क्षेत्रीय असंतुलन

क्षेत्रीय असंतुलन

क्षेत्रीय असंतुलन का तात्पर्य अर्थव्यवस्था की उस भौगोलिक व आर्थिक स्थिति से है जिसमें कुछ क्षेत्रों का बहुत ज्यादा विकास हो जाता है जबकि कुछ क्षेत्र विकास के निम्न स्तर तक ही पहुंच पाते हैं।

जैसे -: भारत में तमिलनाडु केरल महाराष्ट्र दिल्ली गुजरात आदि क्षेत्रों का काफी ज्यादा विकास हुआ है जबकि झारखंड छत्तीसगढ़ बिहार ये कम विकसित क्षेत्र है।

क्षेत्रीय असंतुलन के सूचक

  • प्रति व्यक्ति आय-: जिस क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है वह विकसित क्षेत्र कहलाता है इसके विभिन्न क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय कम होती है वह पिछड़ा क्षेत्र कहलाता है

  • औद्योगीकरण-: जिस क्षेत्र में उद्योगों का विकास व विस्तार होता है वह विकसित क्षेत्र होता है इसके विपरीत जिस क्षेत्र में उद्योगों का काम विकास व विस्तार होता है वह पिछड़ा क्षेत्र होता है

  • साक्षरता-: साक्षरता भी विकसित क्षेत्र की पहचान करने में सहायक होती है जिस क्षेत्र में साक्षरता दर अधिक है वह अधिक विकसित क्षेत्र होता है इसके विपरीत

  • अधोसंरचना -: विकसित क्षेत्र में अधोसंरचना का पर्याप्त विकास होता है जबकि पिछड़े क्षेत्र में अधोसंरचना विकसित नहीं होती

क्षेत्रीय असंतुलन के प्रकार

वैश्विक क्षेत्रीय असंतुलन-: विश्व के दो देशों के मध्य आर्थिक विकास में पाई जाने वाली असमानता । जैसे -:अमेरिका दीक्षित राज है जबकि अफ्रीका पिछड़ा हुआ राष्ट्र

अंतर्राज्यीय क्षेत्रीय असंतुलन-: एक ही देश के 2 राज्यों के मध्य पाई जाने वाली आर्थिक विकास की असमानता।

जैसे -:गुजरात,महाराष्ट्र विकसित राज्य है जबकि झारखंड और बिहार पिछड़े हुए राज्य हैं.

अंतराराज्यीय क्षेत्रीय असंतुलन-: एक ही राज्य के 2 छात्रों के मध्य पाई जाने वाली आर्थिक विकास की असमानता।

जैसे मध्य प्रदेश में इंदौर भोपाल विकसित जिले है जबकि भिंड दतिया कम विकसित जिले है।

क्षेत्रीय असंतुलन के कारण

  • प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता  एवं इनका प्रयोग-: जिन क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन (जैसे खनिज वन संपदा नदी जलाशय आदि) ज्यादा मात्रा में होते हैं तथा उनका कुशलतम प्रयोग हो रहा होता है उन क्षेत्रों का तेजी से विकास होता है, इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में प्रार्थी संसाधनों की मात्रा सीमित होती है या कम होती है वे विकास की दौड़ में पीछे रह जाते हैं।

जैसे-: पश्चिम बंगाल में खनिज संसाधनों की मात्रा बिहार की तुलना में अधिक है अतः पश्चिम बंगाल बिहार की तुलना में विकसित राज्य।

  • औद्योगीकरण-: जिन क्षेत्रों में प्राथमिक क्षेत्र की तुलना में विनिर्माण क्षेत्र अर्थात औद्योगिक क्षेत्र का अधिक विकास एवं विस्तार होता है उस क्षेत्र का तेजी से विकास होता है इसके विपरीत क्षेत्र में केवल प्राथमिक क्षेत्र विकसित होता है उस क्षेत्र का  विकास कम होता है

जैसे-: मुंबई मद्रास गुजरात के क्षेत्र में औद्योगिक विकास प्रगति से हुआ आता है बे अधिक विकसित हैं।

  • अधोसंरचना का विकास-: जिन क्षेत्रों में परिवहन का जुड़ाव, ऊर्जा की पूर्ति जैसी सुविधाएं अधिक विकसित होती हैं उन क्षेत्रों में विदेशी निवेश पर्याप्त मात्रा में होता है जिससे रोजगार का सृजन होता है और वहां का विकास तेज गति से होता है इसके विपरीत कम अधोसंरचना वाले क्षेत्र में कम विकास होता है

जैसे-: महाराष्ट्र  केरल तमिलनाडु के क्षेत्र ने हवाई अड्डा रेल सेवा तथा बंदरगाह की भी सेवा है इसलिए वहां का विकास पूर्वी राज्यों की तुलना में अधिक हुआ है।

  • कुशल जनसंख्या-: जिन क्षेत्रों की जनसंख्या पढ़ी-लिखी एवं कुशल होती है उन क्षेत्रों का विकास तीव्र गति से होता है इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में अनपढ़ तथा अंधविश्वासी रूढ़ीवादी जनसंख्या होती है उन क्षेत्रों का विकास कम होता है

जैसे दिल्ली एवं केरल की जनसंख्या पढ़ी-लिखी एवं कुशल है अतः वहां का विकास अधिक हुआ है जबकि बिहार की साक्षरता  दर कम है अतः बिहार का विकास कम हुआ है

  • उपजाऊ भूमि-: जिन क्षेत्रों में उपचार एवं समतल भूमि होती है उन क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता अधिक होती परिणाम स्वरुप वहां का विकास तेज गति से होता है इसके विपरीत कम उपजाऊ तथा उबेर खबर कृषि भूमि के क्षेत्र में विकास कम होता है

जैसे-: पंजाब तथा गंगा के क्षेत्र का इलाका अधिक विकसित है जबकि हिमाचल प्रदेश एवं पश्चिमी राजस्थान कम विकसित है

क्षेत्रीय असंतुलन के प्रभाव

लाभदायक प्रभाव

क्षेत्रीय असंतुलन आर्थिक विकास के लिए लाभदायक भी है, क्योंकि क्षेत्रीय असंतुलन से विकसित क्षेत्रों में पूर्ति का माहौल बनता है और अविकसित क्षेत्रों में अत्यधिक मांग का माहौल बनता है परिणाम स्वरूप विकसित क्षेत्रों को अपनी वस्तुएं बेचने के लिए अविकसित क्षेत्रों का व्यापक बाजार प्राप्त हो जाता है तथा अविकसित क्षेत्र के लोगों को विकसित क्षेत्र से आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध हो जाती है।

और अर्थव्यवस्था का विकास होता है

हानिकारक प्रभाव

  • आय की असमानता मैं बढ़ोतरी-: विकसित क्षेत्रों की लोगों की आय लगातार बढ़ती जाती है जबकि पिछड़े हुए क्षेत्रों की लोगों की आय उतनी नहीं बढ़ती जितनी कि विकसित क्षेत्र के लोगों की बढ़ती है, परिणाम स्वरूप आर्थिक असमानता बढ़ती जाती है

  • क्षेत्रीय संघर्ष क्षेत्रीय असंतुलन से विकसित क्षेत्र और भी विकसित होता जाता है जबकि बिछा हुआ क्षेत्र और भी पिछ्रता जाता है परिणाम स्वरूप पिछड़े क्षेत्र के लोग विकसित क्षेत्र से अपने आपको अलग समझने लगते हैं और उनमें क्षेत्रवाद की भावना विकसित होती है जो बाद में नए राज्य की मांग में बदल जाती है।

  • पलायन की समस्या-:पिछड़े क्षेत्र के लोग रोजगार प्राप्ति शिक्षा स्वास्थ्य आदि की तलाश में विकसित क्षेत्र में पलायन कर जाते है

  • अनैतिकता में वृद्धि क्षेत्रीय असंतुलन के कारण विकसित क्षेत्र के निवासियों की आय अत्यधिक बढ़ जाती है परिणाम स्वरूप वे विलासिता पूर्ण वस्तुओं का उपयोग करने लगते हैं इनमें चरित्र हीनता बढ़ने लगती है। तथा पिछड़े क्षेत्र के लोग धन प्राप्ति के लिए चोरी डकैती वेश्यावृत्ति में संलग्न हो जाते हैं परिणाम स्वरूप दोनों और नैतिक पतन होता है।

  •  पर्यावरण प्रदूषण-: विकसित क्षेत्रों में अत्यधिक पूंजी निवेश अत्यधिक उत्पादन अत्यधिक औद्योगिकरण का चक्र लगातार चलता रहता है परिणाम स्वरूप वहां के संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है जिससे वहां पर्यावरण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है जिसका परिणाम अविकसित क्षेत्र के लोगों को भी भुगतना पड़ता है।

क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने के उपाय

  • सरकार द्वारा पिछड़े क्षेत्रों में वहां की परिस्थितियों के अनुकूल उद्योगों का विकास हुआ विस्तार किया जाए

  • कम विकसित क्षेत्रों को परिवहन से जोड़ा जाए

  • कम विकसित क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा आदि का विस्तार किया जाए ताकि वहां की जनसंख्या कुशल जनसंख्या बने और अपने क्षेत्र का विकास कर सके।

  • पिछड़े क्षेत्रों में जाति प्रथा छुआछूत सांप्रदायिक दंगों के विरुद्ध जागरूकता फैलाकर समाप्त किया जाए

  • नदी जोड़ो परियोजना के माध्यम से  बुंदेलखंड जैसे पिछड़े क्षेत्रों की कृषि उत्पादकता विकास किया जाए ताकि लोगों की आय अधिक हो पराए अधिक होने से भी अधिक निवेश करें और वहां भी औद्योगीकरण का विकास हो।

  • लघु सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योगों का विकास किया जाए क्योंकि यह पिछड़े क्षेत्रों के उद्योग होते हैं

  • सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम ,पहाड़ी क्षेत्र कार्यक्रम, रेगिस्तानी क्षेत्र कार्यक्रम, आदि के माध्यम से पिछड़े क्षेत्रों का विकास किया जाए

इस दिशा में केंद्र सरकार ने सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम (1973),

 पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम (1974), मरुभूमि विकास कार्यक्रम 1977

ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्र के लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए 1989 में जवाहर रोजगार योजना की शुरुआत की गई

जो इस दिशा में उल्लेखनीय कदम है।

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