राष्ट्रीय सुरक्षा,राष्ट्रीय हित एवं चरित्र
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राष्ट्रीय सुरक्षा से आशय-अपने राष्ट्र के नागरिकों, अर्थव्यवस्था तथा विभिन्न संस्थानों को सुरक्षित रखने से है।
राष्ट्रीय सुरक्षा की विभिन्न धारणाएं-:
पारंपरिक सुरक्षा की अवधारणा-: पारंपरिक राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा में राष्ट्रीय सुरक्षा का अभिप्राय मुख्यतः बाह्य(विदेशी) आक्रमणों से सुरक्षा था।
राष्ट्रीय सुरक्षा की वर्तमान अवधारणा-: राष्ट्रीय सुरक्षा की वर्तमान अवधारणा बहुत ही ज्यादा व्यापक है;वर्तमान अवधारणा के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा में न सिर्फ बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा बल्कि एकता, अखंडता, संप्रभुता, अर्थव्यवस्था, आंतरिक संस्थाओं आदि की रक्षा के साथ-साथ, मानवता की रक्षा भी शामिल है।
राष्ट्रीय सुरक्षा की विशेषताएं -:
राष्ट्रीय सुरक्षा का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय हितों में आने वाली बाधाओं को समाप्त करना है।
राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय राजनीति से प्रभावित होती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा एक अस्थाई/परिवर्तनशील अवधारणा है; इसके कोई निश्चित मानक नहीं है।
राष्ट्रीय सुरक्षा एक सापेक्ष अवधारणा है; इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा का मापन अन्य राष्ट्र से तुलना करके ही किया जा सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा में विदेशी आक्रमणों से रक्षा के साथ-साथ, राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय अखंडता एवं संप्रभुता की रक्षा भी शामिल है।
राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कारक/तत्व -:
भौगोलिक स्थिति – यदि कोई राष्ट्र स्थल युद्ध राष्ट्र तो वह विदेशी आक्रमण की दृष्टि से कम सुरक्षित होगा इसके विपरीत यदि उसकी सीमा समुद्र से लगी हैं या किसी विशाल पर्वत- पहाड़ से लगी है तो विदेशी आक्रमण की संभावना कम होगी वह अधिक सुरक्षित होगा।
उदाहरण के लिए- उत्तर पूर्व में हिमालय तथा दक्षिण में हिंद महासागर भारत की रक्षा कर रहा है।
आर्थिक स्थिति -: यदि कोई राष्ट्र आर्थिक रूप से संपन्न है; तो उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा भी अधिक मजबूत होगी। उदाहरण के लिए अमेरिका।
मानव शक्ति-: यदि राष्ट्रीय में शिक्षित, प्रशिक्षित एवं स्वस्थ लोग अधिक हैं तो उसे राष्ट्र की सुरक्षा अधिक मजबूत होगी।
सैन्य शक्ति-: जिस देश के पास विशाल एवं प्रशिक्षित सेना तथा मजबूत वेपंस वगैरा होते हैं उसे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिक मजबूत होती है।
आंतरिक वातावरण-: यदि राष्ट्र के अंदर लोगों में एकता की भावना नहीं है धर्म ,जाति, संप्रदाय ,भाषा आदि के आधार पर दंगे होते हैं तो वह राष्ट्र राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर होगा।
अंतरराष्ट्रीय संबंध-: यदि किसी राष्ट्र के शक्तिशाली राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध है; तो वह राष्ट्र भी अधिक सुरक्षित माना जाएगा।
राजनीतिक नेतृत्व -: यदि राष्ट्र का नेतृत्व योग्य राजनीतिक संस्था या व्यक्ति के हाथों में है; तो उसे राष्ट्र की सुरक्षा अधिक मजबूत होगी।
भारत की सुरक्षा नीति के घटक-:
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए मुख्य रूप से चार घटक अपने गए हैं जो निम्नलिखित हैं –
प्रथम घटक-हमारी सुरक्षा नीति का पहला घटक सैनिक क्षमता को मजबूत करना है; क्योंकि भारत में पाकिस्तान ने 1965, 1971 और 1999 में तथा चीन ने 1965 में हमला किया था।
अतः इसी घटक के तहत भारत ने 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण कर ,परमाणु संपन्न शक्ति राष्ट्र बना, और लगातार अपनी सैन्य-शक्ति को लगातार मजबूत कर रहा है।
दूसरा घटक-भारतीय सुरक्षा नीति का दूसरा घटक अंतरराष्ट्रीय कानून तथा संस्थाओं में, अपनी शक्ति मजबूत करना है; ताकि अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त हो।
अतः इसी घटक के तहत भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी,नि:शस्त्रीकरण के प्रयासों की हिमायत की, और वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में अपनी दावेदारी बढ़ा रहा है।
तीसरा घटक – भारतीय सुरक्षा नीति का तीसरा घटक आंतरिक समस्याओं का समाधान कर एकता ,अखंडता सुनिश्चित करना है। ताकि हम आंतरिक दृष्टि से मजबूत रहे।
अतः इसी घटक के तहत भारतीयों को जातिवाद भाषावाद के विरुद्ध जागरूक किया जा रहा है तथा सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास की नीति अपना रहा है।
चौथा घटक-राष्ट्रीय सुरक्षा का आखिरी घटक अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है; क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में आर्थिक शक्ति ही सर्वोच्च शक्ति के रूप में उभर रही है
अतः इसी के तहत हमने 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनामी का लक्ष्य रखा है।
सामूहिक सुरक्षा-:
सामूहिक सुरक्षा वह अवधारणा है जिसके अंतर्गत विभिन्न देश मिलकर सुरक्षा की दृष्टि से एक समूह बना लेते हैं, और एक दूसरे की सुरक्षा के लिए वचनबद्ध रहते हैं।
उदाहरण के लिए नाटो।
राष्ट्रीय हित-:
मार्गेंथाऊ के अनुसार -: “राष्ट्रीय हित का सीधा अर्थ है उत्तरजीविता; अर्थात दूसरे देशों द्वारा अतिक्रमण के विरुद्ध अपनी भौतिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक विशिष्टताओं को सुरक्षित रखना।”
अर्थात कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय हित राष्ट्रीय आवश्यकता तथा उद्देश्यों का ही प्रतिबिंब होते हैं।
जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के दौरान दिए गए भाषण में कहा था कि “किसी भी देश की विदेशी नीति की आधारशिला राष्ट्रीय हित होते हैं; भारत की विदेशी नीति भी राष्ट्रीय हितों पर आधारित होगी।”
राष्ट्रीय हितों के प्रकार-:
थॉमस डब्लू रॉबिंसन के अनुसार-राष्ट्रीय हित के 6 प्रकार बताए हैं -:
1.प्राथमिक हित-यह राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण हित होते हैं, जिन पर कोई भी राष्ट्र कभी समझौता नहीं करता। (उदाहरण राष्ट्रीय सुरक्षा)
2.गौण हित- यह प्राथमिक हित की तुलना में कम महत्वपूर्ण होते हैं; (उदाहरण-विदेश में रहने वाली नागरिकों की सुरक्षा)
3.स्थायी हित-यह राष्ट्र की दीर्घकालिक हित होते हैं;(उदाहरण के लिए शांति-सुव्यवस्था का हित)
4.परिवर्तनशील हित-जो हित परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं; (उदाहरण– अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक संरचना संबंधी हित।)
5.सामान्य हित-जो हित सामान्य प्रकृति के होते हैं; जैसे- राष्ट्र विकास का हित।
6.विशिष्ट हित- सामान्य हित ही कभी-कभी विशिष्ट हित बन जाते हुए( उदाहरण के लिए भारत का कश्मीर प्राप्ति का हित)
राष्ट्रीय हित के निर्धारक तत्व-:
शक्ति-यदि राष्ट्रीय शक्ति अधिक मजबूत है तो राष्ट्रीय हित भी अधिक व्यापक होंगे तथा उनका आसानी से वह प्राप्त कर पाएगा।
शांति –यदि राष्ट्र में शांति सुव्यवस्था है तो राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न नहीं होगी।
आर्थिक समृद्धि –आर्थिक समृद्धि से राष्ट्रीय हित की पूर्ति शीघ्रता से हो जाती है।
सांस्कृतिक एकता-सांस्कृतिक एकता, राष्ट्रीय हितों की पूर्ति में सहायक है।
मनोबल- यदि राष्ट्र के पास शक्ति है किंतु मनोबल नहीं है तो वह आसानी से राष्ट्रीय हितों की पूर्ति नहीं कर सकता।
नेतृत्व – यदि राष्ट्र का नेतृत्व विवेक पूर्ण व योग्य व्यक्ति के हाथों में है तो उसके राष्ट्रीय हित महत्वाकांक्षी होंगे।
राष्ट्रीय हितों की अभिवृद्धि के साधन-:
कूटनीति – अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सुनियोजित कूटनीति का प्रयोग कर राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि की जा सकती है।
प्रचार -: इसके अंतर्गत कोई राष्ट्र अपनी शक्ति या विचारों का प्रचार प्रसार करके राष्ट्रीय हित साधता है।
राजनीतिक युद्ध-: इसके अंतर्गत राष्ट्र राजनीतिक युद्ध द्वारा दूसरे देशों पर दबाव बनाता है
गठबंधन या संधि -: अन्य राष्ट्रों के साथ गठबंधन या संधि करके अपने राष्ट्रीय हितों की अभिवृद्धि की जा सकती है।
आर्थिक साधन-इसके अंतर्गत राष्ट्र अन्य राष्ट्र को आर्थिक सहायता देकर उस पर अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप दबाव बनाता है।
साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद-: साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद की नीति के माध्यम से भी राष्ट्र अपने हितों की अभिवृद्धि कर सकता है।
राष्ट्रीय चरित्र-
राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्र के लोगों की नैतिक तथा सांस्कृतिक पहचान होती है।
उदाहरण के लिए, भारत का राष्ट्रीय चरित्र हिंदुत्ववादी है।
जापान का राष्ट्रीय चरित्र अनुशासनवादी है।
विशेषताएं -:
यह एक अमूर्त अवधारणा है।
इसका संबंध राष्ट्र के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों से होता।
राष्ट्रीय चरित्र देश की पहचान होती है।
राष्ट्रीय चरित्र की अभिव्यक्ति नागरिकों के व्यवहार में होती है।
राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय शक्ति का अभिन्न अंग होता है।