मध्यप्रदेश में जनजातियों की स्थिति

[मध्यप्रदेश में जनजातियों की स्थिति]

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.[मध्यप्रदेश में जनजातियों की स्थिति]

सामान्यतः गांव तथा शहरों से बाहर, प्राकृतिक वातावरण में निवासरत् ऐसी पिछड़ी जातियां जिनकी अपनी अलग संस्कृति होती है तथा जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत सूचीबद्ध किया गया है उन्हें अनुसूचित जनजाति या आदिवासी कहा जाता है।

और मध्य प्रदेश में देश की सर्वाधिक अनुसूचित जनजाति निवास करती हैं, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 21% है। 

मध्यप्रदेश में जनजातियों का भौगोलिक वितरण-:

वैसे तू अनुसूचित जनजाति के लोग मध्य प्रदेश के संपूर्ण राज्य में विस्तृत है किंतु उनकी सबसे ज्यादा सघनता प्रगति और पठारी क्षेत्र में पाई जाती है मध्यप्रदेश में सर्वाधिक अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या सकेन्द्रण वाले जिलों में धार बड़वानी झाबुआ छिंदवाड़ा आदि जिले प्रमुख हैं। 

प्रदेशिक वितरण एवं व्यवस्थित अध्ययन की दृष्टि से मध्य प्रदेश की जनजातीय क्षेत्रों को निम्न तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-:

  • पश्चिमी जनजाति क्षेत्र

  • दक्षिणी जनजाति क्षेत्र

  • पूर्वी जनजाति क्षेत्र

पश्चिमी जनजाति क्षेत्र-:

पश्चिमी जनजाति क्षेत्र के अंतर्गत झाबुआ, रतलाम, धार, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर ,बड़वानी आदि जिले शामिल हैं, इस क्षेत्र में राज्य की एक तिहाई जनजाति जनसंख्या निवास करती है सर्वाधिक सघन जनजाति जनसंख्या वाला क्षेत्र है। 

क्षेत्र की प्रमुख जनजाति भील जनजाति है इसके अलावा क्षेत्र में कोरूकू और भिलाला जनजाति भी निवासरत है। 

दक्षिणी जनजाति क्षेत्र-:

दक्षिणी जनजाति क्षेत्र के अंतर्गत बैतूल, हरदा,छिंदवाड़ा, सिवनी मंडला डिंडोरी आदि जिले शामिल हैं। इस पेटी में राज्य की लगभग एक चौथाई जनजाति जनसंख्या निवास करती है। 

क्षेत्र की प्रमुख जनजातियां हैं- गोंड, भरिया, कोरकू, परधान। 

पूर्वी जनजाति क्षेत्र-:

पूर्वी जनजाति क्षेत्र के अंतर्गत शहडोल,सीधी ,सिंगरौली ,उमरिया ,कटनी, अनूपपुर आदि जिले शामिल हैं। 

क्षेत्र की प्रमुख जनजातियां हैं- गोंड जनजाति, बैगा जनजाति, कोल जनजाति, पनिका जनजाति। 

उत्तरी जनजाति क्षेत्र-:

उत्तरी जनजाति क्षेत्र के अंतर्गत ग्वालियर ,शिवपुरी ,मुरैना ,भिंड, गुना आदि जिले शामिल हैं। 

क्षेत्र की प्रमुख जनजाति ‘सहरिया’ है। 

इसके अतिरिक्त बुंदेलखंड क्षेत्र में गोंड एवं सौर जनजातियों के लोग निवासरत है। 

मध्यप्रदेश में जनजातियों का भौगोलिक वितरण-:

मध्यप्रदेश में पाई जाने वाली प्रमुख जनजातियां-:

  • भील जनजाति

  • गोंड जनजाति

[भील जनजाति]

.[भील जनजाति]

भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के “बील”शब्द से हुई है जिसका अर्थ है- धनुष अर्थात धनुर्विद्या में निपुण होने के कारण इन्हें भील कहा जाता है। 

भीलों की विशेषताएं-: 

शारीरिक विशेषता-:
  • इनका कद नाटा(छोटा) होता है। ये सामान्यतः 4 से 5 फीट के होते हैं

  • इनके शरीर का रंग काला तथा शरीर गठीला होता है। 

  • इनका चेहरा चौड़ा तथा चपटी नाक वाला होता है। 

सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताएं-:
  • समाज-इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है एवं सामान्यतः संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित होती है। 

  • वस्त्र एवं आभूषण-: पुरुष लंगोटी पहनते हैं एवं सिर का साफा बांधते हैं तथा स्त्री अंगरखा नामक वस्त्र पहनती है। एवं स्त्रियां अन्य आभूषण के साथ-साथ हाथ में कड़े भी पहनती हैं। 

  • विवाह- विवाह में दापा प्रथा प्रचलित होती है जिसके अंतर्गत विवाह के समय वधू-पक्ष को बहुमूल्य दिया जाता है। 

  • त्योहार- भील दशहरा दीपावली आदि त्यौहार तो मनाते हैं साथ ही साथ कुछ अपने परंपरागत त्योहार जैसे- भगोरिया हाट, जतारा त्यौहार भी मनाते। 

आर्थिक विशेषता-:
  • भील वर्ग आर्थिक रूप से काफी कमजोर वर्ग होता है। ये मिट्टी-घास की बनी झोपड़ी में रहते हैं। 

  • भील अपनी जीविकोपार्जन के लिए प्रायः कृषि कार्य या प्राथमिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं।

भील जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है, जो मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में मुख्यतः धार, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, बड़वानी एवं बुरहानपुर आदि जिलों में निवासरत है। 

भील जनजाति की प्रमुख उपजातियां-

भीली ,भिलाला एवं बरेला हैं। 

भील जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है, जो मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में मुख्यतः धार, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, बड़वानी एवं बुरहानपुर आदि जिलों में निवासरत है। 

[गोंड जनजाति]

गोंड शब्द की उत्पत्ति तेलगू भाषा के “कोण्ड”शब्द से हुई है जिसका अर्थ है-  पहाड़।  अर्थात पहाड़ों में निवास करने के कारण इनका नाम गोंड पड़ा। 

गोंड जनजाति की विशेषताएं-: 

शारीरिक विशेषता-:
  • इनका कद नाटा(छोटा) होता है। ये सामान्यतः 4 से 5 फीट के होते हैं

  • इनके शरीर का रंग काला तथा शरीर गठीला होता है। 

  • इनका चेहरा चौड़ा तथा चपटी नाक वाला होता है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताएं-:
  • समाज- इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है एवं सामान्यतः संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित होती है। 

  • वस्त्र एवं आभूषण-: पुरुष शर्ट एवं लंगोटी पहनते हैं तथा स्त्री अंगरखा नामक वस्त्र पहनती है। इसके अलावा स्त्रियां अन्य आभूषण के साथ-साथ हाथ में कड़े भी पहनती हैं। 

  • विवाह- गोंड जनजाति में दूध लोटावा विवाह, चढ़-विवाह, पठौनी विवाह तथा लमसेना विवाह प्रचलित हैं। 

  • त्यौहार- गोंड दशहरा दीपावली आदि त्यौहार तो मनाते हैं साथ ही साथ कुछ अपने परंपरागत त्योहार जैसे- नवाखानी,करमा, विदरी-पूजा,जवारा त्यौहार भी मनाते। 

आर्थिक विशेषता-:
  • भील वर्ग आर्थिक रूप से काफी कमजोर वर्ग होता है। मिट्टी-घास की बनी झोपड़ी में रहते हैं। 

  • भील अपनी जीविकोपार्जन के लिए प्रायः कृषि कार्य या प्राथमिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। 

गोंड जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से मध्य प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है जो मध्य प्रदेश के विंध्यन एवं सतपुड़ा पठारी क्षेत्रों में प्रमुखत: बैतूल, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, मंडला, सागर, दमोह एवं शहडोल जिलों में पाई जाती है। 

गोंड जनजाति की प्रमुख उपजातियां हैं- अगरिया,परधान,ओझा,सोलहास,मुरिया एवं मारिया आदि। 

[अगरिया जनजाति]

अगरिया जनजाति गोंडों की एक शाखा है जो लोहे को गलाने एवं लोहे का सामान बनाने का कार्य करती है। 

यह मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों में प्रमुखत: शहडोल ,मंडला ,अनूपपुर जिलों में निवासरत है। 

पारधी जनजाति-:

पारदी शब्द मराठी भाषा के “पारध”शब्द से बना है जिसका अर्थ है आखेट या शिकार। अर्थात शिकार करने के पेशे के करण इसका नाम पारधी पड़ा। 

यह जनजाति मुख्यत: भोपाल रायसेन सीहोर जिलों में निवासरत है। 

[कोरकू जनजाति]

कोरकू शब्द का शाब्दिक अर्थ है- “मनुष्यों का समूह” अर्थात समूहों में निवास करने के कारण इनका नाम कोरकू पड़ा। 

कोरकू जनजाति की विशेषताएं-: 

शारीरिक विशेषता-:
  • इनका कद नाटा(छोटा) होता है। ये सामान्यतः 4 से 5 फीट के होते हैं

  • इनके शरीर का रंग काला तथा शरीर गठीला होता है। 

  • इनका चेहरा चौड़ा तथा चपटी नाक वाला होता है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताएं-:
  • समाज- इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है एवं सामान्यतः संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित होती है। 

  • वस्त्र एवं आभूषण-: पुरुष कुर्ता-धोती पहनते हैं तथा स्त्री अंगरखा नामक वस्त्र पहनती है। इसके अलावा स्त्रियां अन्य आभूषण के साथ-साथ हाथ में कड़े भी पहनती हैं। 

  • विवाह- गोंड जनजाति में सामान्य विवाह के अलावा लमसेना विवाह तथा प्रचलित है, तथा विवाह के दौरान कन्या मूल्य चुकाने की प्रथा भी प्रचलित है। 

  • त्यौहार- कोरकू जनजाति के लोग स्वयं को हिंदू मानते हुए गुड़ीपड़वा,आखातीज, दशहरा , दीपावली और होली जैसे हिंदू त्योहार भी मनाते हैं ।

आर्थिक विशेषता-:
  • भील वर्ग आर्थिक रूप से काफी कमजोर वर्ग होता है। मिट्टी-घास की बनी झोपड़ी में रहते हैं। 

  • भील अपनी जीविकोपार्जन के लिए प्रायः कृषि कार्य या प्राथमिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। 

कोरकू जनजाति मध्य प्रदेश के मध्य सतपुड़ा क्षेत्र में प्रमुखत: बैतूल, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, हरदा जिलों में पाई जाती है। 

कोरकू जनजाति की प्रमुख उपजातियां हैं- रूमा,दुलारिया,बोब‌ई,पठारिया आदि। 

.कोरकू जनजाति मध्य प्रदेश के मध्य सतपुड़ा क्षेत्र में प्रमुखत: बैतूल, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, हरदा जिलों में पाई जाती है।  कोरकू जनजाति की प्रमुख उपजातियां हैं- रूमा,दुलारिया,बोब‌ई,पठारिया

[कोल जनजाति]

कोल जनजाति भारत की प्राचीन जनजातियों में से एक है जो आस्ट्रिक परिवार से संबंधित है।

गोंड जनजाति की विशेषताएं-: 

शारीरिक विशेषता-:
  • इनका कद नाटा(छोटा) होता है। ये सामान्यतः 4 से 5 फीट के होते हैं

  • इनके शरीर का रंग काला तथा शरीर गठीला होता है। 

  • इनका चेहरा चौड़ा तथा चपटी नाक वाला होता है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताएं-:
  • समाज- इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है एवं सामान्यतः संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित होती है। 

  • वस्त्र एवं आभूषण-: पुरुष कुर्ता-धोती पहनते हैं तथा स्त्री अंगरखा नामक वस्त्र पहनती है। इसके अलावा स्त्रियां अन्य आभूषण के साथ-साथ हाथ में कड़े भी पहनती हैं। 

  • विवाह- गोंड जनजाति में बहु-विवाह की प्रथा प्रचलित है। 

  • त्यौहार-  कोल जनजाति के लोग विभिन्न हिंदू त्यौहार जैसे- दीपावली दशहरा होली मनाते हैं। 

आर्थिक विशेषता-:
  • भील वर्ग आर्थिक रूप से काफी कमजोर वर्ग होता है। मिट्टी-घास की बनी झोपड़ी में रहते हैं। 

  • भील अपनी जीविकोपार्जन के लिए प्रायः कृषि कार्य या प्राथमिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं।

कोल जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से मध्य प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है जो मध्य प्रदेश के मध्य भाग में में प्रमुखत: रीवा, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, सतना जिलों में निवासरत है।

जनजाति की प्रमुख उपजातियां हैं- रोतिया,रोतले आदि।

.कोल जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से मध्य प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है जो मध्य प्रदेश के मध्य भाग में में प्रमुखत: रीवा, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, सतना जिलों में निवासरत है। जनजाति की प्रमुख उपजातियां हैं- रोतिया,रोतले आदि।

मध्य प्रदेश की विशिष्ट आपदाग्रस्त (संवेदनशील)जनजातियां-:

1973 में बनी ढे़बर समिति के अनुसार ऐसी जनजातियां आपदाग्रस्त जनजातियां हैं, जो-

  • पुरातन पद्धति से खेती करती हों,

  • साक्षरता दर बहुत ही कम हो,

  • उनकी जनसंख्या स्थिर हो अथवा घटती जाती हो। 

और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे भारत में 75 PVTs जनजातियां पाई गई हैं जिनमें से 3 जनजाति है मध्यप्रदेश की भी शामिल है-:

  • बैगा जनजाति

  • भारिया जनजाति

  • सहरिया जनजाति

[बैगा जनजाति]

बैगा जनजाति द्रविड़ वर्ग की जनजाति है,जिसे अत्यंत पिछड़ी जनजाति घोषित किया गया है। 

बैगा जनजाति की विशेषताएं-:

शारीरिक विशेषता-:

  • इनका कद नाटा(छोटा) होता है। ये सामान्यतः 4 से 5 फीट के होते हैं

  • इनके शरीर का रंग काला तथा शरीर गठीला होता है। 

  • इनका चेहरा चौड़ा तथा चपटी नाक वाला होता है।

सामाजिक विशेषताएं-:

  • समाज-: इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है एवं सामान्यतः संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित होती है। 

  • वस्त्र एवं आभूषण-: पुरुष के कमीज-लंगोट पहनते हैं। स्त्रियां ‘अंगरखा’ नामक वस्त्र पहनती हैं। 

  • विवाह-: समगोत्री विवाह एवं बाल विवाह वर्जित है तथा विवाह के समय बहुमूल्य देने का प्रचलन है। 

  • प्रमुख नृत्य-: कर्मा,सैला,परधोन,वलमा। 

  • बैगा जनजाति के लोग आधुनिक चिकित्सक की बजाय झाड़-फूंक तथा जादू-टोना पर अधिक विश्वास रखते हैं। 

आर्थिक विशेषता-:

  • बैगा वर्ग आर्थिक रूप से काफी कमजोर वर्ग होता है। मिट्टी-घास की बनी झोपड़ी में रहते हैं। 

  • बैगा अपनी जीविकोपार्जन के लिए प्रायः कृषि कार्य या अन्य प्राथमिक गतिविधियों (जैसे- वनोपज संग्रहण करके बैंचना) में संलग्न रहते हैं।

  • बैगा पहले स्थानांतरण-कृषि भी करते हैं जिसे ‘बेबार या पोण्डू’ कहा जाता था। किंतु अब स्थाई कृषि करने लगे हैं। 

भौगोलिक वितरण-:

यह जनजाति मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्वी घने जंगलों वाले क्षेत्रों विशेषकर मंडला, बालाघाट डिंडोरी ,शहडोल, उमरिया में निवास करती है। इस जनजाति की प्रमुख उपजातियां हैं- भरोतिया,रायमैना,कठमैना,बिझवार। 

.बैगा जनजाति

-:मध्य प्रदेश सरकार ने इन की दयनीय स्थिति को देखते हुए,बैगा जनजाति को कृषि करने के लिए मंडला एवं डिंडोरी के क्षेत्र में कुछ कृषि-क्षेत्र आवंटित किए हैं जिसे “बेगाचक” कहा जाता है। 

[भारिया जनजाति]

भारिया शब्द का शाब्दिक अर्थ है भार ढोने वाला। अर्थात भार होने के कारण इस जाति का नाम भारिया जनजाति पड़ा।

जो मध्य प्रदेश की एक आपदा-ग्रस्त जनजाति है। 

भारिया जनजाति की विशेषताएं-:

शारीरिक विशेषता-:

  • ये मध्यम कद के होते है। ये सामान्यतः 5 फीट के होते हैं

  • इनके शरीर का रंग काला तथा शरीर गठीला होता है। 

  • इनका चेहरा चौड़ा तथा चपटी नाक वाला होता है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति-:

  • समाज-: इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है एवं सामान्यतः संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित होती है। 

  • वस्त्र एवं आभूषण-: पुरुष के कमीज-लंगोट पहनते हैं। स्त्रियां ‘अंगरखा’ नामक वस्त्र पहनती हैं। 

  • विवाह-: समगोत्री विवाह एवं बाल विवाह वर्जित है तथा विवाह के समय बहुमूल्य देने का प्रचलन है। 

  • प्रमुख नृत्य-: भरम, सैतम,कर्मा,सैला। 

  • बैगा जनजाति के लोग आधुनिक चिकित्सक की बजाय झाड़-फूंक तथा जादू-टोना पर अधिक विश्वास रखते हैं। 

धार्मिक स्थिति-:

भारिया जनजाति के लोग धर्म में विश्वास रखते हुए दीपावली होली जैसे त्यौहार तो मनाते ही हैं, इसके अलावा अपनी कुछ परंपरागत त्यौहार जैसे- बिदरी-पूजा,नवाखानी,ज्वारा भी बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं। 

आर्थिक स्थिति -:

  • भारिया वर्ग आर्थिक रूप से काफी कमजोर वर्ग होता है। मिट्टी-घास की बनी झोपड़ी में रहते हैं। 

  • भारिया अपनी जीविकोपार्जन के लिए प्रायः कृषि कार्य या प्राथमिक गतिविधियों(जैसे- वनोपज संग्रहण करके बैंचना) में संलग्न रहते हैं।

  • पहले भारिया स्थानांतरण-कृषि भी करते हैं जिसे ‘दायिया’ कहा जाता था। किंतु अब इसमें कमी आई है और ये लोग अब स्थाई कृषि करने लगे हैं। 

भौगोलिक वितरण-:

यह जनजाति प्रमुख रूप से छिंदवाड़ा की पातालकोट में निवासरत है किंतु इसके अलावा मंडला बालाघाट जबलपुर जिले में भी भारिया जनजाति की जनसंख्या पाई जाती है। इस जनजाति की प्रमुख उपजातियां हैं- भूमिया,भुईधर,पंडो। 

.भारिया जनजाति की जनसंख्या पाई जाती है। इस जनजाति की प्रमुख उपजातियां हैं- भूमिया,भुईधर,पंडो। 

भारिया की प्रमुख समस्याएं-: 

  • चूंकि ये पठानकोट जैसे निचले क्षेत्रों में निवास करते हैं अतःमजदूरी प्राप्त करने के लिए बहुत दूर चल कर जाना पड़ता है। 

  • इनका रहवास विषम धरातल में होने के कारण यहां पर्याप्त अधोसंरचना का विकास ना हो पाना। 

[सहरिया जनजाति]

सहरिया जनजाति कोलरियन परिवार की एक अत्यंत पिछड़ी जनजाति है, जिसे शासन द्वारा आपदा ग्रस्त जनजाति घोषित किया गया है। 

सहरिया जनजाति की विशेषताएं-:

शारीरिक विशेषता-:

  • ये मध्यम कद के होते है। ये सामान्यतः 5 फीट के होते हैं

  • इनके शरीर का रंग काला तथा शरीर गठीला होता है। 

  • इनका चेहरा चौड़ा तथा चपटी नाक वाला होता है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति-:

  • समाज-: इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है एवं सामान्यतः संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित होती है। 

  • वस्त्र एवं आभूषण-: पुरुष के कमीज-लंगोट पहनते हैं। स्त्रियां ‘अंगरखा’ नामक वस्त्र पहनती हैं। 

  • विवाह-: समगोत्री विवाह एवं बाल विवाह वर्जित है तथा विवाह के समय बहुमूल्य देने का प्रचलन है। 

  • प्रमुख नृत्य-: दुल-दुल घोड़ी, लहंगी-नृत्य। 

  • बैगा जनजाति के लोग आधुनिक चिकित्सक की बजाय झाड़-फूंक तथा जादू-टोना पर अधिक विश्वास रखते हैं। 

आर्थिक स्थिति -:

  • सहरिया वर्ग आर्थिक रूप से काफी कमजोर वर्ग होता है। मिट्टी-घास की बनी झोपड़ी में रहते हैं। 

  • सहरिया अपनी जीविकोपार्जन के लिए प्रायः कृषि कार्य या प्राथमिक गतिविधियों(जैसे- वनोपज संग्रहण करके बैंचना) में संलग्न रहते हैं।

भौगोलिक वितरण-:

यह जनजाति जिस स्थान में रहती है उसे ‘सहाराना’ कहा जाता है, और सहरिया जनजाति प्रमुख रूप से उत्तरी मध्य प्रदेश के इलाके में विशेषकर मुरैना ,भिंड ,शिवपुरी, दतिया,गुना जिलों में निवासरत् है, 

.सहरिया जनजाति प्रमुख रूप से उत्तरी मध्य प्रदेश के इलाके में विशेषकर मुरैना ,भिंड ,शिवपुरी, दतिया,गुना जिलों में निवासरत् है, 

इनकी प्रमुख समस्याएं-: 

  • शुष्क प्रदेश निवास करने के कारण पर्याप्त कृषि उपज प्राप्त न कर पाने की समस्या। 

  • शुद्ध पेयजल की समस्या। 

  • कुपोषण की समस्या। 

 

 

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