चक्रवात एवं इसके प्रकार तथा प्रभाव

[चक्रवात]

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चक्रवात दो शब्दों से मिलकर बना है -: चक्र + वात। अर्थात सामान्य अर्थों में चक्रवात का अर्थ है चक्कर लगाती हुई वायु। 

वास्तव में चक्रवात निम्न वायुदाब वाला वह केंद्र होता है, जिसमें चारों ओर की अपेक्षाकृत अधिक वायुदाब वाली हवाएं तीव्रता के साथ चक्कर लगाती हुई सकेंद्रित होती है। 

कोरिओलिस बल के कारण -:

उत्तरी गोलार्ध के चक्रवातों की हवाएं , घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत दिशा में घूमती है। 

जबकि दक्षिणी गोलार्ध के चक्रवात की हवाएं घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप ही घूमती हैं। 

चक्रवातों की उत्पत्ति हेतु आवश्यक बल-: 

दाब प्रवणता बल-: दाब प्रवणता के कारण ही, हवाएं गति करती है चक्रवात की उत्पत्ति के लिए यह बल अनिवार्य रूप से आवश्यक होता है क्योंकि दाब प्रवणता के कारण ही तो चक्रवातों में हवाएं केंद्र की ओर सकेंद्रित होती है। 

कोरिओलिस बल-: इस बल के कारण ही चक्रवातों में पवने उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप चक्कर लगाती हैं। 

अभिकेंद्रीय बल-: यह बल चक्रवातों की लगातार गति हेतु आवश्यक होता है। 

चक्रवातों का आकार अंग्रेजी के अक्षर “V”के समान होता है। 

चक्रवात ओं के प्रकार-: 

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात

  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

उष्णकटिबंधीय चक्रवात-: 

सामान्यता उष्णकटिबंधीय चक्रवात कर्क रेखा और मकर रेखा के मध्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं , इसलिए इन्हें उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है, हालांकि चक्रवात 5 डिग्री उत्तरी अक्षांश से लेकर 5 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के मध्य उत्पन्न नहीं होते हैं क्योंकि यहां पर कोरिओलिस बल का प्रभाव बहुत ही कम होता है। 

अर्थात दोनों गोलार्धों में 5 डिग्री से लेकर 35 डिग्री  अक्षांश जो कि मध्य उत्पन्न होने वाले चक्रवात उस कटिबंधीय चक्रवात कहलाते हैं। 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति हेतु अनुकूलतम दशाएं-: 

27 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाली वृहत समुद्री सतह होनी चाहिए। 

  • वहां पर कोरिओलिस बल प्रभावी  होना चाहिए। 

  • तथा गर्म एवं आद्र वायु की निरंतर आपूर्ति होनी चाहिए। 

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति की प्रक्रिया -:

सामान्यतः पृथ्वी के ऐसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र जहां पर आईटीसीजेट का निर्माण होने से वहां का तापमान उच्च एवं वायुदाब निम्न होता है, परिणाम स्वरूप निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र में चारों तरफ की अपेक्षाकृत उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र की हवाएं घूमती हुई सकेंद्रित होती है जिससे छोटी सी भमर का निर्माण होता है, किंतु जब इस भमर को लगातार गर्म एवं आद्र वायु की पूर्ति होती जाती है तो यह भमर ,चक्रवात का रूप ले लेती है परिणाम स्वरूप चक्रवात की उत्पत्ति होती है। 

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संरचना-: 

चक्रवात की आंख-: 

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात ओं का वह गोलाकार केंद्र जहां पर हवाओं का अवतरण होता है उसे चक्रवात की आंख या चक्षु कहते हैं। 

  • चक्रवात की आंख का व्यास सामान्यतः 30 किलोमीटर से 60 किलोमीटर तक होता है।

  • यह मेघ रहित शांत क्षेत्र होता है। 

चक्षु भित्ति-: 

  • उष्णकटिबंधीय चक्षु के चारों ओर चक्षु भित्ति पाई जाती है। जहां पर वायु का प्रबल एवं वृत्ताकार आरोहण होता है। 

  • यह सर्वाधिक सक्रिय भाग होता है। 

  • क्योंकि इस भाग में हवाओं की अधिकतम गति होती है लगभग 250 किलोमीटर प्रति घंटा। तथा इस भाग में वायु का अत्यधिक संवहन होने से बदल फटने जैसी विनाशकारी घटना घटित होती है। 

आंतरिक वलय-: 

  • चक्षु भित्ति के चारों ओर पाया जाता है, यहां पर चक्षु भित्ति की तुलना में अपेक्षाकृत कम हवाएं चलती हैं। 

  • यहां पर ही कपासी बादल बनते हैं। 

बाह्य वलय-: 

  • यह चक्र बातों का सबसे बाहरी भाग होता है 

  • जो किसी भी स्थान में चक्रवात आगमन की सूचना देता है

.उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संरचना

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र-: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की अधिकतम आवृत्ति पूर्वी चीन सागर में देखने को मिलती है, इसके अलावा उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की अन्य प्रमुख केंद्र निम्नलिखित हैं-: 

  • कैरिबियन सागर

  • हिंद महासागर

  • फिलीपींस सागर

  • जापान सागर

  • उत्तरी ऑस्ट्रेलिया। 

उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवातों का नामकरण-: 

रीजनल एरिया – 5 ट्रापिकल साइक्लोन कमेटी तथा इसके अधीन कार्य करने वाली रीजनल स्पेसिफिक मेट्रोलॉजिकल सेंटर(RSMC), दिल्ली द्वारा दक्षिण एशियाई क्षेत्र में आने वाले चक्रवातों का नामकरण किया जाता है। 

चक्रवातों नामकरण करने से संबंधित लाभ 

  • संख्याओं की तुलना में नाम याद रखना ज्यादा आसान है। 

  • स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया को नए नामों द्वारा रिपोर्ट तैयार करना आसान होता है। 

  • जब एक ही क्षेत्र में अनेकों चक्रवात आते हैं तो बिना भ्रमित हुए नामों द्वारा उनकी पहचान आसानी से की जा सकती है। 

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात-:

दोनों गोलार्ध में 43 डिग्री से 65 डिग्री अक्षांश के मध्य पछुआ पवन और ध्रुवीय पवनों की चक्रीय गति के से उत्पन्न होने वाले चक्रवात शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहलाते हैं। 

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का जीवन चक्र-: 

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात ओं की उत्पत्ति उस क्षेत्र में होती है जहां ध्रुवीय क्षेत्र से आने वाली ठंडी वायुराशि और उपोष्ण क्षेत्र से आने वाली गर्म वायुराशि के अभिसरण से वाताग्र बनते हैं, बाद में यह वाताग्र विकसित होकर शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का रूप ले लेते हैं। 

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का जीवन चक्र

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात ओं की उत्पत्ति से लेकर अवसान तक के इतिहास को चक्रवातों का जीवन चक्र कहते हैं जिसे हम निम्न 6 अवस्थाओं में समझ सकते हैं। 

प्रथम अवस्था-:

प्रथम अवस्था में उपोष्ण क्षेत्र से आने वाली ठंडी हवाएं तथा ध्रुवीय क्षेत्र से आने वाली गर्म हवाएं एक दूसरे के समांतर बहती हैं जिससे स्थाई वाताग्र का निर्माण होता है। 

.प्रथम अवस्था-:

द्वितीय अवस्था-: 

इस अवस्था में गर्म हवाएं तो ठंडी हवाएं एक दूसरे के प्रदेशों में प्रविष्ट हो जाती हैं जिससे लहर नुमा बताकर का निर्माण होता है,

.द्वितीय अवस्था-: 

तृतीय अवस्था-: ‌

इस अवस्था में शीत वाताग्र एवं उष्म वाताग्र का निर्माण होता है, एवं Vआकार के चक्रवात का निर्माण होता हैं।

.तृतीय अवस्था-: ‌

चतुर्थ अवस्था-: 

इस अवस्था में शीत वाताग्र तेजी से आगे बढ़ कर उषण वाताग्र को ऊपर की ओर धकेल देता है तथा उष्ण वाताग्र का क्षेत्र संकुचित हो जाता है। 

चतुर्थ अवस्था-: 

पंचम अवस्था-: 

इस अवस्था में चक्रवात का अवसान प्रारंभ हो जाता है। 

पंचम अवस्था-: 

षष्टम अवस्था-: 

इस अवस्था में उष्ण वाताग्र पूरी तरह से लुफ्त होकर साधारण वायुराशि का रूप ले लेता है और चक्रवात का अंत हो जाता है। 

षष्टम अवस्था-: 

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात ओं की उत्पत्ति के प्रमुख केंद्र-: 

  • उत्तर पश्चिम अटलांटिक महासागर

  • एशिया के उत्तर पूर्वी भाग

  • शीत ऋतु में भूमध्य सागरीय क्षेत्र।

 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात और उपोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में अंतर-‘

उत्पत्ति-: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति समुद्री सतह में संवहन क्रिया के दौरान होती है,

जबकि शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात ओं की उत्पत्ति वाताग्र निर्माण क्रिया के दौरान होती है। 

धरातलीय स्थान-: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात केवल समुद्री सतह में ही उत्पन्न हो सकते हैं स्थल में नहीं। 

जबकि शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात जल और थल दोनों स्थल में उत्पन्न हो सकते हैं। 

अक्षांशीय स्थिति-: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात हमेशा 8 डिग्री से 30 डिग्री होती तथा दक्षिणी गोलार्ध में बनते हैं जबकि शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात 45से 65डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश में बनते हैं 

दिशा-: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते हैं क्योंकि यह पूर्वा के प्रभाव से बनते हैं।

जबकि शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात पश्चिम से पूर्व की ओर गति करते हैं क्योंकि इनमें पशुआ अपनों का अधिक प्रभाव रहता है। 

हवा की गति-: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में लगभग 80से120mb दबा़ंतर पाया जाता है, अतः इनकी हवाओं की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा से 400 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है। 

जबकि शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में लगभग 20 से लेकर 40mb दबांतर पाया जाता है अतः इन चक्रवातों की हवाओं की गति 40से 50 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। 

आकार-: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का व्यास लगभग 80 से 300 किलोमीटर तक होता है। तथा इनकी ऊंचाई लगभग12 किलोमीटर होती है। 

जबकि शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का व्यास लगभग 1000 किलोमीटर से 2000 किलोमीटर तक होता है लेकिन इनकी ऊंचाई 6 से 8 किलोमीटर तक होती है। 

क्या कारण है कि उष्णकटिबंधीय चक्रवात ओं की उत्पत्ति हमेशा पश्चिमी तट में होती है?

हां यह कथन सत्य है कि अधिकांशत उष्णकटिबंधीय चक्रवात ओपन निर्माण महासागरों के पश्चिमी भाग में होता है जैसे अटलांटिक महासागर के पश्चिम भाग के दिन सागर में प्रशांत महासागर के पश्चिम भाग जापान तथा चीन सागर में। 

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पूर्वा पवने पूरब से पश्चिम की ओर चलती हैं जिनके प्रभाव से समुद्र की ऊपरी गर्म परत महासागरों की पश्चिम भाग में एकत्रित हो जाती है, परिणाम स्वरूप पश्चिमी भाग में उच्चतम एवं निम्नतम का क्षेत्र बनता है जिससे पश्चिम भागों में चक्रवातों की उत्पत्ति होती है

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को नियंत्रित करने के उपाय-: 

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति उच्च ताप तथा निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र में चारों तरफ की वायु के संकेंद्रित होने से होती है, अतः उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का अंत करने के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के निम्न दाब वाले क्षेत्र में यदि पहले से ही सिल्वर आयोडीन जैसे पदार्थ डालकर तापमान को कम तथा दाब को उच्च कर दिया जाए तो उस क्षेत्र में चक्रवात नहीं आएंगे। 

टॉरनेडो-: 

यह सर्वाधिक सक्रिय उष्णकटिबंधीय चक्रवात है जिसका सर्वाधिक विनाशकारी प्रभाव अमेरिका में देखने को मिलता है। 

इस चक्रवात कि में हवाओं की गति 800 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है। 

प्रतिचक्रवात-: 

प्रतिचक्रवात उच्च वायुदाब का वह क्षेत्र होता है जिसमें हवाएं केंद्र से परिधि की ओर चलती हैं। 

प्रतिचक्रवात ओं की दिशा उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुईयों के अनुकूल तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुईयों के विपरीत होती है। 

.प्रति चक्रवात

 

धरातल में प्रति चक्रवात के क्षेत्र-: 

  • 30 से 35 डिग्री अक्षांश उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्ध। 

  • उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र।

प्रतिचक्रवातों की विशेषताएं-: 

  • प्रति चक्रवात चक्रवात के बाद आते हैं

  • प्रतिचक्रवात बाली क्षेत्र में मौसम मेघ रहित साफ होता है वहां वर्षा नहीं होती। 

  • प्रतिचक्रवातों का व्यास चक्र बातों की उपेक्षा बहुत बड़ा होता है। 

  • प्रतिचक्रवात चक्रवातों की तुलना में एक ही स्थान पर लंबे समय तक रहते हैं।

वायुदाव पेटियां -:

 .वायुदाव पेटियां -:

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