महिलाओं के प्रति अपराध एवं घरेलू हिंसा
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Toggleजहां एक ओर भारत में नारियों को देवी का दर्जा दिया गया है कहा गया है- “यत्र नारयन्ते पूज्यंते तत्र रमंते देवता”; वहीं दूसरी ओर घरेलू हिंसा तथा बलात्कार जैसे जघन्य महिला अपराध, महिला शोषण की व्यथा बयां कर रहे हैं।
महिलाओं के प्रति होने वाले प्रमुख अपराध निम्नलिखित है-:
महिला बलात्कार-:
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- लड़कियों के साथ किया जाने वाले भेदभाव-:
लड़कों की तुलना में लड़कियों को उच्च शिक्षा ना दिलाना।
उन्हें पढ़ाई के स्थान पर घरेलू कार्यों में व्यस्त रखना।
लड़के लड़कियों में, पोषण तथा स्वास्थ्य संबंधी भेदभाव करना।
कन्या भ्रूण हत्या-:
आज भी कुरीतिक परिवार पुत्र प्राप्ति की चाहत में कन्या भूमि हत्या करते हैं
कारण –
पुत्र को बुढ़ापे का सहारा माना जाना।
पुत्री को परिवार का बोझ एवं दहेज का रास्ता माना जाना ।
पुत्र का धार्मिक महत्व जैसे पिंडदान आदि।
बाल विवाह-:
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दहेज प्रताड़ना-:
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ऑनर किलिंग-:
यदि किसी परिवार की लड़की किसी दूसरे धर्म या जाति के लड़के के साथ विवाह कर लेती है, तो परिवार वाले मर्यादा एवं सम्मान के नाम पर लड़की की हत्या कर देते हैं इस ओनर-किलिंग कहा जाता है।
इस तरह की घटना भिंड, मुरैना, ग्वालियर तथा हरियाणा राजस्थान में देखने को मिलती है।
ऑनर किलिंग एक्ट 2010 के तहत यह प्रतिबंध है।
विधवा महिला शोषण-:
आज भी भारतीय समाज में, विधवा महिलाओं के साथ उपेक्षित व्यवहार किया जाता है, उन्हें सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक अधिकार से वंचित रखा जाता है।
भले ही कानून द्वारा विधवाओं को भी पुनर्विवाह का अधिकार दे दिया गया है, लेकिन आज भी 35 वर्ष से कम उम्र की विधवाओं में केवल 6% विधवाओं का विवाह होता है।
वैश्यावृत्ति-:
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घरेलू हिंसा-:
[घरेलू हिंसा]
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 3 के अनुसार-: “किसी व्यस्क पुरुष या घरेलू नातेदार द्वारा, महिला के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन या अंग आदि को क्षति पहुंचाना घरेलू हिंसा है।”
घरेलू हिंसा की रूप-:
शारीरिक हिंसा– महिला के साथ मारपीट करना या जबरदस्ती यौन संबंध बनाना आदि।
मानसिक हिंसा-: महिला का अनादर करना या उसके सभी संबंधियों पर बुरे कमेंट करना आदि।
आर्थिक हिंसा-: उसको आवश्यक कार्यों के लिए पैसे ना देना या उसके पैसों का जबरदस्ती उपयोग करना आदि।
आईसीपी की धारा 298 A के तहत-: यदि कोई पति अपनी पत्नी के साथ क्रूरता करता है तो उसे 3 year तक की सजा का प्रावधान है।
सीआरपीसी की धारा 125 के तहत-: विवाह के पश्चात, प्रत्येक पत्नी को अपने पति से भरण पोषण के लिए गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है।
घरेलू हिंसा के कारण
पितृसत्तात्मक सोच-: जैसे महिला तो हमारी एक दासी है।
धार्मिक पक्षपात-: अनेकों धार्मिक व्याख्याओं में बताया गया है कि- महिलाओं को पुरुषों की सेवा करनी चाहिए।
महिला में अशिक्षा-: वे स्वयं को परिवार एवं समाज की दासी समझतीं हैं, उसके विरुद्ध आवाज नहीं उठाती।
सामाजिक कुप्रथाएं– पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा आदि।
शराब या नशा-: अधिकांश पुरुष नशा करने के बाद अपनी पत्नी पर अत्याचार करते हैं उसे मरते पीटते हैं।
घरेलू हिंसा के दुष्परिणाम-:
परिवार विघटन -: पति-पत्नी के बीच विवाह विच्छेद हो जाता है।
अपराधिक घटनाएं जैसे आत्महत्या, या पति की हत्या को बढ़ावा मिलता है।
बच्चों का सही से पालन पोषण ना हो पाना।
बच्चों के व्यक्तित्व पर नकारात्मक या बुरा प्रभाव।
लैंगिक असमानता की स्थिति-महिला ऊपर नहीं उठ पाती हैं।
भारत में घरेलू हिंसा की स्थिति-:
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के अनुसार- 15 से 49 आयु वर्ग की 30% महिला घरेलू हिंसा से पीड़ित है।
नेशनल क्राइम ब्यूरो रिपोर्ट के अनुसार-: वर्ष 2018 में महिला अपराध के लगभग 378000 मामूली दर्ज किए गए।
घरेलू हिंसा को रोकने के लिए संवैधानिक वैधानिक एवं योजनागत प्रयास-: आगे पढ़ चुके हैं।
घरेलू हिंसा रोकने के लिए सुझाव-:
आश्रय व्यवस्था- घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को सरकार या स्वयंसेवी संगठनों द्वारा निशुल्क आश्रय की व्यवस्था की जानी चाहिए।
शिक्षा में सुधार-बालिकाओं को अपनी रक्षा का प्रशिक्षण देना चाहिए तथा उन्हें उनके अधिकारों के प्रति कानूनी जानकारी भी दी जानी चाहिए।
पृथक महिला न्यायालयों की स्थापना ताकि महिला अपराध से संबंधित मुद्दों का शीघ्रता से निपटान हो सके।
ग्रामीण स्तर पर महिला थाना सखी सेंटर तथा स्वयं सहायता समूह को बढ़ावा।
महिला अपराध के लिए जिम्मेदार सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध, समाज को जागरूक किया जाना चाहिए।