पारंपरिक उद्योगों का विकास और समर्थन

पारंपरिक उद्योगों का विकास और समर्थन

अर्थ-: औद्योगिक-काल के पूर्व के कुटीर तथा ग्रामीण उद्योगों को पारंपरिक उद्योग कहा जाता है। 

उदाहरण के लिए- हथकरघा का उद्योग। 

पारंपरिक उद्योगों की विशेषताएं

  • छोटा पैमाना– पारंपरिक उद्योग आमतौर पर छोटे पैमाने के उद्योग होते हैं जो परिवार या छोटे समूह द्वारा संचालित किए जाते हैं। 

  • स्थानीय कौशल- उद्योग स्थानीय ज्ञान तथा अनुभव पर आधारित होते हैं। 

  • श्रम की प्रधानता- इन उद्योगों में श्रम की प्रधानता होती है ना की मशीनों की प्रधानता। 

  • नैसर्गिक सामग्री-इन उद्योगों में आमतौर पर आसपास की प्राकृतिक समुद्रियों का उपयोग किया जाता है जैसे- बीड़ी उद्योग में तंबाकू पत्ता का।

मध्य प्रदेश के प्रमुख पारंपरिक उद्योग-

हस्तशिल्प संबंधी

  • मिट्टी के बर्तन

  • धातुशिल्प

  • लकड़ी की नक्काशी

  • बुनकर 

  • हथकरघा उद्योग

  • बांस से टोकनी निर्माण

खाद्य प्रसंस्करण संबंधी

  • अचार निर्माण

  • पापड़ निर्माण 

  • मसाले का निर्माण

  • गुड़ निर्माण

अन्य उद्योग

  • बीड़ी उद्योग 

  • रेशम उत्पादन

  • रंगाई छपाई तथा कालीन निर्माण। 

मध्य प्रदेश में हथकरघा उद्योग की स्थिति

वर्ष 2022-23 तक मध्य प्रदेश राज्य में लगभग 16. 30 हजार हड़कर की कार्यशील है, जिसमें लगभग 40000 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है। 

पारंपरिक उद्योगों का महत्व

  • क्षेत्रीय स्तर पर रोजगार प्रदाता के रूप में। (किसी विशेष कौशल की आवश्यकता नहीं होती)

  • घरेलू आय का प्रमुख साधन। 

  • सांस्कृतिक विरासत एवं विविधता का संरक्षण। 

  • बड़े उद्योगों के लिए सहायक सामग्री की पूर्ति में उपयोगी। 

पारंपरिक उद्योगों की चुनौतियां

  • बड़े उद्योगों से प्रतिस्पर्धा की चुनौती

  • बाजार संबंधी आंकड़ों की कमी

  • उत्पादित माल को भंडारण एवं परिवहन करने की समस्या। 

  • आसानी से ऋण उपलब्ध न हो पाने की समस्या। 

  • युवा पीढ़ी में परंपरागत रोजगार की प्रति अरुचि। 

मध्यप्रदेश में परंपरागत उद्योगों के विकास के लिए पहलें

  • खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड- 1960-61 भोपाल में स्थापित। 

  • संत रविदास हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास निगम -1981 वन

  • मुख्यमंत्री कारीगर स्वरोजगार योजना

  • कबीर बुनकर पुरस्कार योजना। 

  • MSME नीति -2021

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