मानव संसाधन
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Toggleमाना संसाधन का तात्पर्य कार्यशील जनसंख्या(15-59वर्ष) के उस भाग से है जो स्वस्थ ,शिक्षित एवं प्रशिक्षित(या अनुभवी) होने के कारण किसी कार्य विशेष को उपयुक्त तरीके से करने में कुशल हो।
मानव संसाधन के विकास की आवश्यकता या महत्व-:
उपलब्ध भौतिक संसाधनों का उपयुक्त एवं कुशलतम दोहन करने के लिए मानव संसाधन का विकास आवश्यक है क्योंकि मानव संसाधन के बिना प्राकृतिक संसाधन निष्क्रिय होते हैं।
जैसे-: मानव संसाधन के माध्यम से ही नदी के बहते हुए जल द्वारा ऊर्जा बनाई जा सकती है।
बेरोजगारी की समस्या को समाप्त करने के लिए मानव संसाधन का विकास आवश्यक है क्योंकि कुशल मानव संसाधन को उसकी कुशलता के आधार पर रोजगार प्राप्त हो जाता है अन्यथा कुशल मानव संसाधन स्वयं ही स्वरोजगार स्थापित कर लेता है।
जैसे-: यदि कोई व्यक्ति सिलाई करने में कुशल है तो उसे सिलाई कंपनी में रोजगार प्राप्त हो जाएगा अन्यथा वह स्वयं टेलर की दुकान खोलकर अपना स्वरोजगार स्थापित कर सकता है।
कुशल मानव संसाधन का विकास तीव्र आर्थिक विकास में सहायक होता है, क्योंकि कुशल मानव संसाधन में बढ़ोतरी से उद्यमशीलता तथा निवेश में भी बढ़ोतरी होती है, रचनात्मकता एवं उत्पादन की नवीन तकनीकों का विस्तार होता है, तथा उद्योगों में दक्ष लोग कार्य कर रहे होते हैं जिससे दक्षता पूर्ण कर होता है परिणाम स्वरूप उत्पादन एवं उत्पादकता भी बढ़ती है।
कुशल मानव संसाधन का विकास लोगों के जीवन-स्तर को ऊपर उठाने के लिए आवश्यक है क्योंकि कुशल मानव संसाधन की बढ़ोतरी से प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ती है जिससे लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठता है।
कुशल मानव संसाधन का विकास स्वस्थ एवं सभ्य समाज के निर्माण में सहायक है क्योंकि जिस समाज में कुशल मानवों की संख्या अधिक होती है वह समाज अंधविश्वास तथा कुरीतियों से मुक्त होता है, तथा उस समाज में सभी लोग संतुष्ट होते हैं जिससे सामाजिक समरसता की भावना बढ़ती है एवं आतंकवाद ,अलगाववाद जैसी गतिविधियों पर रोक लगती है। यही कारण है कि जापान जैसे विकसित देशों में कुशल मानव संसाधन के विकास के कारण आतंकवाद अलगाववाद जैसी उपद्रवकारी गतिविधियां कम देखने को मिलती है।
कुशल मानव संसाधन की उपलब्धता-:
भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है भारत में वर्तमान में लगभग 130 करोड़ जनसंख्या निवासरत है और उसमें से भी कार्यशील जनसंख्या (अर्थात 15 से 60 वर्ष की आयु के लोग) लगभग 65% हैं, किंतु भारत की कुल कार्यशील जनसंख्या में 2.3 प्रतिशत जनसंख्या औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है अर्थात किसी कार्य को करने में दक्ष है। जबकि जापान में यही आंकड़ा 80% से भी अधिक है दक्षिण कोरिया में ही आंकड़ा 90% से भी अधिक है।
भारत में 4 में से 1 इंजीनियर की रोजगार प्राप्त कर पाता है
अर्थात हम यह कह सकते हैं कि भारत में जनसंख्या तो है किंतु कुशल मानव संसाधन नहीं है।
वहीं मध्यप्रदेश में भी लगभग 64% कार्यशील जनसंख्या है किंतु राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में मध्यप्रदेश में शैक्षिक संस्थानों (आईआईटी, फार्मेसी, बीसीए) आदि से प्रशिक्षित लोगों की कुल संख्या 5,85000 थी, तथा गवर्नमेंट की विभिन्न कौशल विकास एक स्कीमों के माध्यम से प्रशिक्षित लोगों की कुल संख्या5.97 लाख थी, इस प्रकार मध्य प्रदेश में कुल प्रशिक्षित लोगों की संख्या लगभग 12लाख थी जो कुल जनसंख्या का 2% से भी कम है।
तथा मध्य प्रदेश में बारहवीं कक्षा के बाद 12वीं कक्षा के केवल 10% बच्चे ही कॉलेज में नियमित रूप से पढ़ाई करते हैं।
मध्यप्रदेश में कुशल मानव संसाधन की कमी (उपलब्धता कम होने) के कारण-:
शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थाओं की कमी।
शिक्षा प्रणाली में दोष-:
जैसे व्यवहारिक शिक्षा तकनीकी शिक्षा प्रणाली का अभाव, प्रारंभिक शिक्षा में रचनात्मकता को महत्व दिया जाना, शिक्षण संस्थानों में प्रयोगशालाओं की कमी।
गरीबी की समस्या के कारण गरीब बच्चे शिक्षा नहीं ले पाते।
कुपोषण की समस्या। (क्योंकि कुशल मानव वही होता शिक्षा के साथ-साथ स्वस्थ शरीर भी होना चाहिए
स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता में कमी।
मानव संसाधन की उपलब्धता बढ़ाने के उपाय-:
शिक्षण तथा प्रशिक्षण खर्च में वृद्धि करके शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ाई जाए तथा उनमें पर्याप्त प्रयोगशाला स्थापित की जाए एवं शिक्षकों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित की जाए।
शिक्षा प्रणाली में बदलाव करके सैद्धांतिक शिक्षण प्रणाली को व्यवहारिक एवं रोजगार उन्मुख व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली में बदला जाए। नई शिक्षा नीति इस दिशा में उल्लेखनीय कदम है।
गरीबों को निशुल्क शिक्षा एवं कौशल प्रशिक्षण उपलब्ध करवाने वाली योजनाओं का उचित तरीके से क्रियान्वयन किया जाए तथा निरीक्षण किया जाए।
लोगों ने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए तथा उन्हें आवश्यक पोषण प्रदान किया जाए ताकि लोग स्वस्थ रहें। क्योंकि स्वस्थ एवं शिक्षित व्यक्ति ही कुशल मानव संसाधन होता।
हमारी जनसंख्या में बूढ़े तथा युवा दोनों लोग होते हैं तथा वृद्ध लोगों के पास अनुभव(कौशल) होता है किंतु कार्य शक्ति नहीं जबकि युवा लोगों के पास कार्य शक्ति होती है किंतु अनुभव नहीं होता है वही लोगों के अनुभव और युवाओं की कार्य शक्ति के मध्य सामंजस्य बिठाकर आर्थिक विकास की योजना बनाई जाए।
कुशल मानव संसाधन की उपलब्धता के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा किए गए प्रयास
मुख्यमंत्री कौशल उन्नयन प्रशिक्षण योजना-:
इस योजना का प्रारंभ मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2012-13 में किया गया,
इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति के बेरोजगार युवकों को विशेष गुणवत्ता युक्त प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध करवाना।
मुख्यमंत्री कौशल संवर्धन योजना-:
यह योजना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2017 में लागू की गई,
इस योजना का मुख्य उद्देश्य रोजगारोन्मुखी राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप युवाओं को कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से युवाओं प्रशिक्षण देना।
इस योजना के अंतर्गत राज्य के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से ऐसे प्रशिक्षण दिए जाते हैं जो परंपरागत आईटीआई पाठ्यक्रमों द्वारा प्रदान नहीं किया जाता।
मुख्यमंत्री कौशल्या योजना-:
योजना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2017 में लागू की गई।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य रोजगारोन्मुखी राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से राज्य की महिलाओं को प्रशिक्षण देना है।
इस योजना के तहत राज्य की युवतियों को गैर-परंपरागत कोशल प्रशिक्षण दिया जाता है।
मुख्यमंत्री युवा स्वाभिमान योजना-:
यह योजना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2019 में लागू की गई।
इस योजना का उद्देश्य राज्य के 21 से 30 आयु वर्ग के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए,व्यवसायिक प्रशिक्षण देकर रोजगार के अवसर प्रदान करना है।
तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास संशोधित नीति 2014
मध्यप्रदेश में तकनीकी शिक्षा एवं कौशल प्रशिक्षण का विस्तार करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2014 में तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास संशोधित नीति 2014 लागू की गई। इस नीति के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-:
आईटीआई स्थापित करने के लिए भवन निर्माण तथा उपकरण आदि के निवेश पर 3 करोड़ तक का अनुदान देने का प्रावधान किया गया।
कौशल विकास केंद्रों के द्वारा क्रय किए गए उपकरणों पर दिए जाने वाले अनुदान की सीमा को ढाई लाख से बढ़ाकर ₹10लाख कर दिया गया।
इस नीति के तहत यदि प्रशिक्षणकर्ता अपने 50% से अधिक प्रशिक्षणार्थियों को रोजगार में लगा देता है तो उस प्रशिक्षणकर्ता को ₹3000 प्रति प्रशिक्षणार्थी के मान से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।
भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना
यह योजना 2014 में भारत सरकार द्वारा लागू की गई।
इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं (18 से 35 वर्ष के) को रोजगारपरक प्रशिक्षण दिया जाता है
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना -:
यह योजना भारत सरकार द्वारा पूरे भारत में वर्ष 2015 में लागू की गई।
इस योजना का उद्देश्य बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं एवं युवतियों को जीविका उपार्जन हेतु कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।
इस योजना के अंतर्गत अनेकों कौशल प्रशिक्षण केंद्र खोले गए जहां पर संबंधित क्षेत्र के लोगों को विभिन्न कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है।
स्टैंड अप इंडिया योजना -:
इस योजना का प्रारंभ भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में किया गया।
इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं को अपना उद्यम स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता करना है
इस योजना के तहत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं को अपना नया उद्यम स्थापित करने के लिए ₹10 लाख से एक करोड़ तक के बीच का बैंक ऋण प्रदान किया जाता है। इस की ब्याज दर काफी निम्न होती है तथा यह ऋण कुल लागत का 75% प्रदान किया जाता है
प्रधानमंत्री युवा योजना-:
इस योजना की शुरुआत वर्ष 2016 में केंद्र सरकार द्वारा की गई।
इस योजना का उद्देश्य शिक्षित युवाओं को पर्याप्त कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है ताकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकें।
अटल इन्नोवेशन मिशन-:
इस मिशन की शुरुआत 2016 में की गई।
इसका उद्देश्य भारतीय युवाओं के नवाचार को गति देकर स्वरोजगार को बढ़ावा देना है।
इस मिशन के अंतर्गत इनक्यूबेशन सेंटर बनाए जाते हैं जहां पर कोई भी होगा अपने नवाचार आइडिया के तहत अपना उद्योग स्थापित करने के लिए विभिन्न प्रकार की व्यवसायिक नियोजन से संबंधित सलाह ले सकता है।
प्रवासी कौशल विकास योजना-:
यह योजना मध्य प्रदेश के विदेश मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में लागू की गई।
इस योजना का उद्देश्य भारत से बाहर जाने वाली युवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर का कौशल प्रशिक्षण देना।
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम-:
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की स्थापना 31 जुलाई 2008 में हुई।
इसका मुख्य उद्देश कौशल विकास को बढ़ावा देना है,
कार्य-:
भारत में कौशल विकास की स्थिति का सर्वेक्षण करना।
भारत की विभिन्न कौशल विकास संस्थाओं के मध्य संबंध पर बैठाना।
राष्ट्र के नागरिकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का कौशल प्रदान करना।
कौशल विकास सेवा (isds)
वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा कौशल प्रशिक्षण देने के लिए अलग से अधिकारियों की नियुक्ति हेतु कौशल विकास सेवा का आयोजन किया गया,
मानव संसाधन प्रबंधन
उपलब्ध मानव संसाधन को उनकी कुशलता के आधार पर उन्हें उपयुक्त कार्य देकर, समुचित विकास सुनिश्चित करना अर्थात मानव संसाधन की मांग एवं पूर्ति के मध्य सामंजस्य बैठाना मानव संसाधन प्रबंधन कहलाता है।
मानव संसाधन नियोजन-:
मानव संसाधन नियोजन वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत पूर्वानुमान लगाकर ,भविष्य के लिए यह योजना बनाई जाती है कि कब, किस कार्य के लिए और कितने कुशल मानव संसाधन की आवश्यकता होगी? तथा उपयुक्त कुशल मानव संसाधन की पूर्ति कैसे और किन स्रोतों से की जाएगी?
जैसे-: शिक्षा विभाग मानव संसाधन नियोजन के अंतर्गत यह अनुमान लगाता है कि इस वर्ष कितनी शिक्षकों की आवश्यकता है उनकी पूर्ति कैसे की जाएगी तथा इसके अतिरिक्त वह शिक्षकों की नियुक्ति, उनका प्रशिक्षण, उनके कार्य का आवंटन तथा उनका अवलोकन भी करता है।
एरिक डब्ल्यू वेटर के अनुसार-: मानव संसाधन नियोजन वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत प्रबंधक यह निर्णय करता है कि संस्था को अपनी वर्तमान मानव संसाधन स्थिति से वांछित मानव संसाधन स्थिति की ओर कैसे ले जाया जाए।
मानव संसाधन नियोजन के तत्व-:
वर्तमान कुशल मानव संसाधन की उपलब्धता की सही गणना करना-‘ कि कितने कार्यशील लोक संबंधित कार्य को करने में कुशल है
भविष्य में बढ़ने वाले मानव संसाधन का अनुमान लगाना-: कि भविष्य में किस कार्य की दक्षता रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी और कितनी बढ़ेगी,
अपने संस्थान में मानव संसाधन की आवश्यकता का अनुमान लगाना-: कि किस कार्य के लिए कितने मानव संसाधन की आवश्यकता होगी।
मानव संसाधन नियोजन की विशेषताएं-:
मानव संसाधन नियोजन एक भविष्य की योजना है-:
मानव संसाधन नियोजन एक पूर्व अनुमान आधारित भविष्य की योजना होती है। जिसमें पूर्व अनुमान लगाया जाता है कि भविष्य में कितने मानव संसाधन की आवश्यकता होगी उनकी पूर्ति कहां से की जाएगी।
मानव संसाधन नियोजन एक सतत प्रक्रिया है-:
क्योंकि किसी भी सरकारी या व्यवसायिक संस्थान में मानव संसाधन की मांग एवं पूर्ति घटती बढ़ती रहती है अतः लगातार मानव संसाधन नियोजन करना होता है।
मानव संसाधन के कुशलतम उपयोग पर आधारित योजना-:
मानव संसाधन नियोजन के अंतर्गत यह योजना या रुपरेखा बनाई जाती है कि संस्था को जिन कार्यों के लिए मानव संसाधन की आवश्यकता है केवल वही मानव संसाधन की नियुक्ति करनी है तथा उनका उच्चतम उपयोग करके अपनी उत्पादकता बढ़ानी है।
मानव संसाधन नियोजन के क्रियान्वयन के अंतर्गत कुशल मानव संसाधन की नियुक्ति, प्रशिक्षण, कार्य आवंटन ,कार्य अवलोकन, आदि का कार्य किया जाता है।
मानव संसाधन नियोजन के उद्देश्य-:
संस्था के लिए आवश्यक कुशल तथा योग्य कर्मचारियों को समय पर आसानी से प्राप्त करना।
भविष्य में संस्था में होने वाली मानव संसाधन की कमी या अधिकता की स्थिति को पहले से ही संतुलित करके रखना।
कर्मचारी लागत में कमी लाने तथा कर्मचारियों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करना।
मानव संसाधन नियोजन की आवश्यकता या महत्व-:
संबंधित संस्था में समय पर कुशल एवं योग्य कर्मचारियों की प्राप्ति हेतु मानव संसाधन नियोजन करना आवश्यक है
मानव संसाधन की मांग एवं पूर्ति अर्थात मानव संसाधन की कमी(shortage) या अधिकता(surplus) के मध्य संतुलन बैठाने के लिए
कर्मचारियों की लागत कम करने तथा कर्मचारियों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित कर ,मानव संसाधन उत्पादकता बढ़ाने के लिए
बदलते तकनीकी परिवेश के अनुसार मौजूद नियुक्त कर्मचारियों को पहले से ही प्रशिक्षण देकर आने वाली माहौल के अनुरूप बनाने हेतु,
औद्योगिक अशांति को कम करने के लिए, क्योंकि विवेक पूर्ण मानव संसाधन के नियोजन से संस्थान में अशांति , विरोध प्रदर्शन, निष्कासन जैसी परिस्थिति में पैदा नहीं होती।
मानव संसाधन नियोजन की समस्याएं-:
संस्था के प्रबंधकों द्वारा मानव संसाधन नियोजन ना किया जाना। क्योंकि यह सोचते हैं कि हमें जब भी मानव संसाधन की आवश्यकता होगी तो वह आसानी से प्राप्त हो जाएंगे किंतु वास्तविकता यह है कि उन्हें आवश्यकता होने पर मानव तो प्राप्त हो जाते है किंतु कुशल मानव संसाधन प्राप्त नहीं होते हैं।
उपलब्ध मानव संसाधन का शुद्ध डाटा प्राप्त ना होना।
भविष्य में आने वाली आपदाओं की अनिश्चितता के कारण कभी मानव संसाधन की उपलब्धता की बाढ़ आ जाती है तो कभी बहुत ज्यादा कमी आ जाती है जो मानव संसाधन नियोजन की मुख्य समस्या है।
जैसे पानी अच्छा गिरने पर फसल क्षेत्र का विस्तार होता है जिससे मजदूर लोग कृषि कार्य करने लगते हैं परिणाम स्वरूप मानव संसाधन की कमी हो जाती है।
मानव संसाधन नियोजन के प्रारूप
अल्पकालीन मानव संसाधन नियोजन(वह मानव संसाधन नियोजन जो कम समय अवधि सामान्यतया 2 वर्ष से कम समृद्धि के लिए किया जाता है)
मध्यकालीन मानव संसाधन नियोजन(वह मानव संसाधन नियोजन जो मध्यम कालीन अवधि सामान्यतः दो से 5 वर्षों के लिए किया जाता है)
दीर्घकालीन मानव संसाधन नियोजन(वह मानव संसाधन नियोजन जो दिव्य कालीन अवधि सामान्यतया 5 वर्ष से अधिक समय अवधि के लिए किया जाता है)
मानव संसाधन की उत्पादकता-:
किसी संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों (मानव संसाधन) की उत्पादन क्षमता मानव संसाधन की उत्पादकता कहलाती है
उत्पादकता में वृद्धि के उपाय
प्रोत्साहन-: संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों को और अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए इसके लिए उन्हें अच्छा काम करने पुरस्कार दिया जाए
विभिन्न प्रकार की सेमिनार आयोजित कर उन्हें प्रोत्साहित किया जाए।
कार्य का अवलोकन-: संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों के कार्य का लगातार अवलोकन , निरीक्षण किया जाए,
आवश्यक दशाएं प्रदान करना-: कर्मचारियों की मांग पर उन्हें कार्य संबंधी आवश्यक उपकरण तथा वेतन बोनस प्रदान किया जाए ताकि उन्हें अपना कार्य करने में सरलता हो और अच्छे तरीके से करें।
प्रशिक्षण की सुविधा-: पहले से मौजूद कर्मचारियों को बदलते तकनीकी युग के अनुसार कार्य करने के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण दिया जाए।
परामर्श सेवाएं-: कर्मचारियों को अधिक उत्पादन करने से संबंधित उपयुक्त परामर्श की सेवाएं दी जाए।
रोजगार का चलन-:
रोजगार के चलन का तात्पर्य इस अध्ययन से है कि किसी राज्य या देश में रोजगार का वितरण किन क्षेत्रों में कितना और कैसा है?
और रोजगार का क्षेत्रवार विश्लेषण भविष्य उन्मुख नीतियां एवं कार्यक्रम बनाने में उपयोगी होता है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (nsso) की रिपोर्ट 2017-18 के अनुसार-:
देश में कुल श्रमिकों की संख्या 47.12 करोड़ थी जिसमें से-:
नियमित वेतन भोगी कर्मचारियों की संख्या 23% , जबकि ग्रामीण क्षेत्र के कुल श्रमिकों में नियमित वेतन भोगी श्रमिकों की संख्या मात्र 13% है और यही आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में 47% है।
स्वरोजगार के कार्मिकों की संख्या 36% है तथा ग्रामीण क्षेत्र के कुल श्रमिकों में से 39% श्रमिक स्वरोजगार के कार्मिक हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में यही आंकड़ा मात्र 29% है।
आम मजदूरों अर्थात प्रतिदिन मजदूरी पाने वाले कार्मिकों की संख्या 25% है । तथा ग्रामीण क्षेत्र के कुल श्रमिकों में आम मजदूरों की संख्या 29% है जबकि शहरी क्षेत्रों में यही आंकड़ा मात्र 15% है।
अवैतनिक पारिवारिक श्रमिकों की संख्या 14% है। तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अवैतनिक पारिवारिक श्रमिकों की संख्या शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।
तथा नियोक्ता वर्ग की संख्या 2% थी।
कुल श्रमिकों में ग्रामीण श्रमिकों की संख्या 67% है तथा शहरी क्षेत्रों के कुल श्रमिकों की संख्या लगभग 33% है।
कुल श्रमिकों में 77% श्रमिक पुरुष है एवं लगभग 23% श्रमिक महिला हैं।
भारत की श्रमबल सहभागिता दर (labour force participation rate) – वर्ष 2011-12 में 39.5% थी जो वर्ष 2017-18 में घटकर 36. 9% तक आ गई।
श्रम बल सहभागिता दर का तात्पर्य देश की कुल जनसंख्या में श्रमिकों की संख्या के अनुपात से है।
विश्लेषण-:
भारत की समग्र सहभागिता दर मात्र 36.9% है जो बहुत ही कम है इसका अर्थ है कि उत्पादन की क्रिया में बहुत ही कम अर्थात 36.9% लोग ही संलग्न रहते हैं।
शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों की संख्या अधिक है किंतु जीडीपी में शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान कम है, इसका अर्थ यह है कि ग्रामीण श्रमिक निम्न मजदूरी दर पर निम्न उत्पादकता का कार्य करते हैं। जबकि शहरी श्रमिक तुलनात्मक रूप से उत्पादकता का कार्य करते हैं परिणाम स्वरूप कौन है अधिक वेतन प्राप्त होता है। इसलिए उनका जीडीपी में अधिक योगदान रहता है तथा उनकी प्रति व्यक्ति आय भी अधिक होती है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि कोई श्रमबल में महिलाओं की सहभागिता लगभग 23% ही रह गई है। जो यह दर्शाती है कि आज भी भारतीय समाज में पुरुष प्रधानता के तत्व मौजूद हैं।
हालांकि महिला श्रम बल की सहभागिता शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है ग्रामीण क्षेत्रों में महिला श्रम बल सहभागिता दर 25.5 प्रतिशत है तथा शहरी क्षेत्रों में मात्र 19.8% है।
शहरी क्षेत्रों में महिला कार्य बल के निम्न होने के कारण-:
शहरी क्षेत्रों के अधिकांश परिवार में महिलाओं द्वारा घर से बाहर निकल कर नौकरी करना आज भी वर्जित है।
महिला साक्षरता दर कम होना तथा महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों की जानकारी का अभाव।
शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कार्य बल सहभागिता दर अधिक इसलिए है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं निर्धनता के कारण काम करने के लिए विवश होती है।
मध्य प्रदेश में रोजगार के विभिन्न चलन -:
मध्यप्रदेश में रोजगार की स्थिति तथा रोजगार का क्षेत्रवार विवरण की जानकारी रोजगार कार्यालयों के माध्यम से प्राप्त की जाती है।
और प्रदेश के 52 रोजगार कार्यालयों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2018 में राज्य के लगभग 27लाख बेरोजगार लोगों ने रोजगार पंजीयन करवाया था। जिसमें से शिक्षित बेरोजगार आवेदकों की संख्या लगभग 91% थी।
मध्यप्रदेश में श्रम बल की सहभागिता दर लगभग 50% है अर्थात लगभग आधी जनसंख्या उत्पादन के कार्यों में संलग्न रहती है।
मध्य प्रदेश में कर्मचारियों की स्थिति
वर्तमान में मध्यप्रदेश में लगभग 7 लाख 35 हजार नियमित वेतन भोगी शासकीय एवं अर्ध शासकीय कर्मचारी कार्यरत हैं जिसमें से 4.52 लाख कर्मचारी शासकीय विभागों में कार्यरत है तथा 56 हजार कर्मचारी अर्ध-शासकीय संस्थाओं में कार्यरत हैं 88 हजार कर्मचारी नगरीय स्थानीय निकायों में , 1.30 लाख कर्मचारी ग्रामीण स्थानीय निकायों में तथा लगभग 6000 कर्मचारी विश्वविद्यालय क्षेत्र में कार्यरत हैं।
मध्यप्रदेश में कारखानों से प्राप्त रोजगार की स्थिति-:
मध्यप्रदेश में वर्ष 2018 तक लगभग 16000 कारखाने पंजीकृत थे जिनकी रोजगार देने की कोई क्षमता लगभग 900000 श्रमिक थी।
जनांकिकीय लाभांश
जनांकिकीय लाभांश का तात्पर्य किसी भी समाज या राज्य की उस स्थिति से है जिसमें कार्यशील जनसंख्या (15 से 64वर्ष तक के)आश्रित जनसंख्या (बच्चे एवं बूढ़े)की तुलना में अधिक होती है।