[पर्यावरण संरक्षण के संवैधानिक प्रावधान, नीतियां एवं नियामक ढांचा]
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भारत प्राचीन काल से ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर सजग रहा है, तभी तो प्राचीन काल के धार्मिक ग्रंथ जो उस समय के नियम कानून हुआ करते थे उनमें पर्यावरण संरक्षण के प्रावधान किए गए तथा पर्यावरण संरक्षण से संबंधित परंपरा विकसित की गई जैसे घर में तुलसी का पौधा लगाने की परंपरा, गाय पूजा की परंपरा आदि, और केवल प्राचीन काल में ही नहीं बल्कि आधुनिक भारत में भी पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेकों संविधानिक प्रावधान किए गए,नीतियां बनाई गई व नियामक ढांचा तैयार किया गया जिसका विवरण निम्नलिखित है-
[पर्यावरण संरक्षण के संवैधानिक प्रावधान]
भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अनेकों प्रावधान किए गए हैं जिसका विवरण निम्नलिखित है-
मौलिक अधिकारों में-:
अनुच्छेद 21 में- जीवन जीने का अधिकार दिया गया है, जिसकी व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण में जीवन जीने का अधिकार है।
नीति निर्देशक तत्व में-:
अनुच्छेद 47 में-: सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने हेतु पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने का प्रावधान शामिल है।
अनुच्छेद 48 में-: कहा गया है कि राज्य जीव-जंतुओं को संरक्षित करेगा।
अनुच्छेद 48 (A) में-: कहा गया है कि राज्य वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा करेगा।
मौलिक कर्तव्य में-:
अनुच्छेद 51 (A)(g)-: के अनुसार नागरिकों का यह कर्तव्य कि वे प्राकृतिक पर्यावरण (जैसे तालाब ,नदी , वन्यजीव, जंगल) की रक्षा एवं संवर्धन करें।
संवैधानिक उपचारों में-:
अनुच्छेद 32-: उच्चतम न्यायालय पर्यावरण संरक्षण हेतु रिट जारी कर सकता है।
अनुच्छेद 226-: उच्च न्यायालय पर्यावरण संरक्षण हेतु लिस्ट जारी कर सकता है।
स्थानीय स्वशासन-:
संविधान की 11वीं और 12वीं अनुसूची में स्थानीय स्वशासन द्वारा मृदा संरक्षण ,जल संरक्षण ,जंगलों की सुरक्षा और पर्यावरण रक्षा से संबंधित प्रावधान किए गए हैं।
[पर्यावरण संरक्षण संबंधी नीतियां]
राष्ट्रीय वन नीति 1988-:
भारत में वनों का संरक्षण एवं संवर्धन करने के लिए,वर्ष 1988 में भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 1952 की वन नीति को संशोधित करके, राष्ट्रीय वन नीति 1988 बनाई गई।
लक्ष्य-: देश के 33% भूभाग को वनाच्छादित करना।
इसके प्रमुख प्रावधान (उद्देश्य)निम्नलिखित हैं-
प्राकृतिक वनस्पति को संरक्षित करना।
मरुस्थलीकरण रोककर,वन क्षेत्र का विस्तार करना।
वन उत्पादों के अनुकूलतम प्रयोग को बढ़ावा देना तथा लकड़ी का विकल्प ढूंढना।
सामुदायिक सहयोग से वनों का प्रबंधन करना।
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति-: 2006
पर्यावरण संबंधी विभिन्न चुनौतियों का समाधान करके, पर्यावरण संवर्धन करने हेतु वर्ष 2006 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पर्यावरण नीति बनाई गई,
प्रमुख प्रावधान/ उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
सभी तबके के लोगों विशेषकर गरीबों तक पर्यावरण संसाधनों की पहुंच सुनिश्चित करना।
पर्यावरणीय संसाधनों के अधिक दक्षता पूर्ण प्रयोग को बढ़ावा देना।
प्रमुख पर्यावरण समस्या जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण पर नियंत्रण स्थापित करना।
राष्ट्रीय जल नीति- 2012
भारत में जल संरक्षण को बढ़ावा देते हुए सभी लोगों तक जल की पर्याप्त पहुंच सुनिश्चित करने के लिए,वर्ष 2012 में भारत सरकार के जल मंत्रालय द्वारा भारतीय जल नीति 2002 को संशोधित करके, राष्ट्रीय जल नीति 2012 लागू की गई।
इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-:
पेयजल की गुणवत्ता को बढ़ाना।
जल संसाधन के अनुकूलतम प्रयोग को बढ़ावा देना।
सभी लोगों तक आवश्यकतानुसार पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
राष्ट्रीय हरित राजमार्ग नीति-: 2015
मुख्य सड़कों के किनारे वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए, वर्ष 2015 में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय हरित राज्य मार्ग नीति 2015 लागू की गई।
लक्ष्य-: देश के 96000 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग को हरित गलियारों में परिवर्तन करना।
राष्ट्रीय पवन-सौर्य हाइब्रिड नीति-: 2018
भारत में नवीनीकरण ऊर्जा स्त्रोतों से विद्युत निर्माण को बढ़ावा देने के लिए, वर्ष 2015 में नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पवन-सौर्य हाइब्रिड नीति बनाई गई।
लक्ष्य-: 2022 तक 175 मेगा वाट नवीनीकरण ऊर्जा निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करना है।
इस नीति के अंतर्गत पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा दोनों का एक साथ उपयोग करके विद्युत निर्माण की तकनीकी के विकास एवं विस्तार को बढ़ावा दिया गया है।
जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति 2018-:
भारत में जैविक पदार्थों से सुरक्षित ऊर्जा आपूर्ति को बढ़ाने के लिए, वर्ष 2018 को नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जैव-इधन पर राष्ट्रीय नीति 2018 बनाई गई,
लक्ष्य- 2022 तक 175 मेगा वाट नवीनीकरण ऊर्जा निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करना है।
इस नीति की कार्य योजना-
गन्ना, मक्का जैसे पदार्थों से ऐथेनाल का निर्माण करके, उसका प्रयोग पेट्रोल के साथ करना तथा जैविक अपशिष्ट से बायोगैस का उत्पादन करना।
मध्यप्रदेश जैविक कृषि नीति 2011-:
मध्यप्रदेश में रासायनिक कृषि के स्थान पर जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2011 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मध्यप्रदेश जैविक कृषि नीति 2011 लागू की गई।
लक्ष्य-: मध्य प्रदेश में जैविक कृषि के कुल क्षेत्रफल 2 लाख हेक्टेयर को बढा़कर 4 लाख हेक्टेयर करना।
[पर्यावरण संरक्षण हेतु नियामक ढांचा]
पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन से संबंधित नीतियां, नियम और कार्यक्रम बनाने तथा उनका क्रियान्वयन करने के लिए अनेकों संस्थाएं कार्यरत होती हैं, जिनकी संरचनात्मक व्यवस्था को संयुक्त रुप से नियामक ढांचा कहा जाता है।
और भारत में पर्यावरण संरक्षण हेतु निम्न नियामक संस्थाएं कार्यरत हैं-:
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय-:
यह भारत सरकार का प्रमुख मंत्रालय है जिसकी स्थापना 1985 में की गई थी। यह यह वन एवं पर्यावरण से संबंधित विभिन्न नीतियां ,नियम ,कार्यक्रम बनाने तथा उनको लागू करने का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह पर्यावरण से संबंधित विभिन्न संस्थाओं के मध्य सामंजस्य बैठाकर उनको नियंत्रित एवं निर्देशक भी करता है।
नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय-:
भारत में अक्षय ऊर्जा का विकास एवं विस्तार करने हेतु, वर्ष 1992 में नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय की स्थापना की गई, जो सौर ऊर्जा ,पवन ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा के विकास से संबंधित महत्वपूर्ण नीतियां, नियम, कार्यक्रम बनाने उनको लागू करने का कार्य करता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-:
यह भारत में पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने वाली सर्वोच्च संस्था है जिसका गठन 1974 को जल प्रदूषण नियंत्रण एवं रोकथाम अधिनियम 1974 के तहत किया गया।
इसके कार्य-:
प्रदूषण संबंधी मानकों का निर्धारण करना।
प्रदूषण संबंधी सांख्यिकी डाटा को एकत्रित करके, उसकी रिपोर्ट प्रकाशित करना।
जल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जल स्त्रोतों की साफ-सफाई करवाना उनको शुद्ध करना।
केंद्र सरकार को प्रदूषण नियंत्रण संबंधी सलाह देना।
लोगों को प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रेरित एवं जागरूक करना।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE)-:
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की स्थापना ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 के तहत वर्ष 2002 में की गई, जिसका मुख्यालय दिल्ली में स्थित है।
उद्देश्य-: ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए कार्य करना।
कार्य-:
ऊर्जा दक्षता के संदर्भ में अनुसंधान करना।
दक्ष ऊर्जा उपकरणों का विकास करके उनके प्रयोग को बढ़ावा देना।
विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की ऊर्जा दक्षता का मानक निर्धारण करना तथा उन्हें ऊर्जा दक्षता के अनुसार रेटिंग देना।
वाणिज्यक भवनों के लिए, ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC) का निर्धारित करना।
ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में परामर्शी सेवाएं देना।
ऊर्जा दक्षता के प्रति लोगों को जागरूक करना।
पर्यावरण शिक्षा केंद्र-:
भारत में पर्यावरणीय शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 1984 को भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पर्यावरण शिक्षा केंद्र की स्थापना की गई। जिसका प्रधान कार्यालय अहमदाबाद में स्थित है।
कार्य-:
आम लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना।
पर्यावरणीय समस्याओं का उपयुक्त हल निकालना।
लोगों को पर्यावरण संरक्षण का प्रशिक्षण देना।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)-:
एक न्यायिक निकाय है, जिसकी स्थापना अक्टूबर 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के तहत की गई। इसका प्रधान कार्यालय दिल्ली में स्थित है किंतु अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय निम्न स्थानों में है
भोपाल
पुणे
कोलकाता
चेन्नई
राष्ट्रीय हरित अधिकरण का कार्य-:
इसका मुख्य कार्य पर्यावरण संरक्षण के नियमों-अधिनियमों के तहत पर्यावरण से संबंधित विभिन्न विवादों का शीघ्रता के साथ निपटान करना है।
भारत में पर्यावरण से संबंधित नियम एवं अधिनियम
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972
जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम 1974
वन संरक्षण अधिनियम 1980
वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1981
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण नियम 2000।
जैव विविधता अधिनियम 2002।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016