स्वदेशी प्रौद्योगिकी 

स्वयं के ही देश द्वारा विकसित ऐसी प्रौद्योगिकी,जिसमें घरेलू स्तर के ही सभी संसाधनों का उपयोग किया जाता है उसे स्वदेशी प्रौद्योगिकी कहते हैैं। 

जैसे-: आयुर्वेद से असाध्य बीमारियों का इलाज करने की तकनीकी। माइक्रोप्रोसेसर शक्ति की तकनीकी। 

स्वदेशी तकनीकी की विशेषताएं-:

  • स्वदेशी तकनीकी परंपरागत स्थानीय ज्ञान पर आधारित होती है। 

  • स्वदेशी तकनीकी का पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरण होता रहता है। 

  • स्वदेशी तकनीकी में घरेलू स्तर के ही संसाधनों का उपयोग किया जाता है। 

  • स्वदेशी तकनीकी संबंधित राष्ट्र के लिए सस्ती एवं कम लागत वाली तकनीकी होती है। 

  • स्वदेशी तकनीकी को घरेलू आवश्यकता के अनुरूप आसानी से परिवर्तित किया जा सकता है। 

स्वदेशी तकनीकी का महत्व-:

  • राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ाने में सहायक

स्वदेशी तकनीकी देश की पहचान होती है अतः स्वदेशी तकनीकी का विकास देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने में सह

  • राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक

स्वदेशी तकनीकी सस्ती एवं घरेलू आवश्यकता की पूर्ति के अनुरूप होती है अतः यह संबंधित राष्ट्र के विकास में सहायक है। 

  • राष्ट्रीय सुरक्षा में सहायक

स्वदेशी तकनीकी देश की सुरक्षा में सहायक है क्योंकि स्वदेशी तकनीकी के विकास से हम अपनी रक्षा के लिए अन्य राष्ट्र पर निर्भर नहीं रहते और हमारी आंतरिक सुरक्षा 

स्वदेशी तकनीकी आर्थिक लाभ में भी सहायक है क्योंकि हम स्वदेशी तकनीकी के विकास द्वारा विदेशों से मुद्रा प्राप्तकर सकते हैं जैसे-भारत की अंतरिक्ष संस्था इसरो ने 2019 को अमेरिका, इसराइल ,संयुक्त राष्ट्र अमीरात , स्विट्जरलैंड आदि देशों के 104 (इसमें से तीन भारत के थे)सेटेलाइट भेज कर विदेशी मुद्रा का अर्जन किया। 

  • देशवासियों को रोजगार प्रदान करने में सहायक

स्वदेशी प्रौद्योगिकी देश के व्यक्तियों के कौशल विकास तथा रोजगार सर्जन में सहायक सहायकहोती है क्योंकि लोगों को इसके लिए विशेष प्रशिक्षण लेने की आवश्यकता नहीं होती उन्हें परंपरागत रूप से इसका ज्ञान होता है जिसके द्वारा वे आसानी से रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। 

भारत में स्वदेशी प्रौद्योगिकी का विकास

भारत में प्रौद्योगिकी का विकास कोई नई परंपरा नहीं है बल्कि भारत के भारतवासी प्राचीन समय से ही प्रौद्योगिकी का ज्ञान रखते थे तथा इसका उपयोग करते थे इसके अनेकों साक्ष्य विद्वान है जैसे-:

  • हड़प्पा काल के भारतीयों को ज्यामिति प्रौद्योगिकी का ज्ञान था तभी तो वे आधुनिक काल के समान भवनों का निर्माण कर पाते थे,  उनकी सड़के समकोण पर काटती थी। 

  • प्राचीन भारतवासियों को धातु निर्माण तकनीक का भी ज्ञान था तभी तो वे ताम्बा और टिन धातु को मिलाकर कांसा धातु बना लेते थे ,इसके अतिरिक्त दिल्ली में बना महरौली का स्तंभ उत्कृष्ट धातु कला का अद्भुत नमूना है

  • प्राचीन भारत वासी समय अनुसार सूती, रेशम, ऊनी वस्त्र पहनते थे अर्थात उन्हें वस्त्र निर्माण की तकनीकी का ज्ञान था। 

  • प्राचीन भारत वासियों को खगोल प्रौद्योगिकी का भी ज्ञान था क्योंकि ग्लोरियस के कई सौ वर्ष पूर्व आर्यभट्ट ने यह बता दिया था कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूम रही है। और न्यूटन के कई वर्ष पूर्व ब्रह्मगुप्त ने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की व्याख्या प्रस्तुत की थी। 

  • प्राचीन कल के भारत वासियों को चिकित्सा की आयुर्वेद प्रोद्योगिकी का ज्ञान था जिसकी पुष्टि चरक द्वारा लिखित चरक संहिता और सुश्रुत द्वारा रचित सुश्रुत संहिता से होती है इन ग्रंथों में आधुनिक चिकित्सक प्रणाली के समान ही चिकित्सा के सिद्धांतों का वर्णन है। 

और केवल प्राचीन समय में ही नहीं बल्कि वर्तमान समय में भी भारत में स्वदेशी तकनीकी का विकास व विस्तार हो रहा है,

जैसे-: 

वर्ष 2014 को भारत की अंतरिक्ष संस्था इसरो ने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह में अपना सफलतापूर्वक सैटेलाइट भेजा। जबकि भारत के पहले दुनिया में किसी भी देश ने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक सेटेलाइट नहीं भेज पाया। 

भारत की रक्षा संस्थान डीआरडीओ द्वारा अनेकों शक्तिशाली मिसाइलों का निर्माण किया जा चुका है जैसे- पृथ्वी,आकाश ,नाग, त्रिशूल, धनुष, ब्रह्मोस मिसाइल। 

हाल ही में डीआरडीओ ने सुपर सोनिक मिसाइल की तकनीकी हासिल कर ली है जो इसके पहले सिर्फ दुनिया के केवल 3 देशों के पास थी। 

स्वदेशी प्रौद्योगिकी की सीमाएं-:

भारत प्राचीन समय से ही स्वदेशी तकनीकी के मामले में काफी ज्यादा समृद्ध व संपन्न रहा है और वर्तमान में भी स्वदेशी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लगातार उन्नति कर रहा है लेकिन वर्तमान में भारत की स्वदेशी प्रौद्योगिकी की कुछ सीमाएं विद्यमान है, जिनका विवरण निम्नलिखित है-:

अंतरिक्ष तकनीकी की सीमाएं-

हालांकि भारत ने भी दूसरे देशों के अनेकों उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं किंतु आज भी भारत के अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अपने भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए विकसित देशों पर निर्भर है, 

वहीं दूसरी ओर अमेरिका एवं चीन जैसे देश अपने उपग्रहों को बहिर्ग्रह तक पहुंचा चुके हैं जबकि भारत अभी तक केबल चंद्रमा और मंगल तक ही पहुंच पाया है। 

इसी प्रकार अभी तक भारत का अपना ग्लोबल नेट नेवीगेशन सिस्टम नहीं है आज भी हम यूएसए का ग्लोबल नेवीगेशन सिस्टम उपयोग कर रहे हैं। 

रक्षा तकनीकी की सीमाएं-:

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा उपकरण आयातक देश है अर्थात भारत ने अभी तक रक्षा उपकरण के निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त नहीं की है। हमें राफेल जैसे लड़ाकू विमान के लिए फ्रांस जैसे देशों पर निर्भर रहना होता है। 

स्वास्थ्य तकनीकी की सीमाएं-

भारत को वर्तमान में विभिन्न प्रकार की मेडिकल उपकरण एवं सर्जिकल यंत्र जैसे- एम आर आई मशीन, एक्स रे मशीन, ईसीजी मशीन, वेंटिलेटर यहां तक कि वर्तमान में कोराना किट के लिए भी दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। 

गुणवत्ता में कमी- 

भारत में स्वदेशी तकनीकी के तहत जिन उत्पादों का निर्माण किया जाता है उन पर पर्याप्त शोध एवं अनुसंधान नहीं किया जाता जिससे उनकी गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है और यह उत्पाद अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा पर खरे नहीं उतर पाते। जैसे- सैमसंग ,ओप्पो ,माई के सामने माइक्रोमैक्स के मोबाइल की गुणवत्ता। 

स्वदेशी तकनीकी घरेलू क्षेत्र तक सीमित होना

भारत की स्वदेशी तकनीकी केवल भारत देश तक ही सीमित है इसका अभी तक विदेशों में प्रचार प्रसार या विस्तार नहीं हो पाया है। 

भारत में स्वदेशी प्रौद्योगिकी की की सीमाओं के कारण

  • देश में पर्याप्त तकनीकी शिक्षण संस्थानों तथा अनुसंधान केंद्रों की कमी। 

  • तकनीकी संस्थाओं को पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त न हो पाना। 

  • देश के वैज्ञानिको का विदेशों में पलायन होना। 

  • कम उम्र में विद्यार्थियों के अंदर वैज्ञानिक स्वाभाव विकसित करने वाली शिक्षा प्रणाली का अभाव। 

  • विभिन्न तकनीकी शिक्षण संस्थानों ,उद्योग तथा इसरो व डीआरडीओ जैसी संस्थाओं में उपयुक्त तालमेल न होना। 

समाधान-:

  • देश में तकनीकी शिक्षण संस्थानों तथा अनुसंधान केंद्रों का विकास एवं विस्तार किया जाए। 

  • सरकार द्वारा तकनीकी संस्थानों को आवश्यकता अनुसार पर्याप्त वित्त प्रदान किया जाए प्रकृति अपने कार्य समय पर सफलतापूर्वक कर सकें। 

  • देश के विज्ञान को को पर्याप्त वेतन एवं सुविधा दी जाए ताकि वे विदेशों में पलायन न करें। 

  • भारत की शिक्षा प्रणाली को इस प्रकार बनाया जाए जिससे कि विद्यार्थी रटने की बजाह सोचने एवं कुछ क्रिएटिव करने पर बल दें। 

  • विभिन्न तकनीकी संस्थाओं, शिक्षण संस्थानों तथा उद्योगों के मध्य तकनीकी विकास के लिए तालमेल बैठाया जाए।

प्रमुख शब्दावली-:

तकनीकी हस्तांतरण-

किसी देश की तकनीकी का दूसरे देश में स्थानांतरण होना तकनीकी हस्तांतरण कहलाता है। 

जैसे- फ्रांस की तकनीकी का 

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