[मानवीय गतिविधियों का पर्यावरण पर प्रभाव एवं पर्यावरण संबंधी समस्याएं]

[मानवीय गतिविधियों का पर्यावरण पर प्रभाव एवं पर्यावरण संबंधी समस्याएं]

This page Contents

paryavaran pr manveeya gatividhiyon ka prabhav

मानव एक प्रगतिशील प्राणी है जो सदैव अपने विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करके,विभिन्न गतिविधियों का संचालन करता रहता है,जिससे पर्यावरण पर अनेकों नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं जिसे हम निम्नानुसार समझ सकते हैं-:

औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव-: 

वर्तमान में आर्थिक विकास के लिए तीव्र औद्योगीकरण हुआ है जिसके कारण जहां एक ओर औद्योगिक धुंआ से वायु प्रदूषण हुआ है, तो वहीं दूसरी औद्योगिक अपशिष्ट से मृदा प्रदूषण व जल प्रदूषण हुआ है। 

इसके अतिरिक्त औद्योगिक उत्पाद बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में व्यापक मात्रा में वनों एवं खनिज पदार्थों का उपयोग किया जाता है इनसे प्राकृतिक संसाधनों की समाप्ति का खतरा उत्पन्न हुआ है। 

शहरीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव-:

शहरीकरण के अंतर्गत बड़ी-बड़ी अवसंरचनाओं (बड़ी-बड़ी इमारतें, मॉल) तथा सड़कों का निर्माण किया जाता है जिसके लिए जंगलों की कटाई तथा उपजाऊ भूमि का अतिक्रमण होता है और वनोन्मूलन से विभिन्न ने पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न होती है,जैसे- ग्लोबल वार्मिंग, जल,वायु एवं मृदा प्रदूषण, जैव-विविधता का ह्रास आदि। 

कृषि का पर्यावरण पर प्रभाव-: 

कृषि एक पर्यावरण हितैषी क्रियाकलाप है किंतु वर्तमान में जैविक कृषि के स्थान पर रासायनिक कृषि की जाती है जिसके अंतर्गत अत्यधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है जो पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं जैसे-

  • मृदा प्रदूषण होता है 

  • मृदा की उत्पादक क्षमता का ह्रास होता है, 

  • जल अवशोषण क्षमता कम हो जाती है

  • भूमिगत जल प्रदूषित होता है। 

इसके अतिरिक्त कृषि में अत्यधिक सिंचाई से मृदा के लवणीय होने तथा भूमि का जलस्तर कम होने की समस्या उत्पन्न हुई है। 

परिवहन का पर्यावरण पर प्रभाव-:

आजकल प्रत्येक व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत वाहन से चलना चाहते हैं जिससे वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई है जिसके पर्यावरण पर अनेकों नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं जैसे-

  • वायु प्रदूषण बढ़ा है। 

  • ध्वनि प्रदूषण बढा़ है। 

  • ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हुई। 

घरेलू गतिविधियों का पर्यावरण पर प्रभाव-:

  • घरों से निकलने वाले अपशिष्ट ओं से जल एवं मृदा प्रदूषण हुआ है। 

  • घरों से खाना बनाने में निकलने वाली धुंआ से वायु प्रदूषण हुआ है। 

  • एसी तथा रेफ्रिजरेटर से निकलने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस से ओजोन परत का क्षरण हुआ है। 

आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रभाव-:

आधुनिक युग में विज्ञान की तरक्की से अनेकों  आधुनिक प्रौद्योगिकी का विकास हुआ है जैसे- परमाणु रिएक्टर से विद्युत निर्माण की विद्युत की, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, बड़े-बड़े बांध से विद्युत निर्माण की प्रौद्योगिकी जिसके पर्यावरण पर अनेकों नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं जैसे-

  • परमाणु रिएक्टर से विद्युत निर्माण की प्रधौगिकी के कारण रेडियोधर्मी प्रदूषण बड़ा है। 

  • बड़े-बड़े बांधों के निर्माण से व्यापक क्षेत्र की उपजाऊ भूमि एवं वन संसाधन जलमग्न हो गए हैं। 

  • सुपरसोनिक जेट विमान से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड की प्राण ओजोन का क्षरण हुआ है। 

पर्यावरण से संबंधित समस्याएं एवं चुनौतियां-:

ग्लोबल वार्मिंग-:

वैश्विक तापमान में वृद्धि होना ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है और ग्लोबल वार्मिंग पर्यावरण की सबसे प्रमुख समस्या है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग से हिम पिघलती है जिससे समुद्री जल स्तर बढ़ता है परिणाम स्वरूप तटीय क्षेत्रों की जलमग्न होने का खतरा है। 

जलवायु परिवर्तन-:

किसी स्थान की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं को जलवायु कहते हैं और जलवायु में अल्पकालीन बदलाव होना जलवायु परिवर्तन कहलाता है जो पर्यावरण की एक प्रमुख समस्या है क्योंकि जलवायु परिवर्तन से सूखा एवं बाढ़ जैसी समस्याएं के साथ-साथ अन्य आपदाओं की आवृत्ति बढ़ जाती है। 

ओजोन परत का ह्रास-: 

वायुमंडल के समताप मंडल में पाई जाने वाली ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को रोककर हमें इसके दुष्प्रभावों से बचाती है किंतु वर्तमान में विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण उत्सर्जित होने वाली CFC व हेलोजन ,ब्रोमाइड जैसी गैसों के दुष्प्रभाव से ओजोन परत का क्षरण होने लगा है जो पर्यावरण की प्रमुख चुनौती है।

जल,वायु एवं मृदा प्रदूषण-:

जल,वायु एवं मृदा पर्यावरण की प्रमुख घटक होते हैं किंतु वर्तमान में औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के प्रभाव से ये तीनों घटक प्रदूषित होते जा रहे हैं जिसका दुष्प्रभाव जीव-जगत पर पड़ता है। 

जैव-विविधता का ह्रास-:

वर्तमान में उन्मूलन तथा पर्यावरण प्रदूषण से ना सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ा है बल्कि अनेकों जीव जंतुओं की प्रजाति या तो विलुप्त हो गई है या विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं, जिसके परिणाम स्वरूप खाद्य श्रृंखला एवं पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो गया है।  

भूमिगत जलस्तर में कमी-:

वर्तमान में औद्योगिकीकरण, शहरीकरण तथा आधुनिक कृषि के कारण भूमिगत जल स्तर में कमी आई है, जिससे जल संकट उत्पन्न हो रहा है। 

पर्यावरण परिवर्तन-:

मानवीय गतिविधियों या प्राकृतिक प्रकृमों के कारण पर्यावरणीय घटकों में होने वाला बदलाव ही पर्यावरण परिवर्तन कहलाता है। 

पर्यावरण परिवर्तन के कारण-:

  • जनसंख्या में बढ़ोतरी होने से प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन होना। 

  • तीव्र औद्योगीकरण के कारण वायु, जल एवं मृदा की गुणवत्ता में ह्रास होना। 

  • शहरीकरण के कारण वनों का विनाश होना। 

  • व्यक्ति के साथ सहचर की जीवन शैली के स्थान पर उपभोक्तावादी जीवन शैली से पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा मिलना। 

  • जैविक कृषि के स्थान पर रासायनिक कृषि किया जाना। 

प्रमुख पर्यावरण परिवर्तन/पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव-:

  • जलवायु में लगातार परिवर्तन होना। 

  • वैश्विक तापमान में वृद्धि होना। 

  • ओजोन परत का क्षरण होना। 

  • मृदा, जल एवं वायु की गुणवत्ता में कमी आना। 

  • कृषि उत्पादन क्षमता में कमी आना तथा कृषि उपज का विषैला होना। 

  • भूमिगत जल स्तर में लगातार गिरावट होना। 

  • विभिन्न नवीन बीमारियों का उद्भव होना। 

  • अम्लीय वर्षा होना। 

  • जैव विविधता का ह्रास होना।

क्या पर्यावरण परिवर्तन मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा है?

हां, पर्यावरण में नकारात्मक परिवर्तन मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा है, क्योंकि मनुष्य जीवित रहने के लिए भोजन जल और श्वसन-वायु की आवश्यकता होती है पर्यावरण परिवर्तन से मृदा, जल और वायु तीनों की गुणवत्ता में ह्रास होता है, और विभिन्न प्रकार की नवीन बीमारियों का उद्भव होता है, जिसके प्रभाव से एक ओर मनुष्य बीमारियों से ग्रसित हो जाता है दूसरी ओर स्वच्छ भोजन जल और वायु ना मिलने से कमजोर होकर अपने अस्तित्व को ही खो सकता है। 

[जलवायु परिवर्तन]

 इसका उत्तर विश्व भूगोल की पीडीएफ में है। 

[ग्लोबल वार्मिंग]

पृथ्वी के औसतन तापमान में होने वाली वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है, और ग्लोबल वार्मिंग का कारण हमारी विभिन्न गतिविधियों से उत्सर्जित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, मीथेन द्वारा भूतल से परावर्तित होने वाली दीर्घ तरंग विकिरण की ऊष्मा को अवशोषित कर लिया जाना है। 

ग्लोबल वार्मिंग हिम पिघलेगी, जिससे समुद्री जल स्तर में वृद्धि होगी परिणाम स्वरूप अनेकों तटीय शहर एवं द्वीप डूब जाएंगे। 

[ओजोन परत का क्षरण]

वायुमंडल में लगभग 18 से 35 किलोमीटर की ऊंचाई पर, ओजोन गैस की सघनता वाली परत पाई जाती है जिससे ओजोन परत कहते हैं जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को परावर्तित करके, उन्हें पृथ्वी के धरातल तक पहुंचने से रोकती है। 

किंतु मानव गतिविधियों के कारण व्यापक मात्रा में CFC , हैलोजन तथा ब्रोमाइड गैसों के उत्सर्जन से ओजोन परत का क्षरण हो रहा है। जो जैव-जगत के लिए खतरा है क्योंकि इसके क्षरण से पराबैगनी किरण धरातल पर पड़ेगी परिणाम स्वरूप हमें त्वचा-कैंसर ,चेचक जैसी बीमारियां होंगी, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होगी। तथा वनस्पतियों का ह्रास होगा। 

अम्लीय वर्षा-:

जब विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण निकलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड वायुमंडल में पहुंचकर जल के अणुओं से मिलकर क्रमशः सल्फ्यूरिक अम्ल एवं नाइट्रिक अम्ल का निर्माण करते हैं और वर्षा के रूप में धरातल पर गिरते हैं तो इसे अम्लीय वर्षा कहा जाता है। 

अम्लीय वर्षा के प्रभाव -:

  • फसलों की उत्पादकता कम हो जाती है। 

  • जलीय जैव-विविधता का ह्रास होता है। 

  • पत्थर तथा इमारतों का क्षरण होता है जैसे- वर्तमान में अम्ल वर्षा से ताज महल ,लाल किला का क्षरण हो रहा है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *