मध्य प्रदेश में पशुपालन
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पशुपालन का सामान्य अर्थ है पशुओं को पालना जैसे -: गाय भेड़ बकरी भैंस आदि का पालन पोषण करना।
मध्य प्रदेश में पशुपालन का महत्व
कृषि कार्यों में सहायक-: पशुपालन कई रूपों में कृषि कार्य में सहायक होता है जैसे जुताई के लिए हल खींचने में सहायक, कृषि भोजन होने में सहायक, फसल से अन्य निकालने में सहायक,
उपयोगी गोबर खाद की प्राप्ति-: पशुपालन से गोबर खाद की प्राप्ति होती है जो फसल की उत्पादकता एवं मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में सहायक है।
रोजगार की प्राप्ति-: पशुपालन अनेकों बेरोजगारों को रोजगार देने में सहायक है जैसे-: दुग्ध व्यवसाय के व्यवसायियों को रोजगार प्राप्त होता है, मुर्गी पालकों एवं विक्रेताओं को रोजगार प्राप्त होता है, चमड़ा उद्योग मे लगे श्रमिकों को रोजगार प्राप्त होता है।
दुर्गम क्षेत्रों के परिवहन में उपयोगी-: आज भी मध्यप्रदेश में ऐसी अनेकों दुर्गम वन क्षेत्र हैं जहां पर आधुनिक परिवहन के संसाधन प्रयोग नहीं किया जा सकते ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में पहाड़ियों में परिवहन के लिए ऊंट घोड़े या बैलों की गाड़ी का उपयोग किया जाता है।
पोष्टिक आहार की पूर्ति में सहायक-: पशुपालन से दूध दही अंडा मछली मास आदि पोस्टिक आहार प्राप्त होता है।
अन्य से उत्पादों की प्राप्ति-: पशुपालन से चमड़ा उन हड्डियां खादी प्राप्त होती है
चमड़ा का उपयोग -जूता बनाने में दस्ताने बनाने में थैली बनाने में कोट बनाने में।
ऊन का उपयोग कंबल स्वेटर आदि बनाने में होता है।
हड्डी एवं सींग का उपयोग बटन खाद कंगी आदि बनाने में होता है।
राज्य की शुद्ध सकल घरेलू उत्पाद में पशुपालन का योगदान 10% से भी अधिक है।
मध्यप्रदेश में पशुधन की स्थिति
पशुधन गणना रिपोर्ट 2019 के अनुसार मध्यप्रदेश में पशुओं की कुल संख्या 4.06 करोड़ है। जिसमें से -:
कुल पशुधन में बकरियों की संख्या 24% है।
कुल पशुधन में गोवंश की संख्या 51% है।
कुल पशुधन में भैंसों की संख्या 21% है।
कुल पशुधन में भेड़ों की संख्या 1.8% है।
मध्य प्रदेश में पशुपालन से संबंधित मुद्दे एवं समस्याएं-:
पशुओं की नस्लें निम्न गुणवत्ता वाली हैं। परिणाम स्वरूप पशुपालकों को उनकी लागत के अनुसार पर्याप्त पशु उत्पाद प्राप्त नहीं हो पाते।
मध्यप्रदेश में पशुधन की आबादी मानव जनसंख्या की आबादी से लगभग आधी है किंतु प्रदेश में पशुओं के लिए कुल चाराक्षेत्र 4.2% है। और वह भी मानसूनी, परिणाम स्वरूप पशुओं के लिए पर्याप्त खाद्यान्न की आपूर्ति की समस्या बनी रहती है।
पशु उत्पादों के पंजीकृत एवं संगठित बाजार के अभाव में पशुपालकों को पशु उत्पादों का उचित दाम नहीं मिल पाता परिणामस्वरूप वे पशुपालन के प्रति हतोत्साहित होते हैं।
पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल के अभाव में अनेकों पशुओं कि अचानक अप्राकृतिक मृत्यु हो जाती है,
उपाय
प्रदेश में संकर प्रजनन केंद्रों के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाली नस्लों के पशुओं का विस्तार किया जाए।
पशुओं की खाद्य पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जलाए जाने वाले पराली तथा बचे हुए घरेलू जैविक अपशिष्टों को संग्रहित करके पशुओं तक पहुंचाया जाए।
पशु उत्पादों की बाजार विकसित किए जाएं ताकि पशुपालक अपने पशुओं उत्पादों को बेचकर उचित मूल्य प्राप्त कर सकें। और वे पशु पालन हेतु प्रोत्साहित हों।
पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम दूरी पर पशु चिकित्सालय स्थापित किए जाएं तथा पशु एंबुलेंस जैसी सुविधाएं की व्यवस्था की जाए।
पशुपालन के विकास हेतु मध्य प्रदेश सरकार द्वारा किए गए प्रयास
मध्य प्रदेश राज्य पशुपालन एवं कुक्कुट विकास निगम-:
मध्य प्रदेश में पशुपालन एवं कुक्कुट का विकास विस्तार करने के उद्देश्य से वर्ष 1982 को मध्य प्रदेश राज्य पशुपालन एवं कुक्कुट विकास निगम की गई।
जिसके प्रमुख उद्देश्य निन्नलिखित हैं -:
मध्य प्रदेश में पशु उत्पादों एवं कुक्कुट उत्पादन को बढ़ावा देना।
पशुपालन प्रबंधन के आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके विकसित करना।
पशु उत्पादों के भंडारण एवं विक्रय का उचित प्रबंधन करना।
राज्य में पशु एवं कुक्कुट की उन्नत प्रजातियों का विकास करना।
मध्य प्रदेश पशुपालन विभाग की कार्य योजना 2015 से 2025।
मध्य प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा पशुपालन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार हेतु आगामी 10 वर्षीय योजना चलाई जा रही है जिसे मध्य प्रदेश पशुपालन विभाग की कार्य योजना 2015 से 2025 कहा गया।
इस योजना के लक्ष्य-:
पशु चिकित्सा कवरेज को बढ़ाना। वर्ष 2025 तक 400 अतिरिक्त पशु औषधालय की स्थापना करना।
घर पहुंच पशु चिकित्सा सेवा विकसित करना
कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रमों के माध्यम से पशुधन की नसों में सुधार करना।
पशु आहार संयंत्रों की उत्पादन क्षमता बढ़ाना।
गौ सेवक योजना
इस योजना के तहत प्रत्येक गांव से एक शिक्षित बेरोजगार युवक को प्रशिक्षित करके उसे पशु चिकित्सक के मार्गदर्शन में निर्धारित शुल्क पर पशु चिकित्सा का अवसर दिया जाता है।
गो सेवा आयोग
मध्य प्रदेश में गौवंश की रक्षा और उचित देखभाल के लिए गौ सेवा आयोग बना गया, गौ सेवा आयोग द्वारा अपाहिज वृद्धि तथा अपंग गौवंश की रक्षा करने के लिए 315 गौशाला संचालित की जा रही है।
कुक्कुट पालन की लघु इकाई योजना-:
इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के हितग्राहियों को 75% अनुदान पर 55 चूजे प्रदान किए जाते हैं।
रानीखेत उन्मूलन योजना
इसके अलावा अन्य पशुधन विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जैसे-: भेड़ विकास कार्यक्रम। बकरी विकास कार्यक्रम। कुक्कुट विकास कार्यक्रम।
अन्य सरकारी प्रयास
वर्ष 1982 में मध्यप्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम की स्थापना की गई।
खरगोन जिले में गौ एंबुलेंस सेवा संचालित की जा रही है।
विदेश में अनेकों प्रजनन केंद्र स्थापित किए गए जैसे इटारसी में राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया।
पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए राज्य में अनेकों चिकित्सालय एवं औषधालय स्थापित किए गए वर्तमान में मध्यप्रदेश में 1063 पशु चिकित्सालय तथा 1585 पशु औषधालय हैं।
मध्य प्रदेश में ग्रामीण विकास में पशुपालन का महत्व-:
ग्रामीण क्षेत्र के भूमिहीन तथा सीमांत कृषक पशुपालन की माध्यम से अपनी परिवार की आय बढ़ा सकते हैं।
ग्रामीण क्षेत्र के लोग कृषि फसल कृषि से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में संलग्न होते हैं और कृषि एवं पशुपालन एक दूसरे से जुड़े हुए क्योंकि कृषि अपशिष्टों से पशुपालन के लिए अवश्य खाद्यान्न प्राप्त हो जाता है तथा पशुपालन कृषि के लिए खाद प्राप्त हो जाती है। अतः पशुपालन ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को दोनों तरफ से फायदेमंद है
पशुपालन से ग्रामीण क्षेत्र की बेरोजगारी दूर हो सकती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगारी युवक तकनीकी कार्य करने में कुशल नहीं होते किंतु पशुपालन अच्छी तरह से कर सकते हैं।
पशुपालन ग्रामीण क्षेत्र में कुपोषण की समस्या दूर करने में सहायक है क्योंकि पशु उत्पादों मैं पर्याप्त मात्रा में पोषण होता है।
मध्यप्रदेश में कुक्कुट पालन
मांस तथा अंडे की प्राप्ति के लिए, मुर्गी, बत्तख आदि पक्षियों को पालना कुक्कुट पालन कहलाता है।
वर्ष 2012 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश में लगभग 120 लाख मुर्गी एवं बत्तख हैं।
मुर्गी पालन से संबंधित समस्याएं
संक्रामक रोगों की समस्या
मुर्गी पालन केंद्रों में बड़े-बड़े झुण्डो में मुर्गियों का पालन किया जाता है, परिणाम स्वरूप यदि किसी एक मुर्गी को संक्रमित बीमारी हो जाती है तो शीघ्र ही वह बीमारी पूरे झुंड में फैल जाती है। जैसे रानीखेत हैजा बर्ड फ्लू
उन्नत किस्म के चूजों का अभाव
के कारण मुर्गियां ना तो अच्छे किस्म का अंडा दे पाती होना ही पर्याप्त मांस परिणाम स्वरूप मुर्गी पालन को को हानि होती है।
संतुलित आहार की समस्या
मुर्गी फॉर्म में 70% खर्च मुर्गियों के संतुलित आहार में ही आता है किंतु संतुलित आहार के अभाव में मुर्गी पर्याप्त अंडे नहीं दे पाती।
पर्याप्त बाजार की व्यवस्था का अभाव के कारण मुर्गी पालकों को अपनी मुर्गियों का पर्याप्त मूल्य नहीं मिल पाता
सामाजिक स्वीकृति का अभाव की समस्या
वर्तमान युग में भी मुर्गी पालन को एक निम्न स्तर का व्यवसाय माना जाता है तथा मुर्गी पालन करके उसका मांस बेचने को अपराध माना जाता है जो भी इस व्यवसाय के पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण है.
मध्यप्रदेश में डेयरी का विकास
मध्यप्रदेश एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला प्रदेश अतः मध्य प्रदेश के लगभग 72% जनसंख्या गांव में निवास करती है और गांव के लोग कृषि एवं पशुपालन की गतिविधियों में संलग्न रहते हैं अतः मध्य प्रदेश में पशुपालन के विस्तार से दुग्ध उत्पादन का तेजी से विकास हुआ।
वर्ष 2018-19 के आंकड़े के अनुसार मध्यप्रदेश में दुग्ध का कुल उत्पादन 1.47 लाख मीट्रिक टन है।
मध्यप्रदेश में डेयरी के विकास की समस्याएं
परिवहन की समस्या -: दूध का सर्वाधिक उत्पादन ग्रामीण क्षेत्रों में होता है जबकि उसकी मांग शहरी क्षेत्रों में अधिक होती है, अतः ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादित दूध को शहरी क्षेत्र में पहुंचाने के लिए समुचित परिवहन की आवश्यकता होती है, किंतु परिवहन की समुचित व्यवस्था ना होने के कारण (विशेषकर बरसात के मौसम में) गांव का दुग्ध शहरों तक पहुंच पाता, परिणाम स्वरूप एक और जहां गांव में दूध की कम कीमत मिलती है वहीं दूसरी ओर शहर के वासियों को ऊंची कीमत पर भी दूध प्राप्त नहीं हो पाता।
शहरी क्षेत्र में पशुपालन के लिए आवास की समस्या-:
शहरी क्षेत्रों में जनघनत्व काफी अधिक होता है बताएं ऐसी स्थिति में पशुपालन के लिए खुला आवाज प्राप्त नहीं हो पाता परिणाम स्वरूप सभी लोग गांव के अंदर छोटी सी जगह है पशु पालन करते हैं जिससे पशुओं का गोबर और मूत्र का ढेर शहर के अंदर ही रहता है परिणाम स्वरूप बीमारियां फैलती है।
अपमिश्रण की समस्या दूध के वितरण में मध्यस्थों की भूमिका होती है अतः दे अधिकारी अपना लाभ कमाने के लिए दूध में खतरनाक रसायनों की मिलावट करके बेंचते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है
मध्यप्रदेश में डेरी के विकास हेतु किए गए सरकारी प्रयास-:
ऑपरेशन फ्लड
वर्ष 1981 में मध्यप्रदेश में ऑपरेशन फ्लड -।। कार्यक्रम चलाया गया जिसके तहत मध्यप्रदेश के 4 स्थानों में चार दूध संघ की स्थापना की गई-: ग्वालियर ,जबलपुर ,रायपुर, सागर।
सहकारी डेरी कार्यक्रम
एमपी स्टेट कॉर्पोरेशन डेयरी फेडरेशन द्वारा मध्य प्रदेश के 41 जिलों में सहकारी डेयरी कार्यक्रम संचालित है। इस कार्यक्रम प्रमुख उद्देश्य
ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को दूध का उचित मूल्य प्रदान करना।
शहरी उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर पाश्चुरीकृत दूध उपलब्ध करवाना ।
इसके अंतर्गत सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का दूध संकलित करके उन्हें शहरी क्षेत्रों में पहुंचाया जाता है।
सहकारी दुग्ध योजना
मध्यप्रदेश में संचालित सहकारी दुग्ध योजना का मुख्य उद्देश्य-:
दुग्ध उत्पादन संबंधित प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करना
दुग्ध उत्पादन संबंधी परामर्श सेवाओं को प्रारंभ करना
कृत्रिम गर्भाधान द्वारा देशी पशुओं का उच्च किस्म के विदेशी पशुओं से संकरण करवाना।
इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार द्वारा डेयरी के विकास हेतु आनंद मॉडल पर सहकारी डेयरी विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
डेयरी उद्यमिता विकास योजना
यह डेयरी के विकास हेतु केंद्र सरकार द्वारा संचालित योजना है इसके तहत अधिकतम 10 पशुओं की डेरी खोलने पर सरकार कुल लागत का 25% सब्सिडी देगी।
मध्यप्रदेश में मत्स्य पालन
भले जी मध्य प्रदेश एक भूमि आबध्द राज्य है, अर्थात मध्य प्रदेश की सीमा की समुद्र से नहीं लगी है किंतु मध्य प्रदेश में नदियों की जाल तथा जलाशयों की अधिकता से मध्यप्रदेश में मछली उत्पादन की पर्याप्त संभावनाएं हैं। मध्यप्रदेश में लगभग 4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जलाशय और तालाब है।
मत्स्य पालन का महत्व
मत्स्य पालन से ग्रामीण क्षेत्र के अनेक बेरोजगारों को कम लागत स्वारोजगार प्राप्त हो जाता है।
मत्स्य पालन से पोषण युक्त खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है।
मत्स्य पालन जलाशय को स्वच्छ रखने में सहायक है।
दवाइयों के निर्माण मैं मछली के तेल की आवश्यकता होती है आता है दवाई उत्पादन के उद्योगों के लिए कच्चा माल पूरा करने हेतु मत्स्य पालन आवश्यक है।
मध्यप्रदेश में मत्स्य पालन से संबंधित समस्याएं
कृषि औद्योगिक गतिविधियों में जल संसाधनों के अति दोहन होने से मत्स्य पालन के लिए जल संसाधन सीमित होने की समस्या।
मत्स्य दोहन के लिए विशेष नौकाओं या तकनीकी का अभाव।
ग्रामीण क्षेत्रों में मछली के भंडारण या प्रसंस्करण की सुविधा का अभाव।
जल प्रदूषण से मछली की नस्ल में गिरावट की समस्या।
मत्स्य पालन को निम्न स्तर का व्यवसाय माना जाता है तथा समाज द्वारा इसे स्वीकृति नहीं दी जाती है अतः इस कारण से भी मत्स्य व्यवसाय पिछड़ा हुआ है।
समाधान-:
मत्स्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक निश्चित जलाशय क्षेत्र मत्स्य उत्पादन के लिए आरक्षित किया जाए जिसमें जिसका जल का उपयोग किसी औद्योगिक इकाई द्वारा किए जाने पर रोक लगाई जाए।
मत्स्य पालन के क्षेत्र में तकनीकी को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी यंत्रों में सब्सिडी दी जाए।
मछली को लंबे समय तक स्टोरेज करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कोल्ड स्टोरेज एवं खाद्य प्रसंस्करण यूनिट स्थापित की जाए।
मत्स्य पालन वाले जलाशय में खतरनाक रसायनिक पदार्थों के विसर्जन करने पर पूर्णता रोक लगाई।
लोगों को मदद से उत्पादन के लिए प्रेरित किया जाए तथा उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण भी दिया जाए।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मत्स्य पालन की दिशा में किए गए प्रयास
मध्यप्रदेश मछुआरा कल्याण एवं मत्स्य विकास विभाग
मध्य प्रदेश शासन के अंतर्गत इस विभाग की स्थापना वर्ष 1956 में ही की गई थी, इसका मुख्य उद्देश्य
-: सभी प्रकार की जल संसाधनों में मत्स्य पालन की संभावना तलाशना.
मछुआरों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को उन्नत करना।
इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु यह विभाग तालाब नदियां जलाशय आदि को गहरा करवाता है उनके प्रदूषण की जांच करता है तथा मछुआरों को उन्नत बीज तकनीकी एवं प्रशिक्षण उपलब्ध करवाता है।
मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ
वर्ष 1999 में मध्य प्रदेश राज्य मत्स्य विभाग का नाम बदलकर मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ ने कर दिया गया जो मध्य प्रदेश में मत्स्य सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था है।
मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ द्वारा निर्णय योजना संचालित की जा रही हैं
आजीविका का विकास सहयोग योजना-: इस योजना का मुख्य उद्देश्य वर्ष पर्यंत मछुआरों की आजीविका का सुचारू रूप से संचालित करने में उनका सहयोग करना है।
इसके अंतर्गत मछुआरों से उनकी मत्स्य बिक्री पर ₹3 प्रति किलो काटकर मत्स्य महासंघ में जमा किया जाता है तथा जब उनका मत्स्य बिक्री का कार्य बंद हो जाता है तो उन्हें ₹6 प्रति किलो की दर से उनका वह पैसा वापस लौटा दिया जाता है।
नाव-जाल अनुदान योजना-: इस योजना के तहत छोटे मछुआरों को महासंघ द्वारा नाव तथा जल खरीदने पर 80% अनुदान दिया जाता है।
जलदीप योजना-: इस योजना के तहत जलाशय के किनारे अस्थाई रूप से निवास करने वाले मछुआरों को शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ उनके कार्यस्थल पर जा कर दिया जाता है जैसे उनके स्थल पर जाकर उन्हें पोषण आहार देना उनका टीकाकरण करना।
मध्यप्रदेश में नीली क्रांति
मध्य प्रदेश सहित पूरे भारत में नीली क्रांति की शुरुआत वर्ष 1985 से 90 के बीच हुई नीली क्रांति का तात्पर्य मत्स्य उत्पादन न तीव्र वृद्धि से है।
नीली क्रांति के अंतर्गत मध्यप्रदेश में सरकार द्वारा किए गए प्रयास-:
अनेकों मछुआरों की मछली उत्पादन के लिए प्रशिक्षित किया गया वर्ष दो हजार अट्ठारह तक मध्यप्रदेश के 4106 मछुआरों को प्रशिक्षित किया गया है।
वर्ष 2012-13 में फिशरमैन क्रेडिट कार्ड योजना के तहत फिशरमैन को 0% ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।
ATMA कार्यक्रम के तहत मछुआरों को उन्नत किस्म की मछलियों के बीजों का वितरण किया जाता है।