[ऋतु एवं वर्षा]
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Toggleऋतु:- -:
वर्ष का वह कालखंड जिसमें विशेष प्रकार की मशीन दिखाएं पाई जाती है उसे ऋतु कहते हैं।
जैसे:-शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु।
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ऋतु परिवर्तन के कारण:-
पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर एक निश्चित समयावधि के बाद ऋतुओं का परिवर्तन होता रहता है और ऋतु परिवर्तन के मुख्यत: दो कारण हैं:-
पृथ्वी का अपने अक्ष पर 23,½ झुका होना।
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा किया जाना।
ऋतु परिवर्तन की प्रक्रिया
पृथ्वी अपने अक्ष पर 23½ झुकी हुई है और लगातार सूर्य की परिक्रमा कर रही है परिणाम स्वरूप सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की स्थिति में लगातार परिवर्तन आता रहता है, जिसके कारण भिन्न-भिन्न समय में सूर्य की लंबवत किरणें कर्क और मकर रेखा के मध्य भिन्न अक्षांशो में पड़ती हैं। जिससे विभिन्न स्थानों की ऋतुओं में परिवर्तन होता है
वास्तविक तौर पर 21 मार्च और 23 सितंबर को सूर्य की लंबवत किरणें पृथ्वी की भूमध्य रेखा पर पड़ती हैं, अर्थात इस समय उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्ध में बराबर तापमान रहता है किंतु 21 मार्च से 23 सितंबर की समय अवधि के मध्य सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण सूर्य की लंबवत किरणें उत्तरी गोलार्ध में पड़ती है जिससे उत्तरी गोलार्ध का तापमान अधिक होता है अर्थात उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है,और दक्षिण गोलार्ध में शीत ऋतु होती है।
इसके विपरीत 23 सितंबर से 21 मार्च की समय अवधि के मध्य सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण सूर्य की लंबवत किरणें दक्षिणी गोलार्ध में पड़ती हैं जिससे दक्षिणी गोलार्ध का तापमान अधिक होता है अर्थात दक्षिणी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु ,एवं उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु होती है।
उत्तरायण:-21 मार्च से 23 सितंबर के मध्य की समय अवधि में सूर्य उत्तरी गोलार्ध में चमकता है जिससे उत्तरायण कहते हैं।
उत्तरायण के समय उत्तरी ध्रुव में हमेशा सूर्य का प्रकाश पहुंचता है इसीलिए यहां पर 6 महीने का दिन होता है।
दक्षिणायन:-23 सितंबर से 21 मार्च की समय अवधि के मध्य सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में चमकता है जिसे दक्षिणायन कहते हैं।
दक्षिणायन के समय दक्षिणी ध्रुव में हमेशा सूर्य का प्रकाश रहता है इसलिए यहां पर 6 महीने का दिन होता है।
उत्तर अयनांत:-21 जून को सूर्य कर्क रेखा में लंबवत चमकता है, जिसे उत्तर अयनांत कहते हैं। उत्तर अयनांत की स्थिति में कर्क रेखा में सबसे बड़ा दिन किंतु सबसे छोटी रात होती है।
दक्षिण अयनांत:-22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा में लंबवत चमकता है जिसे दक्षिण अयनांत कहते हैं। दक्षिण अयनांत की स्थिति में मकर रेखा में सबसे बड़ा दिन किंतु सबसे छोटी रात होती है।
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भारत में ऋतुएं:-
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में मुख्यत: 4 ऋतुएं पाई जाती है:-
ग्रीष्म ऋतु:- 15 मार्च से 15 जून तक ।
वर्षा ऋतु : – 16 जून से 15 सितंबर तक ।
शरद ऋतु : – 16 सितंबर से 15 दिसंबर तक ।
शीत ऋतु : – 16 दिसंबर से 14 मार्च तक ।
ग्रीष्म ऋतु:-
भारत में ग्रीष्म ऋतु का समय सामान्यतः मध्य मार्च से लेकर मध्य जून तक माना जाता है,
क्योंकि 21 मार्च के बाद सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन होने के कारण सूर्य की लंबवत किरणें उत्तरी गोलार्ध में पड़ने लगती हैं जिससे उत्तरी गोलार्ध का तापमान बढ़ने लगता है और चूंकि भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है अतः भारत का अभी तापमान बढ़ने लगता है और भारत में ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ हो जाती है जो मानसून आने तक रहती है।
वर्षा ऋतु:-
भारत में वर्षा ऋतु का समय सामान्यता मध्य जून से मध्य सितंबर तक माना जाता है। क्योंकि मध्य (21)जून के समय सूर्य की लंबवत किरणें कर्क रेखा पर पड़ती है परिणाम स्वरूप भारत के कर्क रेखीय क्षेत्र में निम्न दबाव बाली क्षेत्र का निर्माण होता है परिणाम स्वरूप अरब सागर क्षेत्र की दक्षिण पश्चिमी आद्रता युक्त हवाएं उत्तर पूरब की ओर बहती हुई भारत में वर्षा कराती हैं। और यह वर्षा ऋतु मध्य सितंबर तक रहती है।
शरद ऋतु:-
भारत में शरद ऋतु का समय सामान्यतः मध्य सितंबर से लेकर मध्य दिसंबर तक माना जाता है।
क्योंकि 21 सितंबर के बाद सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन होने के कारण सूर्य की लंबवत किरणें दक्षिणी गोलार्ध में पड़ने लगती हैं और उत्तरी गोलार्ध में सूर्य की किरने तिरछी पड़ने लगती है जिससे उत्तरी गोलार्ध का तापमान घटने लगता है और चूंकि भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है अतः भारत में शरद ऋतु प्रारंभ हो जाती है जो मध्य दिसंबर तक चलती है।
शरद ऋतु में भी दक्षिण भारत में लौटते मानसून की वर्षा हो जाती है।
शीत ऋतु:-
भारत में शरद ऋतु का समय सामान्यतः मध्य दिसंबर से लेकर मध्य मार्च तक माना जाता है।
क्योंकि, मध्य दिसंबर को सूर्य की लंबवत किरणें दक्षिणी गोलार्ध के मकर रेखा पर पड़ती हैं, जिस से उतरी गोलार्ध का तापमान बहुत ही कम हो जाता है और यहां पर शीत ऋतु गर्म होती है जो मध्य मार्च तक चलती है।
वर्षा एवं वर्षा का वितरण
जब वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प, के संघनन से निर्मित ,जलीय बूंदे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरातल पर गिरती हैं तो इस प्रक्रिया को वर्षा कहते हैं।
वर्षा के प्रकार:-
संवहनीय वर्षा
पर्वतीय वर्षा
चक्रवाती वर्षा
संवहनीय वर्षा:-
जब जलवाष्प युक्त गर्म एवं हल्की वायु संवहनीय धाराओं के रूप में उपर उठती है, और ऊपर तापमान में कमी होने पर ,जलवाष्प का संघनन होने लगता है तथा यह जलवाष्प संघनित होकर जलीय बूंदों में परिवर्तित हो जाती है और जब इन जलीय बूंदों का भार बढ़ जाता है तो गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरातल पर गिरती है जिससे वर्षा होती है इसे संवहनीय वर्षा कहते हैं।
अर्थात संवहनीय हवाओं के द्वारा जलवाष्प के संघनन से होने वाली वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं।
यह वर्षा मुख्यता भूमध्य सागरीय क्षेत्र में होती है।
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पर्वतीय वर्षा
जब गर्म एवं आद्र हवाएं क्षैतिज रूप से गतिशील होती हैं और उनके मार्ग में कोई ऊंचा पर्वत पठार आ जाता है तो वे हवाएं पवनाभिमुखी ढाल के सहारे ऊपर उठकर संघनित होकर वर्षा कराती हैं, इस प्रकार की वर्षा को पर्वतीय वर्षा कहते हैं।
अर्थात पर्वतीय ढाल के कारण जलवाष्प के संघनन से होने वाली वर्षा को पर्वतीय वर्षा कहते हैं।
यह वर्षा मुख्यतः पर्वतों के पवनाभिमुखी ढाल क्षेत्र में होती है।
चक्रवाती वर्षा
जब गर्म एवं आद्र वायुराशि और ठंडी एवं भारी वायुराशि आपस में मिलती है तो गर्म एवं आद्र वायुराशि ठंडी वायुराशि के ऊपर चढ़कर बादलों का निर्माण करती है परिणाम स्वरूप वर्षा होती है इस वर्षा को चक्रवाती वर्षा कहते हैं।
अर्थात गर्म एवं आद्र वायुराशि और ठंडी वायुराशि के मिलने से बने चक्रवात द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवाती वर्षा कहते हैं।
यह वर्षा मुख्यतः मध्य अक्षांशो के क्षेत्र में होती है।
कृत्रिम वर्षा:-
जब मानव , यांत्रिक तरीके से बादलों को वर्षा के अनुकूल बनाकर अप्राकृतिक वर्षा कराता है तो इसे कृतिम वर्षा कहते हैं।
कृत्रिम वर्षा के अंतर्गत जिस क्षेत्र में वर्षा करानी है उस क्षेत्र में वैज्ञानिकों द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि वहां के बादलों में 65% से अधिक सापेक्षिक आद्रता हो ( तभी वहां पर वर्षा कराई जा सकती है,) फिर उस क्षेत्र के बादलों में हवाई जहाज , मिसाइलों द्वारा आयोडीन या सूखी बर्फ या नमक का छिड़काव करके सापेक्षिक आद्रता 100% की जाती है जिससे जलवाष्प का संघनन होने लगता है वर्षा हो जाती है।
विश्व में वर्षा का वितरण:-
पृथ्वी पर औसतन रूप से वार्षिक वर्षा 100 सेंटीमीटर होती है। हालांकि ददरी के सभी स्थानों पर वर्षा का वितरण एक समान नहीं है बल्कि अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग मात्रा में वर्षा होती है।
सामान्यतः विश्व वित्तीय क्षेत्रों से द्रव्य क्षेत्रों की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है और महाद्वीप के पूर्वी तटों में पश्चिमी तटों की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है क्योंकि जलवाष्प युक्त पूर्वा आप अपने पूरब से पश्चिम की ओर चलती।
वार्षिक वर्षा की कुल मात्रा के आधार पर विश्व के वर्षा क्षेत्रों को निम्न भागों में बांटा गया है:-
200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र:-
इसके अंतर्गत मुख्यत:
भूमध्य रेखीय क्षेत्र,
मानसूनी प्रदेशों के तटीय क्षेत्र शामिल हैं।
100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र:-
इसके अंतर्गत मुख्यतः उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्ण कटिबंधीय महाद्वीपों के ऐसे आंतरिक भाग आते हैं जो तटों के निकट हो शामिल हैं।
50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र:-
इसके अंतर्गत मुख्यत
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के केंद्रीय भाग ,
शीतोष्ण कटिबंध क्षेत्रों के पूर्वी एवं आंतरिक भाग आते हैं।
निम्न वर्षा वाले क्षेत्र:-
इसके अंतर्गत ऐसे क्षेत्र आते हैं जहां पर 50 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है जैसे :-
उच्च अक्षांश क्षेत्र
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के पश्चिमी भाग ,
मरुस्थलीय भाग।
भारत में वर्षा-:
भारत में औसत वार्षिक वर्षा 125 सेंटीमीटर होती है, जिसमें से
75% वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून द्वारा जून से सितंबर के मध्य होती है।
13 % वर्षा उत्तर-पूर्वी मानसून द्वारा अक्टूबर से दिसंबर के मध्य होती है।
10% वर्षा उष्णकटिबंधीय पूर्वी चक्रवातों द्वारा अप्रैल-मई में होती है।
शेष 2% वर्षा पछुआ जेट हवा द्वारा उपोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों से शीत ऋतु में होती है।
भारत में वर्षा की प्रवृति
भारत के सभी स्थानों में एक समान बरसाना हो का अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग मात्रा में वर्षा होती है।
भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर, तथा दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा घटती जाती है। अर्थात पूर्व की तुलना में पश्चिम में और दक्षिण की तुलना में उत्तर में कम वर्षा होती है।
भारत में वर्षा की मात्रा में काफी विविधता पाई जाती है,
जहां एक और मेघालय के मानिसराम में 1100 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है, वहीं दूसरी ओर राजस्थान के बीकानेर, जैसलमेर ,लद्दाख के लेह क्षेत्रों में 25 सेंटीमीटर से भी कम वार्षिक वर्षा होती है।
भारत के प्रमुख वर्षा क्षेत्र:-
भारत में वर्षा के क्षेत्र को निम्न पांच भागों में बांटा जा सकता है:-
अत्यधिक वर्षा का क्षेत्र:-
जहां पर 250 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है, इसके अंतर्गत भारत का पश्चिमी घाट एवं मेघालय की पहाड़ियां आती है।
अधिक वर्षा का क्षेत्र:-
जहां पर 200 से 250 सेंटीमीटर के मध्य वर्षा होती है, इसके अंतर्गत पश्चिमी घाट का पूर्वी क्षेत्र , एवं पूर्वोत्तर राज्यों (असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश ,मिजोरम)का क्षेत्र आता है।
मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र:-
जहां पर 100 से लेकर 200 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है, इसके अंतर्गत पूर्वी तमिलनाडु, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, गंगा का मैदान एवं पूर्वी मध्य प्रदेश आता है।
न्यून वर्षा वाला क्षेत्र:-
जहां पर 50 सेंटीमीटर 100 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है।
इसके अंतर्गत जम्मू कश्मीर, पंजाब ,हरियाणा ,दिल्ली, पूर्वी राजस्थान ,पश्चिमी मध्य प्रदेश, पश्चिमी यूपी ,गुजरात, ढक्कन का पठार आता है।
अपर्याप्त वर्षा वाला क्षेत्र:-
जहां पर 50 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है
इसके अंतर्गत लद्दाख,पश्चिमी राजस्थान ,पश्चिमी महाराष्ट्र , तेलंगाना कर्नाटक का वृष्टि छाया क्षेत्र आता है। .
भारत में वर्षा की परिवर्तनशीलता:-
किसी क्षेत्र विशेष पर, किसी विशेष वर्ष में वर्षा की वास्तविक मात्रा का, औसतन वार्षिक वर्षा की तुलना में बहुत कम या अधिक होना,वर्षा की परिवर्तनशीलता कहलाती है। जो भारत के मानसून की एक प्रमुख विशेषता है अर्थात भारत में प्रत्येक वर्ष एक समान वर्षा नहीं होती, बल्कि औसतन वार्षिक वर्षा से, वास्तविक वार्षिक वर्षा की विचलनशीलता 10 से 60% तक पाई जाती है।
सामान्यतः भारत में वर्षा की परिवर्तनशील टाउन क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है जहां वर्षा की औसतन मात्रा कम होती है उदाहरण के लिए राजस्थान में।
जबकि अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों (मेघालय) में वर्षा की परिवर्तनशील तक कम पाई जाती है।
भारत में ग्रीष्म ऋतु में होने वाली विभिन्न वर्षा:-
आम्र वर्षा:-
केरल और कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून के पूर्व होने वाली ऐसी वर्षा जो आम को पकाने में सहायक होती है उसे आम्र वर्षा कहते हैं।
चेरीब्लास्म:-
कर्नाटक और केरल के क्षेत्र में मानसून के पूर्व होने वाली वर्षा जो कि काफी की खेती के लिए लाभदायक होती है उसे चेरीब्लास्म कहते हैं
काल बैसाखी:-
वैशाख माह में बंगाल में तीव्र हवाओं के साथ जो बारिश होती है उसे कालबैसाखी कहते हैं।
चाय वर्षा:-
असम के क्षेत्र में मानसून की पूर्व होने वाली वर्षा जो चाय की खेती के लिए लाभप्रद होती है उसे चाय वर्षा कहते हैं।
नॉर्वेस्टर:-
मानसून की पूर्व उत्तरी भारत में विशेषकर बिहार झारखंड पश्चिम बंगाल उड़ीसा के क्षेत्र में तेज हवाओं के साथ जो वर्षा होती है उसे नॉर्वेस्टर कहते हैं।