संतोष प्राप्त होता है

  • सत्यनिष्ठ होने के कारण उसका सम्मान बढ़ जाता है। 

  • सत्य निष्ठा का पालन करने पर संबंधित अधिकारी के प्रति वरिष्ठ और अधीनस्थ अधिकारियों कर्मचारियों उस पर विश्वास बढ़ जाता है परिणाम स्वरूप उसे अधिक सहयोग प्राप्त होने लगता है। 

प्रशासन में सत्यनिष्ठा बढ़ाने के उपाय-: 

लोक सेवकों की चयन प्रक्रिया में सुधार

लोक सेवकों की चयन की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक परीक्षण पर विशेष बल दिया जाए और उन्हें अभ्यार्थियों को चयनित किया जाए जो सकारात्मक मनोवृति रखते हैं। 

लोक सेवकों की प्रशिक्षण प्रक्रिया में सुधार

लोक सेवकों को चयन के उपरांत, प्रशिक्षण के दौरान प्रशासनिक आचार संहिता की स्पष्ट उदाहरण सहित जानकारी प्रदान की जाए एवं तथा समय-समय पर उनका परीक्षण किया जाए और तब तक उन्हें पोस्ट नहीं दी जाए जब तक वे नैतिक मनोवृत्ति कि नहीं हो जाते हैं। 

निरीक्षण व्यवस्था में सुधार

पद ग्रहण के उपरांत अधिकारियों का समय-समय पर सतर्कता आयोग जैसी संस्था द्वारा निरीक्षण किया जाए। संदिग्ध विभागों में सीसीटीवी कैमरा एवं माइक भी लगाई जाए जो 24 घंटे एक्टिव हों, तथा अनैतिक कार्य करते हुए पकड़े जाने पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जाए। 

पुरस्कार की नीति-:

सत्यनिष्ठ आचरण वाली लोक सेवकों को पुरस्कृत करके तथा उनकी प्रशंसा करके उन्हें और प्रोत्साहित किया जाए। 

कार्यस्थल में सत्य निष्ठा का माहौल

अधिकारियों के कार्यस्थल में महान विचारकों के विचारों को उल्लेखित किया जाए, बार-बार अनैतिक आचरण करने वाले सभी कर्मचारियों यहां तक कि चपरासी को भी हटा दिया जाए। 

नैतिकता आधारित कार्यक्रमों का आयोजन-:

समय-समय पर नैतिक मूल्य को बढ़ावा देने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए। 

सत्यनिष्ठा और ईमानदारी

अर्थात सत्यनिष्ठा व्यक्ति का वह मूल्य है जिसके अंतर्गत वह भय,दबाव ,प्रलोभन, पूर्वाग्रह आदि से मुक्त होकर सदैव आन्तरिक एवं बहरी सत्यता के अनुसार अपने कर्तव्यों का दृढ़तापूर्वक पालन करता है

जबकि ईमानदारी का तात्पर्य व्यक्ति के उस गुण से है जिसके अंतर्गत वह समाज द्वारा निर्धारित नैतिक सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है। तथा समाज द्वारा अनैतिक घोषित कार्यों को नहीं करता। 

जैसे -:चोरी ना करना, झूठ ना बोलना। 

उदाहरण के लिए यदि किसी ट्रेफिक एरिया में रेड ट्रैफिक लाइट जल रही है जिसमें अपनी गाड़ी निकालना अवैध होता है, किंतु उस स्थान में कोई पुलिसकर्मी नहीं है कोई अन्य व्यक्ति भी नहीं देख रहा है, तो ऐसी स्थिति में रेड लाइट जलती हुई स्थिति में अपनी गाड़ी चलाना इमानदारी तो हो सकती किंतु सत्यनिष्ठा नहीं। 

उसी प्रकार यदि किसी सामूहिक कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात कार्यक्रम में शामिल सभी व्यक्तियों को कार्यस्थल तक पहुंचने के भाड़े के लिए ₹200 दिए जा रहे हैं ऐसी स्थिति में कोई व्यक्ति ₹200 ले लिया लेकिन वह अपने दूसरे कार्य से आया था तो उसे ईमानदार तो माना जाएगा किंतु सत्य नष्ट नहीं माना जाएगा क्योंकि वह दूसरों की नजरों में तो ईमानदार है लेकिन स्वयं की नजरों में ईमानदार नहीं है। 

 

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