आपदा प्रबंधन]
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अचानक से घटित होने वाली ऐसी विध्वंसक घटना, जिससे मानवीय समाज, भौतिक संसाधनों तथा पर्यावरण को क्षति होती है उसे आपदा कहते हैं।
उदाहरण के लिए अचानक से आने वाला भूकंप एक आपदा है जिसके प्रभाव से अनेकों लोगों की जान चली जाती है, मानवी जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता[ है ,भौतिक संरचना नष्ट हो जाती है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अनुसार-:
आपदा का आशय किसी भी क्षेत्र में प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से घटित होने वाली ऐसी घटना, दुर्घटना या विध्वंस से है जिसके परिणाम से मानव जीवन को हानि या मानव को पीड़ा पहुंचती है या संपत्ति को हानि पहुंचती है या पर्यावरण का भारी नुकसान होता है।
आपदा और प्रकोप में अंतर-:
आपदा का तात्पर्य अचानक से घटित होने वाली ऐसी विध्वंसक घटना से है, जिसका मानव समाज, भौतिक संसाधनों या पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।
जबकि प्रकोप(Hazard) का तात्पर्य- ऐसी विध्वंसक स्थिति से है, जो मानव पर्यावरण और भौतिक अवसंरचनाओं को भारी नुकसान पहुंचाने की क्षमता तो रखती हो, किंतु नुकसान ना पहुंचा रही हो।
जैसे-: जब तक कोरोना कि प्रभाव से प्रभावित होकर भारत के लोगों की मृत्यु नहीं हुई तब तक यह (कोरोना महामारी) भारत के लिए एक प्रकोप यह संकट था किंतु जब कोरोना के प्रभाव से भारत के लोगों की जान जाने लगी तो यह भारत के लिए आपदा बन गई।
अर्थात विपत्ति (प्रकोप) का प्रभावी रूप ही आपदा है।
आपदा के प्रकार-:
प्राकृतिक आपदाएं
मानव जनित आपदाएं
प्राकृतिक आपदाएं-:
प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होने वाली ऐसी आपदाएं जिन पर मानव समाज का नियंत्रण न के बराबर होता है,उन्हें प्राकृतिक आपदाएं कहते हैं।
जैसे-‘
भूकंप
ज्वालामुखी विस्फोट
सुनामी
चक्रवात
भूस्खलन
हिमस्खलन
बाढ़ और सूखा
मानव जनित आपदाएं-:
ऐसी आपदाएं जो मानवीय क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। अर्थात जिनकी उत्पत्ति के लिए मानव जिम्मेदार होता है, उन्हें मानव जनित आपदाएं कहते हैं।
जैसे-:
परमाणु विस्फोट
जैविक आतंकवाद
मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न महामारी जैसे- कोरोना।
मानवीय गतिविधियों उत्पन्न व्यापक आग।
औद्योगिक दुर्घटना
भारत में आपदा आक्रमक कारक
प्रतिकूल परिस्थितियां-: भारत के सीमा क्षेत्र में आपदा की परिस्थिति में मौजूद है जैसे-
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराने से भूकंप आने का खतरा रहता है वहीं दूसरी ओर प्रायद्वीपीय तटीय क्षेत्र को समुद्र से सुनामी के चक्रवात आने का खतरा रहता है।
जनसंख्या वृद्धि-: भारत में जनसंख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है जिस कारण से जनसंख्या दबाव बहुत अधिक है परिणाम स्वरूप प्रत्येक संकट आपदा में बदल जाता है।
गरीबी-: भारत में गरीबी के स्तर अधिक होने के कारण लोक विवशतापूर्ण आपदा संवेदनशील क्षेत्रों में रहने के लिए विवश है, जिसके कारण एक साधारण से संकट के कारण अनेकों लोग जिस प्रभावित हो जाते हैं,और वह संकट आपदा बन जाता है।
जन जागरूकता का अभाव-: भारत के अधिकांश लोग अब तक प्रबंधन के प्रति शिक्षित एवं प्रशिक्षित नहीं होते जिसके कारण किसी भी आपदा का उन पर बहुत अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है।
आपदा प्रबंधन-:
आपदा प्रबंधन का तात्पर्य आपदा से निपटने के लिए किए गए उन प्रयासों या क्रियाकलापों से है जो, आपदा की रोकथाम करने या आपदा के दुष्प्रभावों को कम करने में सहायक हो।
आपदा प्रबंधन के अंतर्गत आपदा का पूर्वानुमान लगाना, आगामी आपदा की चेतावनी देना, राहत व बचाव का कार्य करना तथा पुनर्वास और पुनर्निर्माण करने जैसी गतिविधियां शामिल है।
आपदा प्रबंधन की अवस्थाएं या चरण-:
आधुनिक के आपदा प्रबंधन अवधारणा के अनुसार आपदा प्रबंधन की प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है-
आपदा के पूर्व आपदा प्रबंधन
आपदा के दौरान आपदा प्रबंधन
आपदा के पश्चात आपदा प्रबंधन
आपदा के पूर्व आपदा प्रबंधन
आपदा घटित होने से पूर्व संभावित आपदाओं से निपटने के लिए निम्न कदम उठाए जाते हैं-:
आपदा तैयारी
आपदा न्यूनीकरण
आपदा चेतावनी
आपदा तैयारी-:
आपदा तैयारी के अंतर्गत निम्न क्रियाकलाप शामिल हैं-:
आपदा संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना।
आने वाली आपदा के स्वरूप एवं उसके संभावित प्रभावों का आकलन करना।
आपदा संवेदनशील क्षेत्र में आपदा प्रबंधन की ढांचागत सुविधाओं जैसे- पर्याप्त भोजन-आवास की व्यवस्था, स्वच्छ जल की व्यवस्था, परिवहन-संचार की व्यवस्था का विकास करना।
संभावित आगामी आपदा से निपटने के लिए विभिन्न आपदा प्रबंधन विभाग जैसे- आपदा प्रबंधन टीम, प्रशासनिक विभाग, चिकित्सा विभाग को एकीकृत करना।
आपदा न्यूनीकरण-:
आपदा न्यूनीकरण के अंतर्गत आने वाली संभावित आपदा प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं जैसे-
सुनामी जैसी आपदाओं से बचने के लिए समुद्र के तट में मैंग्रोव वन की दीवार बनाना।
भूकंप जैसी आपदाओं से बचने के लिए भूकंप रोधी भवन बनाना।
बाढ़ से बचने के लिए ऊंचे तीनों पर भवन बनाना।
महामारी से बचने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना।
आपदा चेतावनी-:
इसके अंतर्गत आपदा संवेदनशील क्षेत्र के लोगों को संभावित आपदा के विभिन्न पक्षों की जानकारी दी जाती है जैसे-
आपदा की प्रकृति, स्त्रोत, गति, प्रचण्डता,परिणाम की जानकारी।
आपदा आने के संभावित समय की जानकारी।
आपदा से बचने के उपायों की जानकारी।
आपदा के दौरान आपदा प्रबंधन
आपदा घटित होने के दौरान आपदा के दुष्प्रभाव से लोगों को सुरक्षित करने के लिए निम्न कदम उठाए जाते हैं-:
बचाव कार्य
राहत कार्य
बचाव कार्य-:
इसके अंतर्गत आपदा प्रबंधन टीम द्वारा आपदा में फंसे लोगों को निकाल कर, सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाता है।
राहत कार्य-:
इसके अंतर्गत लोगों को अनिवार्य रूप से वस्तुएं एवं सेवाएं उपलब्ध करवाई जाती है जैसे- भोजन ,वस्त्र, उपचार, संचार तथा सुरक्षित आश्रय स्थल आदि।
आपदा के दौरान आपदा प्रबंधन-:
आपदा घटित होने के उपरांत, आपदा स्थल को पुनः पहले की स्थिति में लाने के लिए निम्न कदम उठाए जाते हैं-:
आपदा पुनरुत्थान
आपदा पुनर्वास
आपदा पुनरुत्थान-:
इसके अंतर्गत आपदा के दुष्प्रभावों को समायोजित करने का प्रयास किया जाता है जैसे-
लोगों के स्वास्थ्य स्तर को सुधारना
लोगों को आपदा के भय से बाहर निकालने के लिए मानसिक सहयोग देना
आर्थिक क्षति पूर्ति के लिए मुआवजा आदि देना।
आपदा पुनर्वास-:
इसके अंतर्गत आपदा पीड़ित स्थल को सामान्य स्थिति मिलाने के कार्य किए जाते हैं
जैसे-
क्षतिग्रस्त विद्युत तंत्र, जल आपूर्ति तंत्र, संचार तंत्र, परिवहन तंत्र का पुनर्निर्माण किया जाता है।
औद्योगिक गतिविधियां संचालित करके लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया जाता है।
आपदा प्रबंधन चक्र-:
वर्ष 1994 में जापान के योकोहामा में हुए आपदा न्यूनीकरण सम्मेलन में आपदा प्रबंधन चक्र की अवधारणा विकसित की गई, जिसमें आपदा प्रबंधन के प्रमुख चरणों/घटकों को एक योजनाबद्ध तरीके से रेखांकित किया गया।
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आपदा प्रबंधन के उद्देश्य-:
संभावित आपदा के दुष्प्रभाव को न्यूनतम करना।
लोगों को आपदा के प्रकोप से सुरक्षित करना।
जहां तक संभव हो सके, आधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा आपदा की रोकथाम करना।
आपदा पीड़ित स्थल को पूर्व की सामान्य स्थिति में लाना।
भारत में आपदा प्रबंधन की चुनौतियां/ समस्याएं-:
प्रशासनिक एवं राजनीतिक क्रियाशीलता में कमी।
विभिन्न विभागों के मध्य सामंजस्य का अभाव।
आपदा प्रबंधन के प्रति जन जागरूकता एवं सामुदायिक सहयोग में कमी।
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में पर्याप्त अनुसंधान और शोध में कमी।
आपदा प्रबंधन के लिए पर्याप्त संसाधन तथा धनराशि का अभाव।
भारत में आपदा प्रबंधन-:
वर्ष 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप तथा 2004 में आयी सुनामी के दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार द्वारा भारत में आपदा प्रबंधन के व्यवस्थित नियामक ढांचे को विकसित करने के लिए, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 बनाया गया जिसे वर्ष 2006 में लागू किया गया।
इसके पहले आपदा प्रबंधन का कार्य रिजर्व फोर्स, एनसीसी, होमगार्ड तथा एनजीओ के सकरी युवाओं द्वारा किया जाता था।
इस अधिनियम के अंतर्गत वर्ष 2006 में ही आपदा प्रबंधन टीम के रूप में राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल(NDRF) का भी गठन किया गया।
तथा आपदा प्रबंधन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों को प्रबंधित करने के लिए निम्न संस्थानों की स्थापना की गई
राष्ट्रीय स्तर पर- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(NDMA)
राज्य स्तर पर- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(SDMA)
जिला स्तर पर- जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(DDMA)
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(NDMA)
यह भारत में आपदा प्रबंधन का सर्वोच्च निकाय है जिसका गठन 2005 में ही आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत किया गया।
इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।
कार्य-:
केंद्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन से संबंधित नीतियों का निर्माण करना तथा उनको लागू करना।
आपदा प्रबंधन से संबंधित योजना का अनुमोदन करना।
आपदा प्रबंधन के लिए पर्याप्त संसाधन की व्यवस्था करना।
आपदा प्रबंधन से संबंधित संस्थाओं के मध्य सामंजस्य बैठाना।
आपदा प्रबंधन से संबंधित अन्य संस्थाओं जैसे- राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही बल, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निर्देशित करना।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA)-:
यह मध्यप्रदेश में आपदा प्रबंधन का सर्वोच्च निकाय है, जिसका गठन 2007 को माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत किया गया।
इसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं।
कार्य-:
राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन से संबंधित नीतियों का निर्माण करना तथा उनको लागू करना।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों का अनुमोदन करना।
आपदा प्रबंधन के लिए पर्याप्त संसाधन की व्यवस्था करना।
आपदा प्रबंधन से संबंधित अधीनस्थ संस्थाओं के मध्य सामंजस्य बैठाना तथा उनका दिशा निर्देशन करना।
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(DDMA)
प्रत्येक जिले में एक जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण होता है जो जिले के अंतर्गत आपदा प्रबंधन का सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है इसका अध्यक्ष डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट होता है।
कार्य-:
जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन से संबंधित योजना बनाना उन को लागू करना।
राष्ट्रीय एवं राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों का अनुमोदन करना।
आपदा प्रबंधन हेतु स्थानीय अधिकारी कर्मचारियों को परामर्श एवं तकनीकी सहायता देना।
आपदा प्रबंधन संस्थान-:
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में अनुसंधान करके आपदा प्रबंधन से संबंधित उपयुक्त सलाह देने के लिए वर्ष 1995 में आपदा प्रबंधन संस्थान की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय दिल्ली में है।
राष्ट्रीय आपदा कार्रवाही बल (NDRF)
आपदा की स्थिति में लोगों को खतरनाक स्थिति से बचाकर सुरक्षित स्थान में ले जाने का कार्य करने के लिए एक विशिष्ट पुरुष के रूप में राष्ट्रीय आपदा कार्रवाही बल का गठन वर्ष 2006 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अंतर्गत किया गया।
वर्तमान में राष्ट्रीय आपदा कार्रवाही बल में 13 बटालियन कार्यरत हैं।
एनडीआरएफ का नंबर है-: 9711077372.
आपदा राहत कोष-:
आपदा के समय लोगों को बचाने तथा उन्हें राहत पहुंचाने के लिए आवश्यक धन की पूर्ति हेतु 11 वित्त आयोग के अंतर्गत केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर आपदा राहत कोष का गठन किया गया।
राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक कोष-:
वर्तमान में इस कोष में ₹502 की राशि जो लोग नीति का हिस्सा होता है।
राज्य आपदा राहत कोष-:
इस कोष में 75% योगदान केंद्र सरकार के तथा 25% योगदान राज्य सरकार का होता है।
आपदा प्रबंधन के विस्तार की संभावनाएं
वर्तमान युग विज्ञान का युग है और विज्ञान के प्रगति तथा विभिन्न मानवीय गतिविधियों के प्रभाव से परंपरागत आपदाओं के अलावा नवीन आपदाओं का भी जन्म हुआ है जैसे- परमाणु रेडिएशन,जैविक महामारी,जैव आतंकवाद, परिवहन की दुर्घटना आदि।
और आपदाओं के बढ़ने से आपदा प्रबंधन के विस्तार की संभावना भी बढ़ती जा रही हैं यही कारण है कि आजकल उद्योग के क्षेत्र में ,परिवहन के क्षेत्र में, शहरी नियोजन के क्षेत्र में आपदा प्रबंधन की आवश्यकता पड़ने लगी है।