ग्लोबल पोजीशन सिस्टम

ग्लोबल पोजीशन सिस्टम

ग्लोबल पोजीशन सिस्टम विज्ञान की वह आधुनिक तकनीक है जिसके द्वारा वैश्विक धरातल के किसी भी स्थान पर स्थित या गतिमान, वस्तु की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। 

अर्थात इस प्रणाली से यह पता लगाया जा सकता है कि संबंधित वस्तु(जिसमें जीपीएस रिसीवर लगा हो) कहां पर कितनी ऊंचाई में स्थित है या किस दिशा में गति कर रही है?

ग्लोबल पोजीशन सिस्टम के घटक-:

ग्लोबल पोजीशन सिस्टम में मुक्ता तीन घटकों का उपयोग किया जाता है

  • जीपीएस सिगनल भेजने वाले सेटेलाइट- ये पृथ्वी का चक्कर लगाते हुए, लगातार अपनी स्थिति का सिग्नल पृथ्वी को भेजते रहते हैं। जीपीएस सैटेलाइट geostationary Earth orbit  या middle-earth orbit में स्थापित किए जाते हैं। 

और किसी भी वस्तु (जिसमें जीपीएस रिसीवर लगा हो) की 2-D (अक्षांशीय एवं देशांतरीय) स्थिति का पता लगाने के लिए न्यूनतम 3 उपग्रहों की आवश्यकता होती है, और 3-D(अक्षांश, देशांतर एवं ऊंचाई) स्थिति का पता लगाने के लिए न्यूनतम 4 उपग्रहों की आवश्यकता होती है। 

तथा पूरी पृथ्वी के धरातल क्षेत्र की स्थिति को खबर करने के लिए 24 सैटेलाइट की आवश्यकता होती है।

  • एटॉमिक क्लॉक- एटॉमिक क्लॉक सेटेलाइट एवं रिसीवर दोनों में लगी होती है। यह क्लॉक सेटेलाइट से छोड़े गए सिग्नल और रिसीवर को प्राप्त सिग्नल में लगने वाले समय अंतराल के आधार पर रिसीवर से सेटेलाइट के बीच की दूरी बताती है,  

  • सिग्नल ग्रहण करने वाले रिसीवर- ये जीपीएस सेटेलाइट के सिग्नल को ग्रहण करके एटॉमिक क्लॉक द्वारा स्वयं से सेटेलाइट की दूरी का पता लगाकर अपनी स्थिति का निर्धारण करते हैं

ग्लोबल पोजीशन सिस्टम की कार्यप्रणाली-:

ग्लोबल पोजीशन सिस्टम में किसी भी धरातलीय वस्तु(जिसमें जीपीएस रिसीवर लगा हो) की स्थिति ट्रायलिटिरेशन प्रणाली द्वारा ज्ञात की जाती है, जिसके अंतर्गत संबंधित धरातलीय वस्तु नजदीक के न्यूनतम 3 जी पी एस सेटेलाइट से सिग्नल प्राप्त करके, सेटेलाइट की स्थिति एवं दूरी के आधार पर अपनी स्थिति का निर्धारण कर पाती है। 

और संबंधित वस्तु से सैटेलाइटों की दूरी करने का दूरी एवं स्थिति का निर्धारण सेटेलाइट एवं रिसीवर में लगी एटॉमिक क्लॉक द्वारा होता है। 

. ग्लोबल पोजीशन सिस्टम की कार्यप्रणाली-:

जीपीएस सिस्टम के उपयोग-:

वर्तमान में जीपीएस नेविगेशन सिस्टम का व्यापक मात्रा में कई रूपों में प्रयोग हो रहा है जिसका विवरण निम्नलिखित है

  • मोबाइल के माध्यम से स्वयं की स्थिति जानने में। 

  • किसी स्थान या मार्ग की दूरी तथा स्थिति का पता लगाने में। 

  • विभिन्न वाहनों जैसे सड़क के वाहनों , रेल,वायुयानों, जलयानो को ट्रैक करने में। 

  • मोबाइल के माध्यम से किसी अपराधी की स्थिति को ट्रैक करने में। 

  • नदी या सड़क आदि का डिजिटल मानचित्र तैयार करने में। 

  • आपदा के समय मलबे में दबे लोगों का पता लगाया जा सकता है। 

  • युद्ध के समय सैनिकों को युद्ध से संबंधित सामरिक जानकारी देने में सहायक होती है। 

जीपीएस प्रणाली का विकास-:

विश्व में सर्वप्रथम जीपीएस सिस्टम की शुरुआत 1973 को अमेरिका द्वारा सैन्य क्षेत्र में की गई थी, जिसे 1995 को पूरे विश्व के लिए आम नागरिकों के लिए खोल दिया गया। अमेरिका की जीपीएस प्रणाली पूरे विश्व को कवर करती है अर्थात उसके जीपीएस सिस्टम द्वारा विश्व के किसी भी स्थान पर स्थित या गतिमान जीपीएस रिसीवर युक्त वस्तु की स्थिति ज्ञात की जा सकती है।

अमेरिकी जीपीएस सिस्टम में 33 उपग्रह कार्यरत हैं, जिसमें से 24 सदैव सक्रिय रहते हैं तथा शेष रिजर्व जीपीएस उपग्रह हैं। 

अमेरिका के जीपीएस सिस्टम के अलावा अन्य जीपीएस सिस्टम भी कार्यरत् है जैसे-

  • रूस का GLONASS जीपीएस सिस्टम। 

  • यूरोप का Galileo जीपीएस सिस्टम। 

  • चीन का बेईदु नेवीगेशन सिस्टम। 

  • भारत का क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम-: नाविक। 

भारत का क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम-: “नाविक”

भारत की जीपीएस प्रणाली अर्थात नाविक, भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा विकसित भारत की स्वायत्त क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली है,

विकास-:

दरअसल में इस प्रणाली का विकास 1999 के कारगिल युद्ध के समय अमेरिका द्वारा अपनी जीपीएस सिस्टम की सूचना भारतीय सैनिकों को ना देने की प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ,

वर्तमान में भारत की इस जीपीएस प्रणाली को सक्रिय बनाने के लिए इसरो द्वारा IRNSS(इंडियन रीजनल नेविगेशन सिस्टम सैटेलाइट) श्रंखला के 7 उपग्रह अंतरिक्ष की भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किए गए हैं जो कार्यरत हैं। अतः अब शीघ्र ही भारत की यह जीपीएस सुविधा सक्रिय होने वाली है। 

जिसके द्वारा भारत तथा भारत की भौगोलिक सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के क्षेत्र को जीपीएस सुविधा प्रदान की जाएगी। 

भारत के जीपीएस सेटेलाइट अर्थात IRNSS पीएसएलवी(PSLV) राकेट द्वारा ही भू-स्थैतिक कक्षा में भेजे जाते हैं। 

.भारत का क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम-: "नाविक"

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