[जैव विविधता]
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Toggleजैव-विविधता में दो शब्द शामिल है जैव और विविधता यहां पर जैव का तात्पर्य जीवो से है तथा विदिशा का तथ्य पर भिन्नता या अनेकता से है।
अर्थात किसी भौगोलिक क्षेत्र के जीव जंतु एवं पेड़ पौधों की संख्या में जो आपसी भिन्नता पाई जाती है उसे जैव-विविधता कहते हैं।
उदाहरण- हमारे आसपास भिन्न भिन्न प्रकार की जीव जंतु पाए जाते हैं जैसे- कुत्ता ,बिल्ली, आम का पेड़, नीम का पेड़, सांप ,तितली आदि।
जैव विविधता के प्रकार-:
प्रजातीय विविधता
अनुवांशिक विविधता
सामुदायिक या पारिस्थितिकी विविधता।
प्रजातीय विविधता-:
एक ही परितंत्र के जीवो में प्रजाति के आधार पर जो भिन्नता पाई जाती है, उसे प्रजातीय विविधता कहते हैं जैसे- कुत्ते और बंदर के मध्य पाई जाने वाली भिन्नता, बंदर और मनुष्य के मध्य पाई जाने वाली भिन्नता।
अनुवांशिक विविधता-:
एक ही प्रजाति के जीवो में अनुवांशिक लक्षणों के आधार पर जो भिन्नता पाई जाती है, उसी अनुवांशिक विविधता कहते हैं जैसे- एक ही क्षेत्र के विभिन्न बंदरों के मध्य पाई जाने वाली भिन्नता।
सामुदायिक या पारिस्थितिकी विविधता-:
भिन्न-भिन्न ने समुदाय या पारिस्थितिकी क्षेत्र के एक ही प्रजाति के जीवों में जो भिन्नता पाई जाती है, उसे पारिस्थितिकी विविधता कहते हैं जैसे- भारतीय हाथी और अफ्रीकी हाथी में पाई जाने वाली भिन्नता।
पारिस्थितिकी तंत्र-:
किसी विशिष्ट भौतिक संरचना वाले सीमित क्षेत्र में, जैविक घटकों और अजैविक घटकों की आपसी अंत:क्रिया से विकसित तंत्र को परिस्थितिकी तंत्र कहते हैं।
जैसे-: जलीय पारिस्थितिकी तंत्र, पर्वतीय परिस्थितिकी तंत्र, मैदानी परिस्थितिकी तंत्र, मरुस्थलीय परिस्थितिकी तंत्र।
जैव-विविधता का मापन-:
जैव विविधता के मापन के तीन आधार हैं-
अल्फा विविधता
बीटा विविधता
गामा विविधता
अल्फा विविधता-:
इसके अंतर्गत किसी भौगोलिक क्षेत्र के किसी एक परिस्थितिकी तंत्र में पाई जाने वाले जीवो की भिन्नता का मापन किया जाता है।
बीटा विविधता-:
इसके अंतर्गत किसी भौगोलिक क्षेत्र के किन्हीं दो परिस्थितिकी तंत्रों के संक्रमण क्षेत्र में पाए जाने वाली जीवो की भिन्नता का मापन किया जाता है।
गामा विविधता-:
इसके अंतर्गत किसी भौगोलिक क्षेत्र के समग्र परिस्थितिकी तंत्रों में पाए जाने वाले जीवो की भिन्नता का मापन किया जाता है।
जैव-विविधता का महत्व-:
जैव विविधता, पर्यावरण का आधार है जिस के महत्व को हम निम्नानुसार समझ सकते हैं-
परिस्थितिकी महत्त्व-:
जैव विविधता की अंत:क्रिया से ही पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है अतः जैव-विविधता पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बनाए रखने में उपयोगी है,
उदाहरण के लिए जहां एक ओर पेड़ पौधे जीव जंतुओं को ऑक्सीजन देते हैं वहीं दूसरी ओर जीव जंतु पेड़ पौधों को कार्बन डाइऑक्साइड देते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बना रहता है।
आर्थिक महत्व-:
जैव विविधता के अनेकों आर्थिक लाभ है क्योंकि जैव विविधता के कारण ही हमें विभिन्न जीवन उपयोगी उत्पाद प्राप्त हो पाते हैं।
जैसे-
जैव विविधता विभिन्न प्रकार की खाद्यान उत्पादन में सहायक है।
जैव विविधता कितने प्रकार की आवश्यक औषधियों के निर्माण में सहायक है।
वैज्ञानिक महत्व-:
जय विविधता वैज्ञानिक अध्ययन में भी सहायक है जैसे-
जैव-विविधता के माध्यम से ही हमें विभिन्न प्रजातियां के विकास की प्रक्रिया का ज्ञान होता है।
जैव विविधता का ह्रास-:
प्राकृतिक या मानवीय कारणों से जीवो की संख्या तथा भिन्नता में कमी होना, जैव-विविधता का ह्रास कहलाता है,
जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-:
वन आवासों का विनाश-: वर्तमान में औद्योगीकरण तथा शहरीकरण के लिए वनों की तेजी से कटाई की जा रही है जिससे विभिन्न प्रजातियों की आवास स्थल संकुचित या नष्ट हो गए परिणाम स्वरूप जैव विविधता का ह्रास हुआ है।
पर्यावरण प्रदूषण-: वर्तमान में विभिन्न ने मानवीय गतिविधियों के कारण जल,वायु और मृदा प्रदूषित होती जा रही जिसका जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव है परिणाम स्वरूप जैव विविधता का ह्रास होता है। जैसे- समुद्र में तेल के फैलने से समुद्री जीवों की प्रजाति समाप्त हो जाती हैं।
जलवायु परिवर्तन-: वर्तमान में विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण भारी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ है जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है, जिसका सीधा प्रभाव विभिन्न प्रजातियों पर पड़ा है और अनेकों प्रजातियां या तो विलुप्त हो गई है या विलुप्त होने की कगार पर आ गई है।
रासायनिक कृषि-: वर्तमान में अधिकाधिक उत्पादन करने के लिए रासायनिक कृषि की जाती है, इसके अंतर्गत भारी मात्रा में रासायनिक कीटनाशक डाले जाते हैं, जिसके कारण मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव समाप्त हो जाते हैं।
प्राकृतिक आपदाएं-: मानवीय गतिविधियों के अलावा प्राकृतिक रूप से आने वाली विभिन्न आपदाओं जैसे- ज्वालामुखी, भूकंप, सुनामी ,वनाग्नि ,बाढ़ एवं सूखा से भी व्यापक मात्रा में जैव विविधता का ह्रास होता है।
जैव-विविधता रोकने के उपाय-:
वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर, प्राकृतिक आवास में वृद्धि की जाए।
विभिन्न हरित तकनीकों का उपयोग करके, पर्यावरण प्रदूषण को कम किया जाए।
रासायनिक कैसे के स्थान पर, जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जाए।
विलुप्त होने वाली प्रजाति का क्लोन बनाकर उन्हें सुरक्षित किया जाए।
जीवो को वन्य जीव अभ्यारण जैसे स्थानों में संरक्षित किया जाए।
जैव विविधता का संरक्षण-:
जैव विविधता संरक्षण का तात्पर्य- प्रकृति में मौजूद जीव-जंतुओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए, सुरक्षित दशाएं प्रदान करने से है।
जैव-विविधता संरक्षण की विधियां-:
स्व-स्थाने संरक्षण
बाह्य-स्थाने संरक्षण
स्व-स्थाने संरक्षण-:
जब जीवो को उनके प्राकृतिक आवास में ही संरक्षित किया जाता है तो उसे स्व-स्थाने संरक्षण कहते हैं।
जैसे-: राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभ्यारण, जैव-मंडल आरक्षित क्षेत्र बनाकर जीवो को संरक्षित करना।
बाह्य-स्थाने संरक्षण-:
जब जीवो को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर सुरक्षित स्थान में ले जाकर संरक्षित किया जाता है तो उसे बाह्य-स्थाने संरक्षण कहते हैं।
जैसे-: चिड़ियाघर ,राहत केंद्र आदि में जीवो को ले जाकर संरक्षित करना।
जैव-विविधता हॉटस्पॉट
जैव विविधता हॉटस्पॉट ऐसे भौगोलिक स्थान होते हैं, जहां काफी सघन जैव-विविधता पाई जाती है किंतु जैव-विविधता के ह्रास होने का संकट होता है।
विश्व के 36 जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्रों में से 4 जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्र भारत में मौजूद हैं, जो निम्न हैं-
हिमालय क्षेत्र
इंडो बर्मा क्षेत्र
पश्चिमी घाट क्षेत्र
सुंडालैंड क्षेत्र(ग्रेट निकोबार के पास)
विश्व में जैव विविधता का प्रतिरूप-:
संपूर्ण विश्व में एक समान रूप से जैव-विविधता नहीं पाई जाती है, अतः हम विश्व की जैव विविधता क्षेत्रों को तीन भागों में बांट सकते हैं-
सर्वाधिक जैव विविधता वाले क्षेत्र-: यह क्षेत्र 10° उत्तरी अक्षांश 10° दक्षिणी अक्षांश के मध्य पाया जाता है क्योंकि यहां पर वर्षा एवं तापमान अधिक होता है।
कम जैव-विविधता वाले क्षेत्र-: इसके अंतर्गत उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र एवं मरुस्थलीय क्षेत्र आते हैं।
अत्यल्प जैव-विविधता वाले क्षेत्र-: इसके अंतर्गत उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव पाए जाते हैं जहां पर हिमाच्छादन के कारण ना के बराबर जैव-विविधता पाई जाती है।
अर्थात भूमध्य रेखा से धुर्वों की ओर जाने पर जैव विविधता घटती जाती है।
भारत में जैव विविधता की स्थिति-:
भारत उपयुक्त जलवायु तथा स्थलाकृतियों की भिन्नता के कारण जैव-विविधता की दृष्टि से समृद्ध देश है। इसी कारण भारत को विश्व के 17 मेगा डायवर्सिटी वाले देशों में शामिल किया गया है।
IUCN की रिपोर्ट के अनुसार,भारत में विश्व की लगभग 7-8% प्रजातियां पाई जाती हैं,
भारत में लगभग 47500 पादप प्रजाति पाई जाती है जो विश्व की कुल पादप प्रजातियों पर जातियों को 7% है।
भारत में लगभग 91000 जंतु प्रजातियां पाई जाती हैं जो विश्व की कुल जंतु समुदाय का लगभग 6.5% है।
इसके अतिरिक्त विश्व के 36 जैव विविधता हॉटस्पॉट में से 4 हॉटस्पॉट भारत में हैं।
भारत में जैव विविधता के संरक्षण के प्रयास-:
भारत में जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार द्वारा अनेकों प्रयास किए जा रहे हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है-
जैव-विविधता को संरक्षित करने के लिए 18 जैव आरक्षित क्षेत्र, 104 राष्ट्रीय उद्यान तथा लगभग 554 वन्य जीव अभ्यारण बनाए गए हैं।
जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए अनेकों अधिनियम बनाए गए जैसे- जैव विविधता अधिनियम 2002, वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972।
भारत में जैव विविधता के संरक्षण के लिए अनेकों संस्थान बनाए गए जैसे-
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड 1952
भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड 1962
जैव विविधता प्राधिकरण 2002
जैव-विविधता को संरक्षित करने के लिए अनेकों योजनाएं चलाई जा रही हैं जैसे-:
बाघ परियोजना 1972
एशियाई शेर परियोजना 1973
घड़ियाल परियोजना 1975
गैंडा परियोजना 1987
हाथी परियोजना 1991
लाल पांडा परियोजना 1996
जैव विविधता और मानव कल्याण पर राष्ट्रीय मिशन 2018
IUCN- इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर,
एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना 1948 में हुई इसका, मुख्यालय स्वीटजरलैंड में स्थित है।
यह जैव-विविधता से संबंधित सर्वेक्षण करके उपयुक्त जानकारी उपलब्ध करवाती है तथा जैव विविधता के संरक्षण का कार्य करती है।
इसके द्वारा रेड डाटा सूची जारी की जाती है जिसमें सुभेद्य , संकटग्रस्त और विलुप्त जीवो का वर्णन होता है।