[पेयजल]
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ऐसा स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त जल जो पीने के योग्य हो उसे पेयजल कहते हैं। पेयजल की प्रमुख विशेषताएं हैं कि पेयजल स्वच्छ, पारदर्शी, गंधहीन व शीतल होता है।
पेयजल की गुणवत्ता-:
गुणवत्तापूर्ण पेयजल का आशय ऐसे जल से है जिसमें निम्न विशेषताएं हों-:
भौतिक विशेषताएं-
पेयजल रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन होना चाहिए
पेयजल शीतल(10°C to 20°C) होना चाहिए।
जैविक विशेषताएं-
पेयजल रोगकारक सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया, वायरस)से मुक्त होना चाहिए।
जल की बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड BOD निर्धारित सीमा के अंदर होना चाहिए।
रसायनिक विशेषताएं-
पेयजल में घुलित खनिजों की मात्रा स्वीकृत सीमा में होना चाहिए जैसे- पेयजल में नाइट्रेट की वांछित मात्रा 45 मिलीग्राम/लीटर तथा कैल्शियम की बांछित मात्रा 75 मिलीग्राम प्रति लीटर निर्धारित की गई।
पेय जल का पीएच मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए
नागपुर स्थित नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार भारत में उपलब्ध कुल जल का लगभग 70% जल प्रदूषित है।
जल में अशुद्धि के कारण-:
जल में अशुद्धि के कारणों को दो भागों में बांटा जा सकता है
प्राकृतिक कारण
मानवजनित कारण
प्राकृतिक कारण-:
ज्वालामुखी उद्गार से निकले हानिकारक तत्वों का जल में घुल जाना।
जीव जंतुओं का मल-मूत्र तथा जहरीले पेड़ पौधों की पत्तियां जल में घुल जाना।
किसी स्थान में संग्रहित जल में, आसपास की भूमि के विषाक्त तत्व जैसे- शीशा, पारा, कैडमियम, नाइट्रेट अधिक मात्रा में घुल जाना।
मानवजनित कारण-:
जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानवीय गतिविधियां ही हैं,
उद्योगों से निकले अपशिष्ट जल को शुद्धिकरण किए बिना, सीधे स्वच्छ जल में छोड़ दिया जाना।
घरेलू कार्यों के अपशिष्ट जल जैसे कपड़े धोने के उपरांत प्राप्त होने वाला अपमार्जक युक्त जल, घरेलू सीवेज को सीधे नालियों द्वारा स्वच्छ जल के स्त्रोतों में छोड़ दिया जाना।
कृषि में अत्यधिक रसायनों एवं उर्वरकों के प्रयोग होने से कृषि भूमि में नाइट्रेट एवं फास्फेट की मात्रा बढ़ जाती है जिसका धीरे-धीरे भूमि का जल मेरे सा होता है परिणाम स्वरूप भूमिगत जल प्रदूषित हो जाता है।
मृत शरीरों,मृत पशुओं तथा अन्य पूजा संबंधी सामग्री को सीधी जल में बहा दिया जाना।
जल आपूर्ति करने वाली लाइन नालियों के आसपास से निकाला जाता है तथा उनकी उपयुक्त समय-समय पर निरीक्षण कि नहीं किया जाता परिणाम स्वरूप पेयजल की आपूर्ति करने वाले पाइपों में गंदे जल का रिसाव होने लगता है।
प्रभाव-:
प्रदूषित या अशुद्धि युक्त जल के सेवन से जहां एक ओर मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है क्योंकि दूषित जल के सेवन से हैजा, पीलिया ,अतिसार ,तपेदिक, टाइफाइड एवं पेचिश जैसे रोग हो जाते हैैं वहीं दूसरी ओर जलीय जैव विविधता खत्म होने लगती है।
प्रमुख जल प्रदूषकों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव-:
जल में हानिकारक बैक्टीरिया वायरस से-: हैजा, पीलिया, टाइफाइड ,टीवी ,अतिसार जैसे रोग हो सकते हैं।
जल में पारा, शीशा एवं कैडेमियम की अधिकता से-: क्रमशः मिनीमाता, एनीमिया तथा इटाई इटाई रोग हो जाता है।
जल में आर्सेनिक की अधिकता से-: ब्लैकफुट रोग हो जाता है
जल में नाइट्रेट की अधिकता से-: बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम हो जाता है जिससे रक्त परिसंचरण तंत्र में बाधा उत्पन्न होती।
जल में फ्लोरीन की अधिकता से-: फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है जिसमें दांत एवं हड्डी कमजोर होने लगती है।
जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय-:
किसी भी पानी को एक जगह एकत्रित होने से रोका जाए उसे प्रवाह के लिए मार्ग बनाया जाए क्योंकि संग्रहित जल में विभिन्न सूक्ष्मजीवों की वृद्धि होती है जो जल को दूषित करते हैं।
उद्योग एवं घरेलू कार्यों से निकलने वाले जल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा, शुद्ध करके ही, किसी जलस्रोत में मिलाया जाए।
कृषि कार्य में कीटनाशक एवं रसायनों का संतुलित मात्रा में प्रयोग किया जाए।
मृत शरीरों तथा पशुओं को सीधे जल में बहाने पर पूर्णता रोक लगाई जाए।
जल की आपूर्ति करने वाले पाइप लाइनों की समय प्रतिबद्धता के साथ निगरानी की जाए ताकि उस पानी में लीकेज द्वारा अशुद्धियां ना घुल सकें।
अशुद्ध पानी को शुद्ध करने के लिए पेयजल स्त्रोतों में समय-समय पर रोगाणुरोधी दवाइयां जैसे- क्लोरीन, पोटेशियम परमैग्नेट का छिड़काव किया जाए।
इन सभी उपायों के अलावा लोगों को स्वच्छ पेयजल के प्रति जागरूक किया जाए। अर्थात उन्हें बताया जाए कि प्रदूषण युक्त जल को कैसे प्रदूषण मुक्त बनाया जाए।
जल प्रदूषण से जुड़ी शब्दावली-:
घुलित ऑक्सीजन ( DO) -:
जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा को डिजोल्व ऑक्सीजन कहा जाता है
और यदि किसी जल में डिजोल्व ऑक्सीजन की मात्रा 4mg/liter से भी कम है तो उसे प्रदूषित जल कहा जाता है।
जैविक ऑक्सीजन मांग-:
जल में उपस्थित सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया) को कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करने के लिए जितनी घुलित ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, उसे जैविक ऑक्सीजन मांग कहते हैं।
रसायनिक ऑक्सीजन मांग-:
जल में कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण के लिए जितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, उसे रसायनिक ऑक्सीजन मांग(COD) कहते हैं।
पेयजल की आपूर्ति-:
स्वच्छ एवं सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति मानव एक बुनियादी मानवाधिकार है, क्योंकि स्वच्छ पेयजल जीवन का आधार है इसके बिना जीवन संभव नहीं है किंतु समेकित जल प्रबंधन रिपोर्ट के अनुसार भारत की लगभग 70% ग्रामीण आबादी दूषित जल पीने के लिए मजबूर है। हालांकि सरकार द्वारा सभी तक स्वच्छ पेयजल की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अनेकों कदम उठाए गए हैं जैसे-:
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम-:
देश में ग्रामीण आबादी को पर्याप्त एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए वर्ष 2013 में इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई,
इस कार्यक्रम का लक्ष्य 2022 तक 90% ग्रामीण परिवारों को नल कनेक्शन प्रदान करना है।
इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण परिवारों को निशुल्क नल कनेक्शन किया जाता है।
स्वजल योजना-:
इस योजना की शुरूआत वर्ष 2018 को की गई जिसका लक्ष्य सौर ऊर्जा का उपयोग करके, भू-जल निकाल कर उसे दूरदराज के क्षेत्र तक पहुंचाना है।
नल जल योजना-:
यही योजना 2019 में प्रारंभ की गई,इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2024 तक पाइप लाइन के माध्यम से प्रत्येक घर तक स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना है।
हैंडपंप-:
हैंडपंप का पानी पेयजल की गुणवत्ता में काफी ज्यादा खरा उतरता है अतः भारत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जगह-जगह पर हैंडपंप लगवाए हैं।
मध्यप्रदेश में पेयजल आपूर्ति-:
मध्य प्रदेश सरकार प्रदेश की सभी जनता को पर्याप्त स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति उपलब्ध करवाने में प्रयत्नशील है इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मध्य प्रदेश जल निगम की स्थापना भी की गई तथा मुख्यमंत्री पेयजल योजना की भी शुरुआत की गई,के परिणाम स्वरूप वर्तमान में मध्य प्रदेश की कुल 127448 बसावटों में से लगभग 98500 बसावटों में निर्धारित किए गए 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मान से जल उपलब्ध करवाया जा चुका है।