औद्योगिक विकास

औद्योगिक विकास 

उद्योग-:

वह व्यवसायिक संस्थान जहां व्यापक मात्रा में विक्रय हेतु वस्तुओं का उत्पादन होता है। 

विनिर्माण-:

कच्चे माल को उद्योगों द्वारा तैयार माल में परिवर्तित करने की प्रक्रिया। 

भारत में औद्योगिक विकास-:

भारत में उद्योगों का विकास व विस्तार प्राचीन सिंधु सभ्यता से ही होता आया है, प्राचीन काल में भारत में कपड़ा उद्योग, धातु उद्योग, शिल्प उद्योग तथा खाद्यान्न से संबंधित उद्योगों का बोलवाला रहा है। 

किंतु ब्रिटिश काल में औपनिवेशिक नीतियों से लघु उद्योगों का पतन हुआ, हालांकि बड़े स्तर के ब्रिटिश हितैषी उद्योगों का विस्तार हुआ जैसे-:

  • 1854 को मुंबई में, पहली कपड़ा मिल स्थापित की गई। 

  • 1855 को कोलकाता के पास हुगली में, प्रथम जूट मिल स्थापित की गई। 

  • 1874 को कुल्टी (पश्चिम बंगाल) में प्रथम लोह इस्पात कारखाना स्थापित किया गया। 

  • 1907 को जमशेदपुर (झारखंड) में टाटा आयरन एंड स्टील प्लांट स्थापित किया गया। 

स्वतंत्रता के बाद औद्योगिक विकास 

स्वतंत्रता के बाद के औद्योगिक विकास को मुख्य रूप से चार चरणों में विभाजित करके देखा जा सकता है-:

  1. प्रथम चरण(1951-65)-: इस चरण में तीन पंचवर्षीय योजनाओं का क्रियान्वयन हुआ, जिसमें दूसरी पंचवर्षीय योजना में पीसी महानलोबिस मॉडल द्वारा ,बड़े-बड़े उद्योगों का तीव्र गति से विस्तार हुआ तथा तृतीय पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक विकास पर 9% तक पहुंच गई। 

  2. द्वितीय चरण (1965-80)-: इस चरण में युद्ध एवं मंदी के कारण औद्योगिक विकास दर 4% में ही सिमट गई। 

  3. तृतीय चरण (1980-90)-: इस चरण में उदारवादी औद्योगिक नीतियों से पुनः औद्योगिक विकास में तीव्रता आई। 

  4. चतुर्थ चरण (1991 से वर्तमान)-: यह औद्योगिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण कल है इसमें एलजी सुधारो के माध्यम से औद्योगिक गति में विस्फोट आया, यही कारण है कि इस काल में हमारी जीडीपी में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान लगभग 30-31% तक पहुंच गया। 

औद्योगिक नीतियां -:

औद्योगिक विकास को नियमित, नियंत्रित एवं प्रोत्साहित करने हेतु बनाए जाने वाली आर्थिक नीतियां। 

  • औद्योगिक नीति 1948- 

    • यह नीति श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत की गई। 

    • इस नीति में भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप मिश्रित (पूंजीवादी+ समाजवादी)घोषित किया गया। 

    • इस नीति के तहत बड़े उद्योगों को 

    • सरकार के अधीन तथा छोटे उद्योगों को निजी क्षेत्र के स्वामित्व में रखा गया। 

    • उद्योगों को चार भागों में बांटा गया 

      • केंद्र सरकार की विशेषाधिकार वाले उद्योग-: रक्षा उद्योग,अंतरिक्ष उद्योग, परमाणु उद्योग ,रेलवे उद्योग। 

      • राज्य सरकार के नियंत्रण वाले उद्योग-: कोयला उद्योग, लोह इस्पात उद्योग, विमानन उद्योग, टेलीफोन उद्योग। 

      • सरकारी नियमन वाले निजी उद्योग-:  कागज उद्योग ,कपड़ा उद्योग, साइकिल उद्योग। 

      • निजी उद्योग। 

  • 1956 की औद्योगिक नीति-:

    • इस औद्योगिक नीति में भारी उद्योगों जैसे- मशीन निर्माण वाले उद्योगों पर बोल दिया गया। 

    • औद्योगिक संचालन हेतु लाइसेंस प्रणाली की शुरुआत की गई। 

    • उद्योगों को तीन भागों में बांटा गया 

      • अनुसूची A- इसमें सार्वजनिक क्षेत्र की 17 उद्योग शामिल किए गए। 

      • अनुसूची B- इसमें सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के 12 उद्योग शामिल थे 

      • अनुसूची C- इसमें निजी क्षेत्र के उद्योगों को शामिल किया गया। 

    • 1956 की औद्योगिक नीति के तहत ही 

    • भिलाई इस्पात कारखाना, छत्तीसगढ़ 

    • दुर्गापुर इस्पात संयंत्र, पश्चिम बंगाल 

    • राउरकेला संयंत्र,उड़ीसा  लगाया गया। 

  • 1980 की औद्योगिक नीति-: 

    • इस औद्योगिक नीति में नया उद्योग लगाने या पुराने उद्योग का विस्तार करने के लिए लाइसेंस के अनिवार्यता की गई। 

    • बैंकिंग क्षेत्र में 51% से अधिक विदेशी निवेश पर प्रतिबंध। 

    • प्रतियोगिता विभिन्न उद्योग पर प्रतिबंध। 

  • 1991 की औद्योगिक नीति-:

  • इस औद्योगिक नीति को एलपीजी के नाम से जाना जाता है। 

    • उदारीकरण हेतु-: 

      • एमआरटीपी की सीमा समाप्त की गई; 

      • केवल 18 उद्योगों छोड़कर अन्य उद्योगों के लिए लाइसेंस के अनिवार्यता समाप्त की गई। 

    • निजीकरण हेतु-: 

      • उद्योगों को अनारक्षित किया गया। 

      • चरणबद्ध उत्पादन की अनिवार्यता समाप्त की गई। 

    • वैश्वीकरण हेतु -: 

      • विदेश से निवेश की सीमा 51% तक बढ़ाई गई 

      • आयात निर्यात के परिमाणात्मक प्रतिबंधों को समाप्त किया गया। 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *