मध्यकालीन मध्य प्रदेश के राजवंश

मध्यकालीन मध्य प्रदेश के राजवंश 

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गुर्जर प्रतिहार वंश-

जानकारी केस्रोत-

  • ग्वालियर का प्रशस्तिअभिलेख। 

  • एहोल अभिलेख, कर्नाटक। 

समयकाल- सातवीं से दसवीं सदी ईस्वी तक। 

गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन क्षेत्र-

मालवा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि के क्षेत्र में। 

राजधानी- गुर्जर प्रतिहार वंश की प्रारंभिक राजधानी उज्जैन थी बाद में ग्वालियर बनी, और फिर बाद में कन्नौज बनी। 

प्रमुख शासक-;

  • नागभट्ट प्रथम 

    • यह गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था।  

    • इसने अपनी राजधानी उज्जैन को बनाई,

    • सिन्ध के अरबों को पराजित किया, इसे नारायण की छाया भी कहा जाता है। 

  • वत्सराज- 

    • गुर्जर प्रतिहार वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक या वास्तविक संस्थापक था। 

    • पाल वंश के गोपाल को पराजित किया था। 

    • कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाला प्रथम प्रतिहार शासक था। 

  • नाग‌भट्ट द्वितीय-

    • उत्तरी भारत के साथ विदर्भ, आंध्र एवं कालिंग को जीता था।  

    • पाल शासक धर्म को पाल को पराजित किया। 

    • ग्वालियर तथा कन्नौज को राजधानी बनाया। 

  • मिहिरभोज-: 

    • इसका शासन काल 836 ई से 885 ई तक रहा। 

    • कलचुरियों को अपने अधीन किया। 

    • इसमें अपने साम्राज्य का विस्तार हिमालय से लेकर विदर्भ तक तथा पूर्व में गोरखपुर से लेकर पश्चिम में पंजाब तक किया। 

    • द्रविड़ शैली में तेली मंदिर का निर्माण करवाया।

  • महेंद्रपाल प्रथम-

    • मिहिर भोज के उत्तराधिकारी। 

    • पालों को अपने अधीन किया। 

    • राजशेखर को संरक्षण प्रदान किया। 

  • माहिपाल- 

    • ग्वालियर के चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाया , शून्य का प्रमाण यहीं से मिलता है।

  • कुमारपाल-

  • इसने मद्यपान एवं मांस पर प्रतिबंध लगाया। 

 गुर्जर प्रतिहार वंश के स्थापत्य -:

  • मुरैना के बटेश्वर मंदिर लगभग 200 मंदिरों का समूह। 

  • चतुर्भुज मंदिर महिपाल द्वारा निर्मित। 

  • तेली मंदिर मिहिरभोज द्वारा निर्मित। 

  • 64 योगिनी मंदिर, देवपाल द्वारा निर्मित। 

कलचुरी राजवंश-:

यह मध्यकालीन भारत का एक प्रमुख राजवंश था, इसकी मध्य प्रदेश में दो शाखाएं थी-:

  • माहिष्मती के कलचुरी 

  • त्रिपुरा के कलचुरी

माहिष्मती के कलचुरी-:

ये हेहय वंश (सहस्त्रबाहु) को अपना पूर्वज मानते हैं। 

जानकारी के स्रोत-

  • कलचुरी शिलालेख, खरगोन। 

समयकाल– छठवीं से सातवीं सदी तक। 

शासनक्षेत्र-; मालवा के क्षेत्र में राजधानी – महिष्मति। 

संस्थापक- कृष्णराज। 

प्रमुख शासक-

  • कृष्णराज-

    • माहिष्मती की कलचुरी वंश के संस्थापक। 

    • नदी के सिक्के जारी किया। 

    • तथा कालिंजर और ढाहल के क्षेत्र को जीता। 

  • शंकरराज –  

  • इनहे ही पूर्व और पश्चिम का समुद्र-स्वामी कहा जाता है। 
  • बुधराज- 

    • माहिष्मती के अंतिम प्रतापी शासक थे। 

    • इनको वातापी के चालुक्य के शासक मंगलेश ने आक्रमण कर,  पराजित किया, इसलिए ये त्रिपुरी (जबलपुर) चले गए

त्रिपुरा के कलचुरी-:

माहिष्मती की कलचुरी के पतन के बाद त्रिपुरी के कलचुरी का उदय हुआ। 

जानकारी के स्रोत- दण्डिन की दशकुमार चरित्र।

समयकाल – 9वीं से 13वीं सदी तक। 

संस्थापक – बापराज। 

क्षेत्र – महाकौशल के क्षेत्र में, राजधानी त्रिपुरी- जबलपुर। 

प्रमुख शासक – 

  • बापराज

  • त्रिपुरी के कलचुरी वंश का संस्थापक था। 
  • कोक्कल – 

    • त्रिपुरा की कलचुरी वंश का वास्तविक संस्थापक। 

    • चंदेल राजकुमारी नट्टा देवी से विवाह किया था। 

    • अपनी पुत्री का विवाह राष्ट्रकूट शासक कृष्ण द्वितीया से किया था। 

  • युवराज प्रथम –

    • इसने त्रिपुरी के 64 योगिनी मंदिर तथा विराटेश्वर मंदिर (शहडोल ) का निर्माण करवाया था। 

    • इसी के दरबार में राजशेखर नमक विद्वान रहता था, जिसने विंध्यसाल भंजिका पुस्तक की रचना की थी।

    • इसे उज्जैनी का भुजंग भी कहा जाता है क्योंकि इसने गुर्जरों से स्वतंत्र किया था।  

  • गांगेयदेव-:

    • विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी। 

    • लक्ष्मी के सोने के सिक्के चलाए थे। 

  • लक्ष्मीकर्ण -:

    • इसे हिंद का नेपोलियन कहा जाता है। 

    • सबसे प्रतापी शासक था। 

    • निर्माण कार्य – अमरकंटक के कर्ण मंदिर तथा जबलपुर के कर्णावती नगर का निर्माण करवाया था। 

    • सैन्य अभियान-

      • सोलंकी वंश के शासन भी प्रथम से मिलकर राजा भोज को पराजित किया था। 

    • उपाधि- परम-भट्टाकर की, परमेश्वर की, राजाधिराज की, त्रिकाललिंगाधिपति की उपाधिधरण की थी। 

  • विजय सिंह-:

  • अंतिम प्रतापी शासक। 

चंदेल वंश 

मध्य प्रदेश का एक प्रमुख मध्यकालीन राजपूत वंश था। 

जानकारी के स्रोत- 

  • खजुराहो अभिलेख। 

  • न्योनौरा अभिलेख, हमीरपुर

  • मऊ प्रस्तर अभिलेख। 

  • महोबा अभिलेख। 

  • कीर्ति बर्मन के दरबारी कृष्ण मित्र की पुस्तक प्रबोध चंद्रोदय। 

  • जगनिक की पुस्तक आल्हा खंड एवं परमाल रासो से जानकारी प्राप्त होती है। 

चंदेल वंश का समयकाल – 8वीं सदी से 12वीं सदी तक। 

चंदेल वंश का शासन क्षेत्र- वर्तमान बुंदेलखंड का क्षेत्र, (जेजाकभुक्ति) 

राजधानी- खजुराहो , फिर बाद में कालिंजर। 

संस्थापक- नन्नुक। 

चंदेल वंश की प्रमुख शासक-:

  • नन्नुक-: 

    • चंदेल वंश के संस्थापक थे। 

    • इन्होंने अपनी राजधानी खजुराहो को बनाया था। 

    • ये गुर्जर प्रतिहरों के सामंती शासन थे। 

  • वाक्पति -: 

    • इन्होंने विंध्य पर्वत तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। 

  • जयशक्ति-:

  • इन्हीं के नाम पर चंदेल वंश के क्षेत्र को जेजाकभुक्ति  कहा जाता है। 
  • हर्ष-: 

    • हर्ष ने प्रतिहार शासक महिपाल को पुनः कन्नौज की गद्दी में बैठाया 

    • तथा मतंगेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया। 

  • यशोवर्मन- 

    • यह चंदेल वंश का एक प्रतापी शासक था, 

    • इसने त्रिपुरी के कल्चुरी शासक युवराज प्रथम तथा मालवा के परमार शासक सीयक द्वितीय को हराया था। 

    • इसी ने खजुराहो में लक्ष्मण मंदिर तथा चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाया था। 

  • धंगदेव-: 

    • चंदेलों को प्रतिहारों से स्वतंत्र करवाया। 

    • कालिंजर को अपनी राजधानी बनाई। 

    • विश्वनाथ तथा पार्शवनाथ मंदिर का निर्माण करवा। 

    • परम भट्टाकर, परमेश्वर, कालिंजराधिपति, महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। 

    • तथा कच्छप शासक वज्रमणि को पराजित किया था। 

    • इसके अतिरिक्त किसने जयपाल को महमूद गजनबी के विरुद्ध सहायता भेजी थी। 

  • गंडदेव-:

  • खजुराहो के चित्रगुप्त मंदिर तथा जगदंबा मंदिर का निर्माण किसने करवाया था। 
  • विद्याधर-: 

    • यह चंदेल वंश का सबसे प्रतापी शासक माना जाता है जिसने राजा भोज तथा गांगेयदेव दोनों को पराजित किया था। 

    • प्रतिहार शासक जयपाल की हत्या की थी, क्योंकि जयपाल ने महमूद गजनबी का साथ दिया था। 

    • निर्माण कार्य – कंदरिया महादेव मंदिर। 

  • कीर्ति बर्मन- 

    • इसने लक्ष्मी कान को पराजित कर चंदेलों को कल्चुरियन से स्वतंत्र कराया था

    • कीर्तिबर्मन के दरबार में ही कृष्णमित्र रहते थे, जिन्होंने प्रबोध चंद्रोदय की रचना की थी। 

परमार वंश –

राष्ट्रकूट तथा प्रतिहरों का एवं सामंत राजपूत वंश था। 

परमार वंश की जानकारी के स्रोत-

  • उदयपुर प्रशस्ति अभिलेख, विदिशा। 

  • पद्मगुप्त कीरचना ‘नवसहसांगचरित्र’। 

  • मेरूतुंग की रचना प्रबंध चिंतामणि। 

  • भोज की रचनाएं। 

परमार वंश का समयकाल- 9 वीं साड़ी से 14वीं सदी तक। 

परमार वंश का शासन क्षेत्र-: प्रमाण वंश का शासन मालवा के क्षेत्र में था। 

संस्थापक- उपेंद्र कृष्णराज। 

परमार वंश के प्रमुख शासक-

  • बेरी सिंह द्वितीय -: अपनी राजधानी उज्जैन से धार स्थानांतरित की। 

  • सीयक द्वितीय -: 

    • इसे श्री हर्ष के नाम से भी जाना जाता है, यह परमार वंश का वास्तविक संस्थापक था। 

    • राष्ट्रकूट शासक ‘खोति’ को हराकर परमारों को राष्ट्रकूटों से मुक्त किया।

  • वाक्पति मुंज -: 

    • सैन्य विजय- कल्याणी के चालुक्य शासक, तैलप-द्वितीय को 6 बार हराया। 

    • निर्माण कार्य – मुंज सागर झील (धार) मुंज-नगर (गुजरात) का निर्माण करवाया। 

    • दरबारी– पद्मगुप्त (‘नवसहसांगचरित्र’) मेरूतुंग(प्रबंध चिंतामणि) धनंजय (दशरूपक) धनिक(यशोरूपावलोक) हवामहल( पिंगल सूत्रवृति)। 

    • उपाधि- श्री वल्लभ, पृथ्वी वल्लभ, अमोघ वर्ष। 

    • विषेश – इनकी काल को परमार वंश का स्वर्णकाल कहा जाता है। 

  • सिंधुराज- कल्याणी के चालुक्य शासक सत्याश्रय को पराजित किया। 

  • राजाभोज-

    • परिचय- जन्म 1980 को, उज्जैन में हुआ। 

    • शासन काल- 1000 से 1055 ई तक राजधानी ‘धार’ को बनाई। 

    • सैन्य- विजय-

      • गांगेयदेव को पराजित किया। 

      • तेलंगाना के तैलप को पराजित किया। 

      • उड़ीसा के इंद्रनथ को भी पराजित किया 

      • कोंकण के क्षेत्र को जीता। 

इसके अतिरिक्त महमूद गजनबी के विरुद्ध आनंदपाल को सहायता भेजी। 

  • निर्माण कार्य – 

    • धार की भोजशाला का निर्माण 

    • चित्तौड़गढ़ के त्रिभुवन मंदिर का निर्माण। 

    • भोजपुर मंदिर (रायसेन )का निर्माण। 

    • साइक्लोपिन बांध का निर्माण। 

  • दरबारी कवि – उनके दरबार में लगभग 500 दरबारी कवि रहते थे। 

जैसे – धनपाल(तिलक मंजरी), भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र, हनुमान-नाटक। 

  • प्रमुखरचनाएं-

    • भोज प्रबंधम् (आत्मकथा)

    • सरस्वती कंठाभरण। 

    • विद्या-विनोद। 

    • शिक्षा-संग्रह। 

    • चारूचर्या। 

    • समरांगढ़ सूत्रधार (स्थापत्य पर लिखी पुस्तक) 

    • युक्ति कल्पतरु। 

    • श्रृंगार मंजरी। 

  • विशेष- राजा भोज के शासनकाल को परमार वंश का सर्वाधिक स्वर्ण-काल कहा जाता है। 

तोमर वंश-

यह वंश भी मध्यकालीन का प्रतिहरों का सामंत राजपूत वंश था। 

तोमर वंश की जानकारी के स्रोत-

  • गंगोला-ताल अभिलेख, ग्वालियर। 

  • रोहिताश गढ़ अभिलेख। 

  • गोपांचल आख्यान ,(खड़कराय) सबसे प्रामाणिक स्त्रोत। 

  • ग्वालियर-नामा , (हीरामन मुंशी)। 

तोमर वंश का समय काल- मध्य प्रदेश में 14वीं से 16वीं सदी तक तोमर वंश का शासन रहा। 

तोमर वंश का शासन क्षेत्र- उत्तरी मध्य प्रदेश ,राजधानी-: ग्वालियर। 

तोमर वंश के प्रमुख शासक-:

  • वीरसिंह देव तोमर,-

    • यह ग्वालियर के तोमर वंश के संस्थापक थे (हालांकि अनंगपाल दिल्ली के तोमर वंश के संस्थापक थे)

    • उनकी रचना ‘वीरसिंहावलोक’ है।

    • निर्माण कार्य – जीत महल एवं जीत स्तंभ। 

  • उद्धरण देव- 

    • गंगोला ताल शिलालेख का निर्माण करवाया। 

  •  विक्रमदेव/वीरमदेव-

  • गणपति देव-

  • डुगरेन्द्र सिंह-

    • ग्वालियर के किले की दीवारों पर जैन प्रतिमाएं बनवाई। 

    • जैन-उल-आब्दीन से अच्छे संबंध बनाए रखें। 

  • मानसिंह तोमर-

    • निर्माण कार्य – मानसिंह महल, गुजरी महल, बादल महल। 

    • कला एवं साहित्य -: मान कोतूहल ग्रंथ,( संगीत संबंधी) तथा ध्रुपद शैली का संरक्षक। 

    • जनकल्याण- अनेकों नहरों का निर्माण कराया। 

  • विक्रमजीत -:

  • अंतिम शासक थे, जिन्हें इब्राहिम लोदी ने 1517 को पराजित कर, इस क्षेत्र को दिल्ली में मिल लिया था। 

कच्छपघात वंश-

प्रतिहरों एवं चंदेलों के समंत शासकों से संबंधित राजपूत वंश। 

कच्छपघात वंश की जानकारी के स्रोत-: 

  • सिहोनिया अभिलेख (वज्रदामन) का। 

  • सास बहू अभिलेख (महिपाल) का।  

  • नरवर का अभिलेख, मुरैना। 

  • विक्रम का डूबकुंड अभिलेख। 

समयकाल – 10वीं से 12वीं सदी ईस्वी तक। 

क्षेत्र- कच्छपघात वंश की तीन शाखाएं थी-

  • सिहोनिया-ग्वालियर शाखा (इसका संस्थापक वज्रदामन था)

  • नरवर शाखा, मुरैना। 

  • डूबकुंड शाखा, श्योपुर 

कच्छपघात वंश के प्रमुख शासक-;

 

  • वज्रदामन –

    • ग्वालियर की शाखा का संस्थापक था। 

    • प्रतिहार शासक विजयपाल को पराजित करके ग्वालियर के क्षेत्र को जीता था। 

  • कीर्तिराज – ककनमठ मंदिर मुरैना का निर्माण करवाया था 

  • देवपाल- मितावली के 64 योगिनी मंदिर का निर्माण करवाया। 

  • महिपाल – सास बहू मंदिर का निर्माण करवाया। 

  • अजयपाल-अंतिम प्रतापी शासक।

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