स्वास्थ्य संगठन

[स्वास्थ्य संगठन] 

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ऐसे औपचारिक संगठन जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में -:

  • अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं।

  • स्वास्थ्य सेवाओं का नियमन एवं नियंत्रण करते हैं। 

  • स्वास्थ्य सेवाओं का विकास एवं विस्तार करते हैं अर्थात सभी लोगों तक स्वस्थ सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करते हैं उन्हें स्वास्थ्य संगठन कहा जाता है

उन्हें स्वास्थ्य संगठन कहा जाता है। 

और वर्तमान में सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, क्षेत्रीय, राज्यीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेकों संस्थाएं या संगठन कार्यरत हैं। जिनका विवरण अधोलिखित है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन

विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अनुषांगिक इकाई है, जो वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का निराकरण करके, स्वास्थ्य नीतियों का विनियमन करता है। 

विश्वास संगठन की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गई इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा में स्थित है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ संगठन की योजना एवं नीतियों का सदस्य देशों तक ,क्रियान्वयन करने के लिए 6 क्षेत्रीय या प्रदेशिक मुख्यालय स्थापित किए गए हैं

विश्व संगठन के प्रादेशिक मुख्यालय-: 

.विश्व संगठन के प्रादेशिक मुख्यालय-: 

विश्व स्वास्थ संगठन की संरचना-: 

विश्व स्वास्थ्य संगठन को मुख्यत: निम्न तीन अंगों में विभाजित किया जा सकता है-: 

  • सभा। 

  • कार्यकारी मंडल। 

  • सचिवालय। 

विश्व स्वास्थ्य सभा-: 

डब्ल्यूएचओ की सभा की बैठक जेनेवा में प्रतिवर्ष में एक बार होती है, जिसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं। इसके प्रमुख कार्य है-: 

  • विश्व स्वास्थ संगठन की नीतियों का निर्धारण करना। 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के बजट की समीक्षा व अनुमोदन करना। 

  • विश्व संगठन के महानिदेशक की नियुक्ति करना। 

कार्यकारी मंडल-:

कार्यकारी मंडल में 34 स्वास्थ्य विशेषज्ञ होते हैं जो विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा 3 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। कार्यकारी मंडल की बैठक वर्ष में दो बार होती है। 

विश्व स्वास्थ संगठन के कार्यकारी मंडल का मुख्य कार्य 

  • विश्व स्वास्थ्य सभा के लिए एजेंडा तैयार करना, 

  • स्वास्थ संबंधी उपयुक्त तकनीकी सुझाव देना 

  • तथा विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा दिए गए कार्य पर अनुसंधान करना। 

सचिवालय-: 

डब्ल्यूएचओ के सचिवालय का प्रमुख अधिकारी महानिदेशक होता है। तथा महानिदेशक के अतिरिक्त सचिवालय में अन्य कर्मचारी शामिल होते हैं। 

सचिवालय का मुख्य कार्य विश्व स्वास्थ संगठन के प्रशासनिक एवं तकनीकी कार्यों का क्रियान्वयन करना है। 

विश्व स्वास्थ संगठन की सदस्यता

विश्व की सभी देश विश्व स्वास्थ संगठन के सदस्य बन सकते हैं बशर्ते उन्हें-:

  • विश्व स्वास्थ संगठन के विधाओं को स्वीकार करना होगा। अर्थात विश्वा संगठन के नियमों के अनुसार कार्य करना होगा। 

  • समय-समय पर अपने क्षेत्र में स्वास्थ संबंधी किए गए कार्यों की रिपोर्ट, विश्वा संगठन को भेजना होगा। 

वर्तमान में विश्व स्वास्थ संगठन में 194 देश शामिल है। 

विश्व स्वास्थ संगठन के उद्देश्य-:

विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रस्तावना में यह स्पष्ट लिखा है कि “प्रत्येक मनुष्य का यह मौलिक अधिकार है कि उसे उच्चतम स्वास्थ्य की सुविधाएं प्राप्त हो”

इस तथ्य के आधार पर डब्ल्यूएचओ के उद्देश निम्नलिखित हैं-:

  • स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा पर्यावरणीय स्वच्छता को बढ़ावा देना। 

  • सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवा की पहुंच सुनिश्चित करना। 

  • लोगों के जीवन स्तर एवं पोषण आहार स्तर को ऊपर उठाना। 

  • स्वास्थ्य के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देना। 

  • विभिन्न देशों के मध्य स्वास्थ्य नीतियों  सामंजस्य बिठाकर, वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य नीतियों का विनियमन करना। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्य-: 

  • स्वास्थ्य संबंधी दिशा निर्देश देना-

सदस्य देशों को उपयुक्त स्वास्थ्य नीति का निर्माण करने के लिए, स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक दिशा-निर्देश देता है। 

  • स्वास्थ्य कार्यों का मूल्यांकन-

सदस्य राष्ट्रों द्वारा किए जा रहे स्वस्थ संबंधित कार्यों की प्रगति का मूल्यांकन करता है तथा अपेक्षित सुधार  हेतु सुझाव भी देता है। 

  • स्वास्थ्य मानकों का निर्धारण-

विश्व स्वास्थ्य संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर औषधियों का मापदंड निर्धारित करता है। 

  • बीमारी एवं महामारी की घोषणा-

डब्ल्यूएचओ नवीन बीमारियों की पहचान कर उनका अंतरराष्ट्रीय नाम घोषित करता है तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलने वाली बीमारी को महामारी घोषित करने का कार्य करता है। जैसे 11 मार्च 2020 में कोविड-19 को महामारी घोषित किया।  

  • स्वस्थ आंकड़ों का प्रकाशन-

डब्ल्यूएचओ विभिन्न देशों के स्वास्थ संबंधी आंकड़ों को संग्रहित करके उनका विश्लेषण करता है 

फिर उस विश्लेषण का प्रकाशन करता है जैसे कि स्वास्थ्य स्तर पर विभिन्न देशों की स्थिति का प्रकाशन। तथा स्वस्थ संबंधी दिशा निर्देश का प्रचार प्रसार करते हैं। 

  • स्वास्थ्य कार्यक्रम हेतु ऋण प्रदान करना-

विश्व स्वास्थ्य संगठन विकासशील देशों को स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों का संचालन करने के लिए उन्हें रियायती दरों पर ऋण भी प्रदान करता है। 

विश्व स्वास्थ संगठन की बाधाएं-:

  • पर्याप्त वित्त पोषण की समस्या। 

  • सदस्य राष्ट्रों के मध्य व्यक्तिगत मतभेद की समस्या। 

  • संगठन का राजनीति से मुक्त ना होना। 

  • संगठन में केवल विकसित देशों का प्रभाव होना। 

विश्वा संगठन के समक्ष चुनौतियां-:

  • जलवायु परिवर्तन की चुनौती। जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व में प्रतिवर्ष कुपोषण, मलेरिया, डायरिया, हीट स्टेट के प्रभाव से विश्व में 2.5 लाख अतिरिक्त मौत होने की संभावना है। 

  • पर्यावरण प्रदूषण की चुनौती। 

  • कोविड-19 जैसी महामारी की चुनौती। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यक्रम-: 

उपरोक्त बाधाओं एवं चुनौतियों के बावजूद भी विश्व स्वास्थ संगठन में अनेकों सकारात्मक कार्य किए हैं जिनका प्रयोग निम्नलिखित-: 

  • पोलियो मुक्त अभियान-: विश्व को पोलियो से मुक्त बनाने के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 1978 में पोलियो मुक्त कार्यक्रम चलाया गया। और भरत ने भी इस अभियान के अनुरूप 1995 में राष्ट्रीय स्तर पर पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान की शुरुआत की जिसके प्रभाव से वर्ष 2014 में भारत पोलियो मुक्त घोषित हो चुका है। 

विश्व स्वास्थ संगठन के पोलियो मुक्त कार्यक्रम के प्रभाव से भारत ही नहीं, बल्कि वर्ष 2002 में यूरोप तथा 2014 में भारत सहित 11 दक्षिण पूर्वी एशियाई देश पोलियो मुक्त हो चुके हैं। 

  • क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम-: 

वैश्विक स्तर पर टीवी को समाप्त करने के लिए डब्ल्यूएचओ ने वर्ष 2006 में क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम चलाकर “वैश्विक टास्क फोर्स” का गठन किया जो टीवी ग्रसित देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करता है। 

इस कार्यक्रम का उद्देश्य 2035 तक छह रोग के कारण होने वाली मृत्यु दर को 95% कम करना है। 

  • मधुमेह कार्यक्रम-: 

वर्तमान में विश्व में लगभग 450 मिलियन वयस्क मधुमेह रोग से ग्रसित हैं और प्रत्येक वर्ष लगभग 16 लाख(1.6 मिलियन) लोग मधुमेह के कारण खत्म हो जाते हैं। अतः वैश्विक स्तर पर मधुमेह को समाप्त करने के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा मधुमेह कार्यक्रम चलाया गया जिसके अंतर्गत लोगों को मधुमेह के कारणों एवं उपचार आधारित जीवन शैली के प्रति जागरूकता फैलाई जाती है। 

  • एड्स नियंत्रण कार्यक्रम-: 

वर्तमान में विश्व में लगभग 40 मिलियन लोग एड्स से ग्रसित हैं और यदि किसी माता-पिता को एड्स होता है तो वह उनके बच्चों में स्थानांतरित हो जाता है अतः एड्स को नियंत्रित करने के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा एड्स नियंत्रण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत “फास्टट्रैक फौर्स” का गठन किया गया, जो एड्स के प्रति लोगों को जागरूक करती है। 

  • अंतरराष्ट्रीय केमिकल सुरक्षा कार्यक्रम-: 

वैश्विक के स्तर पर ,वैज्ञानिक आधार पर मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को केमिकल के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए विश्वास संगठन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय केमिकल सुरक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य यातायात ,उद्योग आदि द्वारा किए जाने वाले केमिकल ओं के उपयोग को नियंत्रित करना है। 

  • विश्व स्वास्थ संगठन का वाश कार्यक्रम-: 

हाल ही में डब्ल्यूएचओ द्वारा wash(water sanitation and cleanliness) कार्यक्रम की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य घरों की साफ-सफाई, स्वच्छता एवं सुरक्षित पेयजल स्तर को बढ़ावा देना। 

विश्व स्वास्थ संगठन और भारत-: 

12 जनवरी 1948 को भारत विश्वा संगठन का सदस्य राष्ट्र बना। हमारे लिए यह सौभाग्य की बात है कि डब्ल्यूएचओ का दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्रीय कार्यालय हमारे देश की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है। 

डब्ल्यूएचओ के प्रभाव से भारत में चेचक, पोलियो ,इनफ्लुएंजा आदि बीमारियों का उन्मूलन हो गया। 

जैसे-:1967 में भारत में विश्व के 65% चेचक मामले थे, किन्तु 1967 में विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा चलाए गए चेचक उन्मूलन कार्यक्रम के प्रभाव से 1977 आते-आते भारत में चेचक का उन्मूलन हो गया। 

भारत के स्वास्थ्य संगठन

केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संस्थान

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय-: 

यह भारत में स्वास्थ्य मामलों के नियामक एवं नियंत्रण की सर्वोच्च संस्था है। जिसका गठन 1976 में किया गया। 

कार्य-: 

  • राष्ट्र के लिए स्वस्थ संबंधी नीतियां का निर्धारण करना। 

  • राष्ट्रीय स्तर के स्वास्थ्य कार्यक्रमों (योजना)का संचालन। 

  • स्वास्थ्य नीतियों एवं कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, मूल्यांकन एवं निरीक्षण करना। 

  • स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना। 

  • स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना। 

  • स्वास्थ संबंधी उपयुक्त दिशा निर्देश जारी करना।

आयुष मंत्रालय-: 

भारत में आयुष चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2014 में एक अलग से स्वास्थ्य मंत्रालय बनाया गया जिसे आयुष मंत्रालय कहां जाता है। 

कार्य-: 

  • राष्ट्र में आयुष चिकित्सा पद्धतियों के विकास एवं विस्तार से संबंधित नीतियां बनाना, उनका क्रियान्वयन करना, मूल्यांकन करना। 

  • आयुष चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों की रूचि बढ़ाना, जागरूक करना। 

  • आयुष चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं शोध को बढ़ावा देना। 

  • औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देना। 

  • आयुष चिकित्सा पद्धति के शिक्षण संस्थानों एवं अस्पतालों का विकास एवं विस्तार करना। 

आयुष मंत्रालय द्वारा आयुष चिकित्सा पद्धति के विकास एवं विस्तार हेतु निम्न संस्थान संचालित है-: 

  • राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ-: नई दिल्ली

  • आयुर्वेद का स्नातकोत्तर शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान -:जामनगर

  • पतंजलि योगपीठ -:हरिद्वार

  • मुरारी जी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान-: नई दिल्ली

  • राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान -:पुणे (क्योर फाउंडेशन ट्रस्ट का संशोधित रूप)

  • केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान-: हैदराबाद

  • राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान -:कोलकाता

स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग

यह विभाग स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है इस विभाग की स्थापना 2007 को की गई। इस विभाग का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना है। 

इसके लिए यह संस्थान चिकित्सा के गुणवत्ता शिक्षण संस्थानों का विकास व विस्तार करता है तथा विदेशी सहयोग भी प्राप्त करता है। 

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग-: 

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की स्थापना सितंबर 2020 को राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद के स्थान पर की गई। 

इसका उद्देश्य-

  • चिकित्सा एवं चिकित्सा शिक्षा  की गुणवत्ता में सुधार करना। 

  • चिकित्सा एवं चिकित्सा शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकना। 

  • चिकित्सा में अनुसंधान को बढ़ावा देना। 

कार्य-: 

  • चिकित्सा शिक्षा संस्थान तथा चिकित्सा अस्पतालों का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करना। 

  • चिकित्सा शिक्षा से संबंधित उपयुक्त दिशा निर्देश जारी करना। निजी अस्पतालों को मान्यता प्रदान करना। 

  • देश के विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के मध्य सामंजस्य बिठाना।  

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद-: 

भारत में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की स्थापना 1911 में भारतीय अनुसंधान कोष संघ के नाम से की गई थी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1949 में इसका नाम बदलकर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद रख दिया गया ,यह भारत में चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान करके उस अनुसंधान का विकास एवं विस्तार करने के लिए उत्तरदाई है। 

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(AIIMS)-: 

इसकी स्थापना वर्ष 1956 में एक स्वायत्त स्थान के रूप में की गई। 

वर्तमान में भारत में कुल 15 एम्स संचालित है जिसमें से एक मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भी स्थित है। 

एम्स के कार्य-: 

  • उच्च स्तरीय गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा प्रदान करना। ताकि चिकित्सकों की गुणवत्ता बढ़ाई जा सके।

  • चिकित्सा शिक्षा का उपयुक्त स्नातक एवं स्नातकोत्तर पैटर्न विकसित करना। 

  • चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास करना। 

  • चिकित्सा शिक्षा के विभिन्न संस्थानों के मध्य सामंजस्य बिठाना। 

राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र-: 

विभिन्न प्रकार के संक्रमण रोगों एवं महामारी को नियंत्रित करने के लिए भारत में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र संचालित है। फलक इसकी स्थापना 1960 में भारतीय मलेरिया संस्थान के रूप में की गई थी जिसका नाम बदलकर अब राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र रख दिया गया। 

कार्य-:

  • संचारी रोगों का आंकड़ा एकत्रित करके उनका विश्लेषण करना तथा उस रोग से संबंधित भविष्य की संभावनाएं प्रकट करना। 

  • संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त दिशा निर्देश जारी करना। 

  • संक्रामक रोगों एवं महामारी को समाप्त करने के लिए अनुसंधान करना। 

भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी

भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी इंटरनेशनल रेड क्रॉस की तर्ज पर बना एक स्वैच्छिक मानवीय संगठन है। जिसकी स्थापना वर्ष 1920 में की गई। वर्तमान में इसके अध्यक्ष केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री होते हैं। 

कार्य-: 

  • युद्ध या प्राकृतिक आपदा जैसी आपातकालीन स्थिति में घायलों(पीड़ित व्यक्तियों) को प्राथमिक उपचार प्रदान करना। 

  • यह दिया प्राकृतिक आपदा की स्थिति में परिवार के सदस्यों को परिवार से मिलवाना। 

  • व्यक्तियों को आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए शिक्षण प्रशिक्षण देना। 

  • स्वस्थ लोगों को ब्लड डोनेशन के लिए प्रेरित करके ब्लड प्राप्त करना तथा उस ब्लड को आवश्यक व्यक्ति को प्रदान करना।

राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान-: 

इस संस्थान की स्थापना 1981 में की गई। 

इसका उद्देश्य रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास का कार्य करना 

जैसे-: विभिन्न बीमारियों के टीके निर्माण का कार्य कैंसर प्रतिरोधक क्षमता के विकास का कार्य। 

सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन-: 

यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आता है। 

इसका प्रमुख ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया कहलाता है। 

इस संगठन का मुख्य कार्य-: 

  • सभी प्रकार की दवाइयों (वैक्सिंग सिरा, गोली ,सिरप)एवं कॉस्मेटिक रसायनों का मानक निर्धारण करना। 

  • तथा निर्धारित मानकों पर अनुपयुक्त बैठने वाली दवाओं की बिक्री, आयात, निर्यात, वितरण पर प्रतिबंध लगाना। 

  • दवा निर्माता कंपनियों को लाइसेंस प्रदान करना तथा उनका निरीक्षण करना। 

  • दवा विक्रेता को लाइसेंस प्रदान करना उनका निरीक्षण करना। 

अखिल भारतीय भौतिक चिकित्सा(physiotherapy) और पुनर्वास संस्थान-: 

इस संस्थान की स्थापना 1955 में की गई। 

इसका मुख्य उद्देश्य

  • भौतिक चिकित्सा(फिजियोथैरेपी) के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना। 

  • भौतिक चिकित्सा के प्रति लोगों में जागरूकता लाना। 

  • विकलांगता या टेढ़ी-मेढ़ी हड्डी से ग्रसित लोगों को भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास की सुविधा देना। 

 मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य संगठन

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग मध्यप्रदेश-: 

यह मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य मामलों के नियामक एवं नियंत्रण की सर्वोच्च संस्था है। 

कार्य-: 

  • मध्य प्रदेश के लिए स्वस्थ संबंधी नीतियां का निर्धारण करना। 

  • राज्य स्तर के स्वास्थ्य कार्यक्रमों (योजना)का संचालन। 

  • स्वास्थ्य नीतियों एवं कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, मूल्यांकन एवं निरीक्षण करना। 

  • स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना। 

  • स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना। 

  • केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों के अनुरूप राज्य में भी दिशा निर्देश जारी करना। 

मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल-: 

मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल की स्थापना 1996 में की गई। 

इसका उद्देश्य-

  • चिकित्सा एवं चिकित्सा शिक्षा  की गुणवत्ता में सुधार करना। 

  • चिकित्सा एवं चिकित्सा शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकना। 

  • चिकित्सा में अनुसंधान को बढ़ावा देना। 

मध्य प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल-: 

मध्य प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल की स्थापना मध्य प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल अधिनियम 2000 के अंतर्गत की गई। 

इसके द्वारा मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल स्टाफ के गुणवत्तापूर्ण डॉक्टरों की नियुक्ति की जाती है। तथा पैरामेडिकल स्टाफ से संबंधित विभिन्न दिशा निर्देश जारी किए जाते हैं। 

मध्य प्रदेश नर्सेज पंजीकरण परिषद-

इस संस्था की स्थापना 1956 में की गई। 

इसका कार्य-: 

  • नर्सिंग स्कूलों एवं कॉलेजों को मान्यता प्रदान करना। 

  • नर्सिंग स्कूलों की गुणवत्ता का निरीक्षण करना। 

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