उत्तर भारत का विशाल मैदान

उत्तर भारत का विशाल मैदान

.उत्तर भारत का विशाल मैदान

उत्तर भारत का विशाल मैदान हिमालय पर्वतीय क्षेत्र और प्रायद्वीपीय भारत के मध्य स्थित है इसलिए इसे मध्यवर्ती मैदान भी कहा जाता है इसका विस्तार लगभग 7.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। 

  • इसका निर्माण हिमालय के निर्माण के बाद हिमालई नदियों के मलबे के निक्षेपण से हुआ है,और अभी भी जारी है। 

  • इस मैदान में बहुत ही कम उच्चावच पाए जाते हैं। 

  • यह अत्यधिक उपजाऊ भूमि वाला क्षेत्र है। 

उत्तर के विशाल मैदान मुक्ता चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:- 

  • भाबर प्रदेश

  • तराई प्रदेश

  • बांगर प्रदेश

  • खादर प्रदेश

  • डेल्टा क्षेत्र

.भाबर प्रदेश तराई प्रदेश बांगर प्रदे खादर प्रदेश

भाबर प्रदेश:-

  • यह प्रदेश शिवालय हिमालय के गिरिपदीय क्षेत्र में लगभग 8 से 10 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है। 

  • इस प्रदेश का निर्माण हिमाली चट्टानों के टूटकर लुड़कने तथा नदियों द्वारा बहा कर लाए गए बड़े-बड़े चटाइन टुकड़ों एवं पत्थरों के ढेर से हुआ है। 

  • क्षेत्र में जब छोटी छोटी नदियां गुजरती है तो वह लुप्त हो जाती हैं,

  •  यह क्षेत्र कृषि के लिए भी योग्य नहीं है। 

तराई प्रदेश:-

  • यह प्रदेश भाबर प्रदेश के दक्षिण में उसी के समांतर रूप से लगभग 10 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है। 

  • हिमालई नदियों द्वारा बहा कर लाए गए, अपेक्षाकृत छोटी चट्टानी टुकड़ा के निक्षेपन से हुआ है। 

  • भाबर प्रदेश की लुप्त नदियां इस क्षेत्र में पुनः दिखाई देने लगती है। 

  • यह अत्यधिक दलदली क्षेत्र है जो कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है। 

बांगर प्रदेश:- 

  • यह प्रदेश तराई प्रदेश के दक्षिण में अपेक्षाकृत ऊंचे स्थानों में पाया जाता है। 

  • यह क्षेत्र अधिक ऊंचाई में होने के कारण यह नदियां अपना मलवा निक्षेपित नहीं कर पाती हैं अतः यहां पर पुरानी जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। 

  • क्षेत्र की मिट्टी खादर प्रदेश की उपेक्षा कम उपजाऊ होती है। 

  • गंगा यमुना का दोआब क्षेत्र इस प्रदेश का उदाहरण है। 

खादर प्रदेश:-

  • यह प्रदेश तराई प्रदेश के दक्षिण में उपेक्षा के रथ निचले स्थानों में पाया जाता है। 

  • क्योंकि यह निचले स्थानों में पाया जाता है अतः यहां पर प्रतिवर्ष नदियां अपना मलवा ने चित्रित करती हैं इसलिए यहां नई जलोढ़ मृदा पाई जाती है। 

  • यह कृषि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त एवं उपजाऊ क्षेत्र है। 

  • इस क्षेत्र का विस्तार मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार आदि में है। 

डेल्टा क्षेत्र:- 

कोई भी नदी महासागर या सागर में मिलने से पूर्व कई छोटी धारा में विभक्त हो जाती है और एंजेल धाराओं के मध्य पाया जाने वाला त्रिभुजाकार उपजाऊ क्षेत्र डेल्टा क्षेत्र कहलाता है। 

उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन

  • राजस्थान का मैदान

  • पंजाब हरियाणा का मैदान

  • गंगा का मैदान

  • ब्रह्मापुत्र का मैदान।

राजस्थान का मैदान

  • यह मैदान अरावली पर्वत के पश्चिम में विस्तृत है। 

  • इसका विस्तार राजस्थान, दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, उत्तरी गुजरात में है। 

 पंजाब-हरियाणा का मैदान

  • इस मैदान का विस्तार मुख्यतः पंजाब हरियाणा राज्य में है, इसीलिए इसे पंजाब हरियाणा का मैदान कहते हैं। 

  • इसका निर्माण सतलज दया शराबी जैसी नदियों के अवसाद के निक्षेपण से हुआ है। 

गंगा का मैदान:-

गंगा के मैदान का गंगा यमुना नदी एवं उनकी सहायक नदियों के मलबे के निक्षेपण से हुआ है। 

गंगा के मैदान को निम्न तीन उप भागों में बांटा जा सकता है:- 

  • ऊपरी गंगा का मैदान (उत्तराखंड एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में)

  • मध्य गंगा का मैदान (उत्तर प्रदेश एवं बिहार में)

  • निम्न गंगा का मैदान ( पश्चिम बंगाल)

ब्रह्मापुत्र का मैदान:-

  • यह मैदान असम राज्य में विस्तारित है। 

  • यह खादर समझना का क्षेत्र है जहां पर सालाना ब्रह्मापुत्र एवं उसकी सहायक नदियों का मलबा निक्षेपित होता है।

उत्तर के विशाल मैदान का महत्व:-

भारत का अन्न भंडार:-

कृषि के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र है क्योंकि-

  • यहां उपजाऊ भूमि पाई जाती है

  • उधर खबर ना होकर समतल क्षेत्र है

  • कृषि सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्धता है। 

इन मैदानों द्वारा देश की लगभग 40% जनसंख्या का भरण पोषण होता है अतः इसे भारत का अन्न भंडार भी कहा जाता है। 

अनुकूल मानवीय दशाएं

मनुष्य के लिए मुख्यतः तीन ही भौगोलिक दशाएं आवश्यक होती है

  • समतल क्षेत्र

  • उपजाऊ क्षेत्र

  • जल संसाधन की उपलब्धता

और तीनों ही भौगोलिक दशाएं यहां पर दुकान है इसलिए यहां पर बहुत ही घनी आबादी निवासरत है। 

जल उपलब्धता:-

इस क्षेत्र में हिमालय की अनेकों नदियां प्रवाहित होती है जिससे यहां पर लगभग वर्षभर जल की पर्याप्त उपलब्धता रहती है। यही कारण है कि यहां पर चल आधारित औद्योगिक गतिविधियों का विकास का विस्तार हुआ। 

पेट्रोलियम के भंडार:-

इन मैदान की तलछटी चट्टानों में पेट्रोलियम एवं व्यास के भंडार हैं। 

ऐतिहासिक महत्व:-

इस क्षेत्र में ऐतिहासिक काल सीजी घनी आबादी रही है अतः यहां पर अनेकों ऐतिहासिक , संस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व के स्थल मौजूद है जैसे:-हरिद्वार, कुशीनगर, बोधगया, अमृतसर, पाटलिपुत्र, अयोध्या आदि। 

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