नए उद्यम की स्थापना एवं मुद्दे

नए उद्यम की स्थापना एवं मुद्दे

नए उद्यम की स्थापना एवं मुद्दे

किसी भी नए उद्यम को स्थापित करने तथा उसका व्यवस्थित तरीके से संचालन करते समय अग्रो लिखित मुद्दों या कारकों का ध्यान रखना चाहिए-:

स्थान संबंधी मुद्दे-: 

नए उद्यम को स्थापित करते समय उचित स्थान का चयन, न केवल प्रतिस्पर्धात्मक लाभ दिलाता है बल्कि उद्यम की सफलता में भी अहम योगदान देता है।  

उपयुक्त स्थान का चयन निम्नांकित कारकों के आधार पर करना चाहिए-:

  • श्रम संबंधी कारक-: 

    1. श्रमिकों की उपलब्धता 

    2. कुशल श्रमिकों का अनुपात 

    3. महिला पुरुष श्रमिकों का अनुपात 

    4. मजदूरी दर। 

    5. श्रम संघों का अस्तित्व। 

अर्थात स्थान ऐसा होना चाहिए, जहां कुशल एवं कम मजदूरी वाले श्रमिक उपलब्ध हों। 

  • परिवहन संबंधी कारक-: 

    • राजमार्गों का जुड़ाव। 

    • रेल तथा वायु परिवहन की सुविधा। 

    • परिवहन के साधनों की उपलब्धता। 

    • परिवहन के साधनों का रेट।  

अतः ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए जहां परिवहन के साधन सस्ते एवं तीव्रता वाले उपलब्ध हों। 

  • कच्चा माल संबंधी मुद्दे-: 

    • कच्चे माल की उपलब्धता। 

    • कच्चे माल का रेट/लागत 

    • भंडारण की सुविधा। 

उद्योग के लिए वह स्थान प्रयुक्त होता है जहां निरंतर एवं कम दाम पर कच्चा माल प्राप्त होता रहे। 

  • बाजार संबंधी कारक-: 

    • बाजार की निकटता। 

    • बाजार का आकार। 

    • बाजार की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति। 

    • विपणन सेवाओं की उपलब्धता। 

अतः उत्पादन स्थान ऐसा होना चाहिए जहां व्यापक एवं अनुकूल बाजार उपलब्ध हो। 

  • औद्योगिक स्थल संबंधी कारक-: 

    • औद्योगिक भूमि की लागत।

    • सरकारी शिथिलता (कम कर बगैरा)

    • पानी, विद्युत की उपलब्धता। 

    • शांति शुव्यवस्था की स्थिति। 

वह औद्योगिक स्थल चयन करना चाहिए, जो व्यावसायिक दृष्टि से अनुकूल हो। 

वातावरण संबंधी मुद्दे-:

किसी उद्यम से संबंधित विभिन्न गतिविधियों तथा उसके आसपास का माहौल उसका वातावरण कहलाता है। 

इसके प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं-:

  • बाजार में प्रवेश संबंधी मुद्दे-

    • पुराने ब्रांड की वफादारी- लोग नए उत्पादक के बजाय पुराने ब्रांड के उत्पादन पर भरोसा रखते हैं, जो नए ब्रांड के लिए एक प्रमुख बाधा बन जाती है

    • पूंजी की आवश्यकता- शुरू में लाभ शून्य तथा लागत अधिकतम होती है अतः पूंजी की निरंतर आवश्यकता का मुद्दा। 

    • वितरण चैनलों तक पहुंच-: उत्पाद को बेचने के लिए विपणन चैनल की आवश्यकता होती है अतः उन तक पहुंच का मुद्दा। 

    • स्वामित्व कारक-: सरकारी अनुमति लेने का;  पेटेंट, कॉपीराइट बनवाने का मुद्दा। 

  • उपभोक्ता की शक्ति का मुद्दा-;

उपभोक्ताओं के पास अतिआवश्यक वस्तुओं की खरीदी पर सौदेबाजी की शक्ति कम होती है, इसके विपरीत विलासतापूर्ण वस्तुओं की खरीदी पर सौदेबाजी की शक्ति अधिक होती है। अतः अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए विशिष्ट छूट या सुविधा देनी की आवश्यकता होती है।

  • विक्रेताओं की शक्ति-:

प्रतियोगिता विक्रेता वस्तुओं की कीमतों में कमी या वृद्धि कर हमारी बिक्री को नियंत्रित कर सकते हैं; अतः उनकी नीतियों के अनुरूप नीति निर्माण करने का मुद्दा। 

  • विकल्प का खतरा-:

वर्तमान में प्रत्येक उत्पाद का विकल्प उपलब्ध हो जाता है अतः अपने उत्पाद की मांग निरंतर बनाए रखने के लिए उसमें निरंतर अपग्रेडेशन की आवश्यकता होती है। 

  • प्रतियोगी से प्रतिद्वंदता का मुद्दा-

प्रतियोगिकी के साथ लगातार मूल्य बदलाव युद्ध एवं विज्ञापन युद्ध चलता रहता है, जो एक प्रमुख व्यापारिक मुद्दा है। 

प्रबंधन संबंधी मुद्दे-: 

प्रभावी प्रबंधन ही उद्यम की सफलता की कुंजी है

  1. न्यूनतम संसाधनों द्वारा अधिकतम लक्ष्य प्राप्ति का मुद्दा। 

  2. मानव संसाधन नियोजन का मुद्दा। 

  3. मांग आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन का मुद्दा। 

  4. श्रमिकों के प्रशिक्षण एवं निरीक्षण संबंधी मुद्दा। 

  5. प्रभावी विज्ञापन एवं रणनीतियों के निर्माण का मुद्दा। 

  6. लगातार स्वयं एवं कर्मचारियों को अभिप्रेरित रखने का मुद्दा। 

प्रबंधन संबंधी मुद्दे से निपटने के लिए निम्न तकनीक का उपयोग किया जाता है-

  • तकनीकी कौशल तकनीक 

  • अंतर व्यक्तिक कौशल तकनीक 

  • वैचारिक कौशल तकनीक 

  • संचार कौशल तकनीक। 

एक न‌ए उद्यम को स्थापित करने से पहले निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. सुंयोजित व्यवसाय योजना का निर्माण। 

  2. उपयुक्त स्थान का चयन-जहां समुचित तथा अनुकूल श्रम, कच्चा-माल, परिवहन और बाजार उपलब्ध हो। 

  3. व्यावसायिक वातावरण का अध्ययन जैसे- बाजार प्रतियोगिता का अध्ययन क्रेताओं ,विक्रेताओं की शक्ति का अध्ययन। 

  4. पूंजी के स्रोत की निरंतर व्यवस्था- क्योंकि शुरुआत में लाभ शून्य और लागत अधिकतम होती है। 

  5. पर्यावरण संबंधित कानून का मूल्यांकन कर उनके अनुरूप उत्पादन की रणनीति बनाना। 

  6. सरकारी नियमों नीतियों के अनुरूप अनुमति लेना। 

  7. अप्रत्याशित मुद्दों से निपटने के लिए प्रबंधन टीम की व्यवस्था करना। 

भारत में उद्यमिता की धीमी गतिके कारण 

  • औद्योगिक या व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली का अभाव।

  • प्रशिक्षण सुविधाओं/केन्द्रों की कमी। 

  • तकनीकी पिछडापन। 

  • उद्यमशीलता की मनोवृत्ति का अभाव लोग सरकारी नौकरी को ज्यादा महत्व देते हैं। 

  • पूंजी की कमी-:  प्रति व्यक्ति आय कम होना। 

  • जटिल कानूनी नियमन प्रणाली। 

  • दुष्ट सामाजिक व्यवस्था जैसे- जातिवाद , भाषावाद, अंधविश्वास, पर्दा प्रथा। 

  • करों की अधिकता आदि। 

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