[उपसर्ग एवं प्रत्यय]
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जो शब्दांश मूल शब्दों के, पूर्व (पहले) में जुड़कर उनके अर्थ को बदल देते हैं या विशेषता ला देते हैं। उन्हें उपसर्ग कहते हैं।
जैसे:- ‘जय’ शब्द में परा उपसर्ग जुड़कर जय को पराजय में बदल देता है। यहां पर जय का अर्थ है -: जीतना किंतु जब उसमें ‘परा’ प्रत्यय जुड़ जाता है तो उसका अर्थ हो जाता है-: हार जाना।
उसी प्रकार ‘जय’ शब्द में ‘वि’ प्रत्यय जुड़कर विशेषता ला देता है क्योंकि जय का अर्थ होता है जीतना और विजय का अर्थ होता है विशेष जीत।
उपसर्ग के प्रयोग से मूल शब्द से तीन प्रकार के शब्द बनते हैं
विलोम शब्द
जैसे:- सत्य में’अ’उपसर्ग जोड़ने पर= असत्य।
मान में’अप’उपसर्ग जोड़ने पर= अपमान।
पर्यायवाची शब्द
जैसे:- परि+ भ्रमण= परिभ्रमण। भ्रमण का अर्थ होता है घूमना और परिभ्रमण का अर्थ होता है चारों ओर घूमना।
नि+ रोध= निरोध।
नई विशेषता वाले शब्द
जैसे-: अनु+ शासन= अनुशासन।
अधि + कार = अधिकार।
उपसर्ग की पहचान
उपसर्ग और मूल शब्द से जिस नवीन शब्द का निर्माण होता है उसका अर्थ उपसर्ग और मूल शब्द के अर्थ के समान होना चाहिए।
जैसे:-
कु+ लीन
कु का अर्थ होता है-: बुरा और लीन का अर्थ है-:मग्न होना।
अर्थात बुरा मग्न होना।
जबकि कुलीन का अर्थ है उच्च कुल का।
अतः कुलीन में ‘कु’उपसर्ग नहीं होगा।
उसी प्रकार दुकान में भी कोई उपसर्ग नहीं होगा।
क्योंकि ‘दु’का अर्थ है-: दो, और कान का अर्थ-:कान।
अर्थात 2 कान।
जब की दुकान का अर्थ है वह स्थान जहां पर वस्तुओं की बिक्री होती है।
जबकि पराजय में परा शब्द का अर्थ है उल्टा और जय का अर्थ है जीतना अर्थात जीत का उल्टा-: हारना। और पराजय का भी अर्थ है हारना
प्रमुख उपसर्ग
.)संस्कृत उपसर्ग
अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि ।
अति – अतिशय, ( अति का अर्थ अधिक होता है)
अधि – अधिपति, अध्यक्ष ,अध्यापन
अनु – अनुक्रम, अनुताप, अनुज; अनुकरण, अनुमोदन.
अप – अपकर्ष, अपमान; अपकार, अपजय.
अपि – अपिधान
अभि – अभिनंदन, अभिलाप अभिमुख, अभिनय
अव – अवगणना, अवतरण;अवगुण.
आ – आगमन, आदान; आकलन.
उत् – उत्कर्ष, उत्तीर्ण,
उप – उपाध्यक्ष, उपदिशा; उपग्रह, उपनेत्र
दुर्, दुस् – दुराशा, दुरुक्ति,
नि – निमग्न, निबंध निकामी,
निर् – निरंजन, निराषा
निस् –निष्फळ, निश्चल,
परा (परा का अर्थ कमी होता है) – पराजय,
परि – परिपूर्ण,परिश्रम, परिवार
प्र – प्रकोप, प्रबल
प्रति – प्रतिकूल, प्रतिच्छाया, प्रतिदिन, प्रतिवर्ष, प्रत्येक ( प्रति का अर्थ प्रत्येक या हर एक होता है।)
वि – विख्यात, विवाद, विफल, विसंगति (वि का अर्थ अधिक होता है।)
सम् – संस्कृत, संस्कार, संगीत, संयम, संयोग, संकीर्ण.
सु – सुभाषित, सुकृत, सुग्रास; सुगम, सुकर, स्वल्प;
सु – (अधिक) सुबोधित, सुशिक्षित।
2)हिंदी उपसर्ग–:
अ, अध, ऊन, औ, दु, नि, बिन, भर, कु, सु।
अ – अनेक
ऊन – उन्नति
अध – अधूरा, अधम
दु – दुश्मन, दुष्प्रभाव
नि – निर्भय, निराला
भर– भरपूर, भरा ( भर का अर्थ पूरा या भरा हुआ होता है)
कु – कुकर्म, कुशलता (कुकर्म में कु उपसर्ग गलत अर्थ हो दर्शाता है जबकि कुशलता अर्थ में कु उपसर्ग अच्छी और निपुणता को दर्शाता है)
सु – सुस्वागत, सुइच्छा ( सु का अर्थ अच्छा होता है)
इस प्रकार शब्द के आरंभ में हिंदी के उपसर्ग को लगाया जाता है। यह उपसर्ग लगाने के बाद शब्द के मूल अर्थ में परिवर्तन आ जाता है।
3)उर्दू-फारसी के उपसर्ग –:
अल, ऐन, कम, खुश, गैर, दर, ना, फ़िल्, ब, बद, बर, बा, बिल, बिला।
अल – अलविदा, अलबत्ता
कम – कमसिन, कमअक्ल, कमज़ोर
खुश – खुशबू, खुशनसीब, खुशकिस्मत, खुशदिल, खुशहाल, खुशमिजाज
ग़ैर ( गैर का अर्थ किसी चीज की मनाही होता है)- ग़ैरहाज़िर ग़ैरकानूनी ग़ैरवाजिब ग़ैरमुमकिन ग़ैरसरकारी, ग़ैरमुनासिब
दर – दरअसल दरहकीकत
ना – (अभाव) – नामुमकिन नामुराद नाकामयाब नापसन्द नासमझ नालायक नाचीज़ नापाक नाकाम
फ़ी – फ़ीसदी फ़ीआदमी
ब – बनाम, बदस्तूर , बमुश्किल , बतकल्लुफ़
बद – (बुरा)- बदनाम , बदमाश, बदकिस्मत,बददिमाग, बदहवास, बददुआ,
बर – (पर,ऊपर, बाहर) – बरकरार, बरअक्स ,बरजमां
बा – ( बा का अर्थ सहित होता है) – बाकायदा, बाकलम, बाइज्जत, बाइन्साफ, बामुलाहिजा
बिला -(बिला का अर्थ बिना होता है)- बिलावज़ह, बिलालिहाज़
बे – (बे का अर्थ बिना/ नहीं होता है) – बेबुनियाद , बेईमान , बेवक्त , बेरहम बेतरह बेइज्जत , बेअक्ल , बेकसूर, बेमानी, बेशक
ला -( ला का अर्थ बिना, नहीं होता है) – लापता , लाजबाब, लावारिस लापरवाह।
इस प्रकार उर्दू के उपसर्गों को शब्दों के आरंभ में जोड़कर एक नया शब्द बनाया जाता है। जिससे पुराने शब्द का अर्थ बदल जाता है।
प्रत्यय
जो शब्दांश मूल शब्दों के अंत में जुड़कर उसके अर्थ को बदल देते हैं या उसमें कोई विशेषता ला देते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं।
पढाई में = पढ़+ आई।
पढ़ाई में आई प्रत्यय है।
प्रत्यय के प्रकार-:
प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं
कृत प्रत्यय
तद्धित प्रत्यय
कृत प्रत्यय
वह प्रत्यय जो धातु(क्रिया का मूल रूप) के अंत में लगते हैं, उन्हें कृत प्रत्यय कहते हैं।
जैसे-:
शब्द | धातु | प्रत्यय |
सजावट | सज | आवट |
पढ़ाई | पढ़ | आई |
भूलक्कड़ | भूल | अक्कड़ |
मिलाप | मिल | आप |
उड़ान | उड़ | आन |
लिखकर | लिख | कर |
धातु-: क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं
जैसे:- पढ़ना की धातु है:- पढ़।
भूलना की धातु है:- भूल।
उड़ना की धातु है:- उड़।
तद्धित प्रत्यय:-
जो प्रत्यय संज्ञा सर्वनाम विशेषण आदि के साथ लगते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं
जैसे:-
शब्द | मूल शब्द | प्रत्यय |
भूखा | भूख | आ |
मिठाई | मीठा | आई |
घराना | घर | आना |
देवरानी | देव | रानी |
मीठास | मीठा | आस |