उद्यमिता/Entrepreneurship

उद्यमिता 

भारत में उद्यमिता/उद्यमिता के सिद्धांत

उद्यमिताका अर्थ 

किसी महत्वाकांक्षी या उद्यमी द्वारा उद्यम स्थापित कर उसे सफलतापूर्वक संचालित करने की प्रक्रिया उद्यमिता कहलाती है। 

उद्यमिता की परिभाषा-:

उद्यमिता एक नवप्रवर्तनकारी कार्य है यह स्वामित्व की अपेक्षा नेतृत्व कार्य है— जोसेफ शुंपीटर। 

उद्यमिता की अवधारणाएं-:

  • जोखिमअवधारणा-:

 उद्यमिता जोखिम बहन करने तथा जोखिम और अनिश्चित के विरुद्ध सफलता प्राप्त करने की शक्ति है। 

  • संगठन एवं समन्वय अवधारणा 

विभिन्न उत्पादन साधनों को संगठित एवं समन्वित कर उत्पादन करने की प्रक्रिया उद्यमिता है। 

  • प्रबंधकीय कौशल अवधारणा 

जेएस मिल के अनुसार नियंत्रण, निर्देशन एवं निरीक्षण करने की योग्यता उद्यमिता है।  

  • नवप्रवर्तन 

उद्यमिता एक नवप्रवर्तनकारी कार्य है यह स्वामित्व की अपेक्षा नेतृत्व कार्य है

  • मनोवैज्ञानिक अवधारणा 

मनोवैज्ञानिक प्रेरणा के अनुसार उद्यम स्थापित कर उच्च उपलब्धियां हासिल करना उद्यमिता है। 

उद्यमिता की विशेषताएं -: 

जोखिम-

उद्यमिता में जोखिम लेने और उसे सफलता में बदलने की क्षमता शामिल होती है। 

नवाचार-

नवाचार तथा नव-प्रवर्तन उद्यमिता का एक विशिष्ट लक्षण है। 

नेतृत्व-

उद्यमी के अंदर नेतृत्वकर्ता का गुण समाहित होता है। 

प्रेरणात्मक क्रिया-

उद्यमिता मनोवांछित लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति प्रेरणा युक्त क्रिया होती है। 

आत्मविश्वास-

एक अच्छे उद्यमी के अंदर अप्रत्याशित घटनाओं के समाधान का विश्वास होता है। 

दूरदर्शिता-

उद्यमिता एक भविष्य-उन्मुक्त प्रक्रिया है जिसमें दूरदर्शिता की सटीकता शामिल होती है। 

बिजनेस प्लान 

उद्यमी के पास एक व्यवहारिक व्यावसायिक योजना होती है इसके अनुरूप वह उद्यम को सफलतापूर्वक संचालित कर पाता है। 

उद्यमिता के सिद्धांत

उद्यमिता का आर्थिक सिद्धांत 

इस सिद्धांत के अनुसार एक उद्यमी अनुकूल आर्थिक परिस्थितियों (जैसे कि कम टैक्स आदि) का लाभ लेने के लिए उद्यम स्थापित करता है। 

सामाजिक सिद्धांत 

इस सिद्धांत के अनुसार एक उद्यमी सामाजिक संस्कृति (जैसे- सामाजिक मूल्य सामाजिक परंपराएं सामाजिक अनुमोदन) के प्रभाव से आकर उद्यम स्थापित करता है

मनोवैज्ञानिक सिद्धांत 

इस सिद्धांत के अनुसार उद्यमी मनोवैज्ञानिक प्रेरणा या महत्वाकांक्षक के अनुसार सफलता प्राप्त करने के लिए एक उद्यम को स्थापित करता है। 

संसाधन आधारित सिद्धांत 

इस सिद्धांत के अनुसार एक उद्यमी अपने निजी संसाधनों का समुचित उपयोग करने के लिए उद्यम स्थापित करता है ( उदाहरण के लिए किसी किसान के पास यदि अधिक आलू है तो वह चिप्स का व्यवसाय करेगा,क्योंकि उसे उसे व्यवसाय में अधिक लाभ प्राप्त होगा)

एकीकृत सिद्धांत-

इस सिद्धांत के अनुसार उद्यमिता के विकास के लिए आर्थिक परिस्थितियों सामाजिक घटक मनोवैज्ञानिक कारक के साथ-साथ संसाधन आदि कारक भी जिम्मेदार होते हैं। 

उद्यमिता का महत्व 

सरोजगार में 

उद्यमिता स्वरोजगार के सृजन में सहायक है परिणाम स्वरुप रोजगार की सरकारी निर्भरता कम होती है। 

आपूर्ति में वृद्धि 

उद्यमिता के विकास से उत्पादों की मांग के अनुरूप पूर्ति संभव हो पाती है। 

बेरोजगारी में कमी 

उधमिता से रोजगार के नए-नए अवसर सृजित होते हैं जिससे बेरोजगारी में कमी आती है। 

जीडीपी ग्रोथ में वृद्धि 

उद्यमिता विकास से आर्थिक उत्पादन बढ़ता है जिससे आर्थिक आय में बढ़ोतरी होती है जीडीपी भी बढ़ती है। 

संसाधनों का स्त्रोतम प्रयोग 

उद्यमिता में भूमि श्रम, संगठन,पूंजी आदि संसाधनों का इष्टतम प्रयोग संभव हो पाता है। 

पूंजी निर्माण में सहायक 

उद्यमिता निष्क्रिय पूंजी को सक्रिय पूंजी में बदलकर पूंजी निर्माण में सहायता प्रदान करती है। 

विदेशी भुगतान संतुलन में सहायक 

उधमिता से निर्यात को बढ़ावा मिलता है आयात कम होता है जो भुगतान संतुलन में सहायक है। 

इस प्रकार उद्यमिता न केवल जीडीपी ग्रोथ में सहायक है बल्कि बेरोजगारी गरीबी कम करके पूंजी निर्माण को भी बढ़ावा देती है।

 

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