नदियों को जोड़ना एवं जल नीति

नदियों को जोड़ना एवं जल नीति

नहरों के माध्यम से दो नदियों (जिसमें से एक अधिक जल वाली नदी और एक कम जल वाली नदी) को आपस में जोड़ने की योजना; नदी जोड़ो परियोजना के नाम से जानी जाती है। 

-: इसका विस्तार सर्वप्रथम 1858 को ब्रिटिश इंजीनियर सर आर्थर कॉटन ने किया था। 

प्रभाव-:

सकारात्मक प्रभाव या लाभ-:

  • अत्यधिक जल वाली नदी के क्षेत्र में बाढ़ से मुक्ति। 

  • उपेक्षाकृत कम जल वाली नदी या सूखी नदी वाले क्षेत्रों में पर्याप्त जल की उपलब्धता। 

  • नहरों द्वारा विद्युत निर्माण। 

  • मत्स्य पालन में सहायक। 

  • जलमार्गों के विकास में सहायक। 

  • सूखा क्षेत्र में सिंचाई क्षमता की वृद्धि से कृषि उत्पादन में वृद्धि।

नकारात्मक प्रभाव या हानियां-:

  • स्थानीय लोगों के विस्थापन एवं पुनर्वास का मुद्दा। 

  • अधिक जल वाली नदी में पानी का प्रवाह कम होना। 

  • पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव। 

  • अंतर राज्य जल विवाद की स्थिति। 

पृष्ठभूमि-:

  • 1982 में इंदिरा गांधी की सरकार ने राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी का निर्माण किया। 

  • 2002 को अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने नदी जोड़ो योजना प्रस्तुत की। 

  • 2003 में इसके लिए पृथक टास्क फोर्स का गठन किया गया। 

  • 2005 में केन-बेतवा लिंक परियोजना की शुरुआत की गई। 

वर्तमान में राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना के घटक 

  • हिमालय नदी जोड़ो घटक -: इसके अंतर्गत 14 हिमालय नदियों को आपस में लिंक किया जाएगा। 

  • प्रायद्वीपीय नदी जोड़ो घटक-: इसके अंतर्गत 16 प्रायद्वीपीय नदियों को आपस में लिंक किया जाएगा। 

केन बेतवा लिंक परियोजना-:

  • यह हिमालय नदी जोड़ो परियोजना का एक प्रमुख घटक है। 

  • इसकी शुरुआत 2005 से की गई। 

  • यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की संयुक्त नदी जोड़ो परियोजना है। 

  • इसके अंतर्गत केन नदी को नहर के माध्यम से बेतवा नदी से जोड़ा गया। 

  • दोनों नदी के बीच नहर बनाई गयी है,जिसकी लंबाई 231 किलोमीटर है। 

 केन बेतवा लिंक परियोजना के लाभ -:

  • इससे बुंदेलखंड की लगभग 10 लाख एकड़ भूमि संचित होगी। 

  • केन बेतवा लिंक परियोजना से, लगभग 62 लाख लोगों के लिए पेयजल की आपूर्ति हो पाएगी। 

  • इस परियोजना से लगभग 120 मेगावाट विद्युत का उत्पादन होगा। 

केन बेतवा लिंक परियोजना की हानि या दुष्प्रभाव-:

  • केन बेतवा लिंक परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व का लगभग 98 वर्ग किलोमीटर का एरिया डूब क्षेत्र में आ जाएगा। 

  • इसके आसपास की लगभग 22 गांव भी डूब क्षेत्र के अंतर्गत आ जाएंगे। 

  • इससे लगभग 30 से 40 लाख पेड़ काटे जाने का अनुमान है। 

 

राष्ट्रीय जल नीति 

भारत में जल संसाधन के प्रबंधन तथा उपयुक्त दोहन को नियंत्रित करने हेतु, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय जल नीतियां बनाई गई-:

  • राष्ट्रीय जल नीति 1987 

  • राष्ट्रीय जल नीति 2002 

  • राष्ट्रीय जल नीति 2012

राष्ट्रीय जल नीति 2012-:

उद्देश्य-

  • मौजूदा जल संसाधन का आकलन करना 

  • उपलब्ध जल का उपयुक्त जल प्रबंधन करना। 

  • जल संकट को कम करना। 

राष्ट्रीय जल नीति 2012 की विशेषताएं-:

  1. अंतर राज्य नदी घाटी परियोजना के इष्टतम विकास हेतु, राष्ट्रीय जल ढांचा कानून पर बल। 

  2. जल संसाधनों के दोहन में पेयजल की पूर्ति को प्राथमिकता। 

  3. पारिस्थितिकी आवश्यकताओं के अनुरूप, नदियों के प्रवाह की समुचित व्यवस्था। 

  4. जल की कुशलतम उपयोग हेतु जल पद-चिन्ह, जल ऑडिटिंग की अवधारणा का विकास।  

  5. जल के पुनर्चक्रण तथा पूनर्दोहन को बढ़ावा। 

  6. शहरी क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्रों में जलापूर्ति की असमानता को कम करना। 

  7. जल संसाधन प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना। 

इसके अतिरिक्त 2019 में नवीन जल नीति के निर्माण हेतु मेहर सहायक की अध्यक्षता में 11 सदस्य समिति बनाई गई है, परिणामत: शीघ्र ही नई राष्ट्रीय जल नीति बनाई जाएगी। 

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