प्रवासी मजदूर
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Toggleऐसे श्रमिक जो रोजगार आदि की तलाश में अपने मूल स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर चले जाते हैं उन्हें प्रवासी श्रमिक कहा जाता है।
वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में लगभग 36 करोड़ आंतरिक प्रवासी मजदूर थे।
प्रवासन के कारण
आकर्षक कारण-ऐसे कारक जिससे आकर्षित होकर लोग अपने स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान में जाते हैं
रोजगार की प्राप्ति हेतु।
बेहतर शिक्षा की प्राप्ति हेतु।
बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की प्राप्ति हेतु।
सुखदाई जीवन प्राप्त करने के लिए।
सुरक्षित दशाएं प्राप्त करने हेतु।
अपकर्षण कारण
गरीबी बेरोजगारी।
शिक्षा स्वास्थ्य की अवस्था।
संघर्षपूर्ण जीवन
धार्मिक एवं जातिगत दंगे।
प्राकृतिक आपदा आदि
प्रवासी मजदूरों की समस्या
रोजगार की संबंधी-: पर्याप्त मजदूरी न मिलाना,नियमित रूप से रोजगार न मिलाना, रोजगार की सुरक्षित दशाओं का अभाव।
आवास की समस्या-: प्रवासी मजदूरों को रहने के लिए, सस्ती दरों पर आवाज नहीं मिलते इसलिए वे असुरक्षित अस्वच्छ एवं भीड़-भाड़ वाली जगह में रहने के लिए विवश होते हैं।
उत्पीड़न की समस्या-महिला मजदूर प्रवासियों का यौन उत्पीड़न, तथा पुरुष मजदूरों से बेगारी कराया जाना।
बच्चों की शिक्षा की समस्या –वे अपने साथ बच्चों को भी लाते हैं किंतु वहां के स्कूलों में आसानी से प्रवेश नहीं मिल पाता।
राजनीतिक समस्या-दस्तावेज प्रमाणीकरण संबंधी समस्या तथा विभिन्न योजनाओं का लाभ न मिल पाना।
मानसिक पीड़ा-: प्रवासी मजदूर को घर से दूर होने की मानसिक पीड़ा तथा परिवार की चिंता होती है।
अन्य समस्याएं
सामाजिक विभेदीकरण की समस्या।
स्वच्छ पेयजल से संबंधित समस्या।
प्रवासी मजदूरों के लिए सरकारी प्रयास
अंतर राज्य प्रवासी कामगार अधिनियम 1979। (इसमें कहा गया है कि ठेकेदारों को गृह राज्यों के साथ-साथ मेजबान राज्यों से भी लाइसेंस लेना होगा)
वन नेशन वन राशन कार्ड योजना। (प्रवासी मजदूर को गंतव्य राज्य में भी गरीबी रेखा का राशन कार्ड प्राप्त होगा)
अमृत भारत रोजगार योजना 2020 (गृह राज्य में वापस लौटे मजदूरों को रोजगार प्रदान करने के लिए)
प्रवासी श्रमिक पर राष्ट्रीय नीति।
ए-श्रम पोर्टल(इसमें मजदूरों से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है)
बंधुआ मजदूरी-:
राष्ट्रीय श्रम आयोग के अनुसार- “वह मजदूर जो ऋण चुकाने के लिए, किसी निश्चित समय-सीमा तक ऋणदाता का बंधक रहता है।”वह बंधुआ मजदूर कहलाता है।
बंधुआ मजदूरी की उत्पत्ति-
भारत में, बंधुआ मजदूरी की उत्पत्ति के लिए हमारी वर्ण व्यवस्था तथा स्थाई बंदोबस्त की व्यवस्था जिम्मेदार है।
क्योंकि परंपरागत वर्ण व्यवस्था के अनुसार विभिन्न वर्गों के जन्म आधारित कार्य निर्धारित जिसमें से शूद्र वर्ग का कार्य अन्य वर्गों की सेवा करना होता था, और जब वह अपने व्यक्तिगत कार्यों या कृषि कार्यों के लिए वैश्य लोगों से ऋण लेते थे और ऋण नहीं चुका पाते थे तो वैश्य लोग उनसे बंधुआ मजदूरी करते थे।
इसी प्रकार स्थाई बंदोबस्त की व्यवस्था में जो किसान कृषि के लिए ऋण लेते थे और सूखा आदि की वजह से ऋण नहीं चुका पाते थे तो उनसे बंधुआ मजदूरी कराई जाती थी।
श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट 2023 के अनुसार जनवरी 2023 तक लगभग 3 लाख मजदूरों को बंधुआ मजदूरी से पुनर्वासित किया गया है।
बंधुआ मजदूरी के कारण-:
गरीब लोग, विभिन्न प्रकार के आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक कर्म से बंधुआ मजदूरी के लिए विवश हो जाते हैं।
आर्थिक कारण-:
जीवन निर्वाह योग्य भूमि का ना होना।
आधारभूत आवश्यकताओं जैसे रोटी कपड़ा मकान आदि की पूर्ति न हो पाना।
मुद्रास्फीति से आवश्यक वस्तुएं मजदूरों की पहुंच से दूर हो जाना।
आदिवासियों को उनकी वन उपज का पर्याप्त मूल्य न मिलाना।
प्राकृतिक आपदा आदि आने पर, उनकी संपत्ति नष्ट हो जाना जिससे भी बंधुआ मजदूरी के लिए बस हो जाते हैं।
सामाजिक कारण-
अशिक्षा के कारण साहूकारों के ऋणजाल में फंस जाना।
पलायन या प्रवास के उपरांत मजदूरी संबंधी कांटेक्ट साइन करना।
धार्मिक कारण-
विभिन्न धार्मिक प्रथाएं जैसे- देवदासी की प्रथा।
जाति व्यवस्था तथा कठोर धार्मिक नियम।
बंधुआ मजदूरी के दुष्प्रभाव-:
मजदूरों के साथ शारीरिक हिंसा होती है।
महिला मजदूरों के साथ दुष्कर्म की घटना होती है।
बंधुआ मजदूरों के बच्चे अशिक्षित रह जाते हैं।
बाल श्रम को बढ़ावा मिलता है।
बंधुआ मजदूरों के साथ गरीबों का चक्र निरंतर चलता रहता है।
मानव अधिकारों का हनन होता है।
भुखमरी तथा कुपोषण आदि को बढ़ावा मिलता है।
मजदूर में आत्महत्या की घटनाओं को बढ़ावा मिलता है।
सरकारी प्रयास-:
बंधुआ मजदूरी एक सामाजिक बुराई तथा अमानवीय प्रथा है जिससे मजदूरों का शोषण होता है; इसीलिए भारत सरकार ने बंधुआ मजदूरी को खत्म करने के लिए अनेकों प्रयास किये हैं-:
संवैधानिक प्रयास-:
अनुछेद 21-स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जीने का अधिकार।
अनुच्छेद 23- मानव के दुर्व्यापार तथा बालक श्रम का निषेध।
अनुच्छेद 24– कारखाने में 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों के श्रम का प्रतिषेध।
अनुच्छेद 42-कार्य की न्याय संगत दशाओं का प्रावधान।
अनुच्छेद 43- जीवन निर्वाह योग्य मजदूरी का प्रावधान।
वैधानिक प्रयास –
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948।
बंधुआ मजदूरी (उन्मूलन) अधिनियम 1976।
मानव तस्करी (रोकथाम एवं पुनर्वास) अधिनियम 2018।
योजनागत प्रयास-:
बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना 2016-:
इसके तहत बंधुआ मजदूरी से मुक्त किए गए, पुरुष मजदूरों को₹100000 तथा महिला एवं बाल मजदूरों को ₹200000 तक की वित्तीय सहायता का प्रावधान है।
उज्जवला योजना -: यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई इसके तहत महिलाओं को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराकर स्वाधार ग्रह के माध्यम से पुनर्वासित किया जाता है।
बंधुआ मजदूरी दूर करने संबंधी चुनौतियां-:
बंधुआ मजदूरों का सटीक सर्वेक्षण ना हो पाना।
बंधुआ मजदूरी विरोधी कानून का प्रभावी क्रियान्वयन ना होना।
श्रमिकों में इसके प्रति जागरूकता का अभाव।