[रानी अहिल्याबाई होलकर]
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Toggleजीवन परिचय-:
जन्म-: 1725 में, चोरी गांव महाराष्ट्र में।
विवाह -: 8 वर्ष की उम्र में 1733 को।
संतान-: पुत्र- मालेराव तथा पुत्री- मुक्ताबाई।
मृत्यु-: 1795 को।
शासनकाल-: 1767 से 1795।
अहिल्याबाई होलकर का राजनीतिक दर्शन-:
1.राज्य पर विचार-:
राज्य की सत्ता का एकमात्र उद्देश्य, जनकल्याण होना चाहिए।
राज्य का स्वरूप, जनता की सहभागिता पर आधारित होना चाहिए।
उन्होंने अपनी इसी विचार के अंतर्गत जन कल्याण की कार्य किया जैसे अनेकों प्यायू बनवाए ,वृक्ष लगवाएं तथा शासन में सभी वर्ग के लोगों को शामिल किया।
2.राज्य तथा धर्म पर विचार-:
उनका मानना था कि, “धर्म राज्य का निर्देशक है” पता है उन्होंने शिव शक्ति और शासन को आधार बनाकर शासन किया।
3.राज्य व प्रजा पर विचार-:
प्रजा के धन से ही राज्य का संचालन होता है, इसलिए शासन प्रजा का प्रतिनिधि मात्र है ना की मालिक।
4.दंड व्यवस्था पर विचार-:
वे निष्पक्ष एवं कठोर न्याय पर विश्वास रखती थी इसी के तहत उन्होंने अपने पुत्र तक को मृत्युदंड दे दिया था।
5.राज्य संचालन संबंधी विचार-:
उनके विचार था कि केवल सगे संबंधियों को उच्च पदों का पर नियुक्त नहीं करना चाहिए, बल्कि राजनीतिक पदों पर योग्यता के आधार पर नियुक्ति होनी चाहिए।
6.राज्य सुरक्षा की नीति-:
अहिल्याबाई होल्कर शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के सिद्धांत के अनुरूप राज्य की रक्षा करती थी,इसके लिए उन्होंने विभिन्न पड़ोसी राजाओं से मित्रता संबंध बनाकर रखे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में कहा -: उनका 30 वर्षीय शासन काल उत्तम व्यवस्था एवं समृद्धता के लिए विख्यात है।
अहिल्याबाई के दार्शनिक विचार
उनके दर से विचार को निम्न बिंदुओं में विभाजित करके समझा जा सकता है-:
सामाजिक दर्शन-:
सामाजिक भेदभाव की समाप्ति सामाजिक सद्भाव की स्थापना पर विश्वास।
महिला समानता का दृष्टिकोण, इसके तहत उन्होंने महिलाओं की पर्दा प्रथा, गोद निषेध प्रथा का उन्मूलन कर उन्हें संपत्ति में अधिकार भी दिलाया और सेना में भी भर्ती किया।
आर्थिक दर्शन-:
प्रजा का कल्याण आर्थिक समृद्धि में निहित है। (अतः उन्होंने कृषि उद्योग व्यापार को बढ़ावा दिया, इसीलिए महेश्वर की साड़ियां आज भी प्रसिद्ध हैं)
प्रजा से उसकी क्षमता अनुसार ही कर लिया जाना चाहिए। (उन्होंने उपज का एक चौथा हिस्सा सही कर लिया।)
विपदाओं के समय प्रजा की आर्थिक मदद की जानी चाहिए।
राजनीतिक दर्शन-:
जनकल्याणकारी राज्य की स्थापना।
राजनीतिक निर्णय में जन सहमति का अनुसमर्थन होना चाहिए।
राजनीतिक पदों में योग्यता को महत्व।
निष्पक्ष एवं कठोर न्याय व्यवस्था की समर्थक।
धार्मिक दर्शन -:
धर्म का वास्तविक स्वरूप मानव कल्याण ही है।
धर्म राज्य का निर्देशन करता है।
नैतिक दर्शन-:
देवी अहिल्याबाई उच्च नैतिक मूल्यों को स्वीकारतीं थी जैसे- कर्तव्य परायण, निष्पक्ष न्याय व्यवस्था, परोपकार, ईमानदारी सत्य निष्ठा, तथा लोगों के प्रति करुणा का भाव।
इन्हीं मूल्यों के तहत उन्होंने अपनी निजी संपत्ति (खासकी) से जनकल्याण के कार्य किया।
इसलिए इतिहास का जॉन कीस में उन्हें दार्शनिक कहा है।