शैल (rocks)-:
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Toggleविभिन्न खनिजों से मिलकर बने ऐसे ठोस प्राकृतिक पदार्थ जो भूपटल का निर्माण करते हैं उन्हें शैल कहते हैं।
शैल ग्रेनाइट की भांति कठोर तथा चीका मिट्टी की भांति मुलायम हो सकते हैं।
पृथ्वी के भूपटल में मुख्यतः निम्न खनिज पाए जाते हैं-:
ऑक्सीजन (46%)
सिलीकान (27%)
एलुमिनियम (8%)
लोहा
कैल्शियम
सोडियम
पोटेशियम
मैग्नीज।
हमारे भू-पटल का लगभग 98% भाग इन्हीं खनिजों से मिलकर बना।
शैल के प्रकार-:
आग्नेय शैल
अवसादी शैल
कायांतरित शैल
आग्नेय शैल-:
आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के “इग्निस”शब्द से हुई है जिसका अर्थ है -:आग।
अर्थात आग्नेय चट्टाने वे चट्टाने हैं जो आग के समान लावा के ठंडे होकर जमने से बनती हैं।
जैसे- ग्रेनाइट, बेसाल्ट चट्टान, रायोलाइट चट्टाने, गैब्रो चट्टानें।
इन्हें प्राथमिक शैल भी कहा जाता है।
आग्नेय शैल की विशेषताएं-:
आग्नेय चट्टाने अवसादी चट्टानों की अपेक्षाकृत कठोर एवं ठोस चट्टाने होती हैं।
इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाए जाते क्योंकि एक आग के समान गर्म लावा से निर्मित होती हैं।
आग्नेय चट्टाने परतहीन एवं रंध्रहीन होती हैं।
इन चट्टानों का स्वरूप क्रिस्टलीय होता है। यदि लावा धीरे-धीरे ठंडा होकर जमता है तो इन चट्टानों में बड़े बड़े क्रिस्टल होते हैं अन्यथा छोटे-छोटे।
इन चट्टानों में धात्विक खनिजों के भंडार होते हैं अर्थात धातु की मात्रा अधिक होती है।
यह चट्टाने मुख्यतः ज्वालामुखी क्षेत्र में पाई जाती है।
आग्नेय चट्टानों के प्रकार-:
स्थिति के आधार पर-: अंतर्वेदी चट्टाने और बहिर्वेदी चट्टाने।
रासायनिक संरचना के आधार पर -: अम्लीय चट्टाने छारीय चट्टाने।
अंतर्वेधी चट्टानें-:
धरातल के अंदर ही मैग्मा के ठंडे होकर जमने से जिन चट्टानों का निर्माण होता है उन्हें अंतर्वेधी चट्टाने कहते हैं।
जैसे -: बेथोलिथ चट्टानें।
अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों के प्रकार-:
बेथोलिथ चट्टाने-: जब धरातल के अंदर ही मैग्मा के ठंडे होने से गुंबद के आकार आग्नेय चट्टाने बनती हैं, तो उन्हें बेथोलिथ आग्नेय चट्टानें कहते हैं।
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लेकोलिथ चट्टाने-: जब धरातल के अंदर ही मैग्मा के ठंडे होने से उत्तल लेंस की आकृति की भांति आग्नेय चट्टाने बनती है तो उन्हें लेकोलिथ चट्टाने कहते हैं।
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लेपोलिथ चट्टाने-: जब धरातल के अंदर ही मैग्मा की ठंडे होने से अवतल लेंस की आकृति की भांति आग्नेय चट्टाने बनती हैं तो उन्हें लैपोलिथ चट्टानें कहते हैं।
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फैकोलिथ चट्टाने-: जब धरातल के अंदर ही मैग्मा के ठंडे होने से लहरदार आकृति की आग्नेय चट्टान बनती हैं तो उन्हें फैकोलिथ कहते हैं।
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- डाइक आग्नेय चट्टाने-: धरातल के अंदर ही मेग्मा के ठंडे होने से बनने वाली, लंबवत या तिरछी आकृति की चट्टाने।
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बहिर्वेधी चट्टाने-:
धरातल के बाहर लावा के ठंडे होने से जिन चट्टानों का निर्माण होता है उन्हें बहिर्वेधी चट्टानें कहते हैं।
इन चट्टानों में अपेक्षाकृत छोटे-छोटे रवे पाए जाते हैं क्योंकि लावा, धरातल के बाहर तीव्र गति से ठंडा हो जाता है।
जैसे-: रायोलाईट चट्टाने, बेसाल्ट चट्टाने।
अम्लीय चट्टाने-:
ऐसी आग्नेय चट्टाने जिनमें सिलिका की मात्रा 65% से अधिक पाई जाती है उन्हें अम्लीय चट्टानें कहते हैं।
विशेषताएं-:
यह चट्टानें गाढे लावा से निर्मित होती है जिससे इनका अपरदन कम होता है।
इन चट्टानों का रंग, वजन एवं घनत्व हल्का होता है।
इन चट्टानों में फेल्डस्पर एवं क्वार्टर की मात्रा अधिक होती है, अतः इन्हें फेल्सिक चट्टानों भी कहा जाता है।
उदाहरण-: ग्रेनाइट, रायोलाइट चट्टाने।
क्षारीय चट्टानें-:
ऐसी आग्नेय चट्टाने जिनमें सिलिका की मात्रा 55% से भी कम पाई जाती है उन्हें छारीय चट्टाने कहते हैं।
विशेषताएं-:
यह चट्टाने अपेक्षाकृत पतली लावे से निर्मित होती है अतः इनकी परत भी अपेक्षाकृत पतली होती है, परिणाम स्वरूप इनका अपरदन अधिक होता है।
इन चट्टानों का रंग ,घनत्व, वजन अपेक्षाकृत अधिक होता है।
इन चट्टानों में लोहा ,मैग्निशियम खनिजों की अधिकता होती है।
उदाहरण-: बेसाल्ट चट्टाने।
आग्नेय चट्टानों के उपयोग-:
आदि ने चट्टानों में अधिक मात्रा में धात्विक खनिज होते हैं जिनका उपयोग-: इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, परिवहन के साधन तथा आभूषण बनाने आदि में किया जाता है।
ग्रेनाइट अग्नि चट्टान का उपयोग मंदिर एवं भवन निर्माण में किया जाता है।
बेसाल्ट नामक अग्नि चट्टान का उपयोग सड़क निर्माण में किया जाता है।
अवसादी चट्टान-:
आग्नेय चट्टानों के अपक्षय तथा निक्षेपण की प्रक्रिया के फलस्वरुप, अवसादों के जमने से बनने वाली चट्टाने अवसादी चट्टानें कहलातीं हैं।
अवसादी चट्टानों का निर्माण
अवसादी चट्टानों का निर्माण शिलीभवन प्रक्रिया द्वारा होता है, शिली भवन प्रक्रिया के अंतर्गत अपक्षय अपरदन और निक्षेपन तीनों प्रक्रिया शामिल हैं। सर्वप्रथम लावा के ठंडे होने से आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है और आग्नेय चट्टानों का भौतिक, रासायनिक तथा जैविक कारकों द्वारा अपक्षय होता है फिर यह अवसाद अपरदित होकर एक स्थान से दूसरे स्थान में निक्षेपित हो जाता है और निक्षेपित अवसाद ताप, दाब बढ़ने से वह चट्टान का रूप ले लेता जिससे अवसादी चट्टानों की उत्पत्ति होती है।
अवसादी चट्टानों की विशेषताएं-:
अवसादी चट्टानें आग्नेय चट्टानों की तुलना में कम कठोर होती है।
अवसादी चट्टानों मैं जीवाष्म में पाए जाते हैं।
अवसादी चट्टानें परतदार तथा रंध्रयुक्त चट्टान होती हैं।
इन चट्टानों का अपक्षय एवं अपरदन अपेक्षाकृत अधिक होता है।
भूपर्पटी कि लगभग 75% भाग पर अवसादी चट्टानें पाई जाती हैं।
अवसादी चट्टानों के प्रकार
यांत्रिक रूप से निर्मित अवसादी चट्टानें।
रासायनिक रूप से निर्मित अवसादी चट्टान।
जैविक रूप से निर्मित अवसादी चट्टान।
यांत्रिक विधियों द्वारा निर्मित अवसादी चट्टानें-:
ऐसी अवसादी चट्टानें जो यांत्रिक या भौतिक कारकों जैसे -: हवा ,जल, हिमनद आदि की अपक्षय तथा निक्षेपण प्रक्रिया के द्वारा निर्मित होती हैं,उन्हें यांत्रिक अवसादी चट्टानें कहते हैं।
जैसे-: पिंडशिला,ब्रेसिया, लोयस चट्टाने, बोल्डर, ग्रेवाल, सेंड।
रासायनिक रूप से निर्मित अवसादी चट्टान-:
ऐसी अवसादी चट्टानें जो जल के साथ रासायनिक क्रिया करके निर्मित होते हैं उन्हें रासायनिक रूप से निर्मित अवसादी चट्टानें कहते हैं
जैसे-: चूना-पत्थ, जिप्सम, डोलोमाइट ,चर्ट।
जैविक रूप से निर्मित अवसादी चट्टान-:
ऐसी अवसादी चट्टानें जिनमें जैविक तत्वों के अवसाद की प्रधानता होती है।
जैसे-: चूना युक्त चट्टाने, कार्बन युक्त चट्टानें(कोयला)।
अवसादी चट्टानों का उपयोग-:
इन चट्टानों में व्यापक मात्रा में जीवाश्म खनिज पाए जाते हैं जैसे पेट्रोलियम, कोयला, प्राकृतिक गैस इनका उपयोग ऊर्जा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
इन चट्टानों का उपयोग व्यापक मात्रा में भवन निर्माण तथा सड़क निर्माण हेतु कच्ची सामग्री के रूप में किया जाता है।
जिप्सम का उपयोग उर्वरक बनाने में भी किया जाता है।
कायांतरित चट्टान-:
कायांतरण का अर्थ होता है -:स्वरूप में परिवर्तन।
जब पहले से स्थित आग्नेय या अवसादी चट्टानें अत्यधिक ताप एवं दाब के कारण भौतिक व रासायनिक प्रक्रिया द्वारा अपने मूल स्वरूप अन्य कठोर स्वरूप में परिवर्तित हो जाती हैं तो उन्हें कायांतरित चट्टानें कहते हैं।
कायांतरित चट्टानों की विशेषताएं-:
कायांतरित चट्टानें सबसे कठोरतम चट्टाने होती है।
इन चट्टानों में जीवाश्म का अभाव पाया जाता है।
कायांतरित चट्टानों में बहुमूल्य खनिज जैसे-: हीरा क्वार्टर पाये जाते हैं।
कायांतरित शैलो की प्रकार-:
मूल शैल के आधार पर-:
परि आग्नेय शैल
परि अवसादी शैल
पुनः रूपांतरित शैल
विन्यास के आधार पर-:
पत्रित कायांतरित शैल
अपत्रित कायांतरित शैल
परि आग्नेय शैल
ऐसी कायांतरित शैल जिनका निर्माण आग्नेय चट्टानों के द्वारा हुआ है उन्हें परि आग्नेय शैल कहते हैं
जैसे -:
ग्रेनाइट से नीस चट्टानों का निर्माण।
बेसाल्ट से सिस्ट चट्टानों का निर्माण।
गैब्रो से सरपेंटाइन चट्टानों का निर्माण।
परि अवसादी शैल
ऐसी कायांतरित शैल जिनका निर्माण अवसादी चट्टानों से हुआ है उन्हें परि अवसादी शैल कहते हैं।
जैसे-:
शेल से स्लेट का निर्माण
चूना पत्थर से संगमरमर का निर्माण।
डोलोमाइट से संगमरमर का निर्माण।
कांग्लोमाइट से क्वार्टरजाईट का निर्माण
बालू पत्थर से क्वार्टरजाइट का निर्माण।
बिटूमिनस कोयला से ग्रेफाइट और हीरा का निर्माण।
पुनः रूपांतरित शैल
ऐसी कायांतरित शैल जिनका निर्माण पहले से मौजूद कायांतरित शैलो से ही होता है, उन्हें पुनः रूपांतरित शैल कहते हैं।
जैसे-:
स्लेट से फाईलाइट का निर्माण।
फाईलाइट से नीस का निर्माण।
पत्रित कायांतरित शैल
ऐसी कायांतरित चट्टानें जिनमें खनिज की परतों का समांतर विन्यास पाया जाता है।
जैसे-:
अभ्रक,
सिस्ट,
नीस
अपत्रित कायांतरित शैल
ऐसी कायांतरित चट्टान जिनमें खनिजों की परतें समांतर विन्यास में नहीं पाई जाती है।
जैसे-: क्वार्टरजाईट,
कायांतरित चट्टानों का उपयोग-:
कायांतरित चट्टानों में बहुमूल्य खनिज जैसे -:हीरा, क्वार्टज पाए जाते हैं जिनका उपयोग आभूषण निर्माण में किया जाता है।
कायांतरित चट्टानों में संगमरमर पाया जाता है जिसका उपयोग व्यापक मात्रा में भवन निर्माण फर्नीचर निर्माण में किया जाता है।
ग्रेफाइट एक प्रकार की कायांतरित चट्टान है जिसका उपयोग पेंसिल निर्माण में होता है।
शैल चक्र-:
शैल चक्र वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत भूपटल में दीर्घकाल में आग्नेय शैल अवसादी शैल में , अवसादी शैल कायांतरित शैल में और कायांतरित शैल पुनः आग्नेय शैल में परिवर्तित होती रहती हैं।
शैल चक्र के अंतर्गत सर्वप्रथम धरती के अंदर का मेग्मा ज्वालामुखी क्रिया के द्वारा जमीन पर आकर जमता है जिससे आग्नेय शैलो का निर्माण होता है फिर यह आग्नेय शैल अपक्षय तथा निक्षेपन की प्रक्रिया द्वारा अवसादी चट्टानों में परिवर्तित हो जाते हैं, और यह अवसादी शैल ताप एवं दाब के प्रभाव से कायांतरित शैल परिवर्तित हो जाते हैं और अंततः यह कायांतरित शैल धरातल के अंदर पिघल कर होकर पुनः मेग्मा में परिवर्तित हो जाते हैं और यह मैग्मा पुन: आग्नेय शैलों का निर्माण करता है। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।
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