जनजातियों की स्थिति

जनजातियों की स्थिति

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जनजातीय समुदाय की विशेषताएं-:

  • इनकी विशिष्ट परंपरागत संस्कृति होती है। 

  • जनजातियां मुख्यत: गांव शहरों से दूर प्राकृतिक पर्यावरण में निवास करती हैं। 

  • जनजातीय लोग आर्थिक दृष्टि से पिछड़ी होते हैं। और अपना पेट भरने के लिए सामान्य लोगों की तुलना में अधिक क्रियाशील होते हैं। 

  • इनकी वनों एवं प्राथमिक क्रियाओं पर निर्भरता होती है। अर्थात प्राथमिक क्षेत्र द्वारा ही अपनी जीविका-उपार्जन करते हैं। 

  • ये प्रायः मांसाहारी होते हैं। 

  • इनकी साक्षरता का स्तर बहुत कम होता है। 

  • प्रायःइनके शरीर का रंग काला होता एवं शरीर गठरीला होता है। 

  • जनजातीय लोग बाहरी समुदाय के साथ संपर्क करने में संकोच करते हैं। 

जनजातियों की प्रमुख समस्याएं एवं समाधान-:

आर्थिक समस्याएं-

जनजातीय लोग आर्थिक दृष्टि से काफी ज्यादा कमजोर अर्थात निर्धन होते हैं उनकी प्रमुख आर्थिक समस्या निम्नलिखित हैं-

बेरोजगारी एवं बेगारी की समस्या-

शिक्षा का स्तर निम्न में होने के कारण इन्हें रोजगार ना मिलता है और मिलता भी है तो अधिक मेहनत और कम मजदूरी वाला मिलता है।

कृषि संबंधी समस्या-

  • जनजातीय लोग पठारी या रेगिस्तानी क्षेत्रों में निवास करते हैं जहां पर इनकी भूमि बहुत कम उपजाऊ होती है जिससे इन्हें पर्याप्त कृषि उपज नहीं मिल पाती

  • इनके पास आधुनिक उपकरण ना होने के कारण ये परंपरागत रूप से कृषि करते हैं जिससे अधिक मेहनत करने पर भी कम उपज प्राप्त हो पाती है। 

वन उपज संबंधी समस्या-

जनजातीय लोग जंगल के दोस्त एवं संरक्षक कहे जाते थे, क्योंकि जहां एक और वे जंगलों का संरक्षण करते थे वहीं दूसरी ओर जंगलों की वनोपज को प्राप्त करके उसको बेचकर अपनी जीविका चलाते थे। किंतु ब्रिटिश काल के दौरान जंगलों का अत्यधिक दोहन किया गया वर्तमान में भी औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण जंगलों का दोहन किया जा रहा है जिससे वन संसाधनों में कमी आई है और जितने वन संसाधन बचे हुए हैं, सरकार ने उनका राष्ट्रीयकरण कर दिया है जिससे अब जनजातीय लोगों को वनोपज प्राप्ति में समस्या आ रही है और उनकी जीविका का निर्माण उपयुक्त तरीके से नहीं हो पा रहा है। 

वनोपज का पर्याप्त मूल्य न मिलना-

आदिवासी लोग वर्तमान में जितना भी पर उपस्थित संग्रह करके बाजार में बेचने को लाते हैं उन्हें कुछ बने पच का पर्याप्त मूल्य नहीं मिलता व्यापारी लोग उनकी अज्ञानता का लाभ उठाकर उन्हें ठग लेते हैं। 

सामाजिक समस्याएं-:

शिक्षा के स्तर में होना-

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के लगभग 70% जनजातीय लोग निरक्षर हैं इनकी शिक्षा का स्तर निम्न होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  • शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी

  • शिक्षा संस्थानों का अभाव

  • गांव एवं शहरों से दूरी होने तथा अधोसंरचना के रक्षक ना होने के कारण शिक्षण संस्थानों तक पहुंच की कमी। 

अंधविश्वास से ग्रसित होना-

जनजातीय लोग विभिन्न प्रकार के अंधविश्वासों से आज भी ग्रसित हैं जैसे-जानवरों की बलि देने प्रथा, आधुनिक चिकित्सा के स्थान पर झाड़-फूंक पर अधिक विश्वास रखना। जो इनके विकास की एक प्रमुख बाधा है। 

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं-

  • कुपोषण की समस्या

  • आधुनिक चिकित्सा के स्थान पर जादू टोना झाड़-फूंक पर विश्वास रखने से बीमारी का तुरंत इलाज ना हो पाने की समस्या। 

  • संस्थागत प्रसव ना होने से बाल एवं मृत्यु दर अधिक होना। 

  • अत्यधिक नशा करने शुद्ध पेयजल ना पीने से विभिन्न बीमारियों जैसे- हैजा ,पीलिया, छह-रोग ,मलेरिया से ग्रसित होने की समस्या। 

इन समस्याओं के अलावा भी जनजातियों की कुछ अन्य समस्याएं हैं जैसे-

  • इन समुदाय की महिलाओं के साथ लैंगिक उत्पीड़न किया जाना। 

  • नदी घाटी परियोजना में इनको अपने स्थान से विस्थापित किए जाने की समस्या। 

  • दुर्गम क्षेत्रों में निवास करने के कारण जंगली जानवरों से असुरक्षा तथा बाढ़ जैसे संकटो की समस्या।

समाधान-:

निर्धनता का समाधान –

इनको वन उत्पाद संग्रह करने, पशु पालन करने सब्जी व फल लगाने आदि का उपयुक्त प्रशिक्षण एवं आधारभूत उपकरण देकर बेरोजगारी व निर्धनता की समस्या का समाधान किया जा सकता है। 

शिक्षा के स्तर में बढ़ोतरी का समाधान

  • इनके क्षेत्रों में पर्याप्त शिक्षण संस्थान खोली जाएं। तथा शिक्षण संस्थानों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित की जाए। 

  • इनके क्षेत्रों में जाकर वहां के लोगों को शिक्षा के महत्त्व के प्रति जागरूक किया जाए। 

  • शिक्षा में पढ़ाने पर विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके माता-पिता को भी प्रोत्साहन राशि दी जाए। 

  • आदिवासी बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष रियायतें दी जाए। 

स्वास्थ्य की समस्या के समाधान-

  • इनके क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य संस्थान खोले जाएं। तथा शिक्षण संस्थानों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित की जाए। 

  • इनके क्षेत्रों में जाकर वहां के लोगों को झाड़-फूंक के स्थान आधुनिक चिकित्सा के महत्त्व के प्रति जागरूक किया जाए। 

इसके अलावा उन्हें कौशल प्रशिक्षण देकर द्वितीय और तृतीय क्षेत्र में भी आरक्षित रूप से शामिल किया जाए। 

जनजातियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास-:

उनकी स्थिति को सुधारने के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं जिसमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं-:

अंत्योदय योजना

मध्य प्रदेश के अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के गरीब परिवारों का जीवन स्तर ऊपर उठाने एवं उनका आर्थिक विकास करने हेतु 1990-91 से अंत्योदय योजनाएं प्रारंभ की गई है जिसमें निम्न योजना शामिल है-

  • नवजीवन आवास योजना- इसके अंतर्गत उन्हें शहरी क्षेत्रों में निवास के लिए रियायती मूल्य पर भूखंड उपलब्ध करवाए जाते हैं। 

  • वसुंधरा योजना-इसके तहत भूमिहीन आदिवासी कृषकों को कृषि योग्य भूमि खरीदने के लिए 10 वर्ष की अवधि हेतु ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध करवाया जाता है। 

  • जल जीवन योजना-इस योजना के तहत अनुसूचित जनजाति के सीमांत कृषकों को सिंचाई हेतु कुल लागत का 75% तक अनुदान दिया जाता है। 

  • स्वावलंबन योजना-इसके अंतर्गत गरीब आदिवासियों को स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के लिए ऋण एवं कार्यशील पूंजी उपलब्ध करवाई जाती है। 

  • पवनपुत्र योजना-इस योजना के तहत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के बेरोजगार युवकों को ऑटो/टेंपो खरीदने के लिए ऋण उपलब्ध करवाया जाता है। 

  • मधुवन योजना-इस योजना के तहत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लोगों को आधुनिक डेयरी फार्म, पोल्ट्री फॉर्म व अन्य पशुधन कार्यक्रम की स्थापना के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ऋण उपलब्ध करवाया जाता है। 

  • निर्मित योजना-इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों को भवन निर्माण की कुशलता का प्रशिक्षण दिया जाता है। 

  • रफ्तार योजना-इस योजना के तहत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति वर्ग के प्रशिक्षित बस चालकों को बस यात्रा खरीदने के लिए ऋण उपलब्ध करवाया जाता है। 

  • सहारा योजना-इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के निशक्त एवं कमजोर लोगों जैसे- कुष्ठ रोगी, विकलांग ,निराश्रित वृद्धा, विधवा महिलाओं को सरकार द्वारा वित्तीय अनुदान के साथ-साथ रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। 

  • वनजा योजना-इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लोगों को अपने निवास स्थल के निकट ही बन आधारित लघु उद्योग स्थापित करने हेतु आर्थिक सहायता दी जाती है। 

पंचधारा योजना

यह योजना आदिवासी महिलाओं के उत्थान के लिए 1990 से मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही है। 

आदिवासी महिलाओं के लिए निम्न पांच योजना संचालित हैं

  • ग्राम्या योजना-इसमें आदिवासी महिलाओं को स्वरोजगार स्थापित करने के लिए ऋण दिया जाता है। 

  • कल्पवृक्ष योजना-इसमें आदिवासी महिलाओं को रेशम कीट पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है। 

  • सामाजिक पेंशन-इसके अंतर्गत वृद्धि आदिवासी महिलाओं को पेंशन प्रदान किया जाता है। 

  • योजना-इसके अंतर्गत आदिवासी महिलाओं को प्रसूति सहायता दी जाती है। 

  • आयुष्मति योजना-इसके अंतर्गत बेसहारा एवं विधवा आदिवासी महिलाओं को सहायता दी जाती है। 

स्वास्थ्य संबंधी योजना-

जीवन ज्योति योजना-: इस योजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आदिवासियों के घर के निकट ही चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है। 

दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना-: इस योजना में गरीबी रेखा वाले तथा अनुसूचित जनजातियों के लोगों को निशुल्क उपचार सहायता दी जाती है। 

शिक्षा से संबंधित योजनाएं-:

  • शंकरनाद योजना- इस योजना का उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में स्कूलों का विस्तार करके शिक्षा का प्रचार प्रसार करना है। 

  • कन्या साक्षरता प्रोत्साहन योजना-इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश की अनुसूचित जाति/जनजाति की छात्राओं को कक्षा छठवीं प्रवेश लेने पर 500 रूपये कक्षा 9वी में प्रवेश लेने पर ₹1000 तथा कक्षा 11वीं में प्रवेश लेने पर ₹3000 मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिए जाते हैं। 

 इसके अतिरिक्त अनुसूचित जनजाति में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न अनुसूचित जनजाति विद्यालय व अनुसूचित जनजाति छात्रावास संचालित किए जा रहे हैं साथी उन्हें अन्य जातियों की तुलना में अधिक छात्रवृत्ति दी जा रही है ताकि वह शिक्षा के लिए प्रोत्साहित हों और उनकी शिक्षा का स्तर बढे। 

इन योजनाओं के अतिरिक्त उनके अधिकारों का संरक्षण करने तथा उन पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए कुछ अधिनियम भी बनाए गए हैं जैसे-:

  • अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989। 

  • वन अधिकार अधिनियम-2006

  • आदिवासी संस्कृति एवं देवठान संरक्षण नियम 2019

(इनका अधिक विवरण राजनीति विज्ञान के दूसरे रजिस्टर में उल्लेखित है।)

वर्तमान में जनजातियों के विकास के समक्ष चुनौतियां-:

  • चूंकि जनजातियां पहाड़ी और घाटी जैसे दुर्गम क्षेत्रों में निवास करती हैं जहां पर अधोसंरचना का विकास करना काफी मुश्किल है। 

  • जनजातीय लोगों में जागरूकता का अभाव होने के कारण अपनी समस्याओं को सरकार तक नहीं पहुंचा पाते जिससे उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है। 

  • शिक्षा का स्तर निम्न होने के कारण उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता। 

  • विभिन्न सामाजिक कुरीतियों जैसे कि जानवरों की बलि चढ़ाने की प्रथा, अत्यधिक शराब पीने का तरीका, जादू टोने पर विश्वास रखना के कारण वे आधुनिकता की ओर नहीं बढ़ पा रहे हैं। 

जनजातीय विवाह-:

मध्य प्रदेश के जनजातीय समुदायों में प्रमुखता निम्न विवाह प्रचलित हैं-

सेवा विवाह- 

इस विवाह के अंतर्गत ‘वर’ अपनी पदक प्राप्त करने के उद्देश्य कन्या के घर में कुछ समय तक सेवा करता है जिससे प्रसन्न होकर वधू पक्ष अपनी करने उसे सौंप देता है सेवा विवाह कहा जाता है। 

दरअसल में सेवा विवाह वह वर करता है जो वधू मूल्य चुकाने में असमर्थ होता है। 

यह प्रथा गोंड एवं बैगा जनजाति में प्रचलित है। 

दूध-लौटावा विवाह-

इस विवाह के अंतर्गत भाई की संतान (अर्थात लड़का या लड़की) का विवाह बहन की संतान (अर्थात लड़की या लड़का) से होता है। इसे दूध लौटावा विवाह कहते हैं। यह प्रथा गोंड जनजाति में प्रचलित है। 

हरण विवाह-

इस विवाह के अंतर्गत युवक, युवती को उसके माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध अपहरण करके विवाह कर लेता है यह प्रथा गोंड एवं भील जाति में प्रचलित है। 

क्रय-विवाह-इस विवाह पद्धति के अंतर्गत वधू पक्ष के माता-पिता को कन्या का मूल्य(वधुमूल्य) देकर विवाह किया जाता है। यह प्रथा गोंड,भील व बैगा जनजाति में प्रचलित है। 

वीरता विवाह-इस विवाह के अंतर्गत जनजाति युवा पुरुषों के साहस एवं वीरता की परीक्षा ली जाती है और जो इस परीक्षा में सफल होता है वही युग लड़की को अपनी जीवनसंगिनी चुन सकता है। मध्यप्रदेश में यह विवाह भीलों में प्रचलित है और पुरुषों की परीक्षा के लिए गोल-गधेरो उत्सव का आयोजन करवाया जाता है। 

जनजातियों के नृत्य-:

इसकी व्याख्या मध्य प्रदेश की लोक-नृत्य वाले चैप्टर में उल्लेखित है। 

मध्य प्रदेश की जनजातियों से संबंधित प्रमुख प्रथाएं एवं परंपराएं-: 

घोटुल प्रथा-:

घोटुल मुड़िया एवं गोंड जनजाति के लोगों एक प्रकार का युवागृह या क्लब होता है, जहां पर अविवाहित युवक (जिसे चेलिक कहा जाता है)एवं युवतियां(जिसे मोटियारी) शाम को एकत्रित होकर वार्तालाप एवं मनोरंजन करते हैं, और एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद समाज में अपने विवाह की इच्छा प्रकट करते हैं। इसके बाद समाज के लोगों द्वारा उनका विवाह आयोजित करवा दिया जाता है। 

भगोरिया मेला-:

यह भीलो का एक पारंपरिक पर्व है जो मध्यप्रदेश के झाबुआ अलीराजपुर धार खरगोन आदि जिलों में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है, यह वस्तुत: एक प्रेम-विवाह का उत्सव होता है। जहां पर आदिवासी युवक एवं युवतियां पान खिलाकर या गुलाल लगाकर अपने होने वाले जीवनसाथी का चयन करते हैं।  

मेघनाथ पर्व-:

यह गोंड जनजाति द्वारा दीपावली के अवसर पर मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है जिसमें

मड‌ई पर्व-:

यह गोंड जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है जिसमें बकरे की बलि दी जाती है।

रतौना पर्व-:

यह बैगा जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है जिसमें मधुमक्खियों की पूजा की जाती है।

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