जनजातीय अर्थव्यवस्था

जनजातीय अर्थव्यवस्था

जनजाति अर्थव्यवस्था

मध्य प्रदेश में लगभग 20% से अधिक जनजाति जनसंख्या पाई जाती है अतः जनजातीय अर्थव्यवस्था का विकास किए बिना मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था का विकास अधूरा ही रहेगा, जनजातीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप परंपरागत तथा आत्मनिर्भरता वादी होता है। 

जनजातीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं

  • प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता जनजाति लोग जल जंगल जमीन तथा खनिज संसाधनों पर निर्भर रहते हैं

  • परंपरागत आर्थिक गतिविधियां-जैसे परंपरागत कृषि, वन उपज संग्रह, मजदूरी आदि। 

  • आत्मनिर्भरता-अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वयं उत्पादन करना। 

  • वस्तु विनिमय प्रणाली-जनजातीय समुदाय में आज भी वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन है 

  • कृषि एवं पशुपालन की-अधिकांश जनजातीय समाज कृषि एवं पशुपालन के माध्यम से अपनी अजीब का संचालन कर रहा। 

जनजातीय कृषि पद्धतियां

जनजातीय लोग मुख्य रूप से परंपरागत तरीके से कृषि करते हैं जिनकी कृषि पद्धति की विशेषता निम्नलिखित है-

  • कृषि में आधुनिक तकनीकी यंत्रों का न्यूनतम उपयोग। 

  • स्थानांतरण कृषि की प्रधानता। 

  • बरसात पर निर्भरता

  • परंपरागत फसले जैसे- मक्का, बाजार, चावल आदि उगाना। 

  • कृषि के साथ पशुपालन। 

जनजातीय समाज की प्रमुख कृषि पद्धतियां-:

चिमाता कृषि- भील जनजाति के लोगों द्वारा की जाने वाली स्थानांतरण कृषि। 

दहिया कृषि-भारतीय जनजाति के लोगों द्वारा पर्वतीय ढलानों में की जाने वाली स्थानांतरण कृषि। 

बेवार या पोण्डू– बैगा जनजाति द्वारा कम से कम हल चलाकर की जाने वाली झूमि कृषि। 

हरवाही कृषि- गोंड जनजाति के कृषकों द्वारा दूसरों की जमीन पर की जाने वाली कृषि

पोडा कृषि- जनजातीय लोगों द्वारा दूसरों से बैल उधार लेकर की जाने वाली कृषि।

मिश्रित कृषि- कृषि के साथ-साथ पशुपालन या मत्स्य, पालन मुर्गी पालन भी करना। 

  • जैसे बंजारा जाति की लोग भेड़ों का पालन करते हैं। 

  • कुरकुरे जनजाति के लोग मुख्य रूप से भैंसों का पालन करते हैं। 

  • गोंड जनजाति के लोग कृषि के साथ-साथ बकरी और मुर्गी का पालन करते हैं। 

मध्य प्रदेश में प्रमुख जनजातिया वन उपज-:

जनजातीय समुदाय कृषि के अतिरिक्त वन उपज के संग्रह एवं विपणन के माध्यम से अपनी अजीब का संचालन करते हैं

खैर-: 

  • यह शुष्क पर्णपाती वनों का वृक्ष है। 

  • इसका उपयोग मुख्य रूप से कत्था बनाने और औषधि बनाने में किया जाता है। 

  • खैर का संग्रहण एवं वितरण मुख्य रूप से शिवपुरी मुरैना तथा बुंदेलखंड क्षेत्र में खैरवार जनजाति और सहरिया जनजाति के लोग करते हैं।

तेंदूपत्ता-: 

  • यह उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन का वृक्ष है।  

  • इसका उपयोग मुख्य रूप से बीड़ी कारखाने में किया जाता है। 

  • इसका संग्रहण एवं विपणन मुख्य रूप से दमोह पन्ना सागर जबलपुर क्षेत्र में गोंड, सौर तथा खैर जनजाति के लोग करते हैं

हर्रा-: 

  • यह उष्णकटिबंधीय आद्रपाणपति वनों का वृक्ष है। 

  • इसका उपयोग मुख्य रूप से चमड़े की सफाई और औषधि निर्माण में किया जाता है। 

  • इस वन उपज को संग्रहित करने का कार्य दक्षिणपुरी मध्य प्रदेश के मुख्यतः बैगा जनजाति, भारिया जनजाति ,कोल जनजाति,गोंड जनजाति करती है। 

गोंद-:

  • यह उष्णकटिबंधीय शुष्क परणपति वन का वृक्ष है। 

  • इसका उपयोग मुख्य रूप से

    • अरेबिक गोंद का उपयोग- खाद्य सामग्री में। 

    • कुल्लू गोंद का उपयोग- काफी तथा पेस्टी बनाने में। 

    • सलाई गोंद का उपयोग- पेंट और वानिश बनाने में किया जाता है

  • गोंद संग्रह का कार्य मुख्य रूप से बंजारा, कंजर और भिलाला जनजाति के लोग करते हैं। (धार ,झाबुआ,ग्वालियर ,शिवपुरी ,मुरैना)

भिलावा-: 

  • यह उष्णकटिबंधीय आद्रपाणपति वन का वृक्ष है। 

  • इसका उपयोग मुख्य रूप से स्याही बनाने में किया जाता है। 

  • इसके संग्रह का कार्य छिंदवाड़ा में भारिया, गोंड तथा कोरकू जनजाति के लोग करते हैं। 

महुआ -:

  • यह एक पोस्ट कटिबंधीय पर्णपाती वन का वृक्ष।

  • इसका उपयोग तेल निर्माण और शराब निर्माण में किया जाता है। 

  • महुआ का उपयोग जनजातीय लोग (भील, गोंड) शराब अर्थात ताड़ी बनाने और इसे बेचने में करते। 

लाख-: 

  • यह पलाश,कुसुम तथा बेर वृक्ष में फांट लगाकर प्राप्त किया जाता है। 

  • इसका प्रयोग सौंदर्य सामग्री चूड़ी तथा आभूषण और खिलौना निर्माण में होता है। 

  • लाख का संग्रह मुख्य रूप से लखार जनजाति, कोल जनजाति और अगरिया जनजाति के लोगों द्वारा किया जाता है। 

मध्य प्रदेश में जनजाति हस्तशिल्प-:

बैगा जनजाति की हस्तशिल्प-:

बैगा जनजाति मंडला डिंडोरी के क्षेत्र में निवास करती है और क्योंकि यहां पर बहुत ज्यादा पेड़ पौधे मौजूद हैं अतः वे उन लड़कियों से चौखट,दरवाजे ,खूंटियां, चौकी तथा विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र बनाते हैं। 

कोरकू जनजाति के हस्तशिल्प-:

कुरकु जनजाति होशंगाबाद बैतूल के क्षेत्र में निवास करती है, ये लोग लकड़ी के पारंपरिक दरवाजे, विवाह स्तंभ, मेघनाथ खम्भ तथा मृतक- स्तंभ(मण्डो) बनाने में निपुण हैं। 

भील जनजाति के हस्तशिल्प-:

लकड़ी से मांदल, डफली, गतला (मृतक स्तंभ)। 

भारिया जनजाति के हस्तशिल्प-

बढ़िया जनजाति के लोग बा़स की झाड़ू , टोकनी, दलिया बनाने के लिए प्रसिद्ध है। 

इसके अतिरिक्त उनके द्वारा देवबहारी घास से बनाई जाने वाली झाड़ू दूर-दूर तक प्रसिद्ध। 

अन्य हस्तशिल्प -:

  • गुनेरी घास की माला – बैगा जनजाति की महिलाएं बनाती हैं। 

  • मेघनाथ खम्भ-कोरकू जनजाति के लोग इसका निर्माण करते हैं जो 5 से 7 फीट ऊंचा होता है। 

  • धोकड़ा शिल्प – यह एक धातु शिल्प है, जिसके अंतर्गत देवी देवताओं की मूर्ति बनाई जाती है। 

  • भीली गुड़िया-जनजाति के लोग रंगीन कपड़े से बिजली गुड़िया बनाते हैं जो विश्व प्रसिद्ध इसके प्रमुख कलाकार शांति परमार ,रमेश परमार हैं। 

मध्य प्रदेश में जनजातीय हाट-बाजार-:

हाट-बाजार-:

आवश्यक तथा सांस्कृतिक वस्तुओं के क्रय-विक्रय का वह स्थान जहां स्थानीय लोग बस्तियों का क्रय विक्रय करते हैं। 

मध्य प्रदेश के प्रमुख जनजातिया हाट बाजार

भीटल हाट-यह रक्षाबंधन के बाद झाबुआ जिले में आयोजित किया जाता है, जो भील जनजाति से संबंधित है। 

ढाठ्या हाट-: यह कुरकु जनजाति का हाथ है जो होशंगाबाद की मोरखेड़ी में आयोजित किया जाता है। 

मंडला हाट बाजार-यह बैगा जनजाति का बाजार है, जो मंडला में आयोजित किया जाता है। 

भगोरिया हाट- यह दीपावली के बाद, झाबुआ अलीराजपुर जिले में आयोजित किया जाता है जो भूल जनजातियों का संस्कृत बाजार होता है। 

सिरोंज हाट-यह विदिशा जिले में आयोजित किया जाता है जहां पर विभिन्न हस्तशिल्पी कलाकृतियों का संग्रह देखने को मिलता है। 

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