प्राचीन एवं आधुनिक वेधशाला
भारत में प्राचीन काल से ही खगोलीय शोध होता आ रहा है, जिसके लिए प्रयोगशाला के तौर पर वेधशालाओं का प्रयोग होता था।
वेधशाला क्या होती है-
ऐसा स्थान, जहां विभिन्न ज्यामितीय उपकरणों के माध्यम से खगोलीय अनुसंधान किया जाता है।
वेधशाला काउपयोग
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गृह, तारों एवं नक्षत्रों की गति व दिशा पता लगाने में।
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सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के निर्धारण में।
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समय ज्ञात करने तथा पंचांग निर्माण में।
प्रमुख प्राचीन भारतीय वेधशालाएं -:
जयपुर के राजा, सवाई जयसिंह द्वितीय ने प्रारंभिक 18 वीं सदी में पांच वेधशालाओं का निर्माण करवाया था-:
उज्जैन वेधशाला-
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यह महाकालेश्वर मंदिर के पास स्थित है।
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इस वेधशाला के सम्राट यंत्र से समय का निर्धारण किया जाता है।
दिल्ली वेधशाला-
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यह जंतर मंतर के नाम से जानी जाती है, जो की समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है।
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इसके प्रमुख यंत्र-: राम यंत्र, जय प्रकाश यंत्र हैं।
जयपुर वेधशाला-
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यह अपने विशाल खगोलीय यंत्रों के लिए प्रसिद्ध है।
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यहां से आज भी ग्रह नक्षत्र की स्थिति एवं गति का निर्माण होता है।
वाराणसी वेधशाला-
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यह पहले ज्योतिष विद्या का विश्वविद्यालय था।
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इसके प्रमुख यंत्र-:
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सम्राट यंत्र
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चक्र यंत्र
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दिगंश यंत्र
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भित्ति यंत्र हैं।
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मथुरा वेधशाला-
यह वर्तमान में नष्ट हो चुकी है।
प्रमुख आधुनिक वेधशालाएं (ऑब्जर्वेटरी)
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भारतीय खगोलीय वेधशाला, लद्दाख-: दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची ऑप्टिकल वेधशाला है।
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वेणु बप्पू वेधशाला, तमिलनाडु-: इसमें एशिया का सबसे बड़ा टेलीस्कोप है।
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सौर वेधशाला, उदयपुर (राजस्थान)
Ligo- laser interferometer gravitational wave observatory
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यह प्रोजेक्ट हाल ही में महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में लगाया गया है,
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इसका उद्देश्य गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाना है।
उज्जैन की वैदिक घड़ी-:
हाल ही में उज्जैन की जीवाजी राव वेधशाला में, 80 फीट ऊंचे टावर पर, विश्व की पहली वैदिक घड़ी लगाई गई है;
जिसमें एक घंटा 48 मिनट का होता है।