[राष्ट्र निर्माण]
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Toggleराष्ट्र का अर्थ-:
राष्ट्र का तात्पर्य या देश से न होकर, व्यक्तियों के ऐसे समूह से होता है जिनमें आपसी सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक एकता विद्यमान हो।
राष्ट्र निर्माण-:
‘डेविड विल्सन’ के अनुसार-: “राष्ट्र निर्माण का तात्पर्य सामाजिक समूह में राष्ट्रीय चेतना का उदय होना है।”
भारत में राष्ट्र निर्माण-:
भारत में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया तो प्राचीन काल से ही विद्यमान रही है, यही कारण है कि भारतीय प्राचीन ग्रंथो जैसे- ऋग्वेद,कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राष्ट्र शब्द का उल्लेख किया गया।
किन्तु आधुनिक भारत में राष्ट्र निर्माण की क्रिया 1857 की क्रांति के साथ प्रारंभ हुई, और राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई।
राष्ट्र निर्माण के प्रमुख आधार (तत्व)-:
भौगोलिक एकता-: राष्ट्र के भू आकृतिक प्रदेशों में जुड़ाव होना।
राजनीतिक एकता-: सुदृढ़ एवं स्थाई सरकार जो सभी नागरिकों के हितों की पूर्ति करे।
सामाजिक एकता-: सामाजिक सौहार्द, समानता का समावेशन।
मानसिक एकता-: लोगों के अंदर राष्ट्रवाद की भावना।
धार्मिक समन्वय– लोगों के अंदर धार्मिक सहिष्णुता।
वैज्ञानिक विकास– आर्थिक तथा तकनीकी उन्नति।
भारत में भले ही भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, भाषा,क्षेत्र के लोग रहते हैं, किंतु उनमें राष्ट्र के प्रति एकजुटता का भाव देखने को मिलता है इसीलिए कहा जाता है- “विविधता में एकता हिंद की विशेषता”।
भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण
1857 की क्रांति की असफलता
1857 की क्रांति की असफलता ने भारतीयों को इस बात का एहसास करवाया कि हमें इतनी बड़ी ब्रिटिश शक्ति का मुकाबला असंगठित होकर नहीं बल्कि संगठित होकर आपसी सहयोग के माध्यम से करना चाहिए अतः भारतीयों की आपसी संगठन और सहयोग की भावना नहीं राष्ट्रवाद की भावना को जन्म दिया।
अंग्रेजों की भेदभाव पूर्ण नीति
टिश शासन की प्रशासन व्यवस्था में उच्च प्रशासनिक अधिकारी उच्च न्यायिक अधिकारी अंग्रेज ही हुआ करते थे जो भारतीयों को नीचा समझ कर उनके के साथ भेदभाव किया करते थे अतः उनकी भेदभाव पूर्ण नीति ने भारतीयों और अंग्रेजों के मध्य भी विभेद उत्पन्न कर दिया जिसके कारण भारतीयों ने एकजुट होकर अंग्रेजों को भगाने का निश्चय किया परिणाम स्वरूप राष्ट्रवाद का उदय हुआ।
राजनीतिक एकीकरण
ब्रिटिश शासन ने समस्त भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य की शासन व्यवस्था में दृढ़ता एवं स्थायित्व लाने के लिए, संपूर्ण ब्रिटिश भारत का राजनीतिक एकीकरण (संपूर्ण भारतीय क्षेत्र में एक समान नियम कानून)किया, जिससे संपूर्ण भारत नए राजनीतिक जुड़ाव हुआ जो राष्ट्रवाद के उदय में सहायक सिद्ध हुआ
लॉर्ड लिटन की प्रतिक्रियावादी नीति
लॉर्ड लिटन ने 1878 ईस्वी में वर्नाकुलर एक्ट पारित किया जो प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करने का अधिनियम था,
भारत का आयात शुल्क हटा दिया जिससे भारतीय उद्योग और भी ज्यादा ठप हो गए,
तथा 1878 में ही भारतीय शस्त्र अधिनियम बनाया जिसके तहत यूरोपियों को बिना लाइसेंस के हथियार रखने का अधिकार था किंतु भारतीयों को नहीं
अतः इस नीति की प्रतिक्रिया स्वरूप भारत में राष्ट्रवाद का उदय हुआ।
सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रभाव
19वीं शताब्दी में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन हुए जिनके द्वारा भारत में अंधविश्वास कुरीतियों का पतन हुआ और भारतीयों में आपसी सहयोग , तथा राष्ट्रप्रेम की भावना विकसित हुई क्योंकि दयानंद सरस्वती जैसे सुधार कोने स्वदेश प्रेम के संबंध में कहा “भारत भारतीयों के लिए है”
आधुनिक शिक्षा
आधुनिक पश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से भारतीय स्वतंत्रता समानता तथा राष्ट्र की आजादी के लिए बंधुत्व जैसे विचारों से अवगत हुए, और इन विचारों के प्रभाव से भारत में राष्ट्रवाद का विकास हुआ।
प्रेस सहित्य एवं संचार का प्रभाव
-:रेल, डाक,तार आदि के माध्यम से भारतीयों के बीच की भौगोलिक दूरी कम हुई तथा प्रेस के माध्यम से बुद्धिजीवियों ने सामान्य भारतीयों को भारत की स्थिति से अवगत करवाया जैसे भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने नाटक “भारत दुर्दशा” में तथा दादाभाई नरोजी ने अपने” धन निष्कासन सिद्धांत द्वारा”भारतीयों को यह समझाया कि ब्रिटिश शासन हमारे लिए कैसे हानिकारक है जिसके प्रभाव से भारतीयों में भारत के प्रति लगाव की भावना जागृत हुई और भारत में राष्ट्रवाद का उदय हुआ।
भारत के राष्ट्रवादी चरण-:
उदारवादी चरण
उग्रवादी चरण
गांधीवादी चरण।
स्वतंत्रता के पश्चात भारत में राष्ट्र निर्माण-:
स्वतंत्रता के पश्चात भारत में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले कारक निम्नलिखित थे
एकीकृत संविधान का निर्माण(जिसमें सभी पर के हित निहित हैं)।
धर्मनिरपेक्षता संबंधित प्रावधान।
लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम।
मोदी सरकार की सबका साथ सबका विकास सबका काया सबका विश्वास नीति।
आजादी का अमृत महोत्सव का आयोजन किया जाना।
वर्तमान सरकार की आत्मनिर्भर भारत तथा विकसित भारत संकल्प।
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां -:
सांप्रदायिकता की चुनौती-: भारत में भिन्न-भिन्न संप्रदाय के लोग निवास करते हैं, किंतु जब भारत के कुछ लोग केवल अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते हैं दूसरे धर्म की निंदा करते हैं तो सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
जातिवाद की चुनौती-: भारत में जाति प्रथा की उच्च नीच की भावना ने भारतीय समाज को विभाजित करके रखा है।
क्षेत्रवाद की चुनौती –; केवल अपने क्षेत्र के प्रति विशिष्ट लगाव रखते हुए दूसरे क्षेत्र के विकास का विरोध करना।
भाषावाद की समस्या-: भारत में विभिन्न भाषा के लोग रहते हैं किंतु इनमें भाषा बोलियां को लेकर संघर्ष होता है जिससे राष्ट्रीय एकता बाधित होती है।
पश्चिमीकरण का बढ़ता प्रभाव- लोग वर्तमान में आधुनिकता के नाम पर पश्चात संस्कृति की संस्कृतियों का अनुसरण करते जा रहे हैं जिससे हमारे परंपरागत गौरवशाली संस्कृति एवं इतिहास का पतन हो रहा है, जो भी राष्ट्र निर्माण में एक चुनौती है।
सुझाव-:
अखिल भारतीय राष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन करके राष्ट्रीयता की भावना का विकास विस्तार किया जाए।
एक समान आचार संहिता को लागू करकेष एक देश एक कानून को व्यवहारिक रूप दिया।
एक राष्ट्र एक चुनाव जैसे संकल्पना को पूरा किया जाए।
अंतर्जातीय तथा अंतर धार्मिक विवाहों को बढ़ावा दिया।
केंद्र राज्यों के मध्य मधुर संबंधों द्वारा सहभागिता पर आधारित राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा।
प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रासंगिक तत्वों को बढ़ावा देकर राष्ट्रवाद की भावना का विकास विस्तार किया जाए।
उल्लेखनीय है कि भारत में राष्ट्र निर्माण की मार्ग में अनेकों चुनौतियां विद्यमान हैं, जिससे इसके विकास की दर काफी धीमी है; किंतु हम विकसित भारत जैसे संकल्पों में सहयोगी बनकर राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।