संक्रामक एवं असंक्रामक रोग

[संक्रामक एवं असंक्रामक रोग]

This page Contents

रोग या बीमारी-: 

जब शरीर के किसी अंग या तंत्र में किसी कारण वश कोई विकार उत्पन्न हो जाता है अर्थात वह उपयुक्त तरीके से कार्य नहीं कर पाता है जिससे हमें पीड़ा होती है तो इस स्थिति को रोग कहते हैं और संबंधित व्यक्ति को रोगी कहा जाता है। 

रोग के प्रकार-: 

.[संक्रामक एवं असंक्रामक रोग]यरोग के प्रकार-: 

जन्मजात रोग-: 

ऐसे रोग जो जन्म के समय से ही विघमान रहते हैं उन्हें जन्मजात रोग या अनुवांशिकी रोग कहते हैं। 

जैसे-: हीमोफीलिया, हृदय में छेद होना, थैलेसीमिया। 

उपार्जित रोग-: 

ऐसे रोग, जो जन्म के समय से तो नहीं रहते किंतु विभिन्न कारकों या दुर्घटनाओं की वजह से जीवन काल के दौरान हो जाते हैं। उन्हें उपार्जित रोग कहते हैं। 

जैसे-: टीवी, हैजा, टिटनेस, पोलियो, कैंसर, वर्णांधता आदि। 

उपार्जित रोग दो प्रकार के होते हैं

  • संक्रामक रोग(infectious disease)। 

  • असंक्रामक रोग(non infectious disease)।

संक्रामक रोग

ऐसे रोग जो, विभिन्न रोग जनित कारकों (रोगाणुओं) जैसे-: वायरस, बैक्टीरिया, कवक ,प्रोटोजोआ ,कीट आदि के संक्रमण के कारण एक जीव से दूसरे जीव में फैलते हैं। उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं। 

जैसे-: कोविड-19, क्षय रोग,हैजा, टाइफाइड, मलेरिया, छोटी माता ,पोलियो आदि। 

संक्रामक रोग मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-: 

  • प्रत्यक्ष संचरणीय रोग

  • अप्रत्यक्ष संचरणीय रोग।

प्रत्यक्ष संचरणीय रोग-: ऐसे संक्रामक रोग जो संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने पर स्वस्थ व्यक्ति में फैलते हैं। जैसे-: टीवी, कोविड-19, चेचक, काली खासी। 

अप्रत्यक्ष संचरणीय रोग-: ऐसे संक्रामक रोग जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से नहीं बल्कि’रोगजनक वाहकों के शरीर में प्रवेश करने के कारण फैलते हैं,

जैसे-: मलेरिया, टाइफाइड, डेंगू। 

संक्रामक रोगों का वर्गीकरण-: 

  • जीवाणु जनित रोग

  • विषाणु जनित रोग

  • प्रोटोजोआ जनित रोग

  • कवक जनित रोग

  • कृमि जनित रोग

जीवाणु जनित रोग-: 

  • हैजा/डायरिया। 

  • डिप्थीरिया

  • टिटनेस

  • टाइफाइड

  • क्षय रोग (तपेदिक)

  • कुष्ठ रोग

  • प्लेग

  • काली खांसी। 

हैजा(cholera)-: 

हैजा एक संक्रामक बीमारी है जो विब्रियों कॉलेरी नामक जीवाणु की संक्रमण से होती है. समय रहते इसका उपचार ना किया गया तो यह बीमारी महामारी का रूप ले लेती है। 

हैजा के लक्षण-: 
  • बार-बार उल्टी-दस्त होना। 

  • मूत्र त्याग बंद हो जाना। 

  • गाल बैठ जाना मुंह सूख जाना। 

  • बार बार उल्टी दस्त होने के कारण शरीर ठंडा पड़ जाना। 

हैजा का तत्कालीन इलाज ना किया गया तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। 

हैजा से बचाव के उपाय-: 
  • शुद्ध एवं को उबला हुआ पानी पीना चाहिए। 

  • बिना ढका हुआ भोजन, या ऐसा भोजन जिसमें मक्खियां बैठी हूं उसका उपयोग नहीं करना चाहिए

  • सब्जियों को धोकर, उबालकर ही प्रयोग करना चाहिए। 

  • आसपास के वातावरण में स्वच्छता रखनी चाहिए। 

हैजा हो जाने पर उपाय-: 
  • रोगी को ओ आर एस घोल पिलाना चाहिए। 

  • रोगी को केवल पतला भोजन खिलाना चाहिए जैसे दाल का पानी, चावल का रस। 

केवल बार बार दस्त लगना डायरिया (अतिसार)कहलाता है। 

डिप्थीरिया-: 

यह एक संक्रामक रोग है जो कोरिनोबैक्टीरियम डिप्थेरी नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है। 

 डिप्थीरिया के लक्षण
  • नाक बहना खांसी होना। 

  • ठंड लगना। 

  • थकान होना बुखार आना

  • गला में दर्द होना निगलने में परेशानी होना। 

  • सांस फूलना सांस लेने में तकलीफ होना। 

डिप्थीरिया से बचाव के उपाय-: 
  • बच्चों को डीपीटी(DPT) का टीका लगवाना चाहिए। 

टिटनेस-: 

यह एक संक्रामक रोग है जो क्लास्टीडियम टिटेनी, नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है। 

टिटनेस रोग के लक्षण-: 
  • मांसपेशियों में संकुचन होता है जिससे अकड़न महसूस होती है। 

  • सांस लेने में तकलीफ होती है। 

उपचार-: 
  • मिट्टी या जंग लगे लोहे से घाव होने पर, टिटनेस का इंजेक्शन लगवाना चाहिए। 

  • बच्चों को डीपीटी का टीका लगवाना चाहिए। 

टाइफाइड-: 

एक संक्रामक रोग है जो “सालमोनेला टाइफी” नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से होता है। 

टाइफाइड फैलने का मुख्य कारण प्रदूषित जल तथा भोजन ग्रहण करना है। 

टाइफाइड के लक्षण-: 
  • संबंधित जोगी को 101-104 डिग्री फारेनहाइट तक का बुखार आता है। 

  • सुबह बुखार कम होता है शाम तक बढ़ता जाता है। 

  • पेट में दर्द होता है। 

  • सिर दर्द होता है। 

  • शरीर में मोती के समान चमकीले दाने निकल आते हैं। 

उपचार-: 
  • टाइफाइड से ग्रसित बच्चों को क्लोरोमायसेटिन नामक एंटीबायोटिक देना चाहिए। 

  • रोग की पहचान होने पर टाइफाइड पैराटायफाइड ए एंड बी वैक्सीन। 

बचाव-: 
  • दूषित जल एवं खाने का उपयोग नहीं करना चाहिए। 

  • हवादार एवं रोशनीदार कमरे में रहना चाहिए। 

टी.बी.(क्षयरोग/तपेदिक)-:

टीवी संक्रामक रोग है जो माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के संक्रमण द्वारा होता है। सामान्यतः टीवी हमारे स्वसन तंत्र को प्रभावित करता है किन्तु अनेकों बार यह हमारे अमाशाय ,गर्भाशय को भी इफेक्ट कर सकता है।  

जब कोई स्वस्थ व्यक्ति टीबी के संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो उसके रोगाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके उसको संक्रमित कर देते हैं। 

टीवी के लक्षण-: 
  • 3 हफ्ते से अधिक खांसी आना। 

  • खांसी में खून और बलगम आना। 

  • शरीर का वजन कम होना। 

  • भूख कम लगना। 

  • थोड़ा-थोड़ा बुखार रहना। 

 उपचार-

टीवी से बचने के लिए बीसीजी का टीका लगवाना चाहिए। 

कुष्ठ रोग (लेप्रोसी)-: 

यह भी एक संक्रामक रोग है जो “माइक्रोबैक्टेरियम लेप्री” नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है। पहले कुष्ठ रोग को भगवान का अभिशाप माना जाता था, तथा कुष्ठ रोगियों को गांव के बाहर कर दिया जाता था जबकि ऐसा नहीं है। अतः कुष्ठ रोगियों को उपयुक्त स्थान पर पुनर्वासित करने के लिए 1955 में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम चलाया गया। 

कुष्ठ रोग के लक्षण-: 
  • संक्रमित अंगों की संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है। 

  • संक्रमित अंग में रंगहीन धब्बे बन जाते हैं। 

  • हाथ तथा पैर की उंगलियां मुड़ने लगती हैं। 

उपचार-: 

मल्टी ड्रग थेरेपी(MDT) द्वारा इसका उपचार किया जाता है। 

प्लेग-: 

यह एक संक्रमण बीमारी है जो “पाश्चुरेला पेस्टिस” नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से फैलती है। 

इसका संक्रमण मुख्यतः चूहा गिलहरी आदि के काटने या उनके द्वारा उपयोग किए गए भोजन का उपयोग करने से होता है। 

 लक्षण-: 
  • रोगी को तेज बुखार आता है 

  • शरीर पर गिल्टियां निकल आती है। 

बचाव-: 
  • आसपास के वातावरण में चूहे नहीं होना चाहिए विशेषकर खाना पानी की जगह में। 

  • चूहे के काटने पर एंटीबायोटिक लेना चाहिए। 

 

वायरस जनित रोग

  • चेचक

  • पोलियो

  • हेपेटाइटिस/पीलिया

  • रेबीज

  • खसरा

  • एड्स

  • चिकनगुनिया

  • डेंगू

  • गलसुआ

  • स्वाइन फ्लू/इनफ्लुएंजा

  • कोविड-19

चेचक/चिकन पॉक्स/ छोटी माता-: 

चिकन पॉक्स “वैरिसेला जोस्टर विषाणु “कि संक्रमण द्वारा होने वाला संक्रामक रोग है। इस रोग के होने का मुख्य कारण संक्रमित व्यक्ति के संपर्क आना है। 

लक्षण-: 
  • रोगी को हल्का बुखार आता है।

  • पूरे शरीर में दर्द रहता है उल्टियां की संभावना होती है। 

  • त्वचा में लाल रंग के दाने निकल आते हैं। 

 उपचार-: 
  • संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचना चाहिए। 

  • चेचक का टीका लगवाना चाहिए।

पोलियो-: 

पोलियो” पोलियोमेलाइटिस”नामक वायरस द्वारा होने वाला संक्रामक रोग है, इस रोग के होने का मुख्य कारण दूषित भोजन ग्रहण करना है। 

लक्षण-: 
  • मांसपेशियां सिकुड़ जाती है। 

  • शरीर के कई अंग जैसे हाथ पैर आदि निष्क्रिय हो जाते हैं परिणाम स्वरूप विकलांगता आ जाती है। 

उपचार-: 
  • प्रदूषित खाना नहीं खाना चाहिए तथा

  • बच्चों को पोलियो ड्रॉप्स नियमित रूप से पिलाना चाहिए। 

वर्तमान में डब्ल्यूएचओ ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया है

हेपेटाइटिस/पीलिया-: 

हेपेटाइटिस लिवर का रोग है जो हेपेटाइटिस नामक वायरस के संक्रमण से होता है। 

लक्षण-: 
  • आंखों का एवं त्वचा का पीला पड़ जाना। 

  • पेशाब पीला आना। 

उपचार-: 
  • गामा ग्लोबुलीन इंजेक्शन लगवाना चाहिए। हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस बी का टीका लगवाना चाहिए। 

  • दही, गन्ने का रस एवं हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए। 

  • तेल का सेवन नहीं करना चाहिए।

खसरा (मीजल्स)-: 

यह रूबेला(Rubeola virus) वायरस द्वारा होने वाला वायरस जनित संक्रामण रोग है। 

लक्षण-: 
  • बच्चे को 101 डिग्री फारेनहाइट तक बुखार होता है। 

  • सर्दी और खांसी होना। 

  • मुंह के अंदर भूरे या सफेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। 

  • शरीर में लाल रंग के धब्बे दिखाई देना। 

उपचार-: 
  • बच्चे को खसरा का एमएमआर टीका लगवाना चाहिए। 

  • खसरा होने पर एंटीबायोटिक दवाइयां दी जाती है। 

रेबीज-: 

यह न्यूरोट्रोपिक लाइसिसिवर्स (Neurotropic Lysaavirus) वायरस से होने वाला संक्रामक रोग है। यह विषाणु कुत्ते चूहे खरगोश लोमड़ी आदि की लार में पाया जाता है। अतः इनके काटने से यह रोग हो जाता है। 

रेबीज के लक्षण-: 
  • संवेदनशीलता कम होना। 

  • पानी से डर लगना। 

 उपचार-: 
  • कुत्ते खरगोश या चूहे के काटने पर घाव को तुरंत साबुन से साफ करना चाहिए। 

  • एंटीरेबीज का टीका लगवाना चाहिए। 

एड्स-:

एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम है। जिस का हिंदी में अर्थ है जीवन शक्ति का ह्रास होना। यह एचआईवी नामक विशेष प्रकार के विषाणु से होता है। एचआईवी का पूरा नाम ह्यूमन इम्यूनो वायरस है। 

इस वायरस का मुख्य कारण 

संक्रमित व्यक्ति से यौन संबंध स्थापित करना। 

शरीर में संक्रमित खून चढ़ाना। 

एड्स रोगी को लगाई गई सुई ,स्वस्थ रोगी को लगाया जाना।  

लक्षण-: 
  • बार बार बीमार पड़ना। 

  • लंबे समय तक बुखार रहना। 

  • भूख में कमी एवं वजन तेजी से घटना। 

भारत के लगभग 21लाख लोग एड्स से ग्रसित है। 

डेंगू-: 

यह मादा मच्छर एडीज एजिप्टी के काटने से होता है। 

इसके लक्षण
  • बुखार आता है। 

  • थकावत एवं कमजोरी महसूस होती है। 

  • शरीर में लाल चकत्ते पड़ सकते है। 

 उपचार-: 

मलेरिया एवं डेंगू से बचने के लिए डीडीटी का छिड़काव किया जाना चाहिए। 

चिकनगुनिया-: 

यह मादा मच्छर एडीज एजिप्टी के काटने से अल्फा नामक वायरस के संक्रमण से होता है। 

इसके लक्षण
  • बुखार आता है। 

  • थकावत एवं कमजोरी महसूस होती है। 

  • शरीर में लाल चकत्ते पड़ सकते है। 

उपचार-: 

  • घर के आस-पास डीडीटी का छिड़काव करना चाहिए ताकि मच्छर ना पनपे। 

  • आसपास पानी इकट्ठा नहीं होना देना चाहिए। 

  • बुखार आने पर पेरासिटामोल देना चाहिए। 

गलसुआ/कंठमाला/मम्प्स

यह मम्प्स विषाणु द्वारा होने वाला संक्रामक रोग है। 

 लक्षण-: 
  • रोगी को बुखार आता है। 

  • कान के नीचे पैरोटिक ग्रंथि में सूजन आ जाती है। 

  • लार बनना कम हो जाता है

 उपचार-: 

  • टेरामाइसिन का इंजेक्शन लेना चाहिए। 

  • गाल के पास नमक के पानी से सिकाई करनी चाहिए। 

कोविड-19- :

यह कोरोना(sars-cov-2) नामक वायरस के संक्रमण से होने वाला संक्रामक रोग है, कोरोनावायरस के बढ़ते प्रभाव को देखकर डब्ल्यू एच ओ ने 11 मार्च 2020 को इसे महामारी घोषित किया।

 यह एक प्रकार का जूनोटिक संक्रमण है, अर्थात जानवरों से इंसानों में फैला है। 

कोरोनावायरस मुख्यत: हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। 

कोविड-19 के लक्षण-: 
  • हल्का बुखार आना। 

  • खांसी होना। 

  • सांस लेने में तकलीफ होना। 

  • सूचना एवं स्वाद का अनुभव करने की शक्ति खत्म होना।

कोरोनावायरस से बचाव के उपाय-: 
  • लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाकर आरटी पीसीआर टेस्ट टेस्ट करवाना चाहिए

  • कोरोनावायरस का टीका लगवाना चाहिए। 

  • भीड़ भाड़ वाली जगह में नहीं जाना चाहिए। 

  • सदैव मास्क लगाना चाहिए एवं 2 अन्य व्यक्ति से 2 गज की दूरी बनाए रखना चाहिए।

  • आसपास स्वच्छता रखनी चाहिए। 

  • अंडे मांस आदि का सेवन कम से कम करना चाहिए या पूर्ण रूप से उबाल कर ही करना चाहिए। 

  • समय-समय पर साबुन या सेनीटाइजर से हाथ धोते रहना चाहिए।

भारत में कोविड-19 की वैक्सीन-: 

कोविशील्ड वैक्सीन-: इसका निर्माण पुणे में स्थित सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया द्वारा किया जाता है। 

को वैक्सीन-: यह भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद एवं नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी (पूणे) के सहयोग से विकसित की जाती है। 

स्पूतनिक वी-: यह रूस की वैक्सीन है हलक इसका निर्णय भारत के हैदराबाद के डॉ रेड्डी लैब में भी किया जाता है। 

प्रोटोजोआ जनित रोग

  • मलेरिया

  • पेचिश

  • कालाजार

  • पायरिया

  • नींद की बीमारी

मलेरिया-: 

मलेरिया प्रोटोजोआ जनित संक्रामक रोग है जो मादा एनाफिलीज मच्छरों के काटने पर “प्लाज्मोडियम “प्रोटोजोआ के रक्त में प्रवेश करने से होता है। 

लक्षण-: 
  • ठंड के साथ बुखार आता है। 

  • सिर दर्द एवं उल्टी होने की समस्या आती है। 

  • लाल रुधिर कणिका फटकर नष्ट होते हैं जिससे खून की कमी होती है। 

 उपचार-: 
  • पानी को उबालकर या क्लोरीन डालकर पीना चाहिए। 

  • नीम की पत्ती का काढ़ा बना कर लेना चाहिए। 

  • मलेरिया के उपचार के लिए क्लोरोक्वीन, एवं कुनैन जैसी औषधियां ली जाती है।

बचाव के उपाय-: 
  • आसपास पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। 

  • घर के आसपास डीडीटी का छिड़काव करना चाहिए। 

  • घर में जाली लगवाना चाहिए मोटी उनका प्रयोग करना चाहिए। ताकि मच्छर ना रहे।

  •  तालाबों में छोटी-छोटी मछलियां छोड़ देनी चाहिए ताकि वे मच्छरों एवं उनके अंडों को खा सकें। 

पेचिश-: 

यह भी एक संक्रामक रोग है जो “एन्टोमोइबा हिस्टॉलाइटिका”नामक प्रोटोजोआ के संक्रमण के कारण होता है।

लक्षण-: 
  • श्लेष्म एवं खून के साथ दस्त होते हैं। 

  • खाना नहीं पचता भूख नहीं लगती। 

 उपचार-: 
  • पानी उबालकर पीना चाहिए। 

  • आसपास स्वच्छता रखनी चाहिए। 

कालाजार-: 

यह “लेशमैनिया डोनोवानी” प्रोटोजोआ द्वारा होने वाला रोग है। 

इस रोग का वाहक बालू मक्खी है। 

लक्षण-: 
  • तेज बुखार आता है। 

  • त्वचा काली पड़ जाती है। 

 उपचार-: 

  • बालू मक्खी से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। 

नींद की बीमारी-: 

यह “ट्रिपेनोसोमा “नामक प्रोटोजोआ के संक्रमण से होती है जो शीशी मक्खी की माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। 

 लक्षण-: 
  • अधिक नींद आना बुखार रहना। 

  • शारीरिक एवं मानसिक निष्क्रियता। 

बचाव-: 

हमें मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए तथा आसपास मक्खियों को नहीं भनकने देना चाहिए। 

कवक से होने वाली बीमारियां-:

  • दाद

  • एथलीट फुट

  • वाइट फंगस

  • ब्लैक फंगस

कृमि जनित रोग-: 

  • फाइलेरिया

  • एऐस्केरिएसिस

संक्रामक रोग फैलने के कारण-: 

संक्रामक रोग निम्न माध्यमों से फैल सकते हैं।

  • दूषित भोजन द्वारा-: 

बिना ढका हुआ या अस्वच्छ वातावरण में रखा हुआ भोजन में रोगाणु मौजूद होते हैं और जब हम यह संदूषित भोजन ग्रहण करते हैं तो भोजन में उपस्थित रोगजनक कारक हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिसके संक्रमण से हम बीमार पड़ जाते हैं। 

  • दूषित जल द्वारा

कु‌आं, तालाब या नदियों यहां तक कि कुछ हैंडपंप के जल में रोगाणु मौजूद होते हैं अर्थात वह जल दूषित होता है जिसके सेवन से हमारे शरीर के अंदर रोगजनक कारक प्रवेश कर जाते हैं जिनके संक्रमण से हम बीमार हो जाते हैं। 

  • अस्वच्छ वायु-: 

जीवन जीने के लिए प्रत्येक पल सांस लेना आवश्यक होता है किंतु जब हम अस्वच्छ वातावरण की वायु द्वारा सांस लेते हैं तो उसने उपस्थित रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश करके संक्रमण फैलाते हैं जिससे हम बीमार हो जाते हैं। 

  • संक्रमित व्यक्ति से संपर्क-: 

जब हम किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं ,अर्थात उस को छूते हैं, योन संबंध बनाते हैं या उसके द्वारा उपयोग किए गए वस्तुओं का उपयोग करते हैं तो उसके रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश करके संक्रमण करते हैं जिससे हमने संक्रामक बीमारी हो जाती है। 

  • कीट द्वारा-: 

जब कोई रोगाणु युक्त कीट, हमारी त्वचा को भेद्य कर अपने रोगाणु हमारे खून में पहुंचाता है तो हमें संक्रामक बीमारी हो जाती है जैसे-: मादा एनाफिलीज द्वारा मलेरिया होना ,डेंगू द्वारा डेंगू बुखार होना

संक्रामक रोगों की रोकथाम के उपाय-:

  • भोजन को ढक कर , एवं स्वच्छ वातावरण में रखें। 

  • खुले जल स्त्रोतों जैसी नदी तालाब आदि का जल प्रत्यक्ष रूप से पीने के लिए उपयोग ना किया जाए। 

  • दूषित जल को फिल्टर करके या उसमें अवश्य क्लोरीन बगैरा का घुलन करके ही उपयोग किया जाए। 

  • आसपास स्वच्छ वातावरण बनाया जाए, आसपास एसिड डालकर सफाई की जाए। 

  • संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखी जाए। उसके द्वारा उपयोग किए गए बर्तन तौलिया आदि उपयोग न किया जाए। 

  • आसपास के वातावरण में पानी जमा न होने दिया जाए, तथा मच्छर ,डेंगू मारने वाली दवाई का छिड़काव किया जाए ताकि मच्छर ,डेंगू, जैसे कीट आसपास के वातावरण में मौजूद न रहे। 

  • खाने के पहले तथा सोच के बाद नियमित रूप से हिथ धोते।

  • विभिन्न रोग से निपटने के लिए पूर्ण टीकाकरण करवाया जाए। 

असंक्रामक रोग

ऐसे रोग जो किसी रोगाणु के संक्रमण से या एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं, फैलते बल्कि अनुपयुक्त जीवन शैली अनुपयुक्त खान-पान के कारण विकसित होते हैं उन्हें असंक्रामक रोग कहते हैं। 

जैसे मधुमेह, हाइपरटेंशन, मोटापा, कोलेस्ट्रॉल। 

असंक्रामक रोगों की मुख्य कारण-: 

  • धूम्रपान या नशा करना। 

  • पौष्टिक एवं संतुलित आहार के स्थान पर असंतुलित या जंक फूड लेना। 

  • अत्यधिक मसाला एवं तेल वाली चीजें खाना। 

  • संतुलित समय पर भोजन ना करना। 

  • व्यायाम योग इत्यादि ना करना। 

  • अधिक से अधिक मशीनों का उपयोग करना जैसे लैपटॉप मोबाइल। 

प्रमुख असंक्रामक रोग-: 

  • कैंसर

  • मधुमेह या डायबिटीज

  • हाइपरटेंशन

  • हीमोफीलिया

  • जोड़ों का दर्द

  • हार्ट अटैक या कोलेस्ट्रोल की बढ़ोतरी। 

कैंसर-: 

कोशिका में अनियंत्रित वृद्धि होना कैंसर कहलाता है। कैंसर एक असंक्रामक रोग है जो अनुपयुक्त खानपान एवं अनउपयुक्त जीवन शैली के कारण होता है जैसे -: अत्यधिक नशा करना धूम्रपान करना। 

लक्षण -:
  • बिना दर्द के शरीर के किसी भाग में गांठ (ट्यूमर) पड़ जाना। 

  • किसी घाव का ना भरना बार-बार रक्तस्राव होना। 

  • पेशाब, मल या थूक के साथ खून निकलना। 

  • लंबे समय से खाना को निगलने में कठिनाई होना। 

उपचार-: 
  • शल्य चिकित्सा करके कैंसर के ट्यूमर को निकाल दिया जाता है।

  • रेडियोथैरेपी-: जैसे कोबाल्ट के प्रोटॉन द्वारा कैंसर की कोशिकाओं को समाप्त करना। 

  • कीमो थेरेपी-: दवाइयों द्वारा कैंसर की कोशिकाओं को समाप्त करना। जैसे-: लिंफोसाइट बढ़ाने वाली दवाई देकर प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करना ताकि यह प्रतिरक्षा तंत्र कैंसर कोशिकाओं को मार सके। 

मधुमेह/ डायबिटीज-: 

जब शरीर में ग्लूकोज का स्तर सामान्य स्तर से काफी ज्यादा बढ़ जाता है तो इसे डायबिटीज कहते हैं। 

डायबिटीज एक असंक्रामक रोग है जिसका मुख्य कारण अत्यधिक मात्रा में मीठा भोजन या कोकाकोला पेप्सी आदि  ग्रहण करना। 

डायबिटीज के लक्षण-: 
  • अधिक भूख एवं प्यास लगना। 

  • बार-बार मूत्र त्याग करने की इच्छा होना। 

  • थकान एवं कमजोरी महसूस होना। 

  • आंखों की दृष्टि धुंधली होना। 

 डायबिटीज का उपचार-: 
  • इंसुलिन के एक्शन लेना चाहिए। 

  • कम मीठा भोजन ग्रहण करना चाहिए तथा नियमित व्यायाम करना चाहिए। 

 हाइपरटेंशन

हमारे शरीर की धमनी एवं शिरा में खून का प्रवाह होता है किंतु जब धमनी और शिरा में खून का प्रेशर 120/80 mmHg. से अधिक होता है तो इसे हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप कहते हैं। 

उच्च रक्तचाप होने से हमारे हृदय की धड़कन अनियमित हो जाती है जिससे 

  • हृदय संबंधी बीमारी होती, यहां तक की हार्टअटैक भी आ सकता है। 

  •  तंत्रिका तंत्र पर दुष्प्रभाव पड़ता है जिससे सोचने एवं याद रखने में समस्या आती है। यहां तक की मस्तिक की नस भी फट सकती है

लक्षण-:
  • घबराहट होना। 

  • नाक आदि से खून निकलना। 

  • सिर दर्द होना चक्कर आना। 

उपचार-: 
  • योग आदि करना चाहिए। 

  • नमक आदि का कम सेवन करना चाहिए। 

हाइपरलिपिडेमिया/हाई कोलेस्ट्रॉल

जब हमारे शरीर में वसा की मात्रा अधिक बढ़ जाती है तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल कहते हैं। हाई कोलेस्ट्रॉल होने से धमनी एवं शिरा का आकार छोटा हो जाता है, जिससे हमारा परिसंचरण तंत्र प्रभावित होता है परिणाम स्वरूप हृदय की गति अनियमित होने से हमें हार्ट अटैक आ जाता है। 

लक्षण-: 
  • पैरों या हाथों की उंगली तक खून न पहुंच पाने के कारण वे असंवेदनशील होने लगते हैं। 

  • हाथ पैर का ठंडे रहना। 

  • सांस फूलना या जल्दी थकान होना। 

  • वजन तेजी से बढ़ना। 

उपचार-: 
  • तेल से तली हुई चीजों का कम उपयोग करना चाहिए। 

  • घी, पनीर का कम उपयोग करना चाहिए। 

सिंड्रोम

जब किसी व्यक्ति के गुणसूत्र की संख्या सामान्य संख्या (46) से कम या ज्यादा हो जाती है तो इसके प्रभाव से शरीर में अनेकों हो बाधाएं या बीमारियां उत्पन्न हो जातीं हैं। इन बीमारियों के समूह को सिंड्रोम कहते हैं। 

मानव जाति में कई प्रकार के सिंड्रोम पाए जाते हैं जिसमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं

  • क्लाइनफिल्टर सिंड्रोम-: यह पुरुषों में होने वाला सिंड्रोम है इसके अंतर्गत पुरुषों के गुणसूत्र की संख्या 46 के स्थान पर 47 हो जाती है। इस सिंड्रोम की वजह से पुरुषों में नपुंसकता आ जाती है। 

  • टर्नर सिंड्रोम-: यह महिलाओं में होने वाला सिंड्रोम है इस सिंड्रोम के अंतर्गत महिलाओं के गुणसूत्रों की संख्या 46। के स्थान पर 45 हो जाती है। जिसकी वजह से महिलाओं में बांझपन आ जाता है एवं इनका पूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो पाता। 

  • डाउन सिंड्रोम-: यह नवजात शिशुओं में होने वाला सिंड्रोम है, इस सिंड्रोम के अंतर्गत नवजात शिशुओं में गुणसूत्रों की संख्या 46 के स्थान पर 47 हो जाती है जिससे जन्म लेने वाले बच्चे का कद छोटा होता है एवं बुद्धि मंद होती है तथा इनके चेहरे का आकार मंगोलियन की भांति होता। इस सिंड्रोम से ग्रसित बच्चे कम आयु में ही मर जाते हैं। 

30 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं द्वारा जन्म ले शिशुओं में डाउन सिंड्रोम पाए जाने की संभावना अधिक होती है। 

प्रदूषण जनित बीमारी-: 

  • मिनीमाता रोग-: अत्यधिक पर आयुक्त जल,या  अत्यधिक पारा युक्त जल में पाई जाने वाली मछली के सेवन से। 

  • इटाई इटाई रोग-: अत्यधिक कैडमियम युक्त जल के ग्रहण करने से। 

  • ब्लू बेबी सिंड्रोम -: अत्यधिक नाइट्रेट युक्त जल के ग्रहण करने से। 

  • ब्लैक फुट रोग-: अत्यधिक आर्सैनिक युक्त जल ग्रहण करने से। 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *