मध्य प्रदेश में जनांकिकी की स्थिति

जनांकिकी-: 

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जनांकिकी शब्द अंग्रेजी भाषा के demography शब्द का हिंदी रूपांतरण है और यह demography यूनानी भाषा के 2 शब्दों demos+graphy से मिलकर बना है. यहां पर demos का अर्थ है -: लोग या जन। तथा graphy का अर्थ है-:  वर्णन. 

अर्थात जनांकिकी वह विषय है जिसमें जनसंख्या तथा जनसंख्या की प्रवृत्तियों से संबंधित वर्णन होता है। 

चूंकि थॉमस रॉबर्ट नामक वैज्ञानिक ने जनांकिकी को एक सामाजिक विज्ञान के व्यवस्थित विषय के रूप में स्थापित किया इसलिए इन्हें जनांकिकी का पिता कहा जाता है। 

जनांकिकी की परिभाषा

गुइलार्ड के अनुसार जनांकिकी जनसंख्या की गतिशीलता तथा उससे संबंधित शारीरिक ,सामाजिक, नैतिक एवं बौद्धिक दशाओं का गणितीय अध्ययन है। 

जनसंख्या-: 

किसी क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले व्यक्तियों (स्त्री पुरुष बच्चे बूढ़े सभी) की कुल संख्या उस क्षेत्र की जनसंख्या कहलाती है। 

जनगणना-:

किसी क्षेत्र विशेष में निवास करने वाली जनसंख्या की एक निश्चित समय अवधि में की जाने वाली गणना जनगणना कहलाते हैं। 

और भारत एवं मध्य प्रदेश में वर्ष 1881 से प्रत्येक 10 साल की समय अवधि में जनगणना की जाती है। हाल ही में वर्ष 2011 को भारत की जनगणना हुई।

मध्य प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर की प्रवृत्तियां-: 

पिछली शताब्दी में मध्य प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर काफी तीव्र रही है। 1901 मध्यप्रदेश में मात्र 1.26 करोड़ जनसंख्या थी जो वर्ष 2011 में बनकर 7.26 करोड़ हो गई है। 

मध्यप्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर की अवस्था

मध्य प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर की प्रवृतियां को निम्न अवस्था में बांटा जा सकता है-: 

  • अनियमित वृद्धि दर की अवस्था-1901 से 1921-: 

  • इस अवस्था में जनसंख्या वृद्धि दर मंद एवं अनियमित थी, क्योंकि जन्म दर भी उच्च थी और मृत्यु दर भी उच्च थी। परिणाम स्वरूप वास्तविक वृद्धि दर निम्न थी,  1901 मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या 1.26 करोड़ थी, जो 1911 में बढ़कर 1.42 करोड़ हो गई किंतु 1911 के बाद जनसंख्या वृद्धि दर घटने लगी और 1921 में मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या 1.42 करोड़ से घटकर 1.39 करोड़ हो गई। जनसंख्या वृद्धि दर घटने का मुख्य कारण मध्यप्रदेश में फैले प्लेग ,चेचक तथा सूखा जैसी समस्याएं के कारण मृत्यु दर उच्च होना था। 
  • नियमित जनसंख्या वृद्धि की अवस्था-1921 से 1951-:

इस अवस्था में प्रदेश में जनसंख्या लगातार बढ़ती गई, 1921 में मध्य प्रदेश में कुल जनसंख्या 1.39 करोड़ थी जो 1951 में बढ़कर, 1.86 करोड़ हो गई

  • तीव्र जनसंख्या वृद्धि की अवस्था-1951से71 :

इस समय काल में मध्य प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर में लगातार वृद्धि होती क्योंकि जन्म दर तो उच्च ही रही किंतु, स्वास्थ्य सुविधा एवं खाद्यान्न आपूर्ति से मृत्यु दर कम हो गई,

1951 में मध्य प्रदेश की जनसंख्या 1.86 करोड़ थी जो 1971 में बढ़कर 3.00 करोड़ हो गई। 1961 से 1971 के मध्य मध्य प्रदेश की दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 29.5% तक पहुंच गई थी। 

 

  • जनसंख्या वृद्धि दर घटने की अवस्था-1971से अब तक-:

इस अवस्था में मध्य प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर लगातार घटती आ रही है 1961-71 के दशक में जनसंख्या वृद्धि दर 29.28% थे जो वर्ष 2001 से 2011 के दशक में घटकर 20.3% हो गई। तथा वर्तमान में जनसंख्या 7.26 करोड

मध्य प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि के कारण

भारत में 1951 के पूर्व से लेकर वर्तमान तक लगाता संख्या बढ़ती जा रही है

जनसंख्या वृद्धि के लिए अनेकों कारण जिम्मेदार हैं जिनका विवरण अधोलिखित है-: 

पुत्र प्राप्ति की लालसा-: हमारे देश (प्रदेश) के समाज में अधिकांश परिवार निम्न कारणों से पुत्र प्राप्ति की लालसा रखते हैं

  • मोक्ष प्राप्ति हेतु पुत्र को अवश्यक माना जाना,

  • पुत्र को बुढ़ापे का सहारा एवं धन कमाने वाला माना जाना। 

  • पुत्र को भगवान की देन माना जाना। 

और पुत्र प्राप्ति की लालसा में अधिक से अधिक बच्चे पैदा करते हैं। 

अशिक्षा एवं अज्ञानता -: 

अशिक्षा एवं अज्ञानता के कारण लो परिवार नियोजन के महत्व को नहीं समझते एवं अज्ञानी लोग इस रूढ़िवादी विचारधारा को मानते हैं कि बच्चे भगवान की देन है और प्रत्येक बच्चे अपने साथ अपना भाग्य लेकर आता है। 

गरीबी-: गरीब लोग यह मानते हैं कि उनकी जितनी अधिक बच्चे पैदा होंगी उतना ही धन कमा कर लाएंगे अतः वे इस विचारधारा के तहत अधिक अधिक बच्चे पैदा करते हैं। 

कम उम्र में विवाह-: कम उम्र में विवाह होने से एक तो महिलाओं की प्रजनन काल अवधि लंबी हो जाती है तथा कम उम्र एवं कम समझ के कारण वे अधिक से अधिक बच्चे पैदा कर देते हैं। 

परिवार नियोजन की विफलता: जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए परिवार नियोजन से संबंधित अनेकों सरकारी योजना संचालित है किंतु उनका उचित तरीके से क्रियान्वयन ना किया जाना भी जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। 

जलवायु-: भारत की जलवायु उष्ण कटिबंधीय है जिसके प्रभाव से यहां की औरतें जल्दी गर्भ धारण कर लेती हैं परिणाम स्वरूप जन्म दर अधिक है और जिससे जनसंख्या भी लगातार बढ़ रही है। 

खाद्य पूर्ति एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण प्राकृतिक वृद्धि दर में बृद्धि-: 

1951 के पहले पर्याप्त खाद्य आपूर्ति एवं स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं होती थी इस वजह से जन्म दर तो उच्च थी ही साथ ही साथ मृत्यु दर भी उच्च थी ,जिसके परिणाम स्वरूप वास्तविक जनसंख्या वृद्धि की दर काफी निम्न थी, किंतु अब स्वास्थ्य सुविधाओं एवं खाद्य पूर्ति की पर्याप्तता के कारण मृत्यु दर कम हो गई है तथा जन्म दर यथावत बनी हुई है जो भी जनसंख्या वृद्धि का तत्कालीन कारण है। 

जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव-: 

जनसंख्या वृद्धि से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के परिणाम सामने आते हैं 

जैसे-: 

सकारात्मक परिणाम-:

  • जनसंख्या वृद्धि से देश या प्रदेश की श्रम शक्ति बढ़ती है। परिणाम स्वरूप सस्ता श्रम प्राप्त हो जाता है। 

  • जनसंख्या वृद्धि से मांग में भी बढ़ोतरी होती है जिससे उत्पादन बढ़ता है और देश का समग्र आर्थिक विकास होता है। 

 नकारात्मक परिणाम-: 

  • निर्धनता-: जनसंख्या बढ़ने से राज्य की समस्त आय अर्थात जीडीपी तो बढ़ती है किंतु उस राज्य की आय में अधिक लोगों का हिस्सा होने पर प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है अर्थात लोग गरीब हो जाते हैं जिससे उनके रहन-सहन का जीवन स्तर निम्न स्तर का हो जाता है परिणाम स्वरूप कार्यकुशलता भी कुप्रभावित होती है

  • बेरोजगारी-:

जनसंख्या की वृद्धि के साथ रोजगार के अवसरों में वृद्धि ना होने से बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है। मध्य प्रदेश के साथ यही स्थिति है इसीलिए मध्य प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि के साथ बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है। 

  • खाद्य आपूर्ति की समस्या-:

जनसंख्या के बढ़ने से प्रति व्यक्ति कृषि भूमि या अन्य संसाधनों की उपलब्धता कम हो जाती है जिससे खाद्य आपूर्ति की समस्या उत्पन्न होती। 

  • विनियोग में कमी-: जनसंख्या के बढ़ने से पारिवारिक खर्च  भी बढ़ता है क्योंकि प्रत्येक परिवार अपने सभी बच्चों को शिक्षा स्वास्थ्य खान-पान वेशभूषा , मकान आदि उपलब्ध करवाता है जिससे परिवारिक बसते कम होती है बचत कम होने से विनियोग कम होता है जिससे अर्थव्यवस्था का विकास मंद या स्थिर हो जाता है

  • पर्यावरण प्रदूषण-:

जनसंख्या वृद्धि से जल, मृदा, वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जाता है जिससे पर्यावरण असंतुलन उत्पन्न होता है। परिणाम स्वरूप संक्रमण रोग फैलते। 

जनसंख्या नियंत्रण के उपाय-: 

  • परिवार नियोजन से संबंधित जागरूकता

जनसंख्या नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन के संबंध में जागरूकता फैलाई जाए, इस हेतु शैक्षिक पाठ्यक्रमों में जनसंख्या नियंत्रण का महत्व एवं जनसंख्या वृद्धि के हानिकारक प्रभाव समझाए जाएं सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाए,

  • पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को महत्व दिया जाए

ग्रामीण रूढ़िवादी समाज में पुत्र प्राप्ति की लालसा को समाप्त करने के लिए महिलाओं के महत्व को बढ़ाया जाए इस हेतु हर योजना या कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता दी जाए। ताकि लोग पुत्र और पुत्रियों को एक समान समझने लगे एवं पुत्र प्राप्ति के लिए अधिक से अधिक बच्चे पैदा ना करें। 

  • गर्भाधान संबंधी शिक्षा -: ग्रामीण क्षेत्र की कपल को गर्भनिरोधक तरीके की जानकारी ही नहीं होती जिसकी वजह से अधिक से अधिक संतान पैदा हो जाती है, अतः नवविवाहित कपल को इसकी शिक्षा दी जाए।

  • कठोर नियम

संतान उत्पत्ति की कठोर सीमा निर्धारित कर दी जाए, जिसके अंतर्गत निर्धारित सीमा से अधिक संतान उत्पत्ति करने पर उन्हें सभी सरकारी योजनाओं से वंचित कर दिया जाए तथा सरकारी नौकरियां भी ना दी जाए।   जैसे चीन में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए 1979 में एक बच्चे की नीति बनाई थी।

 

  • गोद लेने जैसे सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जाए। -: क्योंकि भारत में जहां एक और अनाथ बच्चों की संख्या काफी ज्यादा है वहीं दूसरी ओर अनेकों ऐसे कपल हैं जिनकी संतान नहीं होती।

मध्य प्रदेश जनसंख्या नीति 2000-: 

  • दो से अधिक संतान वाले कपल को सरकारी नौकरी एवं राज्य स्तरीय चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया गया। 

  • जनसंख्या नियंत्रण संबंधी जागरूकता फैलाने के लिए 11 मई 2000 से प्रतिवर्ष मध्य प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण दिवस मनाने का प्रावधान किया गया। 

  • गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करने वाले दंपतियों की संख्या को 42% से बढ़ाकर 65% करने का लक्ष्य  रखा गया। 

  • शिशु मृत्यु दर को संतान के 97 प्रति हजार से घटाकर 62 प्रति हजार करने का लक्ष्य रखा गया। 

 

तथा उपर्युक्त प्रावधानों का उचित किया एमएन करने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य जनसंख्या विकास परिषद का गठन किया गया। 

मध्य प्रदेश में जन घनत्व-: 

मध्य प्रदेश का औसतन जनसंख्या घनत्व 236 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, किन्तु मध्य प्रदेश की समस्त भूमि पर जन घनत्व एक समान नहीं है, बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में जनघनत्व अलग-अलग है। 

जैसे भोपाल जैसे जिलों का जन घनत्व 855 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है तो दूसरी ओर डिंडोरी जैसे जिलों का जन घनत्व मात्र 94 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। 

जन घनत्व के वितरण की दृष्टि से मध्य प्रदेश को निम्न 3 भागों में बांट सकते हैं

  • अधिक जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र-: 

मध्यप्रदेश के ऐसे क्षेत्र जहां पर 250 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक जनघनत्व है उन्हें अधिक जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र कहा जा सकता है, इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश के लगभग 17 जिले आते हैं जिसमें भोपाल, इंदौर,जबलपुर, ग्वालियर, मुरैना, भिंड तथा उज्जैन आदि जिले शामिल है। 

  • मध्यम जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र

मध्यप्रदेश के ऐसे क्षेत्र जिनका जन्म घनत्व 200 से 250 तक है उन्हें मध्यम जनघनत्व वाले क्षेत्र कहा जा सकता हैं इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश की लगभग 11 जिले आते हैं जिसमें छतरपुर ,नरसिंहपुर, बुरहानपुर आदि जिले शामिल

  • कम जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र

मध्यप्रदेश की ऐसी क्षेत्र जिनका जन घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी कम है उन्हें कम जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र कहा जा सकता है इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश के अवशेष 22 जिले आते हैं जिसमें डिंडोरी, शिवपुरी ,पन्ना  जिले शामिल है। 

.मध्य प्रदेश में जन घनत्व-:  मध्य प्रदेश का औसतन जनसंख्या घनत्व 236 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है,

 

मध्य प्रदेश में जनसंख्या का वितरण-: 

मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या 7.26 करोड़ है किंतु जनसंख्या का वितरण सभी क्षेत्र में एक समान नहीं है, 

मध्य प्रदेश के कुछ जिले ऐसे हैं जिनमें 20लाख से भी अधिक जनसंख्या है जैसे-: इंदौर, जबलपुर, भोपाल, ग्वालियर, सागर ,सतना ,धार आदि। 

जबकि कुछ ऐसे भी जिले हैं जहां पर 8 लाख से भी कम जनसंख्या है जैसे-: हरदा,उमरिया, श्योपुर, आगर मालवा, निवाड़ी। 

 

.मध्य प्रदेश में जनसंख्या का वितरण-: 

मध्य प्रदेश में लिंगानुपात

मध्यप्रदेश में 1901 को लिंगानुपात 972 था जो लगातार घटते हुए 1991 में 912 हो गया हालांकि 1991 के बाद सरकारी प्रयासों एवं सामाजिक जागृति के का लिंग अनुपात में वृद्धि हुई है 1991 में जो लिंगानुपात 912 था वह 2011 की जनगणना के अनुसार बढ़कर 931 हो गया। हालांकि अभी भी राष्ट्र के औसत लिंगानुपात 940 से कम है। 

इसके अलावा मध्यप्रदेश का भविष्य का लिंगानुपात भी उज्जवल नहीं है क्योंकि मध्य प्रदेश का 0 से 6 वर्ष के बच्चों का लिंगानुपात 918 है। 

ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों का लिंग अनुपात-: 

मध्य प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों का लिंगानुपात 936 है, जबकि नगरी क्षेत्रों का लिंगानुपात 918 है। ग्रामीण क्षेत्रों का लिंगानुपात इसलिए अधिक है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र की पुरुष रोजगार प्राप्ति के लिए शहरों में प्रभावित हो जाते हैं, तथा ग्रामीण क्षेत्र में लिंग परीक्षण एवं लड़की का गर्भ गिराने की सुविधा नहीं होती। 

मध्य प्रदेश में लिंगानुपात का प्रादेशिक वितरण-: 

मध्यप्रदेश का औसत लिंगानुपात 931 है किंतु मध्य प्रदेश के सभी जिलों या सभी क्षेत्रों में 931 लिंगानुपात नहीं बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग है जिसका विवरण लिखित है-: 

उच्च लिंगानुपात वाले क्षेत्र-: ऐसे क्षेत्र जिन क्षेत्रों में 950 से अधिक लिंग अनुपात है उन्हें उच्च लिंगानुपात वाले क्षेत्र कहा जा सकता है इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश के निम्न क्षेत्र शामिल हैं-

मालवा का पश्चिमी भाग तथा सतपुड़ा मैकल श्रेणी के बालाघाट मंडला डिंडोरी छिंदवाड़ा बैतूल अलीराजपुर बड़वानी उज्जैन रतलाम आदि जिले शामिल है। 

बालाघाट , मंडला एवं अलीराजपुर ऐसे जिले हैं जहां पर लिंगानुपात 1000 से भी अधिक अर्थात पुरुषों की तुलना में स्त्रियां अधिक है। 

 यहां पर लिंगानुपात अधिक होने का प्रमुख कारण पुरुषों का रोजगार की तलाश में प्रवासित हो जाना तथा जनजाति जनसंख्या की अधिकता है। 

मध्यम लिंगानुपात वाले क्षेत्र-: ऐसे क्षेत्र जिन का लिंगानुपात 900 से 950 के मध्य है उन्हें मध्यम लिंगानुपात वाले क्षेत्र कहा जा सकता है इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश के निम्न क्षेत्र शामिल है-: 

पूर्वी मालवा तथा रीवा का पठार क्षेत्र जैसे सीहोर देवास इंदौर हरदा होशंगाबाद रीवा सतना पन्ना कटनी दमोह जबलपुर आदि जिले। 

न्यून लिंगानुपात वाले क्षेत्र-: ऐसे क्षेत्र जिन का लिंगानुपात 900 से भी कम है उन्हें न्यून लिंग अनुपात वाले क्षेत्र कहा जा सकता है

इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश का रायसेन से लेकर भिंड मुरैना तक का क्षेत्र शामिल है इसके अंतर्गत मुख्यता रायसेन सागर विदिशा शिवपुरी अशोकनगर ग्वालियर दतिया भिंड मुरैना शामिल है। 

.मध्य प्रदेश में लिंगानुपात का प्रादेशिक वितरण-: 

 

मध्य प्रदेश में लिंगानुपात कम होने के कारण-: 

  • कन्या भ्रूण हत्या-:भारतीय समाज के लोग पुत्र प्राप्ति की चाहत के कारण भ्रूण का परीक्षण करवाकर कन्या भ्रूण की हत्या कर देते हैं। 

  • बाल विवाह-: ग्रामीण इलाकों में आज भी बाल विवाह की प्रथा प्रचलित है जहां पर छोटी आयु में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती है परिणाम स्वरूप उन्हें छोटी आयु में ही मातृत्व का बोझ उठाना पड़ता है कई बार उनकी डिलीवरी के समय ही मृत्यु हो जाती है। 

  • घरेलू हिंसा या कुपोषण-: भारतीय समाज में लड़कों को ज्यादा श्रेष्ठ मानकर महिलाओं को केवल उपयोग की वस्तु माना जाता है अतः महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है उन्हें मारा-पीटा जाता है उन्हें पर्याप्त तक खाना नहीं दिया जाता है जिस कारण से कुपोषण या घरेलू हिंसा के परिणाम स्वरूप महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। 

 लिंगानुपात को बढ़ाने के उपाय

  • कन्या भूण हत्या एवं कन्याओं के साथ किए जाने वाले भेदभाव पूर्ण व्यवहार के विरुद्ध जागरूकता फैलाई जाए। 

  • महिलाओं के महत्व को बढ़ाया जाए इसके लिए प्रत्येक योजना तथा कार्यक्रम में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाए,

  • महिलाओं के लिए सभी सरकारी विभागों के साथ-साथ गैर सरकारी औद्योगिक संस्थानों में स्थान आरक्षित किए जाएं ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर एवं धन कमाने वाली बने। ताकि उनका महत्व बढ़े। 

लिंग अनुपात कम होने के प्रभाव-: 

  • बहुमूल्य, तथा बहुपति विवाह जैसी प्रथा का प्रचलन होता है। 

  • वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिलता है। 

  • बलात्कार जैसी घटनाएं देखने को मिलती है।

मध्य प्रदेश में साक्षरता की स्थिति-: 

मध्यप्रदेश में साक्षरता की दर लगातार बढ़ रही है क्योंकि 2001 में मध्य प्रदेश की साक्षरता दर 63.7% थी जो अब बढ़कर 69. 32% हो गई है किंतु अभी भी राष्ट्रीय औसत साक्षरता दर 73 से कम है। 

स्त्री एवं पुरुष साक्षरता दर-: 

मध्यप्रदेश में महिला साक्षरता दर 59% है जबकि पुरुष साक्षरता दर लगभग 78% है। क्योंकि महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है उन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता खाना बनाने में व्यस्त रखा जाता है बड़े शहरों में उच्च स्तरीय पढ़ाई के लिए नहीं भेजा जाता। 

ग्रामीण एवं शहरी साक्षरता दर

मध्यप्रदेश में ग्रामीण साक्षरता दर 63.9% है जबकि शहरी साक्षरता दर 82.8% है। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त शिक्षक एवं शैक्षिक संस्थान नहीं होते, साथ ही ग्रामीण लोग शिक्षा के प्रति अपेक्षाकृत कम जागरूक होते हैं।

मध्य प्रदेश में साक्षरता दर का क्षेत्रवार या प्रदेशिक विवरण -: 

मध्य प्रदेश की औसतन साक्षरता दर 69.3% है किंतु मध्य प्रदेश के सभी क्षेत्रों में यह एक समान नहीं है बल्कि अलग-अलग चित्र में अलग-अलग जिसका विवरण अग्रो लिखित है-: 

  • सर्वाधिक साक्षर जनसंख्या वाले जिलों में जबलपुर भोपाल इंदौर बालाघाट ग्वालियर आदि शामिल है, क्योंकि यहां पर पर्याप्त शिक्षा सुविधा अधोसंरचना जागरूकता मौजूद है। 

  • जबकि सबसे कम साक्षर जनसंख्या वाले जिलों में अलीराजपुर झाबुआ बड़वानी श्योपुर जिले शामिल है।

.मध्य प्रदेश में साक्षरता दर का क्षेत्रवार या प्रदेशिक विवरण -: 

 

जनजातीय जनसंख्या-: 

ऐसे लोग जो मुख्यतः गांव या शहरों से दूर जंगलों में निवास करते आए हैं उन्हें आदिवासी या जनजातीय लोग कहते हैं, तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 में भारत की जनजातियों को अनुसूचित किया गया है अतः इन्हें संविधानिक दृष्टि से अनुसूचित जनजाति भी कहते हैं। 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 8.6% है। 

अनुसूचित जाति की जनसंख्या का लिंगानुपात 990 है। 

भारत की प्रमुख जनजातियों में भील, गोंड, संथाल ,मुंडा आदि शामिल है। 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की कुल संख्या 21% है। 

मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या का लिंगानुपात 975 है

मध्यप्रदेश की प्रमुख  जनजाति में भील, गोंड,कोरकू, कोल,सहरिया ,बेगा। 

मध्यप्रदेश में जनजाति का वितरण-: 

मध्य प्रदेश के सर्वाधिक जनजाति जनसंख्या घनत्व वाले जिले क्रमशः अलीराजपुर ,झाबुआ, बड़वानी है। 

जबकि कम जनजाति जनसंख्या घनत्व वाले जिले -: भिंड, मुरैना ,दतिया। 

 

.मध्यप्रदेश में जनजाति का वितरण-: 

 मध्यप्रदेश में नगरीय एवं ग्रामीण जनसंख्या का वितरण-: 

मध्यप्रदेश में सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या घनत्व वाले जिले-: 

  • भोपाल-: 81% नगरीय जनसंख्या। 

  • इंदौर-: 74% नगरीय जनसंख्या। 

  • ग्वालियर-: 62% नगरीय जनसंख्या। 

मध्य प्रदेश की सर्वाधिक ग्रामीण जनसंख्या घनत्व वाले जिले-: 

  • डिंडोरी-: 95.4% ग्रामीण जनसंख्या। 

  • अलीराजपुर-: 92.2 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या। 

  • सीधी-: 91.7% ग्रामीण जनसंख्या।

मध्य प्रदेश की जनांकिकी विशेषताएं-: 

  • ग्रामीण जनसंख्या-‘ मध्य प्रदेश में लगभग 72% से अधिक जनसंख्या ग्रामीण जनसंख्या है जो राष्ट्र की औसतन ग्रामीण जनसंख्या 68.32% से अधिक है। 

  • निम्न साक्षरता-: भारत की औसत साक्षरता दर 73% है जबकि मध्यप्रदेश की औसतन साक्षरता दर 69%। हालांकि 2001 से 2011 के मध्य साक्षरता दर में वृद्धि हुई है। 

  • निम्न लिंगानुपात-: भारत का औसतन लिंगानुपात 940 है जबकि मध्यप्रदेश का औसतन लिंगानुपात 931 है। हालांकि 2001 मे मध्य प्रदेश का लिंगानुपात 919 था जो अब बढ़कर 931 हो गया है। 

मध्यप्रदेश में नगरों की चारों ओर लोग प्रभावित क्यों होते हैं अर्थात वहां पर जन्म घनत्व अधिक क्यों है? 

क्योंकि वहां पर-: 

  • समतल क्षेत्र होते हैं क्योंकि समतल क्षेत्र में परिवहन एवं खेती करना आसान होता है। 

  • पर्याप्त अधोसंरचना जैसे बिजली-सड़क-पानी होती। अतः लोग सुख सुविधा की प्राप्ति हेतु क्षेत्रों में बस जाते हैं। 

  • बड़े-बड़े शहरों से कनेक्टिविटी होती है कथा व्यापार करने की व्यापक संभावना होती है अतः दे यहीं रहकर व्यापार करने लगते हैं

  • वहां पर बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य होते हैं अतः लोग शिक्षा के लिए यहां आते हैं और शिक्षा पूरी होने के बाद यहीं पर जॉब करने लगते हैं एवं यहीं पर बस जाते हैं। 

  • नगरों के क्षेत्र में औद्योगीकरण होता है परिणाम स्वरूप वहां रोजगार अधिक मिलता है इसलिए लोग वहां पर बस जाते हैं।

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