शिक्षा का निजीकरण

शिक्षा का निजीकरण 

शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, जिसमें केंद्र एवं राज्य दोनों कानून बना सकते हैं तथा शिक्षा का प्रबंध कर सकते हैं; किंतु वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। 

शिक्षा के निजीकरण का अर्थ-:

“जब शिक्षा का संचालन एवं प्रबंधन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाता है, तो इसे शिक्षा का निजीकरण कहा जाता है”

शिक्षा के निजीकरण का प्रभाव 

सकारात्मक प्रभाव-

  1. शिक्षण संस्थानों की सुविधाओं में वृद्धि (जैसे- लाइब्रेरी, खेल परिसर आदि)

  2. व्यवसाय उन्मुक्त शिक्षा (जो व्यावसायिक आवश्यकताओं के अनुरूप हो वैसा पाठ्यक्रम बनाया जाता है)

  3. रुचि एवं क्षमता के अनुसार विषय चुनने की स्वतंत्रता। 

  4. शिक्षा पर सरकार का बोझ कम होना। 

  5. रोजगार के अवसरों में वृद्धि क्योंकि (लोग प्राइवेट शिक्षक बन सकते हैं) 

 इसके अतिरिक्त शिक्षा के निजीकरण से, शिक्षा क्षेत्र का चुनाव औद्योगिक क्षेत्र से हो गया है, जिससे प्लेसमेंट दर अधिक होती है। 

शिक्षा के निजीकरण की नकारात्मक प्रभाव-:

  • महंगी शिक्षा- निजी शिक्षण संस्थान अधिक से अधिक फीस वसूलते हैं। (जिससे शिक्षा गरीबों की पहुंच से दूर हो जाती है) 

  • शिक्षा का व्यापारीकरण-शिक्षा के निजीकरण से शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ है,बहुत से संस्थान पैसे लेकर डिग्री दे देते हैं। 

  • शिक्षा की गुणवत्ता का ह्रास – निजी शिक्षण संस्थान का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है, इसलिए वे गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, परिणामस्वरुप शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आती है। 

  • शैक्षिक असमानता-: शिक्षा के निजीकरण से अमीरों और गरीबों के मध्य शिक्षा की खाई उत्पन्न हो गई। 

  • शिक्षकों का शोषण-निजी क्षेत्र के शिक्षकों से कम वेतन में अधिक काम करवाया जाता है। 

अतः भले ही शिक्षा का निजीकरण हो, किंतु उसमें  भी पर्याप्त सरकारी नियंत्रण की आवश्यकता है। 

मध्य प्रदेश सरकार का निजी विद्यालय अधिनियम 2018-

  • निजी स्कूल प्रतिवर्ष 10% से अधिक फीस नहीं बढ़ा सकते। 

  • न्यूनतम तीन वर्षों तक ड्रेस में परिवर्तन नहीं कर सकते। 

  • किसी दुकान विशेष से स्कूल की सामग्री खरीदने हेतु, विवस नहीं कर सकते। 

  • यूनिफॉर्म के अलावा किसी अन्य वस्तु में अपना नाम नहीं लिखवा सकते।

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