मनोचिकित्सा/ manochikitsa
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Toggleविभिन्न प्रकार के मनोविकारों से मुक्ति पाने के लिए अपनाई जाने वाली चिकित्सा।
व्यक्ति केंद्रित चिकित्सा/person centred therapy
इस चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता कार्ल रॉजर्स है।
वह मनोचिकित्सा पद्धति है जिसके अंतर्गत, मनोचिकित्सक अपने क्लाइंट (रोगी) के साथ सीधा सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करके, उसकी मनोविकार की समस्या के समाधान में मदद करता है।
व्यक्ति केंद्रित चिकित्सा के लक्ष्य-:
रोगी का आत्मविश्वास बढ़ाना।
उसे अपनी समस्या एवं उसके समाधान के प्रति जागरूक करना।
उसके अंदर भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास करना।
विशेषताएं -:
इस पद्धति में मनोचिकित्सक को काउंसलर तथा रोगी को क्लाइंट कहा जाता है।
इस चिकित्सा पद्धति में काउंसलर बिना किसी शर्त के बिना जज किये, क्लाइंट को ससम्मान समझता है।
इसमें काउंसलर क्लाइंट के प्रति परानुभूति (इंपैथी)रखता है।
काउंसलर निरंतरता के साथ, क्लाइंट की काउंसलिंग करता है।
काउंसलर क्लाइंट के साथ अपनापन के साथ सुहाद्रपूर्ण संबंध बनाकर रखता है, ताकि क्लाइंट अपनी सभी बातें शेयर कर सके।
क्लाइंट सेंटर थेरेपी के चरण-:
उपचारार्थी का सहायतार्थ आगमन-:
यह प्रथम चरण है जिसमें क्लाइंट, मनो-चिकित्सक के पास आते हैं तथा मनो-चिकित्सक और क्लाइंट के बीच सामान्य बातचीत होती है।
भावों की अभिव्यक्ति-:
इस चरण में मनोचिकित्सक, क्लाइंट के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित कर, क्लाइंट को अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करने के लिए कहते हैं।
अंतर्दृष्टि का अभ्युदय-:
इस चरण में क्लाइंट अपनी समस्या को समझने लगता है।
धनात्मक प्रयास-:
इस चरण में काउंसलर,क्लाइंट की समस्या से संबंधित मदद करके समस्या के समाधान करने का प्रयास करता है।
संपर्क का समापन- :
इस चरण में समस्या का समाधान हो चुका होता है और क्लाइंट एवं काउंसलर का कांटेक्ट समाप्त हो जाता है।
व्यवहार चिकित्सा-:
यह मनोचिकित्सा की एक के पद्धति है, जिसमें व्यक्ति के असामान्य या कुसमायोजी(दोषपूर्ण) व्यवहार को अनुकूलित व्यवहार में बदलने का प्रयास किया जाता है।
व्यवहार चिकित्सा अधिगम के सिद्धांत पर आधारित होती है।
व्यवहार चिकित्सा के चरण-:
सर्वप्रथम क्लाइंट या रोगी के दोषपूर्ण व्यवहार को निरूपित किया जाता है।
फिर उन कारकों की खोज की जाती है जिससे, उसका दोषपूर्ण व्यवहार उत्पन्न हुआ है और स्थाई बना है।
पूर्ववर्ती कारक– जिससे दोषपूर्ण व्यवहार उत्पन्न हुआ है। (जैसे-घबराहट होना)
संपोषक कारक– जिससे वह दोस्त पूर्ण व्यवहार स्थाई बन पाया। (जैसे- घबराहट की कमी के लिए धूम्रपान करना)
अंत में उपयुक्त व्यवहार चिकित्सा तकनीक, का प्रयोग करके व्यवहार परिवर्तन किया जाता है।
व्यवहार चिकित्सा की प्रमुख तकनीक-:
क्रमबद्ध असंवेदीकरण/systematic desensitization-:
सिस्टमैटिक डिसेंसटाइजेशन में,
सर्वप्रथम संबंधित व्यक्ति को रिलैक्स की अवस्था में ले जाया जाता है। (मेडिटेशन ,योग, हिप्नोसिस द्वारा)
इसके बाद,उन घटनाओं की वरीयता क्रम में लिस्ट बनाई जाती है, जिन घटनाओं से रोगी को डर लगता है।
फिर, सबसे पहले उसे सबसे कम एंजायटी वाली घटना का सामना कराया जाता है,बाद में क्रमानुसार अधिक एंजायटी वाली घटनाओं का सामना कराया था उसके डर को खत्म किया जाता है।
उदाहरण के लिए-: यदि किसी को पानी में जाने से डर लगता है तो, सबसे पहले उसे रिलैक्स करवाएंगे बाद में एक छोटे से टप के पानी में खड़े होने के लिए कहेंगे बाद में किसी टंकी में खड़े होने के लिए कहेंगे और अंत में नदी में खड़े होने के लिए जिससे पानी के प्रति उसका डर समाप्त हो जाएगा।
फ्लूडिंग/flooding तकनीक -:
इस तकनीक में रोगी को सीधे उस घटना का सामना करवाया जाता है, जिससे उसे डर लगता है ताकि उसे घटना के प्रति उसका डर खत्म हो जाए।
उदाहरण-: यदि कोई सार्वजनिक मंच पर भाषण देने की घटना से डरता है, तो उसे सीधे भाषण स्थल में खड़ा कर दिया जाएगा।
विरूचि चिकित्सा/aversion therepy-:
इसके अंतर्गत, रोगी को अवांछित व्यवहार के साथ बुरे उद्दीपन दिए जाते हैं ताकि अवांछित व्यवहार के प्रति उसे आरुचि हो जाए।
उदाहरण-: यदि किसी को शराब पीने की आदत छुड़वानी है तो, जब-जब वह शराब पीता है तब-तब इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है, ताकि उसे यह महसूस होने वालों की शराब पीने से इलेक्ट्रिक शॉक लगता है और शराब के प्रति अरुचि हो जाए।
विभेदक प्रबलन -:
इसके अंतर्गत व्यवहार को परिवर्तित करने के लिए, वांछित व्यवहार करने पर सकारात्मक प्रबलन(positive reforcement) तथा अवांछित व्यवहार करने पर नकारात्मक प्रबलन(negative reforcement) दिया जाता है।
उदाहरण के लिए-: जिस किसी बालक को समय पर होमवर्क करने की आदत डालने के लिए, जब वह समय पर होमवर्क करें तो उसका मनपसंद पकवान या पुरस्कार दिया जाता है, और यदि वह समय पर होमवर्क नहीं करता तो उसे उसकी पसंदीदा चीज ना दी जाए।
माडलिंग/modelling -:
इसके अंतर्गत संबंधित व्यक्ति को विभिन्न आदर्श व्यक्तियों के जैसे बनने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
उदाहरण-: अब्दुल कलाम रोज होमवर्क करते थे, इसलिए इतने महान बन पाए इस प्रकार की बातें करके होमवर्क करने की आदत डालना।
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा(CBT)
यह एक मानसिक चिकित्सा की पद्धति है,जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार की मनोविकार जैसे- अवसाद, एंजायटी के उपचार के लिए किया जाता है।
इसका लक्ष्य-: नकारात्मक विचारों/विश्वासों को बदलकर, व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाना होता है।
-:इस चिकित्सा में जैविक ,मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक तीनों उपागमों का प्रयोग किया जाता है।
चरण-:
सबसे पहले व्यक्ति के अविवेकी विश्वास(cognitive distortion) का पता लगाया जाता है,जिससे उसके अंदर नकारात्मक व्यवहार सृजित हुए है,अविवेकी विश्वास किसी भी प्रकार के हो सकते हैं जैसे-
यह विश्वास होना कि आसपास के सभी लोग मेरे दुश्मन हैं।
यह विश्वास होने कि मैं कमजोर हूं मैं कुछ नहीं कर सकता।
यह विश्वास होना कि नशा करने से अच्छा फील होता है इसलिए नशा करना चाहिए है।
यह विश्वास होना कि मेरा पति/परिवार धोखा दे रहा है
दूसरे चरण में मनोचिकित्सक अनिदेशात्मक प्रश्न की प्रक्रिया से अविवेकी विश्वासों का खंडन करता है
यह अनिदेशआत्मक प्रश्न क्लाइंट को सकारात्मक दिशा में गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे क्लाइंट नकारात्मक व्यवहार से बाहर आ जाता है
उदाहरण के लिए-: यदि किसी पत्नी का पति किसी दिन उसका फोन कॉल नहीं उठाता, तो उसके अंदर यह अविवेकी विश्वास हो जाता है कि वह मुझे इग्नोर कर रहा है वह मुझे प्रेम नहीं करता आदि, और इस नकारात्मक सोच के कारण वह डिप्रेशन में चली जाती है तो ऐसी स्थिति में सीबीटी थेरेपी द्वारा उसका उपचार इस प्रकार से किया जाएगा-:
सबसे पहले पता लगाया जाएगा कि कि नकारात्मक सोच की वजह से वह डिप्रेशन में गई।
फिर मनोचिकित्सक अनिदेशात्मक प्रश्न पूछेगा जैसे-
यह भी तो हो सकता है ना कि वह बिजी रहा हो।
हो सकता है मोबाइल में कुछ तकनीकी प्रॉब्लम रही हो।
वह अधिकांश समय तो आपका फोन उठाता है ना?
जिससे वह पत्नी सकारात्मक दिशा में सोचेगी और उसकी सोच में परिवर्तन के साथ व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आ जाएगा।
तर्कसंगत भावनात्मक व्यवहार चिकित्सा
इस चिकित्सा पद्धति का विकास अल्बर्ट एलिस द्वारा किया गया।
इस पद्धति में क्लाइंट के अतार्किक विश्वास को विभिन्न वास्तविक तर्कों के माध्यम से सकारात्मक दृष्टिकोण में बदलकर, उसे अवसाद या एंजायटी से बाहर लाया जाता है।
चरण-:
सबसे पहले क्लाइंट के अतार्किक विश्वासों को पहचाना जाता है।
इसके बाद मनो चिकित्सक उन अतार्किक विश्वासों को चैलेंज करता है। उससे यह पूछता है कि सिद्ध करो कि तुम्हारे ये विश्वास सही है?
इसके बाद मनोचिकित्सक, क्लाइंट के अतार्किक विश्वासों को विभिन्न व्यवहारिक तर्क देकर, उन्हें समाप्त करने का प्रयास करता है।
उदाहरण के लिए-:
ए तथा बी नाम के दो व्यक्ति इंटरव्यू देने गए दोनों को ही जॉब नहीं मिली; तो इसके बाद ए का विश्वास था कि उसे बाद में इससे भी अच्छी जॉब मिलेगी अभी और प्रयास करने की आवश्यकता है, किंतु बी नाम के व्यक्ति का यह विश्वास था कि जब यही जॉब नहीं मिली तो अब कोई जॉब नहीं मिलेगी और वह डिप्रेशन में चला गया तथा आत्महत्या के अटेम्प्ट करने लगा।
ऐसी स्थिति में तर्कसंगत भावनात्मक व्यवहार चिकित्सा का उपयोग-:
मनोचिकित्सक सर्वप्रथम उसके नकारात्मक विश्वास (जोब ना मिलेगी कहां स्वयं को कमजोर मारना) का पता लगाएगा।
इसके बाद मनोचिकित्सक उससे यह प्रश्न करेगा कि, क्या जब ना मिलने पर जीवन नहीं रह जाता?
और वह इसके विरुद्ध अनेकों तर्क देगा जैसे-
हो सकता है उसे कंपनी की सीट पहले फुल हो गई हो इसलिए जब नहीं मिली।
एक कंपनी तुम्हारा जीवन डिसाइड थोड़ी कर सकती है
तुम अपने कोई स्टार्टअप कर सकते हो आदि।
जिससे उसका अतार्किक विश्वास सकारात्मक विश्वास परिवर्तित हो जायेगा और वह आत्महत्या के प्रयास नहीं करेगा।
पारिवारिक चिकित्सा
पारिवारिक चिकित्सा, एक प्रकार की टॉक थेरेपी है, जिसमें अंतर पारिवारिक संबंधों (inter relationship) में सुधार लाया जाता है।
लक्ष्य -:
पारिवारिक झगड़ों को कम या समाप्त करना।
परिवार में शांति का माहौल स्थापित करना।
आपसी संबंधों में मिठास बढ़ाना।
आपसी कम्युनिकेशन को बढ़ावा देना।
फैमिली थेरेपी की आवश्यकता कब होती है
यदि फैमिली में पहले से कोई विवाद चल रहा है।
फैमिली मेंबरों में आपसी कम्युनिकेशन ना हो रहा हो।
छोटी-छोटी बात पर नोक झोक होती रहती हो।
परिवार की कुछ सदस्य नशे की लत से ग्रसित हो।
बच्चों के अंदर नेगेटिव हैबिट हैं, तो उन्हें सुधारने के लिए।
सिद्धांत -:
परिवार के सदस्यों के आपसी डाउट या नेगेटिव धारणा है समाप्त करना।
परिवार के सदस्यों को एक दूसरे के बारे में सकारात्मक बातें बताना।
इस चिकित्सा पद्धति में फैमिली के सभी मेंबरों के पॉइंट ऑफ व्यू को समझा जाता है इसके बाद कोई संतुलन कारी आईडिया देकर समझौता करा दिया जाता है।
फैमिली थेरेपी के प्रकार
स्ट्रक्चरल फैमिली थेरेपी।
स्ट्रैटेजिक फैमिली थेरेपी।
फंक्शनल फैमिली थेरेपी।
सर्वाधिक उपयोग होने वाली फैमिली थेरेपी स्ट्रैटेजिक फैमिली थेरेपी है।
इसमें -:
अवलोकन-सबसे पहले थैरेपिस्ट परिवार के सदस्यों से बातचीत कर, परिवार के नियम, पारिवारिक क्रियाकलापों ,मान्यताओं को समझता है ।
समस्या पता लगाना-इसके बाद पारिवारिक समस्या एवं उसके कारणों का पता लगता है।
स्ट्रेटजी बनाना – फिर समस्या के समाधान की स्ट्रैटेजी बनाते हैं।
असाइनमेंट देना- परिवार के सदस्यों को स्ट्रेटजी के अनुसार विभिन्न असाइनमेंट दिए जाते हैं।
समस्या समाधान-अंत में समस्या समाधान से संबंधित विभिन्न एडवाइस एवं आइडिया देते हैं।
तकनीकें -:
व्यवहारआत्मक तकनीक(behaviour technique)-: इसमें मनोशिक्षा तथा स्किल ट्रेनिंग द्वारा आपसी पारिवारिक संवाद को बढ़ाया जाता है। उदाहरण के लिए मॉडलिंग और रोल प्लेईंग का उपयोग करना।
मनोगतिक तकनीक (psychodynamic technique)-: इस तकनीक में परिवार के सदस्यों को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उपयुक्त व प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने का प्रशिक्षण देकर, पारिवारिक समस्याओं का समाधान किया जाता है।
संरचनात्मक तकनीक (structure technique)-: इस तकनीक में परिवार की उपयुक्त दिनचर्या स्थापित करवाकर,पारिवारिक समस्याओं का समाधान किया जाता है।