भारत में मिट्टियां
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में भारत की मिट्टियों को आठ प्रकारों में वर्गीकृत किया है-:
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जलोढ़ मिट्टी
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लाल मिट्टी
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काली मिट्टी
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लेटराइट मिट्टी
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पर्वतीय मिट्टी
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मरुस्थलीय मिट्टी
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दलदली मिट्टी
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लवणीय मिट्टी।
जलोढ़ मिट्टी-:
यह भारत के सर्वाधिक क्षेत्र में पाई जाने वाली मिट्टी है।
निर्माण-: नदियों द्वारा बहाकर ले गए अवसादों के निक्षेपण से।
उपयोग-: धान की खेती के लिए उपयुक्त, इसके अतिरिक्त गेहूं और आलू के लिए भी यह उपयोगी होती है।
क्षेत्र विस्तार-: जलोढ़ मिट्टी भारत के लगभग 15 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में पाई जाती है,
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प्रमुख क्षेत्र-:
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हिमालय का तराई प्रदेश।
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असम-ब्रह्मपुत्र मैदान।
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पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्र।
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नदियों का डेल्टाई क्षेत्र।
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लाल मिट्टी -:
भारत की दूसरी सर्वाधिक विस्तार वाली मिट्टी।
निर्माण-: रविवार अग्नि चट्टान ऑन (जैसे कि- ग्रेनाइट, नीस,कुटप्पा) के अपक्षय से।
उपयोग-: बाजार तथा मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त।
और
काली मिट्टी -:
यह भारत की तीसरी सर्वाधिक विस्तार वाली मिट्टी है।
निर्माण-: बेसाल्टिक चट्टानों के अपक्षय से।
उपयोग -: कपास की फसल के लिए उपयोगी।
क्षेत्र विस्तार-: यह भारत के 5.5 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में पाई जाती है।
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प्रमुख क्षेत्र
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ढक्कन का पठारी क्षेत्र।
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महाराष्ट्र, दक्षिण-पश्चिम मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश।
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लेटराइट मिट्टी-:
यह भी लाल रंग की मिट्टी है।
निर्माण-: 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में निक्षालन की क्रिया से।
उपयोग-: चाय ,कॉफी, इलायची ,काजू की खेती के लिए उपयुक्त तथा ईंटों के लिए भी प्रयोग की जाती हैं।
क्षेत्र-: लेटराइट मिट्टी भारत के 3.7% भाग पर पाई जाती है।
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प्रमुख क्षेत्र-:
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पर्वतों के गिरीपदीय क्षेत्र एवं पश्चिमी घाट में।
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उदाहरण के लिए – मेघालय, असम,उड़ीसा,केरल,कर्नाटक तमिलनाडु।
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पर्वतीय मिट्टी -:
भारत की पांचवीं सबसे बड़ी मिट्टी।
निर्माण-: पर्वतीय क्षेत्रों में पर्वतीय चट्टानों के टूटने से।
प्रयोग-: यह मिट्टी बागानी कृषि के लिए उपयुक्त है जैसे-चाय, कहवा, सेव, नाशपाती,मसाला।
क्षेत्र-: यह भारत की लगभग 2.85 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में पाई जाती है।
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प्रमुख क्षेत्र-: हिमालय क्षेत्र प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र।
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जैसे- जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड अरुणाचल प्रदेश,तमिलनाडु।
मरुस्थलीय मिट्टी -:
निर्माण -: यह न्यून वर्षा तथा अधिकतम वशीकरण वाले क्षेत्र में निर्मित होती है।
उपयोग-: मोटा अनाज (जैसे-मक्का, बाजरा,ज्वार, सरसों के लिए उपयुक्त।
क्षेत्र– राजस्थान, गुजरात, दक्षिण हरियाणा, दक्षिण पंजाब
लवणीय मिट्टी-:
इस रेह मिट्टी, कलर मिट्टी, उसर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
निर्माण-: उच्च जल स्तर वाले इलाकों में किसी केशिकत्व की क्रिया से।
उपयोग -: यह कृषि की दृष्टि से कम उपजाऊ मिट्टी है
क्षेत्र-: गुजरात का कच्छ क्षेत्र, डेल्टा क्षेत्र, इंदिरा सागर नहन का क्षेत्र।
दलदली मिट्टी-:
यह हल्की काले रंग की मिट्टी होती है।
निर्माण-: अत्यधिक जल वाले क्षेत्रों में वनस्पतियों के सड़ने से।
उपयोग-: दलदली मिट्टी मैंग्रोव, सुन्दरी तथा केजूराइना जैसे वनों के लिए उपयुक्त है।
प्रमुख क्षेत्र-: केरल, उत्तराखंड,सुंदरबन डेल्टा।