राजा राममोहन राय
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राजा राममोहन राय-
भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत एवं प्रमुख समाज सुधारक राजा राममोहन राय का जन्म 1772 ईसवी को राधानगर (कोलकाता) में हुआ था।
वे अपने क्षेत्रीय भाषा बांग्ला के अलावा संस्कृत, अरबी, पारसी ,लेटिन,ग्रीक भाषाओं का भी ज्ञान था। उन्होंने भारतीय ग्रंथों के साथ-साथ पाश्चात्य ग्रंथों का भी अध्ययन किया उनसे प्रभावित हुए तथा भारत की विकास एवं प्रगति के लिए पश्चात शिक्षा को आवश्यक माना।
राजा राममोहन राय का मानना था कि हमारी वेदों एवं उपनिषदों पर आधारित प्राचीन संस्कृति बहुत ही महान् थी, लेकिन समकालीन संस्कृति, वेदों पर आधारित ना होकर पुरोहितवादी प्रथाओं, परंपराओं एवं रूढ़ियों पर आधारित है, जो समाज की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उन्नति के लिए घातक है, अतः देश एवं समाज की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि एक ओर राज्य को इन कुरीतियों एवं अंधविश्वासों के विरुद्ध कानून बनाकर प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा दूसरी ओर तार्किक शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए ताकि हमारा समाज रूढ़िवादिता से मुक्त हो सके और संगठित होकर अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति कर सकें।
इसलिए राजा राममोहन राय ने ब्रिटिश शासन से अनुरोध करके सती-प्रथा जैसी कुरीतियों पर प्रतिबंधित लगवाया और शिक्षा का प्रचार प्रसार करने के लिए अनेकों स्कूल एवं कॉलेज संचालित किये।
राजा राममोहन राय के दार्शनिक विचार:-
राजा राममोहन राय ने 1828 ईसवी में हिंदू धर्म में सुधार लाने तथा अपने धार्मिक आदर्शों का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसके सिद्धांतों से उनके दार्शनिक विचारों की जानकारी प्राप्त होती है ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:-
ईश्वर निर्गुण निराकार अनंत अनादि एवं शाश्वत है।
ईश्वर एक है वही सृष्टि का रचियता,पालनकर्ता एवं संहर्ता है।
आत्मा अजर अमर है और ईश्वर का ही अंश है।
व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है।
बुरे कर्मों का त्याग एवं प्रायश्चित करने से मोक्ष प्राप्ति संभव है।
आध्यात्मिक उन्नति के लिए केवल प्रार्थना आवश्यक है, कर्मकांडों (बलि, मूर्ति पूजा, यज्ञ)की आवश्यकता नहीं है।
राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार:-
राजा राममोहन राय के समय समाज में काफी ज्यादा अंधविश्वास एवं कुरीतियों विद्वान थी अतः वे समाज की कुरीतियों के प्रबल विरोधी थे और वे ऐसे स्वस्थ समाज का निर्माण करना चाहते थे जो सुसंगठित एवं प्रगतिशील हो, सामाजिक व्यवस्था के बारे में राजा राममोहन राय के विचार निम्नलिखित थे:-
जाति प्रथा के विरोध:-
राजा राममोहन जाति प्रथा के प्रबल विरोधी थे क्योंकि उनके अनुसार व्यक्ति को उसके योग्यताओं गुणों के आधार पर श्रेष्ठ माना जाना चाहिए ना कि किसी अच्छी जाति में जन्म लेने के आधार पर।
जाति व्यवस्था का इसलिए भी विरोध करते थे क्योंकि जाति व्यवस्था समाज को विभाजित करती है जो सामाजिक उन्नति के लिए सबसे बड़ी बाधा है।
सती प्रथा के विरोधी:-
राजा राममोहन राय के समय समाज में सती प्रथा प्रचलित थी उनकी भाभी को अपनी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती सती होना पड़ा था, इस घटना से दुखी होकर राजा राममोहन राय ने यह शपथ ली थी कि जब तक वह सती प्रथा को समाप्त नहीं करा देंगे तब तक वह आराम से नहीं बैठेंगे अतः उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध अपने भाषण ,लेख एवं जनमत तैयार करके 1829 में ब्रिटिश शासन से सती प्रथा के विरुद्ध कानून बनवाया।
नारी उत्थान के समर्थक:-
राजा राममोहन राय के समय नारियों के साथ अन्याय अत्याचार किया जाता था उनकी स्थिति दास या पशुओं के समान थी अतः वे नारी को सम्मानीय स्थान दिलाने के पक्षधर थे इस संदर्भ में उन्होंने अनेकों प्रयास किया जैसे- बाल विवाह, बहु विवाह का विरोध किया और स्त्री शिक्षा विधवा पुनर्विवाह तथा महिलाओं को भी संपत्ति का हिस्सा दिए जाने का समर्थन किया।
राजा राममोहन राय की धार्मिक विचार:-
राजा राममोहन राय सामाजिक पुनर्जागरण के साथ-साथ धार्मिक पुनर्जागरण की भी संदेशवाहक थे, उन्होंने विभिन्न धर्मों का गहन अध्ययन करके धर्म के सत्य को पहचाना और धर्म के संबंध में निम्न विचार दिए:-
एकेश्वरवाद का प्रतिपादन:-
राजा राममोहन राय बहुदेववाद का खंडन करके एकेश्वरवाद का प्रतिपादन किया, और एकेश्वरवाद के समर्थन में उन्होंने फारसी भाषा में”तुहफुर्तल मुवहिदिन”नामक पुस्तक की रचना की। क्योंकि उनका मानना था कि बहुदेव वाद का सिद्धांत धर्म के आधार पर समाज को विभाजित करता है।
मूर्ति पूजा का विरोध:-
राजा राममोहन राय उपनिषदों एवं वेदों पर विश्वास करते थे और उपनिषदों एवं वेदों में मूर्ति पूजा के स्थान पर श्रद्धा को ज्यादा महत्व दिया गया है अतः मूर्ति पूजा के विरोधी थे और मूर्ति पूजा को ही हिंदू धर्म के समस्त दोषों का मूल कारण मानते थे।
रूढ़िवादी परंपराओं के विरोधी:-
राजा राममोहन राय रूढ़िवादी परंपराओं के अंधानुकरण के विरोधी थे, उनका मानना था कि हमें किसी भी परंपरा को केवल इसलिए नहीं मानना चाहिए कि वह प्राचीन समय से चली आ रही है बल्कि यदि वह तार्किक दृष्टि से सही है तभी उसे स्वीकार करना चाहिए अन्यथा नहीं, उनके समय हिंदुओं द्वारा समुद्र यात्रा करना अनुचित माना जाता था किंतु उन्होंने इस अतार्किक परंपरा को तोड़ते हुए समुद्र से इंग्लैंड की यात्रा की।
धार्मिक सहिष्णुता का प्रतिपादन:-
राजा राममोहन राय सभी धर्मों के प्रति प्रेम भाव रखते थे अर्थात किसी भी धर्म के लोगों के प्रति घृणा भाव नहीं रखते ना ही किसी धर्म के विरोधी थे, बल्कि वे मानवता को ही सर्वोपरि धर्म समझते थे और यह मानते थे कि मानवता के मापदंड पर खरा उतरने वाला धर्म ही सही धर्म है।
राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार:-
राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचारों को निम्न बिंदुओं द्वारा देखा जा सकता है:-
व्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन:-
राजा राममोहन राय के अनुसार व्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ केवल विदेशी शासन से मुक्ति नहीं है बल्कि व्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है कि उसे निजी मामलों में आत्म-निर्णय का अधिकार प्राप्त हो, उनका मानना था कि विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में राज्य का हस्तक्षेप केवल इतना ही होना चाहिए, जिससे कि दूसरे व्यक्ति के विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश न लगे। अर्थात राज्य केवल ‘स्वतंत्रता का प्रहरी’ होना चाहिए ना की स्वतंत्रता का बाधक।
प्रेस की स्वतंत्रता के समर्थक
राजा राममोहन राय प्रेस की स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे:- उनका मानना था कि प्रेस समाज की अभिव्यक्ति है अतः प्रेस की स्वतंत्रता पर पाबंदी नहीं होनी चाहिए इस संदर्भ में उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता को समाप्त करने वाले अध्यादेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय एवं लंदन के सम्राट में भी अपनी अर्जी दाखिल की थी।
न्याय संबंधी विचार:-
राजा राममोहन राय निष्पक्ष न्याय व्यवस्था के समर्थक थे और चूंकि तत्कालीन समय में पास किया गया ‘जूरी अधिनियम’ पक्षपात पूर्ण न्याय व्यवस्था पर आधारित था इसलिए उन्होंने इसका विरोध किया।
ब्रिटिश शासन संबंधी विचार:-
राजा राममोहन राय अपने युवा काल में अंग्रेजी शासन को घृणा की दृष्टि से देखते थे परंतु जब उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विधि के शासन को समझ लिया तो वे ब्रिटिश शासन के प्रबल समर्थक बन गए और उन्होंने यह भी कहा कि”मैं यह महसूस करता हूं कि अंग्रेजी शासन देशवासियों की दशा में सुधार करेगा”।
प्रशासन संबंधी विचार:-
राजा राममोहन राय व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर थे लेकिन धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों के लिए राज्य के हस्तक्षेप को आवश्यक मानते थे। उनके अनुसार राज्य का प्रशासन नागरिकों के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करके उनका जीवन सुखमय में बनाना है।
राजा राममोहन राय के आर्थिक विचार:-
यद्यपि राजा राममोहन राय ने व्यवस्थित रूप से अपने आर्थिक सिद्धांतों का प्रतिपादन नहीं किया किंतु उनके अन्य राजनीतिक विचारों से आर्थिक विचारों की जानकारी प्राप्त होती है उनके आर्थिक विचार निम्नलिखित थे:-
भारतीय किसानों को जमीदारी प्रथा से मुक्त किया जाए, क्योंकि जमीदार किसानों के शोषक हैं।
प्रशासन एवं सैनिक व्यय में कमी की जाए, इसके लिए यूरोपीय कलेक्टरों के स्थान पर कम वेतनमान भारतीय कलेक्टरों की नियुक्ति की जाए और जनता को सैनिक प्रशिक्षण देकर सुरक्षा हेतु रिजर्व फोर्स के रूप में रखा जाए। ताकि सैन्य खर्च कम आए।
देश की धन निकाशी को रोका जाए, इसके लिए निर्यात कर घटाया जाए और आयात कर बढ़ाया जाए।
राममोहन राय के शिक्षा संबंधी विचार:-
राजा राममोहन मानते थे कि तार्किक शिक्षा के माध्यम से समाज को जागृत करके समाज को रूढ़िवादिता से मुक्त एवं प्रगतिशील बनाया जा सकता है, तथा भारतीय शिक्षा के साथ-साथ पश्चात शिक्षकों के महत्व देते थे इसीलिए उन्होंने शिक्षा का प्रचार प्रसार करने के लिए अनेकों हिंदू एवं इंग्लिश कॉलेज भी खोलें संचालित भी किए जैसे- सबसे पहले 1825 में कोलकाता में वेदांत कॉलेज की स्थापना की।