सामाजिक संरचना तथा विकास

सामाजिक संरचना का अर्थ-:

सामाजिक संरचना का तात्पर्य,सामाजिक इकाइयों तथा सामाजिक संबंधों के प्रतिमानित ढांचा से है। 

सामाजिक विकास- सामाजिक जीवन के हर पक्ष के समुचित विकास; जैसे- शिक्षा, खानपान, रहन-सहन, बोलचाल आदि का विकास। 

सामाजिक संरचना का विकास-

  • पारिवारिक नैतिकता का विकास। 

  • सामाजिक समरसता का विकास। 

  • वैवाहिक प्रतिमानों की उच्च स्थिति। 

  • सामाजिक प्रभाव उत्सवों का उत्थान। 

  • समाज के लोगों का शैक्षिक विकास। 

  • सामाजिक कुप्रथाओं एवं कुरीतियों का अंत। 

 सामाजिक संरचना एवं सामाजिक विकास दोनों अंतर संबंध है। 

सामाजिक संरचना के विकास में सुविधा प्रदाता की भूमिका-:

  1. शिक्षा एवं ज्ञान का प्रसार- समझ में शिक्षा तथा ज्ञान से लोगों की क्षमता तथा उनकी सोच में सकारात्मक परिवर्तन लाना। 

  2. सहयोग एवं समर्थन– परिवारों, संगठनों तथा समुदायों के मध्य समरसता का विकास। 

  3. रोजगार के अवसर-; समाज की आर्थिक उन्नति तथा सामाजिक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति। 

  4. सामाजिक न्याय-: सभी व्यक्तियों को समान अवसर की प्राप्ति। 

  5. सरकारी कार्यक्रम-: शिक्षा स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र के विकास द्वारा समाज को उन्नत बनाते हैं। 

सामाजिक संरचना के विकास में अवरोधक तत्व-:

  • अशिक्षा तथा अज्ञान-: इसका लोगों की क्षमता तथा सच में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

  • सामाजिक संघर्ष-: समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य का संघर्ष, समरसता का अवरोध है। 

  • सामाजिक असमानता-: सामाजिक असमानता से विभिन्न स्तरों में उच्च नीच को बढ़ावा मिलता है। 

  • सामाजिक कुरीतियां -: पर्दा प्रथा ,दहेज प्रथा , जैसी सामाजिक कुरीतियां, सामाजिक विकास के मुख्य बाधक हैं। 

  • यथास्थितिवाद की प्रवृत्ति-; सामाजिक संगठनों तथा संस्थाओं में यह प्रवृत्ति उन्नति की प्रेरणा में कमी लाती है। 

संस्कृति विकास के सहायक तत्व के रूप में-:

  • नैतिक विकास में- संस्कृत सामाजिक मूल्यों का निर्धारक होती है, जिसके अनुपालन से नैतिकता का विकास होता है। 

  • संस्कृति आध्यात्मिक विकास के रूप में- संस्कृति व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिकता के गुणों का विकास कर, जीवन को सद्गुणमय बनाती है। 

  • बौद्धिक विकास में-संस्कृति ज्ञान, कौशल को संरक्षित करके; बौद्धिक विकास में भी सहायक है। 

  • सामाजिक नियंत्रण में- संस्कृति नकारात्मक सामाजिक गतिविधियों जैसे- नशा, हिंसा पर नियंत्रण रखती है। 

  • बेहतर व्यक्ति के विकास में- संस्कृति मानव जीवन को संस्कार युक्त बनती है, जो व्यक्तित्व विकास में सहायक है। 

  • मानवीय आवश्यकता की पूर्ति में-संस्कृति; शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में भी सहायक होती है। 

संस्कृति विकास के बाधक के रूप में-:

  • नकारात्मक रीति रिवाज- संस्कृति नकारात्मक रीति रिवाज को भी संरक्षण देती है, जिससे महिलाओं एवं बच्चों का शोषण होता है; उदाहरण के लिए पति सेवा की संस्कृति महिलाओं के शोषण को बढ़ाती है। 

  • सामाजिक असमानता-:  लैंगिक विभेद ,जातिगत विभेद संस्कृति का ही हिस्सा है, जिससे असमानता को बढ़ाता मिलता है। 

  • तार्किकता का अवरोध– संस्कृति में अंधविश्वासों एवं कुरीतियों को संरक्षण प्राप्त होता है। 

  • वर्ग संघर्ष एवं हिंसा- संस्कृत में उच्च-नीच की अवधारणा के कारण वर्ग संघर्ष को बढ़ावा मिलता है। 

संस्कृति के सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रभाव हैं, अतः न्याय संगत संस्कृति को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।

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