दार्शनिक प्लेटो/ploto

[प्लेटो]

दार्शनिक प्लेटो/ploto

जन्म:- 427 ई.पू.(एथेंस के समृद्ध परिवार में)

मृत्यु:- 347 ई.पू.

प्रमुख रचनाएं:- द रिपब्लिक, द स्टेट्मैन,द लाज। 

विशिष्टता:- प्लेटो को प्रथम राजनीतिक दार्शनिक कहा गया है। 

प्लेटो की ज्ञान मीमांसा

प्लेटो , सुकरात की भांति पश्चात दर्शन के बुद्धिवादी दार्शनिक थे, उनके अनुसार इंद्रिय संवेदना से प्राप्त अनुभव वास्तविक ज्ञान नहीं है, क्योंकि अलग अलग व्यक्तियों की इंद्रिय प्रतीतियां-

  • एक दूसरे से भिन्न हो सकती है

  • एक दूसरे के विरोधी हो सकती है

  • भ्रम जनित हो सकती हैं

जबकि ज्ञान शाश्वत अनिवार्य एवं सार्वभौमिक होता है ,जो बौद्धिक अंतर्दृष्टि से प्रत्यय के रूप में प्राप्त होता है। अर्थात प्रत्यय ही ज्ञान के  विषय हैं। 

प्लेटो की दार्शनिक समस्या:-

प्लेटो के समय यूनानी सामाज में अराजकता व्याप्त थी, उनका मानना था कि- यहां के मूर्ख शासन ने, ज्ञानी दार्शनिक अर्थात उनके गुरु सुकरात को मृत्यु का दंड दे दिया है, अतः वह इससे दुखी था और न्याय आधारित आदर्श राज्य की स्थापना करना चाहता था, जहां पर ज्ञानी दार्शनिकों का शासन हो इसलिए उन्होंने इस संकल्पना के अनुसार न्याय का सिद्धांत , शिक्षा का सिद्धांत, साम्यवाद का सिद्धांत,आदर्श राज्य का सिद्धांत दिया। 

न्याय का सिद्धांत

प्लेटो ने अपने न्याय के सिद्धांत की व्याख्या अपनी ग्रंथ रिपब्लिक में की है। 

प्लेटो ने न्याय के दो रूप बताएं:-

  • व्यक्तिगत न्याय

  • सामाजिक न्याय

वैयक्तिक न्याय

प्लेटो के अनुसार मनुष्य में तीन नैसर्गिक प्रवृत्तियां होती हैं-: 

  • इच्छा या तृष्णा

  • मनोवेग या साहस

  • ज्ञान या बुद्धि

किंतु प्रत्येक व्यक्ति में इनमें से एक प्रवृत्ति प्रधान होती है,

अतःव्यक्ति की इन तीनों पृवत्तियों के मध्य सामंजस्य बनाए रखते हुए, प्रधान प्रवृत्ति के अनुसार कार्य(प्रदान) करना ही व्यक्तिक न्याय है। 

अर्थात जिस व्यक्ति के अंदर तृष्णा या लालसा अधिक है उसे व्यापार करना चाहिए, जिसके अंदर मनोवेग या साहस अधिक है उसे सैन्य योद्धा बनना चाहिए, जिसके अंदर ज्ञान या बुद्धि अधिक है ,उसे नीति निर्माता या शासक बनना चाहिए। 

प्लेटो के अनुसार सद्गुण:- इन तीनों व्यक्तियों के मध्य सामंजस्य बनाए रखना सद्गुण है। 

सामाजिक न्याय:- 

प्लेटो के अनुसार, व्यक्तियों को उनकी प्रधान प्रवृत्ति के अनुसार 3 वर्ग में विभाजित किया जाना चाहिए- उत्पादक वर्ग, सैनिक वर्ग ,शासक वर्ग। और  समाज के तीनो वर्ग (:- उत्पादक वर्ग, सैनिक वर्ग ,शासक वर्ग) अपनी योग्यता के अनुसार अपने निश्चित कर्तव्यों का पालन करें, यही सामाजिक न्याय है। अर्थात सैनिक वर्ग को रक्षा करनी चाहिए ,उत्पादक वर्ग को उत्पादन के कार्य करना चाहिए, शासक वर्ग को उपयुक्त नीति बनाकर शासन चलाना चाहिए,  

और सभी वर्गों को :-

  • एक दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप करना चाहिए। 

  • एक दूसरे के प्रति सहयोग एवं सद्भावना रखनी चाहिए जैसे सैनिक अन्य वर्ग दोनों वर्गों की रक्षा करे, व्यापारी वर्ग अन्य दोनों वर्गों के लिए उत्पादन करें। 

प्लेटो के न्याय के सिद्धांत की विशेषताएं:- 

आंतरिक स्वरूप:- प्लेटो का न्याय, कोई बाह्य दबाव पर आधारित नहीं है, बल्कि व्यक्ति की आंतरिक पृवत्ति (गुण) के अनुसार कार्य विभाजन की धारणा है। 

एक कार्य एक व्यक्ति:- प्लेटो का न्याय के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही कार्य दिया जाए, जिसमें वह निपुण हो। 

दर्शनिक राजा:- प्लेटो के न्याय के अनुसार राजा बुद्धिमत्ता वाला अर्थात दार्शनिक होना चाहिए। 

अहस्तक्षेप की नीति:- समाज की तीनों वर्ग उत्पादक सैनिक और शासक तो केवल अपना कर कर्तव्य निष्ठा से करना चाहिए दूसरों के कार्यों पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। 

संघर्ष विहीन समाज:-प्लेटो के न्याय का सिद्धांत समाज का विभाजन व्यक्ति की योग्यताओं के आधार पर करता है, जिससे समाज में संघर्ष की स्थिति नहीं रहती। 

प्लेटो के न्याय के सिद्धांत की आलोचना:-

  • यह सिद्धांत काल्पनिक है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी वास्तविक प्रवृत्तियों के आधार पर विभाजित करना अव्यावहारिक है। 

  • प्लेटो ने अपने न्याय के सिद्धांत में व्यक्ति से ज्यादा राज्य को महत्व दिया है। 

  • प्लेटो का न्याय का सिद्धांत नैतिक अवधारणा है,कानूनी अवधारणा नहीं है परिणामस्वरूप इसमें बाध्यता का अभाव है।  

  • प्लेटो के न्याय सिद्धांत में अर्जित गुणों का महत्व नहीं है, प्लेटो ने मान लिया है कि व्यक्ति के अंदर सद्गुण जन्मजात होते हैं, जबकि वास्तविकता में सद्गुण अर्जित भी किये जा सकतें है। 

  • प्लेटो का न्याय अलोकतांत्रिक है, क्योंकि इसके अनुसार केवल दर्शनिक वर्ग ही शासक बन सकता है अन्य वर्ग नहीं। 

महत्व

प्लेटो का न्याय का सिद्धांत कार्य विभाजन एवं कार्य विशेषीकरण पर आधारित है अतः जब व्यक्ति को उसकी प्रवृत्ति या अभिक्षमता के अनुसार कर दिया जाएगा तो वह संबंधित कार्य बहुत ही रुचि पूर्ण तरीके से निपुणता के साथ कर पाएगा तथा विभिन्न वर्गों के मध्य सामंजस्य स्थापित रहेगा सामाजिक संघर्ष कम या समाप्त हो जायेंगे। 

शिक्षा का सिद्धांत

प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में शिक्षा पर विस्तार पूर्वक विवेचन किया है, उन्होंने शिक्षा को इतना महत्व दिया कि रूसो ने उनके इस ग्रंथ के बारे में कहा कि”रिपब्लिक राजनीति पर लिखी हुई पुस्तक ही नहीं वरन् शिक्षा पर लिखी गई एक ऐसी उत्कृष्ट रचना है जो कि इससे पहले कभी नहीं लिखी गई”

प्लूटो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य

  • व्यक्ति का मानसिक ,शारीरिक विकास करना,

  • व्यक्ति को नैतिक मार्ग में ले जाना, 

  • व्यक्ति के स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन लाना 

  • तथा उसके अंदर सामाजिक चेतना एवं कर्तव्य निष्ठा की भावना बढ़ाना है

प्लेटो के अनुसार शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप आयु आधारित निम्न प्रकार का होना चाहिए:-

0-6 वर्ष तक की शिक्षा:- 

इस उम्र के बच्चों को काल्पनिक कथाओं कहानियों के माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए, जो बच्चों में आदर्श मूल्यों का भाव पैदा करें। 

6-18 वर्ष तक की शिक्षा:-

इस उम्र के बालकों को संगीत, व्यायाम एवं अन्य साहित्य की शिक्षा दी जाए, जिससे उनके रुझान का पता चलेगा, कि वे किस प्रवृत्ति की प्रधानता रखते हैं। 

18 से 20 वर्ष तक की शिक्षा

इस उम्र के व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से सैनिक शिक्षा दी जाए, और 20 वर्ष की उम्र में एक प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की जाए जिसमें उत्तीर्ण होने पर ही उच्च शिक्षा दी जाए। 

20 से 30 वर्ष तक की शिक्षा

प्रतियोगी परीक्षा पास करने वाले व्यक्ति को यह उच्च शिक्षा दी जाए इसके अंतर्गत गणित, दर्शनशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान दिया जाए। 

ताकि उसके अंदर तर्कशक्ति एवं पूर्वानुमान की क्षमता आए

30 से 35 वर्ष तक की शिक्षा

इस उम्र के अध्ययनरत छात्रों कि एक पुनः परीक्षा ली जाएगी जो उस में उत्तीर्ण होगा उसे द्वन्दात्मक (वाद विवाद)शिक्षा दी जाए। जो उसे अंतिम सत्य तक पहुंचाएगी। 

35-50 वर्ष की आयु तक:- 

इस आयु के अध्ययनरत विद्यार्थियों को प्रायोगिक शिक्षा दी जानी चाहिए, प्रायोगिक शिक्षा के उपरांत 50 वर्ष की आयु में वह शासक बनने योग्य हो जाएगा। 

हालांकि राजा बनने के उपरांत भी राजा के दार्शनिक शिक्षा ग्रहण करते रहना चाहिए क्योंकि शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। 

प्लेटो की शिक्षा प्रणाली की आलोचना:-

  • प्लेटो की शिक्षा प्रणाली व्यक्ति के उपेक्षा राज्य के विकास पर जोर देती है।

  • प्लेटो की शिक्षा प्रणाली काफी जटिल एवं काल्पनिक प्रतीत होती है। 

  • प्लेटो की शिक्षा प्रणाली में उत्पादक वर्ग की शिक्षा का कोई स्थान नहीं रखा गया था क्योंकि मानसिक एवं शारीरिक शिक्षा रखी गई थी, जो दार्शनिक एवं सैनिक वर्ग के लिए थी। 

  • प्लेटो की शिक्षा प्रणाली में शिक्षा का समय काल बहुत ही लंबा माना गया उनके अनुसार 50 वर्ष के बाद ही एक व्यक्ति राजा बनने योग्य है। 

  • प्लेटो ने स्त्री-पुरुष के लिए समान शिक्षा व्यवस्था की थी उनके स्वभाव एवं भावना को महत्व नहीं दिया।

प्लेटो का आदर्श राज्य 

प्लूटो की समय एथेंस में अराजकता एवं अवस्था विद्यमान थी, अतः प्लेटो ने इस अराजकता की स्थिति का उपचार करके, असंगठित सुव्यवस्थित एवं समृद्ध राज्य की स्थापना के लिए आदर्श राज्य की संकल्पना प्रतिपादित की, जो प्लेटो के अन्य सभी सिद्धांतों पर आधारित है,जिसका विवरण निम्नलिखित है:- 

प्लेटो के आदर्श राज्य के तीन तत्व हैं:- 

प्लेटो ने कहा है “राज्य ओक या चट्टान से नहीं, अपितु उसमें निवास करने वाले व्यक्तियों के चरित्र से बनता”

प्लूटो ने अपने आदर्श राज्य की संकल्पना में राज्य को 3 वर्गों में विभाजित किया

  • उत्पादक वर्ग

  • सैनिक वर्ग

  • दार्शनिक वर्ग

उत्पादक वर्ग:- 

उत्पादक वर्ग लोगों की भौतिक आवश्यकताओं जैसे:- रोटी ,कपड़ा, मकान की पूर्ति का कार्य करेगा, इसके अंतर्गत उत्पादन का कार्य करने वाले सभी उप वर्ग शामिल है जैसे- किसान, शिल्पकार, कारीगर, व्यापारी आदि। 

प्लेटो के अनुसार इस वर्ग में ऐसे लोग शामिल होना चाहिए जिनके अंदर संयम सद्गुण की प्रधानता हो

सैनिक वर्ग:-

सैनिक वर्ग राज्य को सुरक्षित रखने का कार्य करेगा,

इस वर्ग में ऐसे लोग शामिल होंगे जिनके अंदर साहस सद्गुण की प्रधानता हो। 

दार्शनिक वर्ग:- 

दार्शनिक वर्ग राज्य के लिए उपयुक्त नीतियां बनाएगा एवं शासन चलाने का कार्य करेगा,

इस वर्ग में ऐसे लोग शामिल होंगे जिनके अंदर विवेक(बुद्धि) सद्गुण की प्रधानता हो। 

आदर्श राज्य के अंग/ सिद्धांत:-

कार्य-विशेषीकरण का सिद्धांत

प्लेटो के अनुसार व्यक्तियों को उनकी प्रधान प्रवृत्तियों के अनुसार कार्य दिया जाए, जैसे- साहसी व्यक्ति को सैनिक का कार्य दिया जाए विवेकशाली व्यक्ति को शासन चलाने का कार्य दिया जाए,ताकि कोई भी कार्य पूर्ण निपुणता के साथ हो सके।

शिक्षा का सिद्धांत:- 

शिक्षा व्यक्ति के मानसिक एवं शारीरिक विकास तथा शांति से व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है, अतःप्रत्येक नागरिक को उचित शिक्षा प्रदान की जाए,

दर्शनिक राजा का सिद्धांत:- 

प्लेटो ने कहा है कि- “समाज में बुराइयों का तब तक अंत नहीं हो सकता जब तक शासक वर्ग दर्शनिक ना हो”अतः प्लेटो के अनुसार राज्य में दार्शनिक राजा का शासन हो। जो सैनिकों के अत्यधिक क्रोध और उत्पादक वर्ग के अत्यधिक लोभ पर नियंत्रण रखें। 

साम्यवाद का सिद्धांत:- 

प्लेटो अपने आदर्श राज्य में सैनिक वर्ग और शासक वर्ग को परिवार एवं संपत्ति के बंधन से दूर रखना चाहता है ताकि वे निष्पक्ष एवं निस्वार्थ तरीके से अपना कार्य कर सकें। 

प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना

  • प्लेटो ने राज्य को अत्यधिक बल देते हुए व्यक्ति की उपेक्षा की है अर्थात व्यक्ति से ज्यादा राज्य को महत्व दिया है। 

  • प्लेटो का आदर्श राज्य यथार्थ से परे काल्पनिक है। जैसे- शासक और सैनिक पर का साम्यवाद कल्पनिक है। 

  • प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में राजा की अंकुश की बात नहीं की है, अर्थात उसका राज्य निरंकुशवाद अवधारणा पर आधारित है। 

  • प्लेटो तत्कालीन दास प्रथा पर मौन रहा है। 

  • प्लेटो ने शिक्षा, साहित्य व कला को राज्य के नियंत्रण में रखा है जो उचित नहीं है। 

प्लेटो का साम्यवादी सिद्धांत:-

प्लेटो ने राज्य के अभिभावक वर्ग (शासक वर्ग और सैनिक वर्ग) के सद्गुण को बनाए रखने के लिए, साम्यवाद का सिद्धांत दिया,

प्लेटो ने अभिभावक वर्ग के लिए दो प्रकार के साम्यवाद की व्यवस्था की बात कही:-

  • संपत्ति का साम्यवाद

  • परिवारिक साम्यवाद

संपत्ति का साम्यवाद:-

अभिभावक वर्ग की निजी संपत्ति नहीं होनी चाहिए। 

परिवारिक साम्यवाद:-

अभिभावक वर्ग का निजी परिवार नहीं होना चाहिए। 

बल्कि उनकी सामूहिक पत्नी एवं बच्चे होंगे तथा वे सार्वजनिक भोजनालय में भोजन करेंगे सार्वजनिक रहवास में रहेंगे। 

क्योंकि जब अभिभावक वर्ग संपत्ति एवं परिवार के बंधन से दूर रहेंगे तो उनमें आर्थिक एवं सत्ता का प्रलोभन नहीं आएगा और वह निष्पक्षता एवं निस्वार्थ पूर्वक कार्य करेंगे। 

आलोचना:-

  • जब व्यक्ति का कोई परिवार ही नहीं होगा तो,मनुष्य पशु में अंतर नहीं रह जाएगा

  • अभिभावक वर्ग के अंदर परिवार के बिना उत्साह की कमी रहेगी

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होगा क्योंकि व्यक्ति को अपने निजी संपत्ति और परिवार रखने का अधिकार होना व्यक्ति की स्वतंत्रता है।

प्लेटो का नैतिक दर्शन

प्लेटो के अनुसार व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए चार सद्गुणों का होना आवश्यक है। ये चार सद्गुण ही नैतिकता का आधार है-:

  • विवेक- अर्थात व्यक्ति के अंदर उचित-अनुचित, सत्य असत्य में भेद करने का ज्ञान होना चाहिए

  • साहस- अर्थात व्यक्ति के अंदर विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता होनी चाहिए। 

  • संयम- अर्थात मनुष्य का अपनी भावनाओं इच्छा पर नियंत्रण होना चाहिए

और जब व्यक्ति के अंदर इन तीनों सद्गुणों का सही अनुपात में सामंजस्य होता है तभी सर्वोच्च सद्गुण अर्थात न्याय का प्रादुर्भाव होता है, प्रथक वह व्यक्ति न्यायिक बनता है। 

प्लेटो के अनुसार व्यक्ति को अपनी प्रधान प्रवृति(इच्छा, साहस, विवेक) को शिक्षा के माध्यम से पहचान कर उसके अनुरूप कार्य करना चाहिए, यही नैतिकता है। 

प्रश्नोउत्तर

प्लेटो के अनुसार न्याय क्या है:- 

प्लेटो के अनुसार न्याय का तात्पर्य है- मनुष्य अपने उन सब कर्तव्यों का पूरा पालन करें, जिसका पालन समाज के प्रयोजन की दृष्टि से किया जाना आवश्यक है। 

प्लेटो की दार्शनिक प्रणाली क्या है

द्वंदात्मक या वाद-विवाद प्रणाली। 

क्या प्लेटो ईश्वर वादी है?

हां, प्लेटो सृष्टि के निमित्त कारण के रूप में ईश्वर की सत्ता को स्वीकारते हैं। 

द लाज:-

यह प्लेट द्वारा रचित पुस्तक है जिसमें कानून ,संविधान एवं निजी संपत्ति व परिवार का विवरण है। 

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