भूमिगत जल-:
This page Contents
Toggleवर्षा का वह जल जो भूमि द्वारा शोख लिया जाता है उसे भूमिगत जल कहते हैं तथा भूमिगत जल के अपरदन एवं निक्षेपण से निर्मित स्थलाकृतियां कार्स्ट स्थलाकृतियां कहलाती है। क्योंकि भूमिगत जल के द्वारा मुख्यतः चूना पत्थर, डोलोमाइट की चट्टानों का अपरदन एवं निक्षेपण होता है।
भूमिगत जल के अपरदन से निर्मित स्थलाकृति-:
लैपीज-:
जब चूना पत्थर की चट्टानों में जल की घुलनशील प्रक्रिया के कारण, अपरदन होने से छोटे-छोटे सृंग-गर्त की आकृति बनती हैं तो इसे लैपीज कहते हैं
.
घोल छिद्र-:
जब चूना पत्थर की चट्टानों में कार्बन डाइऑक्साइड गैस युक्त जल लगातार गिरता है तो चूना पत्थर की चट्टानों में छिद्र या गड्ढे हो जाते हैं जिन्हें घोल छिद्र कहते हैं।
.
डोलाइन-: बड़े अकार के घोल छिद्र।
युवाला-:
जब बहुत से डोलाइन मिलकर एक विस्तृत गर्त जैसी आकृति बनाते हैं तो इसे युवाला कहते हैैं।
पोल्जे-:
बहुत से युवाला मिलकर बड़ी खाइयों का निर्माण करते हैं जिसे पोल्जे कहा जाता है।
उदाहरण के लिए-: लिनवो पोल्जे(बुल्गारिया)।
कंदरा-:
जब चूना पत्थर की चट्टानों में जल की घुलनशील प्रक्रिया के अपरदन के कारण गुफा के समान आकृति बनते हैं तो इसे कंदरा कहते हैं।
उदाहरण के लिए-: भारत की गुप्त गोदावरी की गुफा।
भूमिगत जल के निक्षेपण से बनने वाली आकृतियां-:
स्टैलेक्टाइट-:
जब चूना पत्थर की कंदराओं की आंतरिक छत में भूमिगत जल का वाष्पीकरण होने से ,कार्स्ट चट्टानें लटकती हुई दिखाई देती है तो इसे स्टैलेक्टाइट कहते हैं।
स्टैलेक्माइट-:
जब चूना पत्थर की कंदरा की सतह(फर्श) में निक्षेपण के कारण श्रंग गर्त युक्त स्तंम्भनुमा आकृति बनती है तो इसे स्टैलेग्माइट कहते हैं।
कंदरा स्तंभ-:
जब चूना पत्थर की कंदरा में स्टैलेक्टाइट और स्टैलेक्टाइट मिल जाते हैं तो कंदरा के अंदर स्तंभनुमा संरचना दिखाई देती है जिसे कंदरा स्तंभ कहते हैं।
.
सागरीय जल के कार्य-:
सागरीय जल स्तर ना रहकर गतिशील रहता है और सागरीय जल की तरंगों से अनेकों अपरदनात्मक एवं निक्षेपात्मक आकृतियां बनती हैं।
तटीय क्लिफ-:
जब सागरीय जल की तरंगे सागरीय तट के आधार पर प्रहार करके उसे अपरदित कर देती हैं जिससे खड़े ढाल वाले सागरीय तट का निर्माण होता है ऐसे ही तटीय क्लिफ कहते हैं।
.
मेहराब-:
जब सागरीय लहरों के प्रहार से सागर मैं स्थित शैल इस प्रकार से अपरदित होती है कि दोनों तरफ से खुली गुफा की भांति स्थलाकृति बनती है तो इसे मेहराब कहते हैं।
.
वातछिद्र-:
जब समुद्र के मेहराब की छत में सागरीय लहरों के तेज वेग से छिद्र हो जाता है तो इसे वातछिद्र कहते हैं।
स्टैक-:
जब सागरीय लहरों द्वारा शैल के अपरदन से सागर के अंदर स्तंभनुमा आकृति बनती है। तो इसे स्टैक कहते हैं।
.
सागरीय जल के निक्षेपण से निर्मित स्थलाकृतियां-:
बीच-:
सागरीय जल द्वारा अपने साथ बहा कर लाए गए अवसाद जैसे-: बालू ,बजरी,गोलाश्म आदि का तट में निक्षेपण होने से सागरीय तट में एक विशाल सुनहरा प्लेटफार्म बनता है जिसे बीच कहते हैं।
रोधिका-:
सागरीय जल द्वारा अपने साथ बहाकर लाए गए अवसादों के निक्षेपण से समुद्र तट से कुछ ही दूरी पर कटक या टापू के समान अवरोधक बनते हैं जिन्हें रोधिका का कहा जाता है।
संयोजक रोधिका-:
समुद्री तट के दो शीर्ष भूखंडों को आपस में जोड़ने वाली रोधिका का संयोजक रोधी का कहलाती है।
संयोजक रोधिका के द्वारा ही तट में लैगून झील का निर्माण होता है।
.
स्पिट-:
जब सागरीय जल के द्वारा बहाकर लाए गए अवसादो के निक्षेपण से ,समुद्री तट से जुड़ातथा सागर की ओर निकला हुआ कटक बनता है तो इसे स्पिट कहते हैं। इसे भू-जिह्वा भी कहते हैं।
सागरीय हुक-:
ऐसा स्पिट जो हुक्के आकार की भांति मुड़ा हो उसे सागरीय हुक कहते हैं।